Friday, 16 June 2017

विशुद्ध चैतन्य

विशुद्ध चैतन्य गुरु व ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलिए, केवल उनके चरणों में बैठकर भजन-कीर्तन करने से आप कहीं नहीं पहुँचेंगे | मुख्य मेनु सामग्री पर जाएं मुख पृष्ठ About लेखक पुरालेख: विशुद्ध चैतन्य पोस्ट नेविगेशन पुराने पोस्टसनए पोस्टस सितम्बर 28 2013 विश्वधर्म मैं अक्सर कहता हूँ कि धर्म को समझें और माने नहीं जानें तो इसका अर्थ यह नहीं कि मैं शास्त्रों का ज्ञाता हूँ या ग्रंथों को कंठस्थ किया हुआ है | या कोई बहुत ही बड़ा पुजारी या संत महंत हूँ | मैं एक साधारण मानव हूँ जिसमें वे सभी आवश्यक गुण है जो एक मानव में होते हैं जैसे काम, क्रोध, लोभ,मोह…जो शरीर को गति प्रदान करने वाले चार घोड़े हैं और जिनसे मुक्त होते ही मानव ब्रम्हज्ञान को प्राप्त हो जाता है चंद्रास्वामी, आसाराम बापू, निर्मल बाबा, नित्यानंद जैसे महान पूजनीय व श्रद्धेय ईश्वरत्व को प्राप्त होते हैं | मैं स्वयं उनका प्रशंसक हूँ और पूरी श्रद्धा से उन्हें नमन करता हूँ क्योंकि वे ब्रम्ग्यानी, त्यागी व मोह माया से मुक्त हैं | मोक्ष भी उनके दरवाजे पर खड़ी रहती है उनकी आज्ञा की आकांक्षा में | मैं जिस धर्म की बात करता हूँ वह विश्वधर्म है | जो सम्पूर्ण सृष्टि अपनाती है | ज्सिमें सम्पूर्ण जगत ध्यानमग्न रहता है | यह वह धर्म है जिसमें एक अजपा मन्त्र निरंतर गुंजायमान रहता है जैसे हमारी श्वास का आवागमन | वृक्षों का कार्बनडाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन में विनिमय | पृथ्वी का निरंतर अपनी सीमा में गति करना बिना थके मीरा की तरह | जिस धर्म को हर पशु-पक्षी बिना शास्त्र पढ़े पूरी श्रद्धा व लगन से निभाता है जिसे हम मातृत्व कहते हैं, जिसे हम प्रेम कहते हैं, जिसे हम समर्पण कहते हैं | यह वह विश्वधर्म है जिसे श्री कृष्ण ने अपने विश्वरूप से समझाने का प्रयत्न किया था लेकिन ज्ञानियों ने समझा कि उन्होंने मंदिर बनाकर पूजा करवाकर हमारी कमाई का नया रास्ता बताया है | उन्होंने उनकी फोटो बनाई, मूर्ति बनाई, मंदिर बनाया और शुरू कर दिया जय जय | -विशुद्ध चैतन्य इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Exploitation of Spirituality में प्रकाशित किया गया सितम्बर 26 2013 क्या हम भारतीय वास्तव में स्त्रियों का सम्मान करते हैं ? क्या हम भारतीय वास्तव में स्त्रियों का सम्मान करते हैं ? शायद नहीं ! यदि करते होते तो यह सब पढने को नहीं को नहीं मिलता जो मैं नीचे देने जा रहा हूँ | यह किसी के वाल से कॉपी किया हुआ हैं जिसका लिंक भी साथ में है | सावधान होकर पढिए । अमेध्यपूरेने कृमिजाल संकुले स्वभावदुर्गंध विनिनिंदांतरे। कलेवरे मूत्रपुरीश्भाविते रमन्ती मूढ़ा वीरमनति पंडिता । अर्थ:-स्त्री के साथ साथ सहवास करते हुए घृणा नहीं होती ,जिस स्त्री के शरीर मे मल, मूत्र,हाड़, मांस,कृमि,कफ, दुर्गंध, भरा पड़ा है ,मनुष्य को दुर्गंध नहीं आती उस स्त्री के शरीर से और प्रत्येक मनुष्य अपने को पंडित समझता है जब की है वो महा मूर्ख व्यक्ति है जिसे स्त्री के शरीर से दुर्गंध का अनुभव नहीं होता। स्त्री के शरीर की आसक्ति समाप्त करने की अभ्यास क्यू नहीं करते ।मन को शिवजी मे लगाओ बार बार बार लगाओ फिर संसार मे आयेगा डरो मत जब साधना के द्वारा अन्तःकरण शुद्ध होने लगेगा तो संसार का क्षणभंगुर सुख का आकर्षण समाप्त हो जाएगा, संसार के स्त्री, पति ,पुत्र , या रसगुल्ला, या जड़ वस्तु मे सुख मिलता है इसका एक कारण है अन्तःकरण बहुत पापयुक्त है, इसलिए संसार के स्त्री मे आकर्षण है( यावत पापाइस्तु मलीनम हृदयम ) कामिनी , कंचन और कीरती की आसक्ति के त्याग के बिना कभी शिव का प्रेमानन्द नहीं प्राप्त कर सकते करोड़ो कल्प भक्ति ज्ञान करके मर जाओ,मन बुद्धि की शरनगटी भगवान शिव के चरणों मे करनी पड़ेगी चाहे ज्ञान योग, चाहे कर्म योग, चाहे भक्ति योग । भर्तृहरि ने सही ही तो कहा था, “जल्पन्ति साध्मान्यें पश्येंत्यन्म सविभ्रमा ! हृदये चिन्त्यन्त्प्रयम प्रियः को नाम योषिताम !!” अर्थात “स्त्रियाँ किसी एक से बात करती है, किसी दूसरे को विलासपूर्वक देखती है और ह्रदय में किसी तीसरे को ही चाहती है ! इस प्रकार स्त्रियों का प्रिय है ही कौन? भक्ति या साधना मन को करनी है क्यूकी कर्म का करता मन है ,यह जो मन मे सोचते है यही कर्म है, मृत्यु के बाद यह संसारी माता,पिता, भाई, पुत्र, पत्नी,प्रेमिका , प्रॉपर्टि नहीं काम आएंगे बस आपने जो अच्छे बुरे कर्म किए है वही काम आएंगे। व्याकुल हृदय से पुकारो रोकर भगवान शिव को वे अवश्य अपना दर्शन देंगे ,अपने इष्टदेव मे अनन्या रहो, बाकी राम कृष्ण , आदि जीतने अवतार है यह सब भगवान शिव के आत्माअंश(स्वांश है) है ,इनमे दुर्भावना नहीं करना है,अपने अपने पूरवा जन्म के संस्कार के अनुसार प्रत्येक जीव अपना अपना इस्थदेव चुनता है। वेद कहता है:- तं देवतनाम परमं चा देवतम। राम कृष्ण,विष्णु आदि देवो मे भी सर्वश्रेष्ट है भगवान शिव वेद कह रहा है। पति पाटिनाम चा। भगवान शिव जीतने विवाहिता स्त्री है अनंत ब्रह्मांड मे उन सबके पति के भी पति है भगवाब शिव ,ब्रह्माँ विष्णु आदि के भी पति है भगवान शिव आपने भगवान का एक नाम सुना होगा पशुपतिनाथ। शिव जी को अपना पति, प्रीतम, स्वामी, सखा,माता आदि किसी भाव मे भक्ति करो।उन्हे अपना सर्वस्व मानकर भक्ति करो । भगवान शिव उनका नाम, उनका गुण,उनकी लीला, उनके धाम ,उनके संत या भक्त(वास्तविक भक्ति ,ब्रहमनिष्ट) मे अनन्या रहो, भगवान शिव कपूर के समान गोरे (आनंद रंग के है) नित्या 16 वर्ष के है अपने महा कैलास धाम मे माता पार्वती के साथ निवास करते है,माता पार्वती की भी आयु 16 वर्ष की है अनंत कोटी ब्रह्मांड या परम व्योम लोक की त्रिपुरसुंदरी है माता पार्वती, प्रेम रूप , रस की साक्षात मूर्ति है प्यास की साक्षात अवतार है उमा महादेव। दिव्य भक्ति प्राप्त करने पर आपलोगो को पता चलेगा की भगवान शिव आर माता पार्वती कितने सुंदर है,अनंत सौन्दर्य माधुर्य ,लावण्या, सरुशिवल्य,सौकुमार आदि उमा शिव के के प्रत्येक रोम कूपो मे भरा पड़ा है स्त्री के शरीर मे क्या है कभी बुद्धि से विचार कीजिए शिव जी का शरीर तो सत चिद आनंद मय ।स्वयं सतचिदननद ब्रह्म निराकार शिव पार्वती की कृपा से सगुण साकार बनते है स्वयं आनंद ब्रह्म ही शिव सगुण साकार रूप धरण करते है ,शिव का मुख आनंद का बना है, शिवजी के आँख, कान,मुख, त्वचा,चरण,रूप केवल आनंद प्रेमानन्द से भरा पड़ा है, वेद कहता है: आनंदों ब्रहमेती व्याजनात। आनंद मूर्ति साक्षात। आप कल्पना नहीं कर सकते भगवान शिव के दर्शन मे कितना आनंद है, उधारण: जब कभी आपलोगो का अन्तः कारण शुद्ध हो जाएगा किसी जन्म मे साधना करके और गुरु द्वारा दिव्य प्रेम या योगमाया या चिद शक्ति का दान आपके हृदय मे किया जाएगा ,उस स्वरूप शक्ति के द्वारा या चिद शक्ति के द्वारा आपके इंद्रिय मन बुद्धि को दिव्य बना दिया जाएगा और आप जब दिव्य इंद्रिय मन बुद्धि द्वारा भगवान शिव के दर्शन करोगे तो आपको अनंत आनंद का अनुभव रस प्राप्त होगा आपकी समाधि हो जाएगी , दिव्य मन भी उस अनंत आनंद को सह नहीं पाता इसलिए समाधि हो जाती क्यूकी भगवान शिव स्वयं तो रस्वरूप तो है , स्वयं आनंद स्वरूप तो साक्षात है, पर जिस भक्त के हृदय मे बैठे रहते है उस भक्त हृदय मे बैठकर अपने ही आनंद स्वरूप का रसवादन करते है। भगवान शिव का प्रथम बार दर्शन होगा आपको तो प्रथम दर्शन पर जो अनंत आनंद प्राप्त होगा उससे अनंत गुना आनंद द्वितीय दर्शन प्राप्त होगा,आपको लगेगा प्रथम मिलन मे कम आनंद था, द्वितीय दर्शन ज्यादा आनंद था, इसी तरह जब तीसरी बार भगवान शिव का दर्शन करोगे फिर द्वितीय दर्शन के आनंद से ज्यादा आनंद आपको तृतीया दर्शन मे मिलेगा भगवान् शिव अपने आनंद को नित्या बढ़ाते रहते है,इसी तरह न भगवान शिव की हार होती है और नाही शिव भक्त की हार होती है। आनंद सदा को बदता जाता है नित्या नवयमान लगता है प्रेम के बारे मे नारद जी प्रेम सदा बढ़ता रेहता है नारद जी सूत्र मे कहते है:प्रतिक्षणम वर्धमानम। उतपलदेव ने शिव प्रेमानन्द की परिसभाषा की है शिव जी तुम्हारे स्वरूप के साथ संयोग ही प्रेमानन्द है,तुम्हारे स्वरूप के दर्शन का वियोग ही दुख है, संसारी मनुष्य क्या जाने दुख क्या होता है यह संसारी तो विषयानंदी है बस इसी विषय मे दिन रात सड़ रहे है और अपना मनुष्य देह भी बर्बाद कर रहे है सोचते नहीं कभी मृत्यु के बाद क्या दशाहोगी। भक्त को भगवान शिव के संयोग या मिलन मे जितना मात्रा का अनंत आनंद का अनुभव होता है, उतनी ही मात्रा का दुख भी शिव भक्त को भगवान शिव के वियोग मे अनंत मात्रा का दुख का भी अनुभव करना पड़ता है,शिव भक्त की दशा आप लोग नहीं समझ सकते। योगमाया के द्वारा शिव भक्त उस अनंत विरह के दुख को सह पाता है, आपलोगो की बुद्धि से परे है। नहीं समझ सकते। संसार मे किसी व्यक्ति या वस्तु के मिलन मे जितनी मात्रा का सूख मिलता है,उस व्यक्ति कों अमुक वस्तु और व्यक्ति के वियोग मे उतनी ही मात्रा का दुख भी मिलता है। बुद्धि लगाकर सोचिए शिव भक्त को शिव जी के दर्शन मे अनंत मात्र का सुख(आनंद) मिलता होगा तो शिव फिर शिव भक्त को शिव जी के वियोग मे कितना दुख मिलता होगा। सौजन्य:रामकृष्ण वचनमृत https://www.facebook.com/shivatatva इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Exploitation of Spirituality में प्रकाशित किया गया सितम्बर 25 2013 कुछ कुछ पागल होते हैं  प्यार के दीप जलाने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं अपनी जान से जाने वाले , कुछ कुछ पागल होते हैं || हिज्र के गहरे जख्म मिले तो मुझको ये अहसास हुआ दर्द को सहने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं || जान से प्यारे लोगो से भी कुछ कुछ पर्दा लाजिम है सारी बात बताने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं || ख्वाबो में भी तुमसे मिलने के सपने देखा करता हूँ , नींदों में मुसकाने वाले कुछ कुछ पागल होते हैं || इस छोटी सी दुनिया में हमने ये हमेशा देखा है सच्ची बात बताने वाले , कुछ कुछ पागल होते हैं || प्यार जिन्हें हो जाये , उनको चैन कहाँ मिल पता है शब भर अश्क बहाने वाले, कुछ कुछ पागल होते हैं || तेरे इश्क में भीग के ‘सुमन ‘ को ये अहसास हुआ दिल की बात में आनेवाले कुछ कुछ पागल होते हैं || – ‘सुमन ‘ इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Uncategorized में प्रकाशित किया गया सितम्बर 25 2013 बीजं मां सर्वभूतानां बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌ । बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌ ॥ भावार्थ : हे अर्जुन! मैं संपूर्ण चराचर की उत्पत्ति का बीज हूँ। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥10॥ श्री कृष्ण ने जो कहा वही शास्वत सत्य है | लेकिन स्वयम्भू धर्म के ठेकेदार इसे झुठलाने में दिन रात एक किये हुए हैं | इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Uncategorized में प्रकाशित किया गया सितम्बर 24 2013 देश और समाज के कल्याणार्थ देश और समाज के कल्याणार्थ. इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • कुछ कहना चाहता हूँ आपसे... में प्रकाशित किया गया सितम्बर 16 2013 अपने-अपने स्वार्थ, अपने-अपने भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश, केवल ये तीन ही भगवान थे किसी ज़माने में | जनसँख्या बढ़ी तो भगवान भी बेचारे व्यस्त हो गए | अब हर किसी की मांगें पूरी करना उनके वश के बाहर हो गया तो लोगों ने भी उन्हें याद करना बंद कर दिया क्योंकि भगवान हम अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए ही तो बना रहें हैं | जब वे हमारी मांगे पुरी नहीं कर सकते तो काहे के भगवान ? ने भगवान को सबक सिखाने के लिए देवियों को पूजना शुरू कर दिया |लेकिन यहाँ भी लोगों ने अपने अपने पसंद और आवश्यकतानुसार देवियों की स्थापना शुरू कर दी | उनमें भी माँ सरस्वती बेचारी अल्पमत में रह गई और दुर्गा, काली, लक्ष्मी ने अपना परचम लहरा दिया | और सही भी है कि सरस्वती बेचारी विद्या और संगीत की देवी है और आज विद्या और संगीत गुणी अनपढ़ या गुंडे-मवाली के यहाँ नौकरी कर रहे होते हैं | या फिर किसी नेता की धोती पकडे देश “….को लाओ, देश बचाओ…” का नारा लगा कर देश बचा रहे होते हैं | और इन नेताओं का अध्ययन और आध्यात्म से दूर दूर तक रिश्ता नहीं होता | सरस्वती का दूसरा गुण गीत-संगीत भी पूंजीपतियों के लिए समय की बरबादी के सिवाय और कुछ नहीं होता | अम्बानी, टाटा, बिड़ला, बिलगेट्स… कोई भी गायन वादन नहीं जानता शायद लेकिन सारे माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त लोग इनके दरवाजे पर पड़े रहते हैं |इनके यहाँ तो जूता पालिश करने वाला भी स्नातक से कम नहीं होगा | तो बुजुर्गों ने अनुभव से समझा कि माँ सरस्वती की आराधना करके भूखे मरने से अच्छा है दूसरी देवियों की आराधना किया जाए और फिर वही परंपरा चल पड़ी |और फिर न तो न्यूटन ने, न ही आइन्स्टीन ने सरस्वती की आराधना किया था लेकिन सबसे ज्यादा ज्ञानी माने जाते हैं |एडिसन ने भी सरस्वती की आराधना नहीं की थी लेकिन आज हम उसी के दिए रौशनी पर ज्ञानी बन रहें हैं | और जिन लोगों ने माँ सरस्वती की आराधना की वे लोग शास्त्र रटते रहे लेकिन अर्थ नहीं समझ पाए | आज भी संस्कृत के प्रकांड पंडित और कम्पुटर प्रोग्रामर भरे पड़े हैं, बेरोजगार भी हैं, लेकिन अपने स्वयं के भाषा पर कोई ऐतहासिक कदम उठाने की अक्ल नहीं इकठ्ठा कर पाए यह काम भी अमेरिका के ही जिम्मे सौंपा हुआ है | वे बेचारे अपने बच्चों को संस्कृत सिखा रहें हैं ताकि २०२० तक मिशन संस्कृत पूरा कर सकें क्योंकि उनके पास संस्कृत के विद्वान नहीं है और भारतीय विद्वानों ने साथ देने से मना कर दिया क्योंकि हमारे शास्त्रों में लिखा है शायद कि संस्कृत एक रटंत विद्या है उसे तकनीकी या व्यावहारिक न बनायें | वैसे भी भारतीय तो पैदा ही अंग्रेज या अंग्रेजों के नौकर बनने के लिए ही होते हैं, इनका बस चले तो उस भगवान को गोली मार दें जाकर जो इन्हें बार बार भारत में पैदा कर देता हैं | खैर समय का पहिया और आगे बढ़ा देवियाँ भी लोगों की इच्छा पूर्ति करने में असफल रहने लगीं तो लोगों ने गुरुओं और मार्गदर्शकों को भगवान बना कर पूजना शुरू कर दिया क्योंकि उनके दिखाए रास्ते में चलने का समय ही किसके पास है ? सबके अपने अपने घर-परिवार है और फिर दुनिया में आये भी इसीलिए हैं कि बीवी बच्चे पालने हैं | सद्मार्ग, परोपकार, समाज-सेवा, देश-सेवा जैसे काम तो भगवान के जिम्मे हैं या फिर कोई देवदूत या सिद्ध पुरुषों का काम है या फिर किसी सरफिरे टूटी चप्पल पहने, फटे पुराने कुरता पायजामा पहने समाज सेवक का जिसकी न घर में इज्ज़त न समाज में | अब भला कोई शरीफ आम आदमी यह सारे काम कैसे कर कर सकता है ? तो लोगों ने उन लोगों को ही भगवान दिया कि जिस रास्ते पर तुम हो हम उस मार्ग पर नहीं चलेंगे लेकीन तुम्हें भोग लगा देंगे और जिस मार्ग में तुम चल रहे थे और मरने के बाद चलोगे उसमें तुम्हारा मनोबल बढाने के लिए हम भजन कीर्तन करेंगे जब हमें समय मिला, नहीं तो किराये पर लोगों को बुलवाकर भजन कीर्तन या पूजा अर्चना करवा दिया करेंगे…. ऐसे ही एक गुरु थे ठाकुर दयानंद देव जी | जिन्होंने संत होते हुए भी अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज बुलंद किया था | परिणाम स्वरुप उन्हें भी अंग्रेजों का कोप भाजन होना पड़ा | उन्होंने विश्व शान्ति अभियान शुरू किया तो कई लोग उनके साथ जुड़ गए |उन्होंने कहा था, “I want to make bridge between Spiritual and the Material world…” क्योंकि ईश्वर की सृष्टि की उपेक्षा करके ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती | लेकिन उनके म्रत्यु के पश्चात उनके शिष्यों के लिए उनके दिखाए मार्ग “विश्वशांति” को समझना कठिन हो गया या भटक गए तो उन्होंने उन्हें भगवान बना दिया और उनकी मूर्ति बना कर पूजना शुरू कर दिया | क्योंकि जिस मार्ग पर हमें नहीं चलना होता है लेकिन लोग गालियाँ न दें इसलिए मार्गदर्शक को भगवान बना देने में ही भलाई होती है |अब कोई भगवान् के रास्ते में भला पैर कैसे रख सकता है ? करना तो वही है जो हमें करना है |अब उनके शिष्यों ने शांति का अनूठा तरीका निकाला कि न तो आश्रम में लोग रहेंगे और न ही रहेगी अशांति | तो एक एक कर आश्रम से सभी लोगों को डरा-धमका कर भगाने लगे और आज स्थिति यह हो गई कि अरुणाचल मिशन का मुख्यालय वीरान हो गया | अब ट्रस्टी गर्व से कहते हैं कि आश्रम में कोई नहीं होगा तव भी ठाकुर आश्रम चला लेंगे, सब लोग भाग गए लेकिन आश्रम और मिशन का कुछ नहीं बिगड़ा, यह ठाकुर ही का ही प्रताप है…. आज यहाँ शान्ति है क्योंकि लोग ही नहीं हैं यहाँ दो चार बचे हैं जो ठाकुर के स्वप्न की समाधि की चौकीदारी कर रहें हैं |इन चौकीदारों को यह भी नहीं पता कि ठाकुर ने मिशन की स्थापना क्यों की थी ? इन्हें तो बस इतना पता है कि रोज सुबह शाम ठाकुर को भोग लगाना चाहिए चाहे जीवित लोग भूखे मर जाएँ | अभी दो-तीन दिन पहले ही एक ट्रस्टी मुझसे कह रहे थे कि आश्रम में समय पर ठाकुर जी को भोग नहीं लग पाता या पूजा नहीं हो पाती इसलिए आश्रम में कुछ लोगों को अरेंज करना पड़ेगा… अरे हद हो गई ! ठाकुर ने अरुणाचल मिशन की स्थापना क्या इसलिए किया था कि लोग उनकी मूर्ति बनाकर उन्हें भोग लगायें और पूजा अर्चना करने आयें ? अरे यहाँ के जमीन पर भूमाफियाओं का कब्ज़ा हो रखा है कोई अच्छा वकील तलाशिये, खर्चे के लिए धन का प्रबंध कीजिये, आश्रम को आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग कीजिये… पूजा अर्चना तो अपने आप शुरू हो जाएगा जब हमारा आश्रम किसी गरीब, असहाय, प्रताड़ित, शोषित नागरिक को सहायता प्रदान करने में सक्षम हो जाएगा | यह सब काम तो हो नहीं रहा फ़ोन और इन्टरनेट के पैसे भी जेब से नहीं निकाल पा रहे ये ट्रस्टी और ठाकुर दयानंद के पाखंडी शिष्य और भक्त, और ऊपर से घंटे-घड़ियाल बजा कर ढोंग करते हैं उनके अनुयाई होने का…धिक्कार है इन पाखंडी धार्मिक मूर्खों पर | हम तो यह भी नहीं कह रहे की जीवन भर हमें या आश्रम को खिलाना… केवल यह कह रहें हैं कि जो हानि आप जैसे स्वार्थी और लोभी दयानंद के अनुयाइयों के कारण हुआ है उनके मिशन को, उसकी भरपाई करने में सहयोग कीजिये | बहुत जल्दी ही हम आश्रम को पुनः आत्मनिर्भर बना लेंगे यह विश्वास है मुझे स्वयं पर, शिव महाराज व ईश्वर पर |प्रमाणित करने के लिए यह उदहारण काफी है कि पिछले छः महीनों में आप लोगों ने मुझे फूटी कौड़ी भी नहीं दिया लेकिन न तो मेरा फ़ोन बंद हो पाया और न ही इन्टरनेट |हाँ कुछ कुछ समय के लिए रुकावट अवश्य आती है लेकिन फिर समस्या सुलझ भी जाती है | लेपटॉप भी हटाना चाहा तो मैंने ईश्वर लोगों को सहयोग करने के लिए प्रेरित किया और सामान जोड़ जोड़ कर हमने नया डेस्कटॉप ही असेम्बल कर लिया | घटिया खाना देकर भगाना चाहा तो मैंने केवल काली चाय पर ही एक हफ्ते का समय काटा जब तक खाना फिर से नहीं सुधारा गया… | आज भी स्वामी शिव चैतन्य जी को कार्यभार सौंपा भी तो रसोइया, पुजारी सभी को छुट्टी पर भेज दिया ताकि लोगों को यह कह सकें कि शिव और विशुद्ध के बस का नहीं है आश्रम चलाना… शिव महाराज एक मिनट भी आराम किये बिना न केवल खाना बना रहें है बल्कि और सभी काम भी कर रहें हैं… कोई और होता तो भाग चुका होता अब तक | लेकिन आप लोग निश्चंत रहिये हम भागने वाले कायरों में से नहीं हैं | तो मैं जो आप लोगों से सहायता का आग्रह कर रहा हूँ वह भी मेरी कोई अपनी मजबूरी नहीं है, केवल उस मिशन को पुनर्जीवित करने के लिए ही मांग रहा हूँ जिसके नाम पर आप लोग धार्मिक होने का पाखण्ड कर रहें हैं | और यदि आप लोग सहायता नहीं करेंगे तो भी अब हमें कोई रोक नहीं पायेगा ठाकुर दयानंद के वास्तविक मिशन से लोगों का परिचय करवाने से | ठाकुर दयानंद ने नहीं कहा था कि उनका नाम जाप करो, घंटे-घड़ियाल बजाओ और चद्दर तानकर सो जाओ |उनका मन्त्र “जय जय दयानंद” नहीं, “प्राण गौर नित्यानंद” है | मैं जानता हूँ कि ठाकुर जी का आशीर्वाद मेरे साथ है और मेरे मार्ग में आने वाले शत्रु और बाधा स्वतः ही हट जायेंगे | सहयोग भी मुझे उन उन लोगों से मिल रहा है जो ठाकुर दयानंद का नाम भी नहीं जानते लेकिन आप लोगों को तो मीटिंग-मीटिंग खेलने से फुर्सत मिले तब न कुछ करेंगे मिशन के लिए | हद होती नौटंकी की भी ! और हाँ मैं यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं की ठाकुर दयानंद आप लोगों के लिए भगवान होंगे लेकिन मेरे लिए वे उसी गुरु के सामान हैं जो मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चलते हुए घर तक छोड़ कर आते हैं, यदि कभी में रास्ता भटक जाता हूँ तो | इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Exploitation of Spirituality में प्रकाशित किया गया • टैग की गईं Arunachal Mission, Deoghar, Jharkhand, Leelamandir Ashram सितम्बर 14 2013 लीलामंदिर आश्रम- जीर्णोद्धार अभियान १४ जुलाई २०१३ को आरम्भ हुई उथल-पुथल, अनिश्चितता, व मानसिक तनाव के बाद ४ सितं० २०१३ को आंशिक निश्चिन्तता आई जब स्वामी शिव चैतन्यानंद को आश्रम का अस्थाई सह प्रभारी नियुक्त करने का आश्वासन मिला और …सितं० को उन्हें लिखित रूप से प्रभार सौंप कर आवंछित उपद्रवियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया | संक्षेप में (अधिक विवरण के लिए पोस्ट के अंत में दिए लिंक पर जा सकते हैं ) घटना कुछ इस प्रकार है : ठाकुर दयानंद देव जी द्वारा सन १९२१ में स्थापित लीलामंदिर आश्रम में पिछले कुछ वर्षों से असामाजिक तत्वों ने कई तरह की अव्यवस्थाएं फैला रखी थी जिस के कारण यहाँ एक भय का वातावरण बना हुआ था | आश्रम के अध्यक्ष व ट्रस्टी स्वामी ध्यान चैतन्यानंद व अन्य ट्रस्टी भी आश्रम और ‘अरुणाचल मिशन’ का मिशन ‘विश्वशांति’ को तिलांजलि देकर अपने अपने घर-परिवार में मग्न थे | परिणाम हुआ आश्रम और मिशन अपने पैरों पर खड़ा नहीं रह पाया और लीलामंदिर आश्रम से एक एक कर सभी सन्यासी और शुभचिंतक भय, आर्थिक आभाव व मानसिक तनाव के चलते भाग गए | ऐसे में भूमाफियाओं और असामाजिक तत्वों को मनमर्जी करने से रोकने वाला कोई नहीं बचा और जो एक दो बचे भी थे तो वे भी अपनी जान के डर से खामोश रहते थे | आश्रम के काफी हिस्सों में अवैध कब्ज़ा कर लिया गया था और अध्यक्ष महोदय दिखावे के लिए केस लड़ रहे थे | अधिकतर कोर्ट की तारीख वाले दिन या तो बीमार पड़ जाते हैं या देश-भ्रमण पर निकले होते हैं और गाँव के ही एक व्यक्ति को तारीख़ आगे बढ़वाने के लिए नियुक्त किया हुआ है | सभी पक्के दस्तावेज होते हुए भी जानबूझ कर जीता हुआ केस हारने के लिए धूर्त वकील चुनना… सभी बातें आश्रम के अध्यक्ष के विश्वनीयता को खंडित करते हैं | आश्रम के अन्य ट्रस्टियों का भी मीटिंग-मीटिंग खेलने का बचपन का शौक अभी तक जारी रहना दर्शाता है कि उनमें वयस्कता व आश्रम और ठाकुर के मिशन को लेकर गंभीरता नहीं आई है | पिछले हफ्ते ही मैंने इन्टरनेट के लिए हज़ार रूपये की सहायता राशि मांगी थी लेकिन सारे ट्रस्टी मिलकर भी हज़ार रूपये का प्रबंध नहीं कर पाए और उसके लिए भी मीटिंग-मीटिंग खेलने में लगे हुए हैं | अब बताइये हम ऐसे में आश्रम का केस कैसे लड़ सकते हैं और धान के खेत में आज तक खाद डालने के लिए आवश्यक रुपयों का प्रबंध नहीं कर पाए प्रबन्धक महोदय लेकिन अपने कमर दर्द के इलाज के लिए ३६ हज़ार रूपये खर्च कर दिए |और यह पैसे भी उन्हें लीलामंदिर आश्रम के अध्यक्ष होने के कारण ही मिला है न कि उनके अपने नाम पर | ऐसे वातावरण में मैंने इसी वर्ष मार्च में यहाँ कदम रखा | कुछ ही दिनों में मैंने यहाँ की वास्तविक स्थिति और परिस्थिति दोनों को भांप लिया | मुझे आभास हो गया था कि स्वामी ध्यान चैतन्य जी (अध्यक्ष) ने धोखा दिया है और और झूठ बोलकर मुझे यहाँ लाया है कि वे जनकल्याण के कार्य करते हैं और मैं उनके काम में उनका सहयोग करूँ | जबकि जनकल्याण तो दूर अपने आश्रम के कल्याण के लिए भी कोई कार्य नहीं करते वे | उनका खाना अलग बनता है ठाकुर के नाम पर, टीवी, फ्रिज व अन्य सुविधाएँ केवल उनके और उनके शुभचिंतकों के लिए ही हैं | स्वामी जी को भी आभास हो गया कि उन्होंने मुझे लाकर गलती कर ली इसलिए उन्होंने इन्टरनेट और फ़ोन के पैसे देने बंद कर दिए जबकि मैं मिशन के लिए ही नेट पर काम कर रहा था | मुझे लग रहा था कि हो सकता ही कि स्वामी जी सही मार्ग पर ही हों लेकिन मैं अपने मार्ग से उनके मार्ग को नहीं समझ पा रहा इसलिए मैंने यहाँ से जाने का मन बना लिया लेकिन यहाँ के सन्यासी स्वामी शिव चैतन्यानंद जी महाराज और गांववालों ने जाने नहीं दिया | न जाने क्यों इन लोगों ने मुझसे अप्रत्याशित आशाएँ बाँध लिया कि मैं शायद आश्रम के शान्ति व सुरक्षा के लिए कुछ कर पाऊं | मैंने ईश्वर की इच्छा समझ कर कुछ समय और यहीं ठहर कर आश्रम के विनाश का स्वप्न देख रहे उपद्रवियों को पाठ पढ़ाने का निश्चय किया | लेकिन मैं आर्थिक रूप से स्वयं को बहुत असहाय महसूस कर रहा था और यहाँ के लोग भी आर्थिक सहयोग या किसी और प्रकार के सहयोग देने की स्थिति में नहीं थे | ऐसे ही समय में एक ऐसी घटना घटी जो अभूतपूर्व थी | यहाँ के सबसे पुराने सन्यासी के ऊपर यहाँ के उपद्रवी ने हाथ उठा दिया और उन्हें घायल कर दिया | मैंने अध्यक्ष से संपर्क करना चाहा तो उनका फोन बंद मिला | मैंने अन्य ट्रस्टियों से आवश्यक कदम उठाने का निवेदन किया तो वे मीटिंग-मीटिंग खेलने लग गए | कुल मिला कर यह कि उपद्रवी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हो पाई और वह आश्रम में ही पहले से भी ज्यादा प्रभाव से आने जाने लगा | गाँव में भी लोग यही कहने लगे कि इन लोगों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता… ऐसे में मैंने संगठन (भ्रष्टाचार विरुद्ध भारत जागृति अभियान) का सहयोग लिया. सोनिका शर्मा जी और शिवनारायण शर्मा जी को मैं पहले से ही जानता था, इसलिए मैंने ही आश्रम के हित के लिए उनसे सहयोग माँगा था | दोनों सहर्ष सहायता के लिए आगे आये और बिना किसी से लड़ाई झगड़ा किये ही उपद्रवियों के आश्रम में आवागमन पर प्रतिबन्ध लगवाने में सफल हो गए | लेकिन मेरे इस कदम से ट्रस्टी और अध्यक्ष मेरे विरोध में आ गए और मुझे ही आश्रम से बाहर निकालने की धमकी देने लगे | अब तक ग्रामवासी मेरे इस कदम और संगठन के शांतिपूर्ण कार्यप्रणाली के विषय में समझ चुके थे | सभी ग्रामीण अब हमारे साथ हो गए और ट्रस्टी व अध्यक्ष के विरोध में आ गए जिससे वे मेरे विरुद्ध कोई कदम नहीं उठा पाए | इसी महीने नौ तारीख़ को आश्रम का कार्यभार और कुल साढ़े छब्बीस हज़ार रूपये चार महीने के खरचे (जबकि महीने का न्यूनतम खर्च रूपये १७०००/- है ) के लिए स्वामी शिव चैतन्यानंद जी महाराज के हाथों सौंप कर अध्यक्ष स्वामी ध्यान चैतन्यानंद जी पुनः कुछ महीनों के लिए अपने घर (कलकत्ता) चले गये अपना इलाज करवाने | अब आश्रम में शान्ति और विश्वास का वातावरण है और आश्रम की स्थिति भी धीरे धीरे सुधरने लगेगी इस बात का पूरा विश्वास है | विशेष बात यह कि स्वामी शिव चैतन्यानंद जी आजकल स्वयं अपने हाथों से खाना बनाकर खिला रहें हैं | गाँव के सभी लोग अब हमारे साथ हो गए और उपद्रवियों के लिए यहाँ पैर रखना भी मुश्किल हो गया | कल तक हम एक एक पैसे के लिए मोहताज़ थे, लेकिन आज हर तरफ से मौखिक सहायताएँ आने लगी | अभी ४ सितम्बर को ही आश्रम के ९० वर्ष के इतिहास में पहला डेस्कटॉप कंप्यूटर उधार लेकर असेम्बल किया गया , जो कि यह बताने के लिए काफी है कि कल तक डर और संशय की स्थिति के कारण जो विकास कार्य रुका हुआ था वह अब नई उमंग के साथ शुरू हो चूका है | ट्रस्टियों ने भी मौखिक आश्वासन दिया है कि भविष्य में कभी आश्रम में आर्थिक आभाव की स्थिति नहीं आने देंगे ( यह और बात है कि अभी तक आश्वासन केवल आश्वासन ही है व्यावहारिक नहीं हुआ है ) और यहाँ से डर कर भागे कई सन्यासी-संयासिनें भी अब वापस आना चाह रहें हैं | उपरोक्त घटना में जो बात महत्वपूर्ण है वह यह कि भयग्रस्त व्यक्ति संघर्ष नहीं कर पाता भले ही उसके पास दुश्मन से दुगुनी शक्ति व सामर्थ्य ही क्यों न हो | मैंने केवल लोगों के मन से भय निकालने का प्रयत्न किया और सभी के विरोध के बावजूद भी वह कदम उठाया जो आश्रम के परिस्थिति के अनुकूल था | कुछ ने कहा कि मैं यदि स्वयं यहाँ से नहीं जाऊँगा तो मुझे अर्थी या स्ट्रेचर में जाना पड़ेगा लेकिन मैंने उन लोगों की चेतावनियों की कोई चिंता नहीं किया | एक संयासी मृत्यु के भय से मुक्त होता है और यह गुण तो मुझे विरासत में मिला था अपने जन्मदाताओं से | मैंने स्वामी शिव चैतन्यानंद जी महाराज को इस ऐतिहासिक कदम को उठाने में सहयोग के लिए मानसिक रूप से तैयार किया और उन उपद्रवियों से संघर्ष करने का बीड़ा उठाया, तो आज संगठन के सहयोग से सारा गाँव मेरे साथ हो गया | कल जो लोग मुझे आश्रम से बाहर फेंक देने के लिए तत्पर थे अब उनकी भी बोलती बंद हो गई और इस शांतिपूर्ण कदम को एक आश्चर्य मान रहें हैं | मेरे कार्य का यह शुभारम्भ है, अभी तो आगे और बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं | मैं स्वामी शिव चैतन्यानंद जी महाराज और आस पास के सभी गाँव के उन लोगों का आभारी हूँ जिन्होंने मुझ पर विश्वास दिखाया और मुझे अपने विवेक से कदम उठाने की स्वतंत्रता दी | मैं संगठन (भ्रष्टाचार विरुद्ध जागृति अभियान) का और विशेष कर सोनिका शर्मा जी और शिव नारायण शर्मा जी का आभार मानता हूँ कि उन्होंने यहाँ के आश्रम और गांववालों को एक नया उत्साह दिया और उन्हें आपस में ही एक होकर दुश्मनों से संघर्ष करने और जीतने का हौसला दिया | ईश्वर दोनों को स्वस्थ व दीर्घजीवी रखें ताकि दोनों इसी प्रकार असहाय लोगों की मदद करते रहें |  President of Leelamandir Ashram and Trusty Member of Arunachal Mission मैं स्वामी ध्यान चैतन्यानंद जी (मेरे सन्यास पिता भी), सभी ट्रस्टियों व अरुणाचल मिशन से जुड़े सभी भक्तों, सन्यासियों व श्रद्धालुओं से निवेदन करता हूँ कि स्वार्थ व पाखंड का मार्ग छोड़ कर सद्मार्ग पर आ जाएँ तो सद्गति प्राप्त होगी अन्यथा…आप सभी मुझसे कई गुना ज्यादा ज्ञानी हैं | केवल ठाकुर जी की मूर्ति को भोग लगाकर, घंटे-घड़ियाल बजाकर और जय जय दयानंद करके आप दुनिया को मुर्ख बना सकते हैं, ठाकुर जी को नहीं | ऐसा करने का परिणाम आप लोगों के सामने है ही इस लिए मानव कल्याण के मार्ग पर आ जाएँ और मौखिक सहायता से हमारा मन न बहला कर आर्थिक सहायता करने का शीघ्र प्रयास करें और वह भी बिना किसी लोभ या शर्त के | क्योंकि अभी आश्रम की कोई निजी आय या पूंजी नहीं है कि हम संभल पायें और इस स्थिति के दोषी हम नहीं आप लोगों का स्वार्थ और स्वहित सर्वोपरि का सिद्धांत है | आप लोगों ने ठाकुर जी का पट्टा लटका कर मान लिया कि आप ठाकुर जी के मिशन का भला कर रहें हैं और ठाकुर दयानंद देव जी आप के आभारी और ऋणी होकर आपका भला करेंगे | ठाकुर जी आप लोगों के इस व्यवहार से न केवल शर्मिंदा हैं वरन दुखी भी हैं कि आप लोगों ने उनके स्वप्न को स्वार्थ के अग्नि की चिता में जला डाला | न तो विलायती धुनों व भाषा में वह भाव और आत्मा है जो स्वदेशी गीत-संगीत और भाषा में है और न ही विलायती डॉक्टरों और दवाओं में वह गुण व सामर्थ्य जो स्वदेशी वैध व आयुर्वेद में है | इसलिए शुद्ध भारतीय संस्कृति अपनाइए तभी आप लोग ठाकुर दयानंद जी के सिद्धांत व उद्देश्य को समझ पायेंगे |  पथिक-एक लोक से दूसरे लोक, एक जन्म से दूसरे जन्म मैं यहाँ अपने विषय में आप सभी से बार-बार यही कहता आया हूँ कि मुझे आप लोगों से कुछ नहीं चाहिए | न किसी पद की चाह है, न धन की और न ही आपके आश्रम की भूमि की | मैं स्वच्छंद स्वतंत्र सन्यासी हूँ और वही रहना चाहता हूँ ताकि जिस को भी सहायता की आवश्यकता हो और ईश्वर मेरे माध्यम से उस पीड़ित की मदद करना चाहता हो तो में सुलभता से उसे उपलब्ध हो पाऊं | मैं यहाँ कितने समय के लिए हूँ यह मैं भी नहीं जानता क्योंकि जब तक ईश्वर मुझे कोई और कार्य नहीं सौंपते तब तक तो यहीं हूँ |और जो कुछ भी मैं कर रहा हूँ केवल एक महान संत ठाकुर दयानंद के मिशन को पुनर्जीवित करने के लिए कर रहा हूँ और आपसे (ट्रस्टियों) से भी केवल इसलिए सहायता के लिए कह रहा हूँ कि आप लोगों की लापरवाही के कारण आज यह स्थिति आई है और इस क्षति की भरपाई आप लोगों और ठाकुर दयानंद के अनुयाइयों को की करना है | चाहे आप लोग १००-१०० रूपये इकट्ठे करके भेजें या १-१ रूपये, लेकिन इस महीने के समाप्त होने से पहले चाहिए आर्थिक सहायता ताकि हम अपने खेत व बगीचों का पुनरुद्धार कर सकें | और यह वचन देता हूँ कि उन पैसों से मैं अपने लिए कुछ नहीं खरीदूंगा यहाँ तक की आवश्यक दवाएं भी | मुझे आश्रम से जो भी रुखा-सुखा मिल जाता है वही ईश्वर का प्रसाद के रूप में ग्रहण करके और आश्रम के इस पुनरुद्धार के कार्य में सहभागी होने का गौरव ही बहुत है मेरे लिए | मैं जब यहाँ से जाऊँगा तब जो अपने साथ लाया था वही लेकर जाऊँगा अरुणाचल मिशन, आश्रम या आप लोगों का कुछ भी लेकर नहीं जाऊँगा | यहाँ तक कि मुझे आप लोगों से मान सम्मान भी नहीं चाहिए क्योंकि मान-सम्मान भी एक प्रकार का बंधन ही है जिससे मान-सम्मान देने वाला लेने वाले को अपने हाथ की कठपुतली बनाना चाहता है | हाँ प्रेम से जो कुछ भी मुझे यहाँ से प्राप्त होगा वह मेरा पुरुस्कार व ईश्वर प्रदत्त भेंट स्वरुप होगा और उसे पुरे प्रेम से ही स्वीकार करूँगा चाहे फिर वह तिरस्कार ही क्यों न हो | प्रेम ही एक ऐसा भाव है जो शाश्वत सत्य है और उसके पाश में बंधा व्यक्ति स्वयं को बंधक नहीं धन्य मानता है | यह और बात है कि प्रेम भी अब व्यवसाय और छल-कपट के लिए आवश्यक व्यवहारों में सम्मिलित हो चूका है | आप सभी पाठकगण यदि कभी आप तपोवन (जहाँ रावण ने तपस्या की थी) और बाबाधाम (वह शिवलिंग जिसे रावण ने भूमि में रख दिया था और फिर उठा नहीं पाया था), रिकिया आश्रम या सत्संग आश्रम को कभी देखना चाहें तो लीलामंदिर आश्रम में अल्प्वास कर सकते हैं | वर्तमान में हमारे पास अन्य आश्रमों की तरह न तो साजो सामान है और न ही नौकर-चाकर केवल कुछ सन्यासी व सेवक हैं | इसलिए केवल वे लोग ही आयें जो भारतीय परिवेश व असुविधाओं में जी सकते हों क्योंकि हम आपको प्रेम और सेवा दे सकते हैं किन्तु किसी वैभवशाली आश्रम या होटल का सुख नहीं दे पायेंगे | आप लोगों से जो भी सहयोग राशि मिलेगी वह हमारे आश्रम को पुनः अपने पैरों में खड़े होने में सहायता ही प्रदान करेगी | बाबाधाम या बैद्यनाथ धाम वह सिद्धपीठ है, जहाँ केवल आने भर से ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है, आपको बाबा से कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं होती | यदि आप निष्कपट, निश्छल और परोपकार के भाव से भरे हुए हैं और आपका संकल्प दृढ है तो आपके विरोधियों का पराभव और बाधाएं बाबा जी स्वतः ही दूर कर देंगे | जैसे मेरी बाधाएं अकल्पनीय तरीके दूर हुईं | अंत में मैं ईश्वर से केवल यही प्रार्थना करना चाहूँगा कि मैंने जो भी धारणाएँ स्वामी जी और ट्रस्टियों के विषय में परिस्थिति वश बनायीं वे सभी भ्रम व मिथ्या सिद्ध हों और वे सभी मिशन को पुनः सुचारू रूप से चलाने के लिए मिल कर सहयोग करें | क्योंकि ठाकुर दयानंद देव जी ने मिशन की स्थापना इसलिए नहीं की थी कि लोग उनकी मूर्ति बना कर उसे भोग लगाएं और उनके नाम का जाप कर के मोक्ष पायें अपितु इसलिए स्थापना की गई थी कि वैमनस्यता का भाव मिटा कर लोग इंसान बन जाएँ | सधन्यवाद, विशुद्ध चैतन्य धर्म व संस्कृति का संगम लीला मंदिर ‘ठाकुर दयानंद देव’ लीलामन्दिर आश्रम: एक महान संत के स्वप्न की समाधि आवश्यकता है, हरिजन एक्ट रूपी हथियार को बाहुबलियों व भू-माफियाओं द्वारा दुरूपयोग न करने देने की देवघर के पाखंडी पंडे या भू-माफिया! Name(आवश्यक)  Email(आवश्यक)  Website  Comment(आवश्यक)  Submit » इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Exploitation of Spirituality में प्रकाशित किया गया • टैग की गईं Deoghar, Jharkhand, Kabilaspur, Leela Mandir Ashram, Leelamandir Ashram अगस्त 29 2013 भारतीय धर्म और कर्म-काण्ड हिंदुत्व केवल धर्म नही अपितु ये सफल जीवन जीने का तरीका है. हिंदू धर्म में कई विशेषताएँ है. इसको सनातन धर्म भी कहाँ गया है. भागवद गीता के अनुसार सनातन का अर्थ होता है वो जो अग्नि से, पानी से , हवा से, अस्त्र से नष्ट न किया जा सके और वो जो हर जीव और निर्जीव में विद्यमान है. धर्म का अर्थ होता है जीवन जीने की कला. सनातन धर्म की जड़े आद्यात्मिक विज्ञान में है. सम्पूर्ण हिंदू शास्त्रों में विज्ञान और आध्यात्म जुड़े हुए है. यजुर्वेद के चालीसवे अध्याय के उपनिषद में ऐसा वर्णन आता है कि जीवन की समस्याओ का समाधान विज्ञान से और आद्यात्मिक समस्याओ के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए. स्मृति से हमें बताती है की व्यक्ति को एक चौथाई ज्ञान आचार्य या गुरु से मिल सकता है, एक चौथाई स्वयं के आत्मावलोकन से, अगला एक चौथाई अपने संग या संगती में विचार विमर्श करने से और आखिरी एक चौथाई अपने जीवन शैली से जिसमे सद्विचार और सदव्यवहार को जोड़ना, कमजोरीयों को हटाना, अपना सुधार करते रहना और समय के अनुकूल परिवर्तन करना शामिल है. अकसर आज के मानव के मन में कई बार रीती रिवाजो को लेकर क्यो, कैसे और किसलिए आदि प्रश्न उठते रहते है. आईये हिंदू धर्म से सम्बंधित कुछ जिज्ञासाओं का जवाब पाने का प्रयास करे. ॐ का उच्चारण क्यों करते है ? भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ? घर में पूजा का कमरा क्यों होता है ? हम नमस्ते क्यों करते है ? हम बडो के पैर क्यों छूते है ? हम आरती क्यों करते है ? भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ? ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ? कलश पूजा क्यों की जाती है ? शंख क्यों बजाया जाता है ? उपवास का क्या महत्त्व है ? पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ? ॐ का उच्चारण क्यों करते है ? ? हिंदू में ॐ शब्द के उच्चारण को बहुत शुभ माना जाता है. प्रायः सभी मंत्र ॐ से शुरू होते है. ॐ शब्द का मन, चित्त, बुद्धि और हमारे आस पास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ॐ ही एक ऐसा शब्द है जिसे अगर पेट से बोला जाए तो दिमाग की नसों में कम्पन होता है. इसके अलावा ऐसा कोई भी शब्द नही है जो ऐसा प्रभाव डाल सके. ॐ शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है जो है “अ”, “उ” और “म”. जब हम पहला अक्षर “अ” का उच्चारण करते है तो हमारी वोकल कॉर्ड या स्वरतन्त्री खुलती है और उसकी वजह से हमारे होठ भी खुलते है. दूसरा अक्षर “उ” बोलते समय मुंह पुरा खुल जाता है और अंत में “म” बोलते समय होठ वापस मिल जाते है. अगर आप गौर से देखेंगे तो ये जीवन का सार है पहले जन्म होता है, फिर सारी भागदौड़ और अंत में आत्मा का परमात्मा से मिलन. ॐ के तीन अक्षर आद्यात्म के हिसाब से भी ईश्वर और श्रुष्टि के प्रतीकात्मक है. ये मनुष्य की तीन अवस्था (जाग्रत, स्वपन, और सुषुप्ति), ब्रहांड के तीन देव (ब्रहा, विष्णु और महेश) तीनो लोको (भू, भुवः और स्वः) को दर्शाता है. ॐ अपने आप में सम्पूर्ण मंत्र है. भगवान के सामने दीपक क्यों प्रज्वालित किया जाता है ? हर हिंदू के घर में भगवान के सामने दीपक प्रज्वालित किया जाता है. हर घर में आपको सुबह, या शाम को या फिर दोनों समय दीपक प्रज्वालित किया जाता है. कई जगह तो अविरल या अखंड ज्योत भी की जाती है. किसी भी पूजा में दीपक पूजा शुरू होने के पूर्ण होने तक दीपक को प्रज्वालित कर के रखते है. प्रकाश ज्ञान का घोतक है और अँधेरा अज्ञान का. प्रभु ज्ञान के सागर और सोत्र है इसलिए दीपक प्रज्वालित कर प्रभु की अराधना की जाती है. ज्ञान अज्ञान का नाश करता है और उजाला अंधेरे का. ज्ञान वो आंतरिक उजाला है जिससे बाहरी अंधेरे पर विजय प्राप्त की जा सकती है. अत दीपक प्रज्वालित कर हम ज्ञान के उस सागर के सामने नतमस्तक होते है. कुछ तार्किक लोग प्रश्न कर सकते है कि प्रकाश तो बिजली से भी हो सकता है फिर दीपक की क्या आवश्यकता ? तो भाई ऐसा है की दीपक का एक महत्त्व ये भी है कि दीपक के अन्दर जो घी या तेल जो होता है वो हमारी वासनाएं, हमारे अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि दीपक की लौ हमेशा ऊपर की तरफ़ उठती है जो ये दर्शाती है कि हमें अपने जीवन को ज्ञान के द्वारा को उच्च आदर्शो की और बढ़ाना चाहिए. अंत में आइये दीप देव को नमस्कार करे : शुभम करोति कलयाणम् आरोग्यम् धन सम्पदा, शत्रुबुध्दि विनाशाय दीपज्योति नमस्तुते ।। सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। पूजा का कमरा घर में क्यों होता है ? घरो में पूजा के कमरे का अपना महत्त्व है. हर घर में पूजा का कमरा होता है जहाँ पर दीपक लगा कर भगवान की पूजा की जाती है, ध्यान लगाया जाता है या पाठ किया जाता है. भगवान चूँकि पुरी श्रष्टि के रचियेता है और इस हिसाब से घर के असली मालिक भी भगवान ही हुए. भगवान का कमरा ये भावः दर्शाता है की प्रभु इस घर के मालिक है और घर में रहने वाले लोग भगवान की दी हुई जमीन पर इस घर में रहते है. ये भावः हमें झूठा अभिमान और स्वत्वबोध से दूर रखता है. आदर्श स्तिथि में मनुष्य को ये मानना चाहिए की भगवान ही घर के मालिक है और मनुष्य केवल उस घर का कार्यवाहक प्रभारी है. एक अन्य भावः ये भी है की ईश्वर सर्वव्यापी है और घर में भी हमारे साथ रहता है इसलिए घर में एक कमरा प्रभु का है. जिस तरह घर में प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग कक्ष होते है, जैसे आराम के लिए शयनकक्ष, खाना बनाने के लिए रसोईघर, मेहमानों के लिए ड्राइंग रूम या आगंतुक कक्ष ठीक उसी प्रकार हमारे आध्यात्म के लिए भगवान का कमरा होता है जहाँ पर बैठ कर ध्यान पूजा पाठ और जप किया जा सकता है. हम नमस्ते क्यों करते है ? शास्त्रों में पाँच प्रकार के अभिवादन बतलाये गए है जिन में से एक है “नमस्कारम”. नमस्कार को कई प्रकार से देखा और समझा जा सकता है. संस्कृत में इसे विच्छेद करे तो हम पाएंगे की नमस्ते दो शब्दों से बना है नमः + ते. नमः का मतलब होता है मैं (मेरा अंहकार) झुक गया. नम का एक और अर्थ हो सकता है जो है न + में यानी की मेरा नही. आध्यात्म की दृष्टी से इसमे मनुष्य दुसरे मनुष्य के सामने अपने अंहकार को कम कर रहा है. नमस्ते करते समय में दोनों हाथो को जोड़ कर एक कर दिया जाता है जिसका अर्थ है की इस अभिवादन के बाद दोनों व्यक्ति के दिमाग मिल गए या एक दिशा में हो गये. हम बडो के पैर क्यों छूते है ? भारत में बड़े बुजुर्गो के पाँव छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. ये दरअसल बुजुर्ग, सम्मानित व्यक्ति के द्वारा किए हुए उपकार के प्रतिस्वरुप अपने समर्पण की अभिव्यक्ति होती है. अच्छे भावः से किया हुआ सम्मान के बदले बड़े लोग आशीर्वाद देते है जो एक सकारात्मक उर्जा होती है. आदर के निम्न प्रकार है : प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना किसे किसके सामने किस विधि से सत्कार करना है ये शास्त्रों में विदित है. उदहारण के तौर पर राजा केवल ऋषि मुनि या गुरु के सामने नतमस्तक होते थे. हम आरती क्यों करते है. जब भी कोई घर में भजन होता है, या कोई संत का आगमन होता है या पूजा पाठ के बाद हिंदू धर्म में दीपक को दायें से बाएँ तरफ़ वृताकार रूप से घुमा कर साथ में कोई वाद्य यन्त्र बजा कर अन्यथा हाथ से घंटी या ताली बजा कर भगवान की आरती की जाती है. ये पूजा की विधि में षोडश उपचारों में से एक है. आरती के पश्च्यात दीपक की लौ के उपर हाथ बाएँ से दायें घुमा कर हाथ से आँखों और सर को छुआ जाता है. आरती में कपूर जलाया जाता है वो इसलिए की कपूर जब जल जाता है तो उसके पीछे कुछ भी शेष नही रहता. ये दर्शाता है कि हमें अपने अंहकार को इसी तरह से जला डालना है की मन में कोई द्वेष, विकार बाकी न रह जाए. कपूर जलते समय एक भीनी सी महक भी देता है जो हमें बताता है कि समाज में हमें अंहकार को जला कर खुशबु की तरह फैलते हुए सेवा भावः में लगे रहना है. दीपक प्रज्वालित कर के जब हम देव रूपी ज्ञान का प्रकाश फैलाते है तो इससे मन में संशय और भय के अंधकार का नाश होता है. उस लौ को जब हम अपने हाथ से अपनी आँखों और अपने सर पर लगा कर हम उस ज्ञान के प्रकाश को अपनी नेत्र ज्योति से देखने और दिमाग से समझने की दुआ मांगते है. भगवान को नारियल क्यों अर्पित किया जाता है ? आप देखेंगे की मन्दिर में आम तौर पर नारियल अर्पित किया जाता है. शादी, त्यौहार, गृह प्रवेश, नई गाड़ी के उपलक्ष में या किसी प्रकार के अन्य उत्सव या शुभ कार्य में भी प्रभु को नारियल अर्पित किया जाता है. प्रभु को नारियल अर्पित के पीछे जो मुख्य कारण है, आइये उनका अवलोकन करे. नारियल अर्पित करने से पहले उसके सिर के अलावा सारे तंतु या रेशे उतार लिए जाते है. ऐसे में अब ये नारियल मानव खोपडी के सामान दीखता है और इसे फोड़ना इस बात का प्रतीक है कि कर हम अपने अंहकार को तोड़ रहे है. नारियल के अन्दर का पानी हमारी भीतर की वासनाये है जो हमारे अंहकार के फूटने पर बह जाती है. नारियल निस्वार्थता का भी प्रतीक है. नारियल के पेड़ का तना, पत्ती, फल (नारियल या श्रीफल) मानव को घर का छज्जा, चटाई, तेल, साबुन आदि बनाने में काम में आता है. नारियल का पेड़ समुद्र का खारा पानी लेकर मीठा, स्वादिष्ट और पौष्टिक नारियल और नारियल का पानी देता है. ॐ शांति शांति शांति में शांति शब्द का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है ? मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो हमेशा भीतर और बहार शांति की खोज में लगा रहता है. मनुष्य या तो अपने लिए ख़ुद विघ्न खड़ा करता है या फिर दुसरे लोग उसकी शांति में बाधा उत्पन्न करते है. जब तक कोई उपद्रव नही होता वहां शांति रहती है. वादविवाद शांत होने के बाद शांति उसी तरह कायम हो जाती है जैसे पहले थी. आज के वातावरण में झमेलों के चलते शांति की खोज बहुत कठिन है. कुछ लोग होते है जो कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी शांत रहते है. हिंदू धर्म में शांति का आह्वान करने के लिए मंत्र, यज्ञ आदि के अंत में तीन बार शांति का उच्चारण किया जाता है जिसे त्रिव्रम सत्य भी कहा जाता है. सम्पूर्ण दुखो के तीन उद्भव स्थान माने गए है और तीन बार शांति का उच्चारण करके इन उद्भव स्थानों को संबोधित किया जाता है. पहली बार शांति का उद्घोष अधिदेव शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वरीय शक्ति जैसे प्राकृतिक आपदाये, भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ आदि जिन पर मानव का कोई नियंत्रण है है उसे शांत रखने की प्रार्थना की जाती है. दूसरी बार शांति का उद्घोष आधिभौतिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे दुर्घटना, प्रदुषण, अधर्म, अपराध आदि से शांत बने रहने की प्रार्थना की जाती है. आखरी बार शांति का उद्घोष आध्यात्मिक शांति के लिए किया जाता है. इसमे ईश्वर से प्रार्थना की जाती है की हम अपने रोजमर्रा में जो भी सामान्य या अतरिक्त कार्य करे उसमे हमें किसी भी प्रकार की बाधाओ का सामना न करना पड़े. कलश पूजा क्यों की जाती है ? आम तौर पर हर हिंदू पूजा में एक कलश (जो प्रायः पीतल, ताम्बे या मिट्टी का) होता है जिस में पानी भरा जाता है. इसके मुंह पर आम की पत्तियां रखी जाती है, ऊपर एक नारियल रखा जाता है और फिर इसे लाल या सफ़ेद धागे से चारो और से बाँधा जाता है. लोटे में पानी भर कर चावल के कुछ दाने डालने की क्रिया को पूर्ण कुम्भ भी कहते है जो हमारे जीवन को भरा पुरा होना दर्शाता है. चूँकि पृथ्वी पर पहले केवल पानी था और पानी से ही जीव की उत्पत्ति हुई है इसलिए कलश का जल सम्पूर्ण पृथ्वी का द्योतक है. जिससे जीवन का आरम्भ हुआ था. नारियल और आम की पत्तियां सृजनात्मकता या जीवन को दर्शाती है. धागे से बाँध कर रखने का उद्देश्य विश्व की सम्पूर्ण उत्पत्ति को एक सूत्र में पिरोना दर्शाता है. शंख क्यों बजाया जाता है ? शंख बजाने से ॐ की मूल ध्वनि का उच्चारण होता है. भगवान ने श्रष्टि के निर्माण के बाद सबसे पहले ॐ शब्द का ब्रहानाद किया था. भगवान श्री कृष्ण के भी महाभारत में पाञ्चजन्य शंख बजाय था इसलिए शंख को अच्छाई पर बुरे की विजय का प्रतीक भी माना जाता है. ये मानव जीवन के चार पुरुषार्थ में से एक धर्म का प्रतीक है. शंख बजाने का एक कारण ये भी है की शंख की ध्वनि से जो आवाज़ निकलती है वो नकारात्मक उर्जा का हनन कर देती है. आस पास का छोटा मोटा शोर जो भक्तो के मन और मस्तिष्क को भटका रहा होता है वो शंख की ध्वनि से दब जाता है और फिर निर्मल मन प्रभु के ध्यान में लग जाता है. प्राचीन भारत गाँव में रहता था जहाँ मुख्यत एक बड़ा मन्दिर होता था. आरती के समय शंख की ध्वनि पुरे गाँव में सुने दे जाती थी और लोगो को ये संदेश मिल जाता था कि कुछ समय के लिए अपना काम छोड़ कर प्रभु का ध्यान कर ले. उपवास का क्या महत्त्व है उप+वास=उपवास;मतलब आराध्य के नजदीक रहना ; उसको देखना उसको समझना उसके गुणों को जानना ; उसके गुणों का चिंतन करना ; गुणों को आत्मसात करना. भगवान हमें यह नहीं कहते कि तुम्हें उपवास करना ही है। यह सब तो हमारी मर्जी से चलते है। फिर क्यों न उपवास को सही ढंग और सही नियम से किए जाए ताकि हमें सही अर्थ में उसका फल भी प्राप्त हो। वैज्ञानिक रूप से भी शरीर की शुद्धि के लिए व्रत का महत्त्व स्वीकार किया गया है | उपवास का सही अर्थ दिन में एक बार फल का आहार लेना, एक आसन पर बैठकर एक ही समय में खाना ताकि बार-बार खाने में न आए, उपवास के हर दिन कोई एक अलग वस्तु का त्याग करना ऐसा ही कुछ होना चाहिए। लेकिन होता ऐसा नहीं और कुछ ही होता है। जब उपवास करने के दिन नजदीक आने लगते है तभी लोग घरों में अलग-अलग प्रकार की मिठाई, फलाहारी व्यंजन आदि बनाकर पहले से ही रख लेते है। और उपवास के दिनों में जो अलग-अलग व्यंजन बनेंगे सो अलग। ऐसे में उपवास का सही अर्थ क्या होता है यह समझना मुश्किल ही है। दरअसल सैकड़ों सालों से चले आए धार्मिक रीतिरिवाजों को हम तोड़-मरोड़कर अब इस्तेमाल कर रहे हैं। जरूरत है उपवास शब्द को सही तरह से समझा जाए और उसके बाद ही उपवास के बंधन में बंधा जाए। उपवास का अर्थ संयम भी है। संयम का अर्थ है दिनभर की चाय या खान-पान पर संयम करना। ऐसा नहीं कि भूख नहीं लगी हो फिर भी मुँह चलाते रहने के लिए कुछ न कुछ खाते रहना। अगर उपवास के नाम पर तरह-तरह के व्यंजन ही बनाकर खाना हो और तरह-तरह के फल ही खाना हो, दिन भर मुँह चलाना हो तो फिर उपवास करना ही बेकार है. पुस्तक को पाँव से क्यों नहीं छूते है ? हिन्दू धर्म में ज्ञान को पवित्र और अलौकिक माना गया है. आप पाएंगे की हिन्दू धर्म में सरस्वती पूजा, दवात पूजा, आयुध पूजा भी की जाती है. किसी भी चीज़ को पाँव से छूना अपमानजनक माना गया है. पुस्तक सम्मानीय है और उसका दर्जा बड़ा है इसलिए पाँव से छूकर पुस्तक का अपमान नहीं किया जाता. >>>!!जय श्री कृष्ण !!<<< लम्बी पोस्ट हेतु क्षमा चाहता हूँ । पसंद आये तो शेयर अवश्य करिए । इसे साझा करें: TwitterFacebook1Googleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • Uncategorized में प्रकाशित किया गया  अगस्त 21 2013 उद्धरण सावन के त्यौहार हों और उनमें वर्षा न हो यह कैसे संभव हो सकता है ? कल रात को शुरू हुई वर्षा दिन भर रुक रुक कर होती रही और साथ दे रही थी तेज हवा जो पेड़ पौधों के साथ अठखेलियाँ कर रही थी | पेड़ पौधे भी मानो किसी अनजान नशे में मस्त हो झूम रहें थे बिजली विभाग ने भी अपना भारतीय धर्म निभाया और पूरे दिन बिजली बंद करके हमें अपने प्राचीन ऐतिहासिक युग को याद करने और उसे जीने का अवसर दिया जब लाईट नहीं हुआ करती थी और हम सब केवल दिव्य ज्ञान के प्रकाश से ही काम चला लेते थे | यह तो नास्तिक और अज्ञानी अंग्रेजों (जिनको का वेदों की समझ और न ही रामायण-महाभारत या उपनिषदों की समझ) की वजह से ही बिजली विभाग के भाव बढे हुए हैं | यदि उन्होंने बिजली का अविष्कार नहीं किया होता तो आज भी हम सतयुग में ही होते | हमारे शास्त्रों में तो बिजली से लेकर कंप्यूटर तक और सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी कुछ बनाने की विधियाँ पहले ही लिखी जा चुकी थी लेकिन हमने उन विधियों का कभी प्रयोग केवल इसलिए नहीं किया क्योंकि हमें उसकी आवश्यकता ही नहीं थी | ईश्वर ने हमें मानव शरीर दिया ताकि हम ध्यान-भजन करके ब्रम्हज्ञान प्राप्त करें और फिर मोक्ष और ईश्वर को प्राप्त करें | दुनिया की समस्याएँ कम करने में योगदान करना या किसी विपत्ति में पड़े व्यक्ति की सहायता करना हमारा काम थोड़े न है | ये तो अंग्रेज थे जिन्होंने भक्ति और भजन कीर्तन की शक्ति को नहीं पहचाना और बिजली बल्ब जैसी चीजों को बनाने में अपना जीवन व्यर्थ कर दिया | इन महामूर्ख लोगों को क्या पता कि ब्रम्हज्ञान का प्रकाश क्या होता है और उसकी शक्ति क्या होती है | लेकिन मैं बिजली विभाग का आभारी हूँ कि मुझे एक बार फिर से अपने गौरवमय युग का अनुभव करने का सुनहरा अवसर दिया | यह सब देख कर किसी समय के मेरे मोस्ट फेवेरेट गाने मेरे भीतर फिर गूंजने लगे | क्या आप जानना चाहेंगे कि वे गाने कौन से हैं जो मुझे बचपन में पसंद थे और आज भी हैं ? ये गीत ऐसे गीत हैं जिसमें गीतकार, संगीतकार, गायक/गायिकाओं ने दिमाग की नहीं दिल और आत्मा की आवाज़ सुनी और उन्हें ही अपना काम करने दिया है और स्वयं कुछ न करके केवल होने दिया और स्वयं श्रोता बन गए परम शक्ति के कलाप्रदर्शन के | नैना बरसे http://youtu.be/5lyNZ0gca-M रिमझिम गिरे सावन सावन के झूले पड़े सावन और बिजली विभाग इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • धर्म या अधर्म में प्रकाशित किया गया  अगस्त 20 2013 पाखण्ड मिटेगा कैसे ?” “सुप्रभात मित्रो ! आज सुबह सुबह ही फेसबुक ने एक अनोखी चौंकाने वाली खबर सुना दी | मैं पाखंड का विरोध करता हूँ यह बात फेसबुक को भी पता है इसलिए ही ऐसी ऐसी खबरें लेकर आता है…आप भी पढ़िए… “Durgesh Shukla and पाखण्डी समाज are now friends.” अब जरा सोचिये कि स्वयं “शुक्ला” जी “पाखंडी समाज” के मित्र बन रहें हैं तो पाखण्ड मिटेगा कैसे ?” Hanuman Gadhi Ayodhya, Mithilesh Mishra, Pandit Yugal Kishor Jha and 6 others like this.  Arunabh Bhaskar · Friends with Sudhir Vyas and 1 other आखिर पाखंड है क्या ।यदि पूजा पाठ को पाखंड कहा जाता है तो इस हिसाब से हर आदमी पाखंडी है ।क्योकि हर आदमी खुद को महान कहलवाने पर तुला है ये जानते हुए भी कि उसके सारे लक्षण जानवरो के है 13 hours ago via mobile · Unlike · 2  विशुद्ध चैतन्य आदमी जानवर ही है तो जानवरों वाले लक्षण काहे नहीं आयेंगे ? आदमी का जीवन उसे महान कार्य करने और महान बनने के लिए ही मिला है यह और बात है कि लोग गीदड़ या किसी नेता के चमचे बन जाते हैं | पूजा पाठ पाखंड नहीं है, पूजा पाठ के नाम पर चल रहा ठगी का व्यवसाय, शोषण और राजनीती पाखंड है | अंधभक्ति पाखण्ड है | धर्म के नाम पर द्वेष फैलाना पाखंड है | धर्म के नाम पर दंगा करवाना पाखण्ड है | धर्म के नाम पर सडकों चौराहों पर मस्जिद मंदिर बनाना पाखण्ड है | धर्म के नाम पर राजनीति करना पाखण्ड है | धर्म के नाम पर वोट माँगना या देना पाखंड है | मान कर नहीं जान कर की जा रही भक्ति, श्रद्धा या पूजा-अर्चना ही सार्थक है | 13 hours ago · Edited · Like · 5  विशुद्ध चैतन्य अब तक साधू-समाज, आर्य समाज, पंडा समाज…आदि सुना था | अब तो पाखंडियों ने भी अपना एक समाज ही बना लिया है | कल ये लोग भी अपने नेता खड़े करेंगे और सारा भ्रष्ट तंत्र और धर्मभीरुओं-अंधभक्तों का समूह इनके समर्थन में खड़ा हो जाएगा | तब ? 13 hours ago · Like · 3  Rajulala Lala Chaitany ji Adhaytm ewam samaj do alag alag hai sk sath dono ke niyam nahi chalte Agar ek niyam chle to adarsh esthit hogi arthat RAM RAJYA Parantu yoharik roop me aisa nahi hota Ab agar ek rogi Dr ke pas jata hai aur wo manmani kar ke rogi ka shosan karta hai to use pakhand nahi kahte Parantu jab ek mansik rogi pandit se puja path kara kar swasth anubhaw karta hai aur kush daan adi deta hai to pakhand kahte hai Dharm me pakhand nahi hamre lalach ne pakhand ko janm diya hai Hawanme ahuti dena pskhand lagta hai parantu khet me biaj bona nahi ? Q ki ham paridam se parchit hai to wo karm aur jin ke paridam se parchit nahi wo pakhand Addyatm ki duniya me sada do aur do char hi nahi panch bhi hote hai yahi chamatckar hai 11 hours ago via mobile · Unlike · 2  विशुद्ध चैतन्य मैं आपके इस बात से सहमत हूँ कि आध्यात्म और समाज दोनों के नियम अलग हैं | दोनों की कार्य शैली और विश्वास विश्वास भी अलग हैं लेकिन व्यावहारिकता कहाँ से आ गई इसमें जब दोनों ही अलग अलग धरातल पर है ? आध्यात्म अनुभूति से उपन्न होता है और संसार समाज से (जीव जंतुओं का भी अपना एक समाज होता है केवल मनुष्य ही समाज नहीं बनाते) | एक भाव और अनुभूति पर आधारित है और दूसरा व्यवहारिकता और दृश्य तथ्य पर आधारित है | और मैं रामराज्य का पक्षधर नहीं हूँ जहाँ एक धर्मपरायण पतिव्रता पत्नी को एक धोबन के कहने पर त्याग दिया जाता है मानो वह मानव नहीं कोई वस्तु हो | पंडिताई और डॉक्टरी दोनों ही समान व्यवसाय है | एक मानसिक रोगियों को स्वस्थ करता है और दूसरा शारीरिक रोगियों को | ये दोनों ही स्वस्थ व्यवसाय हैं जब तक दोनों का उद्देश्य जन कल्याण है न कि अनुचित धनलाभ | लेकिन दोनों ही व्यवसाय से ऊपर उठ जाते हैं और पूजनीय हो जाते हैं जब उनका भाव सेवा का हो जाता है | जब वे पाने की अपेक्षा से नहीं केवल सेवा के उद्देश्य से कार्य करने लगते हैं | और ऐसे कई लोगों को मैं निजी रूप मैं जानता भी हूँ जिनमें कई बुजुर्ग पण्डे और आयुर्वेदाचार्य भी हैं | हवन करने से न केवल वातावरण शुद्ध होता है वरन कई नकारात्मक उर्जा का भी नाश होता है और मन व शरीर में एक आलौकिक अनुभूति उत्पन्न होती है | अब यही सब क्रियाएं पाखण्ड हो जाती है जब कर्ता का उद्देश्य धनोन्मुख हो जाता है | डॉक्टर कमीशन के लालच में अनावश्यक दवाएँ व टेस्ट लिख देता हैं, अनावश्यक ऑपरेशन कर या करवा देता है | पंडा या पंडित काल सर्प दोष और कोई भय दिखा कर पूजन हवन आदि कराता है, अनावश्यक व्यय और दान आदि करवाता है, विश्वास और श्रद्धा का लाभ लेकर राजनीतिज्ञों और सरकारी अफसरों से फ़र्जी दस्तावेजों पर दस्तखत करवाता है और दूसरों के ज़मीन जायदाद पर कब्ज़ा करता है | इनको पाखंडी इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अपने मूल कर्म और समाज के आड़ में धोखाधड़ी करके सदाचारी, धर्मनिष्ठ, ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ पंडों, पंडितों, साधू-संतों आदि को भी कलंकित करते हैं | इन लोगों के वजह से सभी अविश्वास के घेरे में आ जाते हैं | यह सही है कि इन लोगों की संख्या बहुत कम है लेकिन ये लोग ही सबसे आगे मिलते हैं | आपकी यह बात भी सही है कि हमारे लालच ने पाखण्ड को जन्म दिया है | ये लालच ही है जिसने तीर्थो को तीर्थ नहीं रहने दिया | लालच ही है कि रेस्टोरेंट और होटल तीर्थो तक पहुँच गये और तीर्थ से टूरिस्ट प्लेस बन गये | ये लालच और दिखावा ही है कि धर्म और श्रद्धा की आढ़ लेकर पिकिनिक और अय्याशी करने ऐसे स्थलों पर पहुँचने लगे | ये लालच ही है कि पण्डे-पंडित ब्राम्हण से वैश्य (व्यवसायी) हो गए | ये लालच और मोह ही है कि साधू-संत ब्राम्हण और क्षत्रिय हो गए | ये लालच ही है कि आश्रम और सन्यास दीक्षा अब फलता फूलता उद्योग बन गया | ये लालच ही है कि आश्रम अब भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार से ज्यादा कान्वेंट स्कूलों और विदेशी भाषा और शिष्यों को महत्व देता है | ये लालच ही है कि आश्रम के आस पास के गाँव अशिक्षित व शोषित रहते हैं लेकिन आश्रम के प्रभारी विलायती शिष्यों को तलाश रहे होते हैं | 10 hours ago · Edited · Like · 3  Rajulala Lala Dhanywad mere lekh par vichar karne ki liye, chaitany ji Pakhand ko kewal gyan se nasta kiya ja sakta hai jaha tak mai samjhta hu . 10 hours ago via mobile · Unlike · 3  Arunabh Bhaskar · Friends with Sudhir Vyas and 1 other और पंडा पूजारियो को भी पाखंडी कहना गलत है ।यह उनकी जिविका है यही उनकी आय है ।धर्म के नाम पर सिर्फ ब्राह्मणो को भुखे मरने को कह दिया जाता है 10 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य राजूलला जी, ज्ञान तो भारत में थोक के भाव बिखरा पड़ा है | यहाँ का बच्चा बच्चा बच्चा ज्ञानी है और उपदेश और प्रवचन तो आप किसी भी गली में खड़े पनवाड़ी या रेहड़ी वाले से सुन सकते हैं | रामायण, भागवत और वेद तो हर पंडित को कंठस्थ है | केवल समस्या यही है कि अर्थ का पता किसी को नहीं है और स्वयं उस ज्ञान का प्रयोग कैसे करें यही पता नहीं है | पीढ़ियों से रटने की परम्परा चली आई है तो लोग निभा रहें हैं और दूसरों को सुना रहें हैं | अब कभी कभार मेरी तरह का कोई औंधी खोपड़ी, कमअक्ल, अज्ञानी आ जाता है तो समस्या खड़ी हो जाती है | 10 hours ago · Like · 2  Arunabh Bhaskar · Friends with Sudhir Vyas and 1 other दुनिया का हर समाज पाखंडी है ।एक वेश्या के पिछे हजारो लूटा देते है और पुजारी से पुजा करवा के ग्यारह रुपये देने मे फटती है 10 hours ago via mobile · Like · 1  विशुद्ध चैतन्य भास्कर जी फिर से पढ़िए…. 10 hours ago · Like  विशुद्ध चैतन्य भास्कर जी किसको क्या देना है और क्या नहीं वह दाता पर निर्भर करता है न कि पंडा या पंडित पर 10 hours ago · Like · 1  विशुद्ध चैतन्य भास्कर जी आपसे निवेदन है कि मेरे पोस्ट पर बिना समझे कमेन्ट न किया करें | 10 hours ago · Like · 1  Arunabh Bhaskar · Friends with Sudhir Vyas and 1 other राजनेता जो जनता को बहला फूसला कर देश को लूटते है पाखँडी है ।डाक्टर जो मरे हुए को भी दस दिन अस्पताल मे रख पैसा वसुलता है पाखंडी है 10 hours ago via mobile · Unlike · 3  विशुद्ध चैतन्य सत्यवचन 10 hours ago · Like · 1  Arunabh Bhaskar · Friends with Sudhir Vyas and 1 other चैतन्य जी पंडा पुजारी भीखमंगे नही है जो दान लें भीख ले ।उन्हे मेहनताना मिलना चाहिए 10 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य भास्कर जी आपने कहा कि पण्डे पुजारियों कि जीविका है पूजा पाठ करवाना… ऐसे कितने पण्डे पुजारी हैं जिनकी अपनी पब्लिक बसें चलती है,दुकाने किराये पर दे रखी हैं, अच्छे अच्छे अच्छे सरकारी नौकरियां कर रहें हैं… इसलिए आपका यह कहना सही नहीं है | और यदि आपकी बात ही मान लूँ तो फिर सभी के साथ यही हाल है | सभी वर्णों में ऐसे लोग हैं जो अपनी वंश परंपरा से जुड़े हुए हैं लेकिन दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुगाड़ कर पा रहें हैं | मैं औरों की तरह किसी जाति या वर्ण-विशेष के दोष नहीं निकालता न ही धर्म या जाति के आधार पर किसी को दोषी मानता हूँ | मैं केवल दोष की ही बात करता हूँ ताकि उस समाज के जागरूक लोग उसे आगे बढ़ने से रोकें | 9 hours ago · Like · 2  विशुद्ध चैतन्य ब्राम्हण को दान-दक्षिणा ही दिया जाता है न कि मेहनताना | मेहनताना मजदूर को दिया जाता है या कुली को | अब आप तय कीजिये कि क्या पसंद है आपको ? 9 hours ago · Like · 2  Rajulala Lala Chaitany ji Apane ko kam akal aundhi khopadi agyani, jo samasayae khadi kar sakta hai kahna bh ek prakar ka abhiman hi hai Mai ji gyan ki baat kar raha hu wo karuna uttapan kari hai agyani ke leye na ki samasya Asha hai aapko bura nahi laga hoga . 9 hours ago via mobile · Unlike · 2  विशुद्ध चैतन्य आप सही कह रहें हैं तो बुरा कैसे लगेगा | मैं वास्तव में ही अभिमानी हूँ | अभिमान या अहंकार तो इतना ज्यादा है कि लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि किस बात का घमंड है तुझे तो जवाब देना मुश्किल हो जाता है | मैं अक्सर एकांत में बैठ कर अपने अहंकार के कारण को जानने की कोशिश करता हूँ तो यही नहीं पता चल पाता कि किस बात का अहंकार है | अर्थात मैं सम्पूर्ण अहंकार ही हूँ | और आप जिस ज्ञान की बात कर रहें हैं वह करुणा उत्पन्न करता है लेकिन न तो मैंने आज तक ऐसा ज्ञानी देखा है और न मैं कभी हो पाऊंगा | मुझे क्रोध भी आता है, इर्ष्या भी होती है, दुःख भी होता है, सुख भी होता है… और मैंने इन्हें जानबूझ कर पकड रखा है, क्योंकि ये सब मुझे अच्छे लगते हैं और फिर इनके बिना तो मैं ईश्वर बन जाऊँगा और मुझे ईश्वर नहीं बनना | मैं मनुष्य ही रहना चाहता हूँ और महावीर, बुद्ध, ओशो, ईसामसीह, गांधी, मदर टेरसा…आदि बनने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है | फिर भी यदि ऐसे किसी ज्ञान से आपका परिचय है तो समझना अवश्य चाहूँगा ताकि मैं अनजाने में उस ज्ञान को न अपना लूँ जो मुझे ईश्वर या महात्मा बना दे | 9 hours ago · Edited · Like · 1  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends हिंदु मे पांच पवनिया होते है यानि धार्मिक मजदूर ।ब्राह्मण ।नाई ।बढई ।कहार ।चमार 9 hours ago via mobile · Like  विशुद्ध चैतन्य ??? 9 hours ago · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends ब्राह्मण का काम पूजा करना ।नाइ फूल पती आदि की व्यवस्था करता है ।बढइ खडाउ आसन आदि की व्यवस्था ।कहार मंदिर या अनुष्ठान आदि की साफ सफाइ ।चमार बाहर बैठ ढोल बजाता है 8 hours ago via mobile · Unlike · 1  Rajulala Lala Chaitany ji Bahut si bate jo aap nahi jante wo hai, aise gyani hai Mai ka hona hi ahankar hai Mitane ka dar hi ese pakade rahata hai Mit kar jo milta hai use kewal guru ke sath mil baith kar hi jana ja sakta hai Mujhe nahi lagata ki mujhe wo gyan hai 8 hours ago via mobile · Unlike · 1  आकाश चंद्र jai baba besudh ji maharaj 8 hours ago · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य भास्करजी, अब जरा पता कीजिये कि शर्मा मिष्टान्न भण्डार या जनरल स्टोर में शर्मा जी कौन से पूजा और किनकी करवाते हैं ? ज़रा सभी सरकारी विभाग, पुलिस विभाग से पुलिस वालों की लिस्ट निकाल कर चेक कीजिये कि कितने कहार, बढ़ई, नाई, चमार और शर्मा, शुक्ल, शुक्ला, वेदी, dwedi, त्रिवेदी, चतुर्वेदी हैं ? 8 hours ago · Like · 2  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends हमारे पाँच पवनियो को राजा सामंत या समाज के द्वारा जमीन या उपज का एक हिस्सा दी जाती थी ।राष्ट्रपति से लेकर चपरासी तक जनता के सेवक है मालिक बन जाना ही उनका पाखंड है 8 hours ago via mobile · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends चैतन्य जी जो ब्राह्मण सामाजिक धंधे मे लगा है वो आपसे दान दक्षिणा नही मांगने जाता 8 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य मेरे से तो कोई भी नहीं आता माँगने, उलटे देकर ही जाते हैं कुछ न कुछ | चाहे आशीर्वाद हो या गाली | 8 hours ago · Like · 2  विशुद्ध चैतन्य राजू लला जी आप भी वही बातें कह रहें हैं जो सभी कहते हैं लेकिन वास्तविकता से परिचय नहीं है 8 hours ago · Like · 1  Rajulala Lala Chaitany ji Satay ko kahne ka jitana prayas kiya jata hai jo kiya ja skata hai kiya ja chuka hai atah nayi baat ki asha karna yartha hai Vastavikata anubhaw ki cheej hai vardan sambhaw nahi Gunge ka gud samjhe Jab aapko saty ka pata chlega sab ki khane me fark pata chlega Abhi vastvikata se parichay na hone ke karan fark nahi pata chalta 7 hours ago via mobile · Unlike · 2  विशुद्ध चैतन्य ये बातें आप अपने लिए कह रहें हैं या मेरे लिए ? 7 hours ago · Like  Rajulala Lala Sambhwata dono ke liye 7 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य यह तो वही बात हो गई कि दो अंधे एक दुसरे को चंद्रकला समझा रहें हैं… 7 hours ago · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends चैतन्य जी ब्राह्मण को पाखंडी कहने वाला ही पाखंडी है ।वो निर्मल ओशो आशा राम सत्यसांई सांई जैसे ठगो को भगवान मान कर लाखो दे देता है उनकी अय्याशी के लिए 7 hours ago via mobile · Like  विशुद्ध चैतन्य भास्कर जी फिर से मेरा पोस्ट पढ़िए…. मैंने कब ब्राह्मण को पाखंडी कहा ? 7 hours ago · Like  विशुद्ध चैतन्य और ओशो का नाम लेकर आप यही सिद्ध कर रहें हैं कि आप बिना समझे किसी के विषय में भी कोई भी निर्णय ले लेते हैं | 7 hours ago · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends चैतन्य जी आखिर पाखंडी समाज के नाम से ब्राह्मण ही बदनाम है । 7 hours ago via mobile · Like  विशुद्ध चैतन्य केवल इसलिए कि आप लोग अपने समाज में छुपे पाखंडियों का साथ देते हैं या उनसे डरते हैं 7 hours ago · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends चैतन्य जी ब्राह्मण आपके लिए सबसे संतोषी और इमानदार प्राणी है यदि आपने उसे पेट से ज्यादा स्वादिष्ट भोजन करा दिया 7 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य और यह ध्यान रखियेगा कि मैं कभी भी किसी समाज या जाति या धर्म की निंदा नहीं करता न कभी करना चाहता हूँ | केवल दोषों पर जब नजर जाती है तो उन्हें सामने लाने की कोशिश करता हूँ | 7 hours ago · Like  विशुद्ध चैतन्य मैं किसी से वर्ण या जाति या धर्म पूछ कर नहीं मिलता और न ही दोस्ती या दुश्मनी करता हूँ | केवल व्यक्ति का व्यवहार, संस्कार और भाषा (शोभनीय है या अशोभनीय) ही मेरे मानक का आधार होता है | 7 hours ago · Like  Arunabh Bhaskar · 2 mutual friends चैतन्य जी आप किसी के विचारो को अपने उपर मत थोपिए ।ये देखिए कि आज हमारे धर्म और समाज को क्या चाहिए कि जग का भला हो 7 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य तो जग का भला पाखंडियों के कर्मों पर पर्दा डालने से हो जायेगा ? या दुसरे धर्मों पर कीचड उछालने से होगा भास्कर जी ? 7 hours ago · Like  Rajulala Lala Chaitany ji Sambhwata par dhyan nahi diya aapne 7 hours ago via mobile · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य संभतः पर पूरा ध्यान दिया था लेकिन आपने पहले कमेन्ट के अंतिम पंक्ति में कहा था कि “मुझे नहीं लगता कि मुझे ज्ञान है..” मैंने उसे ही मानकर टिप्पणी की | मैं अपने बारे में निश्चित रूप से जानता हूँ कि मुझे ज्ञान नहीं है मैं अँधा ही हूँ | अब आपने अपना विचार बदल लिया तो मैं क्षमा चाहता हूँ और आपको जफिर से ज्ञानी मान लेता हूँ | 7 hours ago · Like · 1  Rajulala Lala Maine sambhawata ka pryoa aapke liye hi kiya tha kyoki aapke lekho se prateet nahi hato Mila ab tak hu nahi Aapko ye pata hona ki aapko nahi pata jo nahi pata uske pate ki suchna deta hai Vichar kariye ga shyad kuch pata chale 7 hours ago via mobile · Like  सोनिका शर्मा Balendu Swami धर्म और संस्कृति के नाम पर होने वाला शोषण ही ऐसा शोषण है, जिसमें शोषित व्यक्ति शोषण में भी गर्व महसूस करता है. 7 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा Balendu Swami समाजसेवी और अंधविश्वास निर्मूलन समिति के अध्यक्ष और संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की आज सुबह 2 नौजवानों ने गोली मारकर हत्या कर दी. वे अन्धविश्वास और जादूटोने के खिलाफ बिल लाने के अभियान की अगुआई कर रहे थे. इस नास्तिक व्यक्ति की हत्या किसी जादूटोने ने नहीं बल्कि रिवाल्वर से निकली गोली ने कर दी. 7 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा कॉपरनिकस ( 1473-1543) इन्होने धर्म गुरुओं की पूल खोल थी इसमें धर्मगुरु ये कह कर को मुर्ख बना रहे थे की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर लगता है । कॉपरनिकस ने अपने पप्रयोग से ये सिद्ध कर दिया की प्रथ्वी सहित सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं, जिस कारण धर्म गुरु इतने नाराज हुए की कोपरनिकस के सभी सार्थक वैज्ञानिको को कठोर दंड देना प्रारंभ कर दिया । 6 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा बेंजामिन फ्रेंकलिन (1706-1790) इनका कहना था ” सांसारिक प्रपंचो में मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि इनके न होने से सुरक्षित है “ 6 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा कार्ल मार्क्स ( 1818-1883) कार्ल मार्क्स का कहना था ” इश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है ” और ” धर्म एक अफीम है ” उनकी नजर में धर्म विज्ञानं विरोधी , प्रगति विरोधी , प्रतिगामी , अनुपयोगी और अनर्थकारी है , इसका त्याग ही जनहित में है । 6 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा अल्बर्ट आइन्स्टीन ( 1879-1955) विश्वविख्यात वैज्ञानिक का कहना था ” व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानभूति , शिक्षा और सामाजिक बंधन पर निर्भर होना चाहिए , इसके लिए धार्मिक आधार की कोई आवश्यकता नहीं है . मृत्यु के बाद दंड का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है” 6 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा भगत सिंह (1907-1931) प्रमुख स्वतन्त्रता सैनानी भगत सिंह ने अपनी पुस्तक ” मैं नास्तिक क्यों हूँ?” में कहा है ” मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहस पूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देने वाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए इश्वर की कल्पना की गयी है “ 6 hours ago · Unlike · 1  सोनिका शर्मा लेनिन लेनिन के अनुसार ” जो लोग जीवन भर मेहनत मशक्कत करते है और आभाव में जीते हैं उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्रता और धैर्य रखने की तथा परलोक में सुख की आशा से सांत्वना प्राप्त करने की शिक्षा देता है , परन्तु जो लोग दुसरो के श्रम पर जीवित रहते हैं …See More 6 hours ago · Like · 1  Shiva Shunya All Religions. Masters are against your being .. If One Awaken from inner Core.. Then He will be free and librate From all the so called human salvation with ignorance.. Otherwise .. Human forced to live in This blind Darkness Human world No words for u.. No one here for u.. Aware with enlighten.. thanks 5 hours ago · Edited · Unlike · 1  विशुद्ध चैतन्य सोनिका जी सभी महान आत्माओं के विचार प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक धन्यवाद | 5 hours ago · Like · 1  विशुद्ध चैतन्य shiva shunya I agree with you. 5 hours ago · Like · 1  विशुद्ध चैतन्य Only awaken is able to understand the real-self. 5 hours ago · Like · 1 https://www.facebook.com/SwamiVishuddhaChaitanya/posts/166901903500489?comment_id=205679&offset=0&total_comments=65¬if_t=feed_comment_reply इसे साझा करें: TwitterFacebookGoogleअधिक  विशुद्ध चैतन्य द्वारा • प्रश्नोत्तर में प्रकाशित किया गया पोस्ट नेविगेशन पुराने पोस्टसनए पोस्टस खोजे खोजे … हाल के पोस्ट सन्यासी को कैसा होना चाहिए ? संत कौन ? जब तक आप स्वयं से परिचित नहीं होते, तब तक आप भटकते रहते हैं स्वयं की खोज में…. कहे कबीर दीवाना–प्रवचन–14 गीता दर्शन–भाग-1(ओशो) प्रवचन–11 हाल ही की टिप्पणियाँ  kapil verma पर संत कौन ?  kapil verma पर संत कौन ?  लीलामन्दिर आश्रम: एक… पर लीलामन्दिर आश्रम: एक महान संत…  vishuddhachaitanya पर लीलामन्दिर आश्रम: एक महान संत…  Jaidev Bharti पर लीलामन्दिर आश्रम: एक महान संत… पुरालेख नवम्बर 2014 जुलाई 2014 जून 2014 फ़रवरी 2014 जनवरी 2014 दिसम्बर 2013 नवम्बर 2013 अक्टूबर 2013 सितम्बर 2013 अगस्त 2013 जुलाई 2013 जून 2013 श्रेणी अनोखी कहानियाँ कुछ कहना चाहता हूँ आपसे… धर्म या अधर्म प्रश्नोत्तर ज़रा सोचिये…!!! 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