Tuesday 20 June 2017
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पृष्ट संख्या:
123
तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
अन्य देवदूतों पर दृष्टि डालिए वे भी इसी मार्ग के पथिक रहे हैं, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, ईसामसीह मुहम्मद साहब, जरथुरत, सुकरात, शंकराचार्य, गान्धी आदि ने जो तप किये हैं वे इतिहास के पाठकों को भली प्रकार विदित हैं। इनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने ढंग से आत्म शुद्धि और दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिये ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, तितीक्षा, त्याग, आराधना आदि तपश्चर्याओं का अवलम्बन किया था। उसी के कारण उनका चरित्र, व्यक्तित्व एवं प्रभाव बढ़ा और उसी के कारण वे अपने विचारों की छाप अपने अनुयायियों पर डाल सके। संसार के प्रत्येक देश में वे ही व्यक्ति पूजनीय माने गये हैं जिन्होंने अपनी आत्मा को तपाकर निर्मल एवं साधन बनाया है।
यों यद्यपि तप के अनेक मार्ग हैं। विदेशी या विधर्मी लोग अन्य पद्धतियों से भी अपनी साधनाएँ करते हैं और उनसे यथासंभव लाभ भी उठाते हैं परन्तु अध्यात्म विज्ञान के सूक्ष्मदर्शी ऋषियों ने अपने योगबल से यह भी देख लिया था कि गायत्री की सहायता के बिना कोई तप अधिक फलदायक नहीं हो सकता, इसलिए भारतीय पद्धति में इस महामन्त्र को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है। इतिहास पर दृष्टिपात करने से पता चलता है कि यहाँ इसी महा विज्ञान के आधार पर आत्म कल्याण के महान अभिमान किये जाते हैं। प्राय: सभी ऋषियों ने इस राज मार्ग को अपनाया है।
ऋषि महार्षियों में जो विशेषताएँ थी उनमें उनकी तपस्या ही एक मात्र कारण थी। विश्वामित्र वशिष्ट, याज्ञवल्क्य, भारद्वाज, अत्रि, गौतम, कपिल, कण्व, पातंजलि, व्यास, वाल्मीक, च्यवन, शुकदेव, नारद दुर्वासा आदि ऋषियों के जीवन वृतान्त पर विहगंवलोकन किया जाय तो सहज ही पता चल जाता है कि उनकी महानता का, उनके अद्भुत एवं महान् कार्यों का कारण उनका गायत्री तप ही था।
विश्वामित्र जी के द्वारा अपने तपोबल की शक्ति से नई सृष्टि का बनाया जाना और त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने की कथा प्रसिद्ध है। वशिष्ठ को कामधेनु गौ (गायत्री) को लेने के लिए जब राजा विश्वामित्र गये थे तब वशिष्ठ जी ने निरस्त्र होते हुए भी राजा की भारी सेना को परास्त कर दिया था। भागीरथ जी तप करके गंगाजी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाये थे। अम्बरीष का तपोबल जब दुर्वासा ऋषि के पीछे मृत्यु चक्र बनकर दौड़ा तो अंत में दुर्वासा को अम्बरीष की शरण लेकर ही प्राण बचाने पड़े थे। इस प्रकार की अगणित कथाएँ ऐसी हैं जिनसे प्रकट है कि तप के द्वारा कुछ विलक्षण शक्तियाँ तपस्या में उत्पन्न होती हैं।
शाप वरदान की अनेक कथाएँ मौजूद हैं। कपिल के शाप से राजा सगर के सौ पुत्र भस्म गये थे। ऋषियों को पालकी में जोत कर सवारी करने वाले राजा नहुष जो अगत्स्य ऋषि के श्राप वश गिर कर जिन्हें सर्प होना पड़ा था। राजा नृग ऐसे ही क्रोध के भाजन बनकर गिरगिट की योनि को प्राप्त हुए थे। गौतम के शाप से अहिल्या शिला हो गई थी और इन्द्र को शत भंग होने को कुरूपता धारण करनी पड़ी, गुरु पत्नी से गमन करने का शाप चन्द्रमा के ऊपर कलंक रूप में अब भी विद्यमान है। ऋगी ऋषि के शाप से राजा परीक्षित को तक्षक सर्प ने काटा था, शुक्राचार्य के शाप से कर्ण की विद्या निष्फल हो गयी थी। श्रवण कुमार को मृग जानकर तीर मारने पर उसके पिता का शाप राजा दशरथ को लगा था और अन्त में राजा को भी पुत्र शोक में प्राण त्यागने को विवश होना पड़ा था। ऋष्यमूक पर्वत पर वाली शाप वश ही नहीं जा पाता था। मेघदूत का यक्ष शाप वश ही अपनी प्रियतमा से वियोग का दुख सहता है। इसी प्रकार वरदानों का भी इतिहास है। देवताओं और ऋषियों के वरदानों से अनेकों को अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। और वे उस कृपा के कारण असाधारण लाभों से लाभान्वित हुए हैं।
तप के द्वारा सांसारिक सुख सौभाग्यों से परिपूर्ण बनने वालों के उदाहरण भी कम नहीं हैं। ध्रुव ने तप करके राज्य पाया था। राजा दिलीप की संतान न थी उनने पत्नी समेत वशिष्ट जी के आदेशानुसार नन्दिनी (गायत्री) की उपासना की थी तदनुसार उन्हें महाप्रतापी पुत्र की प्राप्ति हुई। योगीराज मछीन्द्र नाथ की भस्म विभूति के द्वारा महायोगी गोरखनाथ का जन्म हुआ था। अंजनी ने कठिन तप करके वजरंगी हनुमान जी का प्रसव किया था। दशरथ जी यज्ञ के पुण्य प्रताप से संतान हीन के दुख से मुक्ति मिली थी और चार पुत्र प्राप्त हुए थे। कर्ण को नित्य सवा मन स्वर्ण प्राप्त होने का वरदान प्राप्त हुआ था वह इस स्वर्ण को नित्य दान कर देता था।
केवल पुरुषों को ही तप करने का अधिकार हो सो बात नहीं है। स्त्रियाँ भी पुरुषों के समान ही इस क्षेत्र में पूर्ण अधिकारिणी हैं। आत्मा न स्त्री है न पुरुष वह ईश्वर का विशुद्ध स्फुल्लिंग है, उसे तप करके आत्मा को परमात्मा में मिला देने का स्वाभाविक अधिकार सदा से ही प्राप्त है। पार्वती जी का तप प्रसिद्ध है। गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुन्धती, अहिल्या, मदालसा, देवयानी, कुन्ती, सतरूपा, वृन्दा, मन्दोदरी, तारा, द्रौपदी, दमयन्ती, गौतमी अपाला, सुलमा, शाश्वती, उशिजा, सावित्री, लोपामुद्रा, प्रतिशेयी, वैशालिनी, बेहुला, गान्धारी, अञ्जनी, शर्मिष्ठा, देवहूति, आदिति, दिति, शची, सत्यवती, सुकन्या, शैब्या, तारा, मन्दोदरी, घोपा, गोधा, विश्ववारा, जुहू, रोमशा, श्रता, वयुना आदि अगणित तपस्विनी एवं आत्म शक्ति सम्पन्न नारियों के वृतान्त इतिहास पुराणों में विस्तार पूर्वक वर्णित हैं उसे पढ़कर यह भली प्रकार जाना जा सकता है कि प्राचीन काल में स्त्रियाँ भी पुरुषों के समान ही तपश्चर्या के क्षेत्र में बढ़ी हुई थी। गायत्री माता की गोदी में उसके पुत्र और पुत्री समान रूप से क्रीड़ा कल्लोल कर सकते हैं और समान रूप से मय पान कर सकते हैं।
पृष्ट संख्या:
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अन्नमय कोश और उसका अनावरण
अन्नमय कोश की जाग्रति, आहार शुद्धि से
आहार के त्रिविध स्तर, त्रिविध प्रयोजन
आहार, संयम और अन्नमय कोश का जागरण
आहार विहार से जुड़ा है मन
आहार और उसकी शुद्धि
आहार शुद्धौः सत्व शुद्धौः
अन्नमय कोश की सरल साधना पद्धति
उपवास का आध्यात्मिक महत्त्व
उपवास से सूक्ष्म शक्ति की अभिवृद्धि
उपवास से उपत्यिकाओं का शोधन
उपवास के प्रकार
उच्चस्तरीय गायत्री साधना और आसन
आसनों का काय विद्युत शक्ति पर अद्भुत प्रभाव
आसनों के प्रकार
सूर्य नमस्कार की विधि
पंच तत्वों की साधना तत्व साधना एक महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म विज्ञान
तत्व शुद्धि
तपश्चर्या से आत्मबल की उपलब्धि
आत्मबल तपश्चर्या से ही मिलता है
तपस्या का प्रचण्ड प्रताप
तप साधना द्वारा दिव्य शक्तियों का उद्भव
ईश्वर का अनुग्रह तपस्वी के लिए
पापनाशक और शक्तिवर्धक तपश्चर्याएँ
समग्र साहित्य
हिन्दी व अंग्रेजी की पुस्तकें
व्यक्तित्व विकास ,योग,स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास आदि विषय मे युगदृष्टा, वेदमुर्ति,तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ३००० से भी अधिक सृजन किया, वेदों का भाष्य किया।
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अखण्डज्योति पत्रिका १९४० - २०११
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वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
विज्ञान और अध्यात्म ज्ञान की दो धारायें हैं जिनका समन्वय आवश्यक हो गया है। विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हि सच्चे अर्थों मे विकास कहा जा सकता है और इसी को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद कहा जा सकता है..
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भारतीय संस्कृति
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प्रज्ञा आभियान पाक्षिक
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