Saturday 24 June 2017

रुद्र

 Wiki Loves Earth photo contest: Upload photos of natural heritage sites in India to help Wikipedia and win fantastic prizes! मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें रुद्र वैदिक धर्म के देवतगण अनेक हैं, उनमें एक रुद्रदेवता भी हैं। ऋग्वेद में रुद्र की स्तुति 'बलिष्टों में बलिष्ट' कहकर की गयी है। यजुर्वेद का श्रीरुद्रम् मंत्र, रुद्र देवता को समर्पित है। यह मंत्र शैव सम्प्रदाय में बहुत महत्वपूर्ण है। अनेक गुणों में शिव और रुद्र में समानता है। वेदों में रुद्र नाम परमात्मा, जीवात्मा, तथा शूरवीर के लिए प्रयुक्त हुआ है। यजुर्वेद के रुद्राध्याय में रुद्र के अनंत रूप वर्णन किए हैं। इस वर्णन से पता चलता है कि यह संपूर्ण विश्व इन रुद्रों से भरा हुआ है। यास्काचार्य ने इस रुद्र देवता का परिचय इस प्रकार दिया है - रुद्रो रौतीति सत:, रोरूयमाणो द्रवतीति वा, रोदयतेर्वा, यदरुदंतद्रुद्रस्य रुद्रत्वं' इति काठकम्। (निरुक्त देखें, १०.१.१-५) रु' का अर्थ 'शब्द करना' है - जो शब्द करता है, अथवा शब्द करता हुआ पिघलता है, वह रुद्र है।' ऐस काठकों का मत है। शब्द करना, यह रुद्र का लक्षण है। रुद्रों की संख्या के विषय में निरुक्त में कहा है- एक ही रुद्र है, दूसरा नहीं है। इस पृथवी पर असंख्य अर्थात् हजारों रुद्र हैं।' (निरुक्त १.२३) अर्थात् रुद्र देवता के अनेक गुण होने से अनेक गुणवाचक नाम प्रसिद्ध हुए हैं। एक ही रुद्र है, ऐसा जो कहा है, वहाँ परमात्मा का वाचक रुद्र पद है, क्योंकि परमात्मा एक ही है। परमात्मा के अनेक नाम हैं, उनमें रुद्र भी एक नाम है। इस विषय में उपनिषदों का प्रमाणवचन देखिए- एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्यु:। य इमाल्लोकानीशत ईशनीभि:॥ ( श्वेताश्वतर उप. ३.२) 'एक ही रुद्र है, दूसरा रुद्र नहीं है। वह रुद्र अपनी शक्तियों से सब लोगों पर शासन करता है।' इसी तरह रुद्र के एकत्व के विषय में और भी कहा है - रुद्रमेंकत्वमाहु: शाश्वैतं वै पुराणम्। (अथर्वशिर उप. ५) अर्थात् 'रुद्र एक है और वह शाश्वत और प्राचीन है।' 'जो रुद्र अग्नि में, जलों में औषधिवनस्पतियों में प्रविष्ट होकर रहा है, जो रुद्र इन सब भुवनों को बनाता है, उस अद्वितीय तेजस्वी रुद्र के लिए मेरा प्रणाम है।' (अथर्वशिर उप. ६) यो देवना प्रभवश्चोद्भवश्च। विश्वाधिपो रुद्रो महर्षि:॥ (-श्वेताश्व. उ. ४.१२) 'जो रुद्र सब देवों को उत्पन्न करता है, जो संपूर्ण विश्व का स्वामी है और जो महान् ज्ञानी है।' यह रुद्र नि:संदेह परमात्मा ही है। जगत् का पिता रुद्र - संपूर्ण जगत् का पिता रुद्र है, इस विषय में ऋग्वेद का मंत्र देखिए- भुवनस्य पितरं गीर्भिराभी रुद्रं दिवा वर्धया रुद्रमक्तौ। बृहन्तमृष्वमजरं सुषुम्नं ऋधग्हुवेम कविनेषितार:॥ (-ऋग्वेद ६.४९.१०) 'दिन में और रात्रि में इन स्तुति के वचनों से इन भुवनों के पिता बड़े रुद्र देव की (वर्धय) प्रशंसा करो, उस (ऋष्वं) ज्ञानी (अ-जरं सुषुम्नं) जरा रहित और उत्तम मनवाले रुद्र की (कविना इषितार:) बुद्धिवानें के साथ रहकर उन्नति की इच्छा करनेवाले हम (ऋषक् हुवेम) विशेष रीति से उपासना करेंगे।' यहाँ रुद्र को 'भुवनस्य पिता' त्रिभुवनों का पिता अर्थात् उत्पन्नकर्ता और रक्षक कहा है। रुद्र ही सबसे अधिक बलवान् है, इसलिए वही अपने विशेष सामर्थ्य से इन संपूर्ण विश्व का संरक्षण करता है। वह परमेश्वर का गुहानिवासी रुद्र के रूप में वर्णन भी वेद में है- स्तुहि श्रुतं गर्तसंद जनानां राजानं भीममुपहलुमुग्रम्। मृडा जरित्रे रुद्र स्तवानो अन्यमस्मत्ते निवपन्तु सैन्यम्॥ (-अथर्व १८.१.४०) '(उग्रं भीमं) उग्रवीर और शक्तिमान् होने से भयंकर (उपहलुं) प्रलय करनेवाला, (श्रुतं) ज्ञानी (गर्तसदं) सबके हृदय में रहनेवाला, सब लोगों का राजा रुद्र है, उसकी (स्तुहि) स्तुति करो। हे रुद्र! तेरी (स्तवान:) प्रशंसा होने पर (जरित्रे) उपासना करनेवाले भक्त को तू (मृड) सुख दे। (ते सैन्यं) तेरी शक्ति (अस्मत् अन्यं) हम सब को बचाकर दूसरे दुष्ट का (निवपन्तु) विनाश करे।' इस मंत्र में 'जनानां राजांन रुद्र' ये पद विशेष विचार करने योग्य हैं। 'सब लोगों का एक राजा' यह वर्णन परमात्मा का ही है, इसमें संदेह नहीं है। इस मंत्र के कुछ पद विशेष मनन करने योग्य हैं, वे ये हैं- (१) गर्त-सद: - हृदय की गुहा में रहनेवाला, (निहिर्त गुहा यत्) (वा. यजु. ३८.२) जो हृदय रूपी गुहा में रहता है। (२) गुहाहित: - बुद्धि में रहनेवाला, हृदय में रहनेवाला, (परमं गुहा यत्। अथर्व. २.१.१-२) जो हृदय की गुहा में रहता है। (३) गुहाचर: , गुहाशय: - (गुह्यं ब्रह्म) - बुद्धि के अंदर रहनेवाला, यह परमात्मा ही है। 'रुद्र' पद के ये अर्थ स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि यह रुद्र सर्वव्यापक परमात्मा ही है। यही भाव इस वेदमंत्र में है-'अंतरिच्छन्ति तं जने रुद्रं परो मनीषया। (ऋ.८.७२.३) 'ज्ञानी जन (तं रुद्रं) उस रुद्र को (जने पर: अन्त:) मनुष्य के अत्यंत बीच के अंत:करण में (मनीषया) बुद्धि के द्वारा जानने की (इच्छन्ति) इच्छा करते हैं।' ज्ञानी लोग उस रुद्र को मनुष्य के अंत:करण में ढूँढते हैं। अर्थात् यह रुद्र सबसे अंत:करण में विराजमान परमात्मा ही है। यही वर्णन अन्य वेदमंत्रों में है- अनेक रुद्रों में व्यापक एक रुद्र - इस विषय का प्रतिपादन करने वाले ये मंत्र हैं- (१) रुद्रं रुद्रेषु रुद्रियं हवामहे (ऋ. १०.६४.८); (२) रुद्रो रुद्रेभि: देवो मृलयातिन: (ऋ. १०.६६.३); (३) रुद्रं रुद्रेभिरावहा बृहन्तम् (ऋ. ७.१०.४); अर्थात् (१) अनेक रुद्रों में व्यापक रूप में रहनेवाले पूजनीय एक रुद्र की हम प्रार्थना करते हैं; (२) अनेक रुद्रों के साथ रहनेवाला एक रुद्र देव हमें सुख देता है; (३) अनेक रुद्रों के साथ रहनेवाले एक बड़े रुद्र का सत्कार करो।' इससे स्पष्ट हो जाता है कि अनेक छोटे रुद्र अनेक जीवात्मा हैं और उन सब में व्यापनेवाला महान् रुद्र सर्वव्यापक परमात्मा ही है। इस विषय में यजुर्वेद का मंत्र (वा. यजु. १६.५४) भी दृष्टव्य है। इन तीन प्रश्नों का उत्तर दें तथा विकिपीडिया को बेहतर बनाने में हमारी मदद करें. Visit surveyNo thanks सर्वेक्षण डेटा किसी तीसरी पार्टी द्वारा संभाला जा रहा है। गोपनीयता। रुद्र के विषय में भाष्यकारों के मत संपादित करें रसायनाचार्य का मत - रुद्र पद के ये अर्थ अपने भाष्य में उन्होंने किए हैं- (१) रुद्रकालात्मक परमेश्वर है; (२) रुलानेवाने प्राण है; (३) शत्रुओं को रुलानेवाले वीर रुद्र हैं; (४) रोग दूर करनेवाला औषध रूप; (५) संहार करनेवाला देव रुद्र है; सबको रुलाता है; (६) रुत् का अर्थ दु:ख है, उनको दूर करनेवाला परमेश्वर रुद्र है; (७) ज्वर का अभिमानी देव रुद्र है। श्री उवटाचार्य का मत - (१) शत्रु को रुलानेवाली वीर रुद्र है; (२) रुद्र का अर्थ धीर वीर है। श्री महीधराचार्य का मत - (१) रुद्र का अर्थ शिव है। (२) रुद्र का अर्थ शंकर है। (३) पापी जनों को दु:ख देकर रुलाता है वह रुद्र है। (४) रुद्र का अर्थ धीर बुद्धिमान्, (५) रुद्र का अर्थ स्तुति करनेवाला है, (६) शत्रु को रुलानेवाला रुद्र है। स्वामी दयानंद सरस्वती का मत - (१) रुद्र दु:ख का निवारण करनेवाला; (२) दुष्टों को दंड देनेवाला; (३) रोगों का नाशकर्ता; (४) महावीर; (५) सभा का अध्यक्ष, (६) जीव, (७) परमेश्वर, (८) प्राण, तथा (९) राजवैद्य है। इन्हें भी देखें संपादित करें रुद्राष्टकम् Last edited 11 months ago by अनुनाद सिंह RELATED PAGES ऋग्वेद संहिता वेदांग मरुद्गण  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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