Friday, 16 June 2017

स्वामीजी नर्मदा किनारे

Home‎ > ‎ His Interpretation of Durga saptashati: Ba Paath BA Table of Contents Table of Contents------------------------------- 1 प्रस्तावना--------------------------------------------------- 6 श्री चंडी माहत्म्य------------------------------------------ 10 श्री बा-सूत्र – अंग्रेज़ी में------------------------------------ 12 श्री बा-सूत्र – हिंदी में-------------------------------------- 17 श्री चंडीसूत्र – प्रस्तावना---------------------------------- 22 – 1 –----------------------------------------------------- 27 – 2 –----------------------------------------------------- 32 – 3 –----------------------------------------------------- 34 – 4 –----------------------------------------------------- 36 – 5 –----------------------------------------------------- 38 – 6 –----------------------------------------------------- 41 – 7 –----------------------------------------------------- 43 – 8 –----------------------------------------------------- 45 – 9 –----------------------------------------------------- 48 – 10 –---------------------------------------------------- 51 – 11 –---------------------------------------------------- 55 – 12 –---------------------------------------------------- 58 – 13 –---------------------------------------------------- 60 – 14 –---------------------------------------------------- 62 – 15 –---------------------------------------------------- 64 – 16 –---------------------------------------------------- 67 – 17 –---------------------------------------------------- 72 – 18 –---------------------------------------------------- 74 – 19 –---------------------------------------------------- 77 – 20 –---------------------------------------------------- 79 – 21 –---------------------------------------------------- 82 – 22 –---------------------------------------------------- 84 – 23 –---------------------------------------------------- 88 – 24 –---------------------------------------------------- 92 – 25 –---------------------------------------------------- 94 – 26 –---------------------------------------------------- 98 – 27 –-------------------------------------------------- 102 श्री बा-सूत्र – उपसंहार----------------------------------- 104 श्री बा सत्संग-------------------------------------------- 108 श्री बा-दर्शन--------------------------------------------- 117 SHRI BA-LETTERS (ORIGINAL) IN eNGLISH 120 – 1 –---------------------------------------------------- 121 – 2 –---------------------------------------------------- 123 – 3 –---------------------------------------------------- 131 – 4 –---------------------------------------------------- 132 – 5 –---------------------------------------------------- 133 – 6 –---------------------------------------------------- 134 – 7 –---------------------------------------------------- 135 – 8 –---------------------------------------------------- 136 – 9 –---------------------------------------------------- 137 – 10 –-------------------------------------------------- 139 श्री बा-पत्र (हिंदी भाषांतर)------------------------------ 140 – १–---------------------------------------------------- 141 – २ –--------------------------------------------------- 143 – ३ –--------------------------------------------------- 151 – ४ –--------------------------------------------------- 152 – ५ –--------------------------------------------------- 153 – ६ –--------------------------------------------------- 154 – ७ –--------------------------------------------------- 155 – ८ –--------------------------------------------------- 156 – ९ –--------------------------------------------------- 157 – १० –-------------------------------------------------- 159 EndNote-------------------------------------------- 160 प्रस्तावना स्वामीजी नर्मदा किनारे आनंदमयी आश्रम में 1963 से 1977 तक रहे। उनके कमरे में एक छोटी-सी अलमारी थी। वही स्वामीजी का मंदिर एवं पूजास्थान। एक बार स्वामीजी बाहर जा रहे थे। उनकी नज़र रास्ते पर पड़े रहे दुर्गामाई के एक छोटे-से फ़ोटो पर गई। उन्होंने उसको उठा लिया, फ्रेम करवाई और पूजास्थान में रख दिया। उनके रूम में ठाकुर, शारदा माँ और कालीमाता के भी बड़े फ़ोटो थे; एक भगवारिणी का विग्रह भी था जो बड़े तखत पर विराजमान् थे। माताजी की पूजा के विशेष दिनों में शारदा माँ का फ़ोटो रखा जाता था। स्वामीजी कालीमाँ, दुर्गा माँ, शारदा माँ – सब मातृस्वरूपों – के लिए मानार्थ संबोधन ‘माताजी’ करते थे। 1977 से स्वामीजी का मातृमंदिर, सूरत में निवास शुरू हुआ और 1993 में तिरोभाव तक वे उधर रहे। क़रीब 1979-1980 के दरमियान दक्षिण भारत से कालीमाता का एक विग्रह आया[1]। उसको वेदी पर मुख्य आसन पर विराजमान् किया। तब से कालीमाता उधर ही है। विशेष दिनों में उसकी ही पूजा होती थी। स्वामीजी कालीमाता के लिए ‘माताजी’ शब्द प्रयोग करते थे – अपवादस्वरूप, ‘माँ’ शब्द प्रयोग करते थे; और वह भी विशेष करके प्रार्थना में। स्वामीजी ने 24 अप्रैल 1963 पर – अंग्रेज़ी कैलेन्डर के अनुसार अपने जन्मदिन पर – काशी में संन्यास ग्रहण किया और अन्नपूर्णा मंदिर में प्रणाम करने गए। उनको पहली भिक्षा जब वे अन्नपूर्णा मंदिर में गए तब मिली थी। वे आँख बंद करके बैठे थे तब एक बुड्ढी ने आकर लड्डू दिया था। स्वामीजी का अन्नपूर्णा माँ के लिए हमेशा विशेष भाव रहा। स्वामीजी अपने जीवन में दो ही स्थानों में यात्रा में जाते रहे – व्रज और काशी। वे व्रज में कात्यायनी मंदिर में और काशी में अन्नपूर्णा मंदिर में विशेष करके जाते थे। काशी में अन्नपूर्णा माँ को वैसे तो दिन में मुखौटा पहना कर रखते हैं और भक्तों को इसी के दर्शन होते हैं। यही स्वरूप ज़्यादातर प्रचलित है। लेकिन सुबह चार बजे जब माताजी का अभिषेक होता है उस वक्त मुखौटा नहीं होता है। उस वक्त जैसे माताजी के विग्रह का मूल स्वरूप है उसके दर्शन होते हैं। स्वामीजी को और भक्त लोगों को यह दर्शन बहुत प्रिय था। इसलिए जब-भी स्वामीजी शिष्य-भक्तों के साथ काशी जाते थे तो सब यह दर्शन बहुत प्रेम और श्रद्धा से करते थे। पुजारी ने यह देखकर एक बार इस स्वरूप का फ़ोटो लेने की और व्यक्तिगत पूजा में रखने की अनुमति दी और माताजी का फ़ोटो लिया गया। माताजी का यह मातृवत स्वरूप है, – मानो अपनी ही वात्सल्यसभर बुड्ढी माँ चम्मच और हाँड़ी लिए अपने बालक को खिलाने के लिए, उसके आत्मा की पुष्टि करने के लिए खड़ी है। यह बात 1984 के शुरू की है जब फ़रवरी-मार्च में स्वामीजी शिष्यों और भक्तों के साथ काशी गए थे। गुजरात वापस आकर इस फ़ोटो की बड़ी कापी निकाली गई। स्वामीजी इसको देखकर बहुत प्रसन्न हुए और सबको यह फ़ोटो पूजा में रखने के लिए कहा। 1984 की शारदीय नवरात्रि के समय तक तो अन्नपूर्णा माँ का यह स्वरूप सब शिष्यों और भक्तों के वहाँ मुख्य आसन पर स्थापित हो गया, उसकी पूजा शुरू हो गई। स्वामीजी माताजी के इस स्वरूप के लिए भी शुरू-शुरू में – पूरे 1984 तक – मानार्थ ‘माताजी’ शब्द ही प्रयोग करते थे। ‘बा’ शब्द के प्रयोग और ब्रह्ममयी में अपनी ही गवाँर बुड्ढी माँ, मानवस्वरूप माँ, ऐश्वर्यरहित माँ, वात्सल्यसभर माँ को देखने का इतिहास रोचक है। मातृमंदिर के पीछे अश्विनी नाम का एक पड़ोसी रहता था। उसका घर स्वामीजी के कमरे के बिल्कुल साथ में ही था। इसलिए उसके घर में जो बातचीत होती थी, सब स्वामीजी को सुनाई देती थी। उसकी एक बुड़्ढी माँ थी, जिसकी देख-भाल वह बहुत प्रेम से करता था। गुजराती में अपनी माँ के लिए तथा किसी भी बुड्ढी माई के लिए ‘बा’ शब्द प्रयोग होता है। किसी डोकरी के लिए ‘डोसी’ शब्द का प्रयोग भी होता है। अश्विनी दिन में कई बार अपनी बुड्ढी माँ से पूछता रहता था: ‘बा, तूने चाय पी?’...‘बा, तूने खाया? अब खाना खा ले।’...‘बा, तू कैसी है? तेरी तबीयत ठीक तो है न।’...‘बा, तेरा सिर दु:ख रहा है? दवाई खा ले। मैं तेरा सिर दबाउँ?’... वगैरह, वगैरह; और स्वामीजी ये सब सुनते रहते थे। स्वामीजी को यह बहुत अच्छा लगता था। उनको अन्नपूर्णा माँ को वैसे ही देखना, उसकी वैसी ही देखभाल करना एवं हाल-चाल पूछना अच्छा लगता था; और वे उससे ऐसी बातें करने लगे। –बस, इधर से अन्नपूर्णा माँ को ‘बा’ तरह से संबोधन करना शुरू हो गया; ब्रह्ममयी में अपनी ही गवाँर बुड्ढी माँ, मानवस्वरूप माँ, ऐश्वर्यरहित माँ, वात्सल्यसभर माँ और अपने आपमें उसका बालक देखना शुरू हो गया। यह बात 1985 की है। ‘बा’ के अतिरिक्त स्वामीजी ब्रह्ममयी को ‘डोसी’ शब्द से भी संबोधित करते थे। इस किताब में दिए गए ‘बा’ के चित्रांकन की कहानी इस प्रकार की है। स्वामीजी ने अपने शिष्य चंद्रकांत महाराज को अपनी अंतिम काशीयात्रा के पूर्व ‘बा’ का एक चित्रांकन करने के लिए कहा था। उन्होंने वृंदावन में – जिधर वे साधु जीवन व्यतीत कर रहे थे – अपनी कुटिया में एक चित्रांकन किया और स्वामीजी के पास उनकी अंतिम काशी-यात्रा (नवेम्बर-डिसेम्बर 1992) के दरमियान उनके पास ले गए। स्वामीजी यह चित्रांकन देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने पास रख लिया। उनको इस चित्रांकन के संदर्भ में दो दर्शन भी हुए। इस संदर्भ में स्वामीजी कहते हैं: “काशी में हमने इस चित्रांकन को हमारे रूम की अलमारी में रखा था। एक दिन हम सुबह में ग्यारह बजे हमारे कमरे में पाँव फैलाकर बैठे थे उस वक्त देखा। एक ओर से पाँच हाथ और दूसरी ओर से पाँच हाथ निकले – बा दुर्गास्वरूप हो गई। और एक बार देखा, बा के चरण नील वर्ण के हैं।” किताब में दिया गया चित्रांकन यही है, जो चंद्रकांत महाराज ने स्वामीजी को उनकी अंतिम काशीयात्रा के दरमियान दिया था। स्वामीजी स्वयं ने ‘बा’ के कुछ चित्रांकन बनाए हैं, जो उनके शिष्यों के पास हैं; और कुछ स्थानों में पूजा में भी रखे गए हैं। अपनी एक शिष्या, प्रवीणा, के पास ऐसा कोई चित्रांकन नहीं था और स्वामीजी से इसके लिए प्रार्थना की। स्वामीजी ने यह चित्रांकन उसको दे दिया। तब से वह उसके पास है। कभी-कभी स्वामीजी जो सत्संग होता था उसी का सार पत्रस्वरूप में लिख देते थे। पीछे दिए गए पत्रों में से कुछ पत्र ऐसे हैं। इनके संदर्भ सत्संग की नोट पीछे दी गई है। इनको पढ़ने से स्वामीजी के पत्र समझने में और सुविधा रहेगी। 8 श्री चंडी माहत्म्य नवरात्रि के प्रथम दिन में स्वामीजी व्रज में हम लोगों को आध्यात्मिक मार्ग का सार बोलते हैं। स्वामीजी ने हम लोगों को यह लिखवाया: 1. हम लोगों का भगवान एकमात्र बा। राम हो तो भी बा, कृष्ण हो तो भी बा, निराकार, साकार हो तो भी बा। बा पुरुष नहीं, बा प्रकृति नहीं, बा अर्धनारीश्वर नहीं। बा अकेली ही परम ब्रह्मन, परम ब्रह्ममयी। 2. हम लोगों का शास्त्र ‘चंडी’। रामायण हो तो ‘चंडी’, भागवत हो तो ‘चंडी’, वेद-वेदांत हो तो ‘चंडी’, बायबल, ‘चंडी’, कुरान, ‘चंडी’; पुस्तक के हर पान में लिखा है, ‘चंडी’। 3. हम लोगों के लिए भगवान के किसी भी स्वरूप का चरणस्पर्श एवं प्रार्थना: सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। 4. ‘मातृरूपेण संस्थिता’ यह हम लोगों की अंतरंगता, अनुभव (रीअलाइझेशन), समाधि का एकमात्र आधार । चंडी चंडी चंडी बा बा बा 8 श्री बा-सूत्र – अंग्रेज़ी में BA VRAJ सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। 1. Sri Sri Chandi mata’s Kamal Hasta holds our jeevan Atman 8 2. “Chandi” is the Mother who ceases to be 8 3. Ba – Chandi ma – is Ba, not woman. So, Ba is not “maya” 8 4. Ba’s Sri Sri Charan Kamal “Chandi Gomukhi” 8 5. Realisation belongs to Ba 8 6. Ba Shows us. Ba Walks us. Ba Lives us Ba All Through 8 7. Ba is Agrabhag, Madhyam-bhag, Shashwat Tattwabhag 8 8. Chandi is not blood. Chandi is the whitest lily 8 9. Immortal Mother passes Immortal; not mortal 8 10. Sri Sri Chandi is all One and Alone; as “Aum” does Brahman 8 11. Every single uchchar of Chandi words means “Ba”; as “Aum” does Brahman 8 12. Please read me as you do “Sri Sri Chandi” 8 Read = Know 13. Sri Sri Chandi Ma is Brahmamoyee, Brahman, Brahmacharini 8 Ba Ba Ba Ba 14. Sri Sri Chndi Ma is nitya antar Durga puja 8 15. We are babies (children) Ba Eternally is doing baby-sitting (caring) 8 Ba 16. Every Bhagavan Bhagavati you adore; That Ba is, Ba is 8 17. Times we say “Ba”, We bathe “Gangasnan” in Ba Ba Ba Ba 8 18. Ba had done all our deeds. That was how we could free ourselves and become sadhu 8 19. We read words. Chandi Ba knows those as Grace Peace Paramshanti. 8 20. Ba keeps our soul-kitchen Purna. Ba brings in kachcha sidha, pakka sidha; Ahar, ahar sampurna 8 21. We are simply names. Ba is the sadhu 8 Ba Ba Ba Ba 22. We keep our Brahmajnan safest with Ba 8 Ba Ba Ba Ba 23. Our Chandi is Ba. Not Raja, not sura-asura. We read Realistion in Chandi 8 24. “Ba” the word is Sri Sri Chandi Path 8 25. We dwell inside Ba. We are Unwed Mother’s Unborn children 8 Ba Ba Ba Ba Ba Ba 26. Hold Ba’s Charan Kamal saying, “Baer Sri Charane” Once, twice, thrice 8 27. Ba, Thumhe, Thumhe, Thumhe 8 8 श्री बा-सूत्र – हिंदी में बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। 1. श्री श्री बा के हस्तकमल हम लोगों का जीवन और आत्मन् धारण करते हैं 8 2. बा, चंडी, बा है; जो बा नहीं है यह कभी नहीं होता है 8 3. बा, चंडी माँ, बा ही है; स्त्री नहीं। इसलिए बा माया नहीं है 8 4. बा के चरणकमल चंडी का गोमुख है। इधर से चंडी प्रकट हुई[2] 8 5. रीअलाइज़ेशन बा का है। रीअलाइज़ेशन के मालिक तुम नहीं हो; बा है 8 6. बा हम लोगों को दिखाती है। बा हम लोगों को चलाती है। बा हम लोगों को ज़िंदा रखती है। शुरू से शाश्वत समाप्ति तक एकमात्र बा है 8 7. बा अग्रभाग है, मध्य भाग है, शाश्वत तत्त्व भाग है 8 8. चंडी रक्त नहीं है, युद्ध नहीं है। चंडी शुभ्रतम कमल है, परमशांति है 8 9. शाश्वत माँ, बा, शाश्वत देती है। वह किसी को मर – अशाश्वत – नहीं देती है 8 10. श्री श्री चंडी माँ एक ही है, और एकेली ही है – जैसे कि ब्रह्मन् 8 11. चंडी में जितने भी शब्द हैं, हर शब्द का अर्थ ‘बा’ है; जैसे कि ‘ॐ’ उच्चारण का अर्थ है, ब्रह्मन् 8 12. तुम जैसे चंडी को पढ़ते हो, कृपा करके, हमको भी वैसे ही पढ़ो। तुम जैसे चंडीपाठ करते हो वैसे हमारा भी पाठ करो। जैसे जानते हो चंडी वैसे जानो हमको। 13. श्री श्री चंडी माँ ब्रह्ममयी है, ब्रहमन है, ब्रह्मचारिणी है 8 बा बा बा बा 14. श्री श्री चंडी माँ – चंडी पाठ – हम लोगों की नित्य अंतर्-दुर्गा पूजा है 8 बा 15. हम लोग बा के नवजात शिशु हैं। बा अपने नवजात शिशु को शाश्वत – हमेशा – बेबी सिटींग कराती है, उसकी देखभाल करती है 8 बा 16. तुम लोग जो-भी भगवान-भगवती की पूजा करते हो; वह बा है, वह बा है 8 17. हम लोग जितनी बार ‘बा’ शब्द का उच्चारण करते हैं उतनी बार ‘बा’ में गंगास्नान करते हैं 8 18. जो हम लोगों को करना था वह सब कर्म बा ने ही कर दिया। इसलिए हम लोग मुक्त हो सके और साधु हो सके 8 19. हम लोग चंडी में शब्द पढ़ते हैं; लड़ाई, असुर ये सब पढ़ते हैं। लेकिन चंडी माँ जानती है; ये सब कृपा-शांति है, परमशांति है 8 20. बा हम लोगों का आत्मन्-स्वरूप रसोईघर पूर्ण रखती है। उसमें कच्चा सीधा लाती है और सब खाना बनाती हैं। हम लोग तो केवल खाते हैं, इतना ही 8 21. हम लोग केवल नाममात्रम् हैं, निमित्तमात्रम् हैं। वास्तव में, साधु बा है – सत्यस्वरूप बा है 8 बा बा बा बा 22. हम लोगों का ब्रह्मज्ञान बा के पास सर्वोत्तम सुरक्षित 8 बा बा बा बा 23. हम लोगों का ‘चंडी’ बा है। राजा नहीं, वैश्य नहीं, सुर-असुर नहीं। हम लोग चंडी में रिअलाईझेशन पढ़ते हैं 8 24. ‘बा’ शब्द ही चंडीपाठ है 8 25. हम लोग, साधु लोग, बा में रहते हैं। चंडी की माताजी की शादी नहीं हुई। ऐसी माँ के हम लोग नवजात शिशु हैं – जिन्होंने अभी जन्म लिया ऐसे बालक। इसका अर्थ है जिनका जन्म हुआ ही नहीं हैं, जो बाहर जगत् में आए ही नहीं हैं वैसे बालक 8 बा बा बा बा बा बा 26. बा के चरणकमल धारण करो, यह बोलकर: ‘बा के श्री चरण में।’ –एक बार, दो बार, तीन बार 8 27. बा, तुम्ही, तुम्ही, तुम्ही 8 8 श्री चंडीसूत्र – प्रस्तावना 17 नवम्बर 1991 रविवार वृंदावन आज सुबह में बड़ौदा से रोहित आया है। वह अपने साथ गुणातीत ने स्वामीजी के लिए भेजी एक भेंट लाया है। स्वामीजी भक्तगण के साथ व्रज में हैं; गुणातीत मातृमंदिर में कालीमाता की सेवा में है। वह हर रोज़ एक पोस्ट-कार्ड जितना सफ़ेद कार्ड हर रोज़ लिख रहा है। कार्ड में मध्य में केवल माताजी का यह श्लोक है: “सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।” स्वामीजी यह देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कार्ड के पीछे पोस्ट की टिकट और अपने नामवाला स्टिकर चिपकाने के लिए माई साधुओं को दिया। दोपहर में बारह बजे स्वामीजी ये कार्ड लेकर सत्संग रूम में आए। स्टेम्प में रॉकेट है जो नील आकाश की ओर उडान भर रहा है। कार्ड में नील आकाश को बताते हुए स्वामीजी कह रहे हैं: ‘यह व्रज का नीला आकाश है।’ ‘सर्व मंगल मांङ्गल्ये’ वाला श्लोक बताते हुए कह रहे हैं: ‘यह चंडी का सार है।’ और अपने नामवाला स्टिकर बताते हुए कह रहे हैं: ‘यह चंडी का रीअलाइज़ेशन है।’ (कार्ड में श्लोक के ऊपर तथा नीचे जो ख़ाली जगह है यह दिखाकर कहते हुए) अच्छा, इधर लिखते हैं। ज़्यादा नहीं है, एक-दो शब्द। ऐसा कहकर स्वामीजी ने अपना पेन सेट मँगवाया। क़रीब एक-डेढ़ घन्टे बैठकर बारह-तेरह कार्ड में कुछ शब्द सूत्र स्वरूप में लिखे। स्वामीजी लिख रहे हैं और साथ-साथ साधुओं को समझा भी रहे हैं। अपने रूम में जाकर स्वामीजी ने सब कार्ड लिख दिए। गुणातीत ने सत्ताईस कार्ड भेजे थे। 8 18 नवम्बर 1991 सोमवार वृंदावन सुबह के आठ बजे हैं। स्वामीजी जयपुरिया धर्मशाला की लॉबी में अपने कमरे के आगे कुर्सी पर बैठे हैं। वे अपने साथ गुणातीत ने भेजे कार्ड का सेट भी लाए हैं। इसको बताकर कह रहे हैं: “देख, तुम्हारी प्रार्थना सच है और तुम्हारे अंदर मुमुक्षत्व है तो भगवान जवाब देने में देर नहीं करते हैं। देख, गुणातीत ने हमको कार्ड भेजे तो हमने तुरंत लिख दिए। हमने तो कल शाम को ही पूरे कर दिए थे। “तुम्हारे अंदर मुमुक्षत्व है तो भगवान से जवाब तुरंत मिलता है। इसमें थोड़ा भी विलंब नहीं होता है। कोई कहता है कि हमको काग़ज़ नहीं मिला। लेकिन तुम्हारे अंदर प्रार्थना नहीं है, मुमुक्षत्व नहीं है तो काग़ज़ कैसे मिलेगा? और हम लिखकर करेंगे भी क्या? और यह देख। जैसे कार्ड मिले, हमने तुरंत लिख दिए। “अच्छा लिखा है, नहीं? हम उधर मातृमंदिर में कालीमाता को भेजेंगे। “हमको एक दर्शन आया था। हमने साधुओं के रूम में लिखना शुरू किया था न, तो रात में देखा। रात में साढ़े नौ बजे स्नान करके सोने के लिए तो तुरंत दस बजे यह देखा। “हमने वही रूम देखा। उस रूम की जो खिड़की है उधर एक हाथ आया। (कोहनी से लेकर पंजा तक का दाहिना हाथ दिखाकर कहते हुए) इतना तक था। (दाहिना पंजा आशीर्वाद मुद्रा में बताकर कहते हुए) और ऐसा था; आशीर्वाद देता है। और उस हाथ पर दो दिन पहले जो काला घड़ी लिया था न, वह था। (दो दिन पहले ही साधु लोग हाथ पर पहनने की एक डिजीटल घ़ड़ी खरीदकर लाए थे। स्वामीजी ने उसको श्रद्धा से सिर पर धारण करते हुए कहा था: ‘यह महाकाल है, महाकालेश्वर है।) अकेली घड़ी हाथ पर चिपककर रही; पट्टा नहीं है। महाकाल है। “हमको अमदावाद में भी महाकाल का दर्शन हुआ था न। उस वक्त कंकाल था। इस वक्त ऐसा नहीं है। कंकाल स्वरूप नहीं है। इस वक्त ऐसा ही कुदरती हाथ है। और हाथ का वर्ण गोरा है। माताजी का हाथ है। “हम लोगों ने उस रूम में लिखने की शुरुआत की थी न, इसलिए उस रूम की खिड़की बताईं। माताजी आशीर्वाद देती हैं। अकेले हमको आशीर्वाद देती हैं यह नहीं है। तुम सब भी उस रूम में थे न। तो तुम लोगों को सबको, साधुलोगों को आशीर्वाद दिए। “अच्छा, हमने जो लिखा उसका अर्थ समझाते हैं।” धीरे-धीरे गृहस्थ भक्त भी आकर सत्संग में स्थान ग्रहण कर रहे हैं। स्वामीजी ने उनको कल से चंडीसूत्र लिखना कैसे प्रारंभ हुआ, उनका दर्शन वगैरह कहने लगे। कल जैसे साधुओं को समझाया था, आज गृहस्थ भक्तों को भी समझाया। इन सबका संकलन करके स्वामीजी ने अपने मुख से जिस तरह से सूत्र समझाए वह आगे प्रस्तुत किया गया है। 8 – 1 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Sri Sri Chandi mata’s Kamal Hasta holds our jeevan Atman 8 श्री श्री बा के हस्तकमल हम लोगों के जीवन और आत्मन् को धारण करते हैं 8 © बा के हस्तकमल हम लोगों का जीवन और आत्मन् धारण करते हैं। बा के हाथ में हम लोगों का जीवात्मन् और परमात्मन्। और हम ‘बा’ को चंडी कहते हैं, चंडी को ‘बा’ कहते हैं। दोनों एक ही हैं। तो बा के हस्तकमल हम लोगों का जीवन और आत्मन् धारण करते हैं। तुम्हारे हाथ में तुम्हारा जीवन सुरक्षित नहीं है। बा के हाथ में तुम्हारा जीवन सुरक्षित है। यह जीवन बा के हाथ से आया। तो बा इस जीवन को धारण कर सकती है। और जीवन का अर्थ केवल ‘मनुष्यजीवन’ ही नहीं है। मनुष्य, पशु-पक्षी, जीव-जंतु, इस समग्र सृष्टि को वह धारण करती है; उसका अर्थ है, देखभाल करती है। धारण पर से ही ‘धारणा’ आया। प्रत्याहार के बाद में ‘धारणा’ आता है। जिस जीवन में प्रत्याहार नहीं है ऐसा जीवन आध्यात्मिक आदर्श को धारण नहीं कर सकेगा। जीवन में यम-नियम हो गया तो बाद में प्रत्याहार आता है। प्रत्याहार है तो तुम्हारा चेतन तुम्हारे आध्यात्मिक विचार को धारण कर सकेगा। तुम देखोगे कि जिसका प्रत्याहार नहीं हुआ है उसकी जीवन के बारे में धारणा एवं सोचने का तरीका ग़लत रहेगा ही। तीन वस्तु हैं – व्यक्ति, उक्ति और प्राप्ति। इन तीनों से मानुष का आध्यात्मिक सत्य बनता है। व्यक्ति, उसका उच्चारण और उसकी प्राप्ति। रीअलाइज़ेशन ‘प्राप्ति’ में आता है। तो उक्ति अनुभूत की हुई होनी चाहिए। तुम जो उच्चारण करते हो वह तुम्हारे रीअलाइज़ेशन से आना चाहिए, अनुभूति से आना चाहिए; शास्त्र-ज्ञान से या किसी पुस्तक से नहीं। वह तुम्हारा रीअलाइज़ेशन होना चाहिए। लेकिन साधुलोगों को देखना। रीअलाइज़ेशन नहीं है, प्राप्ति नहीं है, बोल-बोल करते हैं, प्रवचन देते रहते हैं, पुस्तकें लिखते रहते हैं। इसका कोई अर्थ नहीं है। उनके शब्द को तुम ज़्यादा से ज़्यादा प्रवचन कह सकते हो, पुस्तक कह सकते हो। उनके शब्दों को ‘गोस्पेल – वेदवाक्य’ नहीं कह सकते। वे शास्त्र का स्वरूप नहीं ले सकते। अनुभूत की हुई उक्ति को, प्राप्ति की हुई उक्ति को ‘गोस्पेल’ कहते हैं। ‘गोस्पेल’ शाश्वत होता है। लेकिन रीअलाइज़ेशन छोड़कर मानुष जो-भी बोलता है – चाहे वह शास्त्र भी क्यों न हो – मिथ्या है। तो अभी हम तुमको एक शब्द नहीं बोल सकते जो हमने आत्मसात[3] न किया हो। रीअलाइज़ेशन छोड़कर हम यह भी नहीं बोल सकेंगे, “हमने खाना खाया”। हमने यह आत्मसात किया है तो ही बोल सकते हैं। जैसे – ठाकुर कालीमाता को प्रसाद धराते थे। फिर, वे देखते भी थे कि कालीमाता प्रसाद खाती हैं। तो अब हम तुमको एक शब्द ऐसा बोल नहीं सकते जो हमने आत्मसात नहीं किया है और बोलते हैं। हम तुमको शास्त्रवचन भी नहीं बोल सकते। हम पंडित नहीं हैं, प्रवचन देने वाले नहीं है या कथाकार नहीं हैं; जो आत्मसात किए बीना शास्त्र बोलते रहते हैं। तो हम तुमको शास्त्र की बात ही करते हैं। लेकिन प्राप्ति नहीं है – हमने उसको आत्मसात नहीं किया है – तो वह मिथ्यावचन है। तुम शास्त्रवचन बोलते हो केवल इसीलिए वह सत्य है यह नहीं हो सकता। अनुभूत की हुए उक्ति ही सच होती है। रीअलाइज़ेशन छोड़कर शास्त्रवचन भी बोलो, मिथ्या है। उसको ‘गोस्पेल – वेदवाक्य’ नहीं कह सकते। जो संदेश तुम्हारे पास सीधा भगवान से आता है वह ‘गोस्पेल’ है, ‘शास्त्र’ है। और तुम लोग हमारे पास ब्रह्मज्ञान के लिए आए, रीअलाइज़ेशन के लिए आए। तो हम तुमको वह शास्त्रवचन भी नहीं बोल सकते जो हमने आत्मसात न किया हो; और बोलेंगे तो वह तुमको रीअलाइज़ेशन नहीं दे सकेगा – हम तुमको रीअलाइज़ेशन के लिए मार्गदर्शन नहीं दे सकेंगे। तो हम तुमको ऐसी एक वस्तु नहीं बोल सकते जो हमने आत्मसात नहीं किया और बोलते हैं। झरना, जल का उदगम, तुम्हारे भीतर ही है; soul में ही है। इस झरने से अपने आप पानी बाहर आता है, सत्य बाहर आता है। बाहर के टैंकर व नल से पानी उधार लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। रीअलाइज़ेशन की सुंदरता अलग ही है। ये तो जब तक रीअलाइज़ेशन नहीं आता है तब कर मानुष शास्त्रों को उद्धृत करता रहता है, शास्त्रों से ही बातें किया करता है। रीअलाइज़ेशन होगा तो तुमको इसकी ज़रूरत ही नहीं रहेगी। सत्य अपने आप तुम्हारे अंदर से, soul में से, बाहर आएगा। बागबानी एक वस्तु है; जंगल और एक वस्तु है। जंगल में जाकर कोई पेड़-पौधे नहीं लगाता है। फिर भी वृक्ष अपने आप ज़मीन से बाहर में आ जाते हैं। और वे भी चार सौ-पाँच सौ साल ज़िंदा रहते हैं। और बग़ीचे में इतनी मेहनत करके पौधे लगाते हैं; फिर भी, एक-दो साल से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रहते हैं। 8 – 2 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। “Chandi” is the Mother who ceases to be 8 बा,चंडी, ‘बा’ ही है, जो बा नहीं है यह कभी नहीं होता है 8 © यह बा ‘शाश्वत बा’ है, जो बा नहीं है यह कभी नहीं होता है। किसी भी प्रकार के परिवर्तन में – कहते हैं न कला-काष्ठादि रूप में – उसका स्वरूप बदलता नहीं है। सब परिवर्तन में वह बा ही रहती है। वह कभी तेरी चाची, चाचा, मौसी, मौसा ऐसा नहीं होती है। वह कभी तेरा चाचा है, कभी मामा है, कभी तेरे पिता है – इस तरह से स्वरूप बदलती रहती है तो-तो तू संशय में पड़ जाएगा। लेकिन सब परिवर्तन के बीच में वह अपरिवर्तनशील है। उसका परिचय एक ही रहता है – वह तेरी बा है। इसलिए संशय में पड़ने जैसा नहीं है। तुझको वह महामाया है यह भी देखने की ज़रूरत नहीं है। वह तेरी बा है। साधु में एक ही परिचय रहना चाहिए – वह तेरी बा है। हमने इधर जो कभी मरती नहीं है यह नहीं लिखा।[4] हमने इस तरह से लिखा – जो कभी नास्ति नहीं होती है, जो शाश्वत अस्ति है।[5] 8 – 3 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba – Chandi ma – is Ba, not woman. So, Ba is not “maya” 8 बा, चंडी माँ, बा ही है; स्त्री नहीं। इसलिए बा माया नहीं है 8 © बा – चंडी माँ – बा ही है; स्त्री नहीं। इसलिए बा माया नहीं है। और ‘बा माया नहीं है’ यह बोलने की भी ज़रूरत नहीं है। ‘बा माया नहीं है’ इसका अर्थ है, जो बा के पास रहता है उसकी कभी माया कभी स्पर्श नहीं करती है, वह माया से मुक्त रहता है। जैसे – जो गंगास्नान करता है वह पवित्र हो जाता है। गंगा के स्पर्शमात्र से पवित्र हो जाता है। नलिनी अपवित्र थी। गंगा को स्पर्श करना यह भी नहीं होता था। तो शारदा माँ ने कहा, “तू हमको स्पर्श कर लेगी तो हो जाएगा” – इसका अर्थ है, पवित्र हो जाएगी। जो हमेशा बा के पास रहता है, बा के स्पर्श में रहता है वह माया के स्पर्श से मुक्त रहता है। तो बा माया नहीं है; और बा का माया होने का प्रश्न ही नहीं होता है। तो बा माया नहीं है इसका अर्थ है – जो बा के पास रहता है उसके भीतर माया नहीं रहती है। वह माया से मुक्त हो जाता है। बा को स्पर्श करके तू बा में ही रहेगा। तू बाहर के जगत् को देखेगा ही नहीं, माया तुझको स्पर्श करेगी ही नहीं। – 4 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba’s Sri Sri Charan Kamal “Chandi Gomukhi” 8 बा के चरणकमल चंडी का गोमुख है। इधर से चंडी प्रकट हुई 8 © गंगा का गोमुख हिमालय है। चंडी[6] का गोमुख बा का चरणकमल है। विष्णुपाद से, विष्णु के चरणकमल से, गंगा प्रकट हुई। वैसे ही, बा का चरणकमल से ‘चंडी’ प्रकट हुई गोमुख महातीर्थ है। मानुष उधर जाता है, स्नान करता है। बा का चरणकमल गोमुख है, गंगोत्री है। जो बा के चरणकमल में आ गया वह गंगोत्री में पहुँच गया, आदि में पहुँच गया, मूल में पहुँच गया। हम लोगों के लिए बा के श्री श्री चरणकमल गंगोत्री हैं, महातीर्थ हैं। 8 – 5 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Realisation belongs to Ba 8 रीअलाइज़ेशन बा का है। रीअलाइज़ेशन के मालिक तुम नहीं हो; बा है 8 © रीअलाइज़ेशन का मालिक, ईश्वरदर्शन – ब्रह्मज्ञान – का मालिक बा है, तू नहीं है। तू तेरी तपस्या से, पुरुषार्थ से रीअलाइज़ेशन नहीं कमाया। बा ने तुझको कृपा करके रीअलाइज़ेशन दिया तो तुझे मिला। तो अभी रीअलाइज़ेशन का मालिक क्या तू हो गया? रीअलाइज़ेशन का मालिक तेरी तपस्या नहीं है, तेरा पुरुषार्थ नहीं है। रीअलाइज़ेशन का मालिक तू नहीं है; बा है। स्कूल में बच्चे पुस्तक पर अपना रोल नंबर लिखते हैं। यह लिखा है तो उसकी चोरी नहीं होगी। कोई ले भी जाता है तो पुस्तक का परिचय रहता है। तेरी पुस्तक तुझको वापस मिल जाती है। तो रीअलाइज़ेशन पर किसका नाम लिखा हुआ रहता है? रीअलाइज़ेशन पर तेरा नाम व हमारा नाम लिखा हुआ नहीं रहता है। रीअलाइज़ेशन पर एकमात्र बा का नाम लिखा हुआ रहता है। रीअलाइज़ेशन का असली मालिक बा है। रीअलाइज़ेशन पर बा छोड़कर और किसी का नाम लिखा रहेगा तो रीअलाइज़ेशन की चोरी हो जाएगी। लेकिन रीअलाइज़ेशन पर बा का नाम लिखा हुआ रहेगा तो उसकी कभी चोरी नहीं होगी। तो रीअलाइज़ेशन के मालिक हम नहीं हैं। रीअलाइज़ेशन का मालिक तू भी नहीं है। सब रीअलाइज़ेशन का मालिक बा है। तू रीअलाइज़ेशन किधर से कमाया? बा का चिंतन करके हम लोगों ने रीअलाइज़ेशन कमाया; तो उसके मालिक क्या हम हो गए? है न। तो रीअलाइज़ेशन का मालिक बा है। अभी व्रजरज – कृष्ण चरणरज, राधा चरणरज – हमारी-तुम्हारी नहीं है। हम लोग इधर में ज़मीन का टुकड़ा लेकर एक मकान बनाएँ या आश्रम बनाएँ तो क्या वह हमारा हो गया? क्या उसके मालिक हम हो गए? ना। यह हमारा नहीं होता है। इधर सब राधारानी का है। उधर, काशी में, सब बा का है। सब भूमि भगवान की है। कण-कण भगवान का है। तुम्हारा आश्रम किधर से आया? जितनी भी ज़मीन है, सब ज़मीन जगधात्रि की है। जितने भी रीअलाइज़ेशन हैं, सब रीअलाइज़ेशन बा के हैं। 8 – 6 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba Shows us. Ba Walks us. Ba Lives us Ba All Through 8 बा हम लोगों को दिखाती है। बा हम लोगों को चलाती है। बा हम लोगों को ज़िंदा रखती है। शुरू से शाश्वत समाप्ति तक एकमात्र बा है 8 © इस जगत् में बहुत वस्तुएँ हैं। लेकिन बा इनमें से जो सत्य है वह दिखाती है। बा हम लोगों को सत्य दिखाती है, ईश्वरदर्शन कराती है। बा हम लोगों को रीअलाइज़ेशन के मार्ग में, ईश्वरदर्शन के मार्ग में चलाती है। जैसे माँ अपने बालक को चलाना सिखाती है वैसे बा हम लोगों को ईश्वरदर्शन के मार्ग में, रीअलाइज़ेशन के मार्ग में कैसे चलना वह सिखाती है – और चलाती है। बा हम लोगों का जीवन जिलाती है। बा हम लोगों को आत्मन् में, ब्रह्मन् में ज़िंदा रखती है, प्रबुद्ध जीवन[7] जिलाती है। शुरू से समाप्ति तक और समाप्ति से शाश्वत तक एकमात्र बा ही है। समाप्ति अंत नहीं है। जिधर काल भी समाप्त हो जाता है उसके बाद में भी बा है, भगवान है। तो बा दिखाती है। बा चलाती है। बा जिलाती है। शुरू से शाश्वत तक एकमात्र वही है। 8 – 7 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba is Agrabhag, Madhyam-bhag, Shashwat Tattwabhag 8 बा अग्रभाग है, मध्यम भाग है, शाश्वत तत्त्व भाग है 8 © जीवन बोल, प्रसाद बोल, विचार बोल, कर्म बोल, वस्तु बोल, हम वस्तु का अग्रभाग बा है, मध्य भाग बा है, और शाश्वत – नित्य – भाग बा है। हर वस्तु का अंतरतम भाग, तत्त्व भाग बा है। आज जो प्रसाद तू बनाता है – अग्रभाग – वह बा है। फिर, कल तू जो प्रसाद बनाएगा वह भी उसका है। सब उसका है। तो बा हर वस्तु का अग्रभाग है, मध्य भाग है; और अंत तो नहीं बोल सकते हैं, बा हर वस्तु की पूर्णता है, संपूर्णता है। बा ही एक वस्तु शुरू करती है, पूर्ण करती है, संपूर्ण करती है। 8 – 8 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Chandi is not blood. Chandi is the whitest lily 8 चंडी रक्त नहीं है, युद्ध नहीं है। चंडी शुभ्रतम कमल है, परमशांति है 8 © चंडी रक्त नहीं है। चंडी शुभ्रतम कमल है, परमशांति है। निर्दोषता को ‘कुमुद[8]’, ‘शुभ्रतम कुमुद’ कहते हैं। जैसे कहते हैं, ‘नील समुद्र’ वैसे कहते हैं, ‘शुभ्रतम कुमुद’। तो चंडी में रक्त नहीं है, हिंसा व युद्ध नहीं है। यदि तुम चंडी में ये सब देखते हो तो यह तुम्हारी ग़लती है। चंडी में युद्ध नहीं है। चंडी शांति है, परमशांति है, शुभ्रतम कुमुद है। पश्चिम के देशों में ‘शुभ्रतम कुमुद[9]’ कहते हैं इसलिए यह लिखा। लेकिन इसको ‘कमल’ तरह से पढ़ना। नहीं तो, वैसे तो चंडी में चंडी में युद्ध हैं न। रक्तबीज के साथ युद्ध, शुंभ-निशुंभ के साथ युद्ध – ऐसे युद्धों के वर्णन आते हैं। लेकिन तू इस तरह से चंडी नहीं पढ़ेगा। चंडी बहुत तरह से पढ़ सकते हैं। आर्त्त-अर्थार्थी एक तरह से पढ़ते हैं। फिर, साधु और एक तरह से पढ़ेगा। हम लोग साधु हैं। हम लोग ईश्वरदर्शन के लिए, ब्रह्मज्ञान के लिए चंडी पढ़ते हैं। हम लोग सुरथ राजा नहीं हैं, समाधि वैश्य भी नहीं है। हम लोग सुर भी नहीं, असुर भी नहीं। तो हम लोग ये सब नहीं देखेंगे। असुर है भी लेकिन हम लोगों के लिए असुर अलग है। अंदर की वृत्तियाँ असुर हैं। माताजी हम लोगों को इनसे मुक्त करती हैं। हम लोग इस तरह से देखेंगे। तो हम लोग चंडी को अलग तरह से चंडी पढ़ते हैं। हम लोग चंडी में रक्त नहीं देखते हैं, युद्ध व हिंसा नहीं देखते हैं। हम लोग चंडी में शुभ्रतम कमल देखते हैं। सफ़ेद कमल पूजा में निवेदित होता है। वह पवित्रता का, शांति का प्रतीक है। तो हम लोग चंडी में युद्ध नहीं देखते हैं। हम लोग देखते हैं, चंडी शुभ्रतम कमल है, परमशांति है। 8 – 9 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Immortal Mother passes Immortal; not mortal 8 शाश्वत माँ, बा, शाश्वत देती है। वह किसी को मर – अशाश्वत – नहीं देती है 8 © हमने इधर अमरत्व[10] नहीं लिखा, शाश्वत[11] लिखा। चंडी का माताजी शाश्वत है। शाश्वत माँ हमेशा शाश्वत देती है। वह किसी को अशाश्वत – मरणशील – नहीं दे सकती। सुर बोल, असुर बोल, सबको वह शाश्वत देती है। जो स्वयं शाश्वत है वह किसी को शाश्वत छोड़कर दूसरी वस्तु नहीं दे सकती, मरणशील नहीं दे सकती। अभी उसकी शाश्वत देने की पद्धति अलग हो सकती है। असुर को मृत्यु देकर देती है। फिर, किसी को – ऋषि-मुनि – को ब्रह्मज्ञान देकर शाश्वत देती है। लेकिन वह सबको शाश्वत देती है। वह एक को शाश्वत देती है और दूसरे को, असुर को, अशाश्वत देती है, मरणशील देती है; एक पर उसकी कृपा रहती है और दूसरे पर नहीं रहती है – ऐसा नहीं हो सकता। उसकी कृपा सबके ऊपर रहती है। तो हम लोग जब चंडी देखते हैं तो उसमें शुम्भ-निशुम्भ, सुर-असुर, राजा-वैश्य ये सब नहीं देखते हैं। हम लोग खुदाई करके उसमें जो सोना है वह निकालते हैं, वह लेते हैं। अभी हम लोग शुम्भ-निशुम्भ नहीं हैं, सुरथ राजा-समाधि वैश्य नहीं है, देवता लोग भी नहीं हैं। हम लोग साधु हैं। हम लोग रीअलाइज़ेशन के लिए माताजी के पास जाते हैं। हम लोग चंडी में रीअलाइज़ेशन पढ़ते हैं। अभी गाँधी व अर्जुन के लिए गीता का अर्थ एक प्रकार है ठाकुर के लिए और एक प्रकार है। ठाकुर के लिए गीता का अर्थ है, ‘तागी – त्यागी’। फिर, शारदा माँ एक संदर्भ में ठाकुर के लिए कहती हैं, “ऐसा वैराग्य हमने किधर देखा नहीं।” तो देख, ठाकुर ने गीता का अर्थ ‘तागी – त्यागी’ बताया। फिर, और एक संदर्भ में शारदा माँ ने यही कहा। इसलिए हम लोगों के लिए सुर-असुर, राजा-वैश्य ये सब नहीं हैं। हम लोग चंडी में शुम्भ-निशुम्भ पढ़ेंगे तो भी एक अलग अर्थ में। 8 – 10 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Sri Sri Chandi is all One and Alone; as “Aum” does Brahman 8 श्री श्री चंडी माँ एक ही है, और एकेली ही है – जैसे कि ब्रह्मन् 8 © इधर में ‘एक और अकेली[12]’ का अर्थ ही है, निर्गुण। जब साधु के साथ बात करते हैं तो उसके सोचने की पद्धति के अनुसार, उसकी समझदारी के अनुसार बोलना चाहिए। इसलिए यह लिखा। यह नहीं है कि ब्रह्मन् ही निर्गुण है। ब्रह्ममयी वैसी ही निर्गुण है। जैसे ब्रह्मन् एक है, अकेला है; ब्रह्ममयी भी वैसे ही एक है, अकेली है। संन्यासी के लिए माताजी ‘अद्वैत’ हैं। उपनिषद् में ब्रह्मन् अद्वैत है वैसे चंडीपाठ में माताजी अद्वैत हैं। चंडीपाठ ब्रह्ममयी का अद्वैत है। देख, साधु को ब्रह्ममयी के बारे में इस तरह बोलना पड़े। अभी मेधा ऋषि को महामाया के बारे में पूछने वाले सुरथ राजा और समाधि वैश्य थे। और मेधा ऋषि ने उनकी स्थिति के अनुसार महामाया का वर्णन किया। लेकिन तुम लोग संन्यासी हो, जिनको ये शब्द लिखते हैं वह संन्यासी है। वह रीअलाइज़ेशन के लिए माताजी के पास आया। वह सुरथ राजा नहीं है, समाधि वैश्य भी नहीं है, आर्त्त-अर्थार्थी भी नहीं है। तो जिस तरह से ऋषि ने सुरथ राजा और समाधि वैश्य के सामने महामाया का वर्णन किया वैसा वर्णन हम नहीं कर सकते। संन्यासी के लिए ब्रह्ममयी एक अलग अर्थ तरह से, एक अलग समझ तरह से आती है। चंडीपाठ में दूसरे सब अध्यायों में महामाया की स्तुति, प्रार्थना वगैरह हैं। लेकिन एक ही अध्याय में महामाया का वर्णन है कि यह महामाया क्या है – और वह पहले अध्याय में। तो चंडी माँ एक ही है, अकेली ही है; जैसे कि उपनिषद् में ब्रह्मन् है। शुंभ-निशुंभ ने कहा न कि तुम तो बहु[13] का सहारा लेकर लड़ रही हो; अकेले आ जाओ। तो बहु एक हो गया, सब अलग-अलग शक्तियाँ उसके अंदर आ गईं। तो ब्रह्ममयी अद्वैत है, एक है; बहु नहीं है। जगत् में बहु दिखाई देता है। लेकिन जो बहु को देखता है वह संशय में पड़ जाता है। जो ‘एक’ को देखता है वह निःसंशय होता है। जगत् में बहु प्रतीत होता है लेकिन बहु नहीं है। वह अकेला ही है। साधु के लिए ब्रह्ममयी अर्थ तरह से, भावना तरह से और अनुभव तरह से – रीअलाइज़ेशन तरह से ‘एक’ है। माँ, तू यह स्वरूप में! – यह। ‘जो नहाबत में है, जो पगचंपी करती है और जो काली मंदिर में है –– सब एक हैं।’[14] ठाकुर ने सबमें एक माताजी को ही देखा। दोनों ही वेश्यालय गए। मथुर ऊपर गए। ठाकुर नीचे बैठे रहे – ‘माँ, तू यह स्वरूप में!’ वे ब्रह्ममयी के चिंतन में मग्न होकर अकेले नीचे बैठे रहे। मथुर ‘बहु’ देखते थे, तो वे ऊपर ‘बहु’ के साथ बैठे, नाचने-गाने में बैठे। और जो ‘एक’ देखते थे वे नीचे अकेले ब्रह्ममयी में मग्न होकर बैठे रहे, भजन-कीर्तन में बैठे रहे। तो जो बाहर से देखता है उसके लिए दोनों ही वेश्यालय गए। लेकिन एक नाच-गान में बैठ गया और दूसरा ध्यान में बैठ गया, भजन-कीर्तन में बैठ गया। तो यही है। सब मानुष एक ही जगत् में आते हैं। कोई नाच-गान में बैठ जाता है; कोई भजन-कीर्तन में बैठ जाता है, ब्रह्ममयी के चिंतन में मग्न होकर बैठ जाता है। जब तू चंडीपाठ पढ़े तो द्वैत-अद्वैत के झगड़े में नहीं पड़ना, बहु के संशय में नहीं पड़ना। चंडी में माताजी अकेली ही है। चंडी में माताजी को कहते हैं न ‘तुम छोड़कर इस जगत् में और है ही कौन?’ तो यह। तू सौ अलग-अलग पात्र में पानी रख। सुबह में हर एक पात्र में सूरज का प्रतिबिंब पड़ता है। प्रतिबिंब सौ हैं लेकिन सूरज सौ नहीं है। आकाश में सूरज एक ही है। एक ही सूरज के अलग-अलग प्रतिबिंब हैं। तो जगत् में केवल वही है। जगत् में जो बहु प्रतीत होता है वह केवल उस एक के ही अलग-अलग प्रतिबिंब हैं। 8 – 11 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Every single uchchar of Chandi words means “Ba”; as “Aum” does Brahman 8 चंडी में जितने भी शब्द हैं, हर शब्द का अर्थ ‘बा’ है; जैसे कि ‘ॐ’ उच्चारण का अर्थ है, ब्रह्मन् 8 © चंडी में जितने भी शब्द हैं, हर शब्द के उच्चारण का अर्थ ‘बा’ है। तो चंडी में तू जो-भी उच्चारण कर, उसका अर्थ है ‘बा’। जैसे शुंभ-निशुंभ। तू ने उच्चारण किया ‘शुंभ-निशुंभ’; लेकिन उसका अर्थ है ‘बा’। तो चंडी में वैसे बहुत शब्द हैं। लेकिन तू जो शब्द भी उच्चारण करता है उसका अर्थ ‘बा’ है। समुद्र दूर से नील दिखाई देता है। लेकिन नज़दीक में जाओ, उसका कोई रंग नहीं है। यह नहीं है कि उसके पानी का रंग नील है। उसका कोई रंग नहीं है। वह रंगहीन है। तो दूर से देखेगा तो शुंभ-निशुंभ, सुरथ राजा-समाधि, सुर-असुर ये सब दिखाई देंगे। नज़दीक में जाकर देख। तू देखेगा कि बा है। तो तू चंडी के जो-भी शब्द का उच्चारण करता है उसका अर्थ ‘बा’ है। तू चंडी के जितने शब्द बोल उतनी बार ‘बा’ बोला। तू चंडी के जितने भी शब्द बोला उतनी बार एक ही बोला, ‘बा, बा, बा...’ साधु की पुस्तक में एक ही शब्द लिखा हुआ रहता है, ‘राम, राम, राम...’[15] तो चंडी में लगते हैं सात सौ श्लोक। लेकिन सात सौ श्लोक और हर श्लोक के हर शब्द का एक ही अर्थ है, ‘बा’। तो जो जानता है वह जानता है कि चंडी में बहु शब्द नहीं हैं। चंडी में जितने भी शब्द हैं, ‘बा, बा, बा, बा...’ हैं। तो तुम लोग श्रवण-मनन-निदिध्यासन करो तो यह मन में रखना, विश्वास में रखना। तुमको कहते हैं ‘शुंभ’ लेकिन तुम सुनते हो ‘बा’। तुम पढ़ोगे ‘शुंभ’ लेकिन समझोगे ‘बा’। चंडी के तुम जितने भी शब्द सुनते हो, जितने भी शब्द पढ़ते हो उसका एक ही अर्थ है – ‘बा’; ‘माँ, तू यह स्वरूप में!’; ‘जो नहाबत में हैं, जो पगचंपी करती हैं और जो काली मंदिर में हैं – सब एक हैं। जैसे ‘ॐ’ के उच्चारण में ब्रह्मन् आ जाता है; ‘चंडी’ उच्चारण में पुरी चंडी आ जाती है। लेकिन अभी तू प्रमाद में आकर चंडीपाठ नहीं करने के लिए कहता है कि हमने ‘चंडी’ बोल दिया तो हमारा चंडीपाठ हो गया – यह नहीं करना। इसको तेरे विश्वास में रखना। 8 – 12 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Please read me as you do “Sri Sri Chandi” 8 Read = Know तुम जैसे चंडी को पढ़ते हो, कृपा करके, हमको भी वैसे ही पढ़ो। तुम जैसे चंडीपाठ करते हो वैसे हमारा भी पाठ करो। जैसे जानते हो चंडी वैसे जानो हमको। © इधर में हम ‘हमको’ सूचित करके कह रहे हैं। हम गुरु हैं। तो चंडीपाठ जानकर तुझको जो ज्ञान मिलता है और हमको जानकर तुझको जो ज्ञान मिलता है उनमें थोड़ा-भी भेद है तो तू हमको छोड़कर जा सकता है, तू हमारा त्याग कर सकता है। शास्त्र में यह है। बलि ने शुक्राचार्य का त्याग किया। उसने शुक्राचार्य ने कहा उसका स्वीकार नहीं किया। तो चंडीपाठ के सत्य और हमारे सत्य के बीच में थोड़ा भी भेद है; चंडी के सार और हमारे सार में थोड़ा भी भेद है तो हम मिथ्या है। तू शांति से हमको छोड़कर जा सकता है। तो हमको समझना और चंडी को समझना इन दोनों को एक होना ही पड़े, चंडी के अर्थ और हमारे अर्थ को एक होना ही पड़े। भगवान, भागवत और भक्त एक हो तो सत्य होता है। हम, तुम, चंडी और चंडीपाठ एक हो तो सत्य होता है। अभी हमारा सार और चंडी का सार एक नहीं हो, बहुधा हो तो-तो कठिनाई होगी; और तुझको रीअलाइज़ेशन भी नहीं होगा। जिधर मिथ्या है उधर रीअलाइज़ेशन नहीं होता है। हम, तुम, चंडी और चंडीपाठ एक हैं। तो तुम जैसे चंडीपाठ करते हो वैसे हमारा भी पाठ करो। इसका अर्थ है, जैसे जानते हो चंडी वैसे जानो हमको।[16] – 13 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Sri Sri Chandi Ma is Brahmamoyee, Brahman, Brahmacharini 8 Ba Ba Ba Ba श्री श्री चंडी माँ ब्रह्ममयी है, ब्रहमन है, ब्रह्मचारिणी है 8 बा बा बा बा © श्री श्री चंडी माँ ब्रह्ममयी है, ब्रह्मन् है, ब्रह्मचारिणी है। तो ब्रह्मन्, ब्रह्ममयी, ब्रह्मचारिणी सब एक हैं; सब बा ही हैं। ब्रह्ममयी है, दृश्य जगत्। ब्रह्मन् है अदृश्य जगत्। और ब्रह्मचारिणी रीअलाइज़ेशन के लिए जो तपस्या है, प्रक्रिया है – सब एक हैं; सब बा हैं। सगुण वही है। निर्गुण वही है। यह छोड़कर भी जो भी है, सब बा है। जीवन, आत्मन् और रीअलाजेशन की स्थिति एक बा है, चंडी है। 8 – 14 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Sri Sri Chndi Ma is nitya antar Durga puja 8 श्री श्री चंडी माँ – चंडी पाठ – हम लोगों की नित्य अंतर्-दुर्गा पूजा है 8 © तुम लोग हर रोज़ चंडीपाठ करो तो जान लो हर रोज़ ही दुर्गापूजा है, नित्य अंतर्-दुर्गापूजा चलती है। कैलेन्डर में दुर्गापूजा नहीं दिखाई देती है। लेकिन तुम जान लो यह नवरात्रि ही है, दुर्गापूजा ही है। जिसकी नौकरी चलती है, जिसकी माताजी के लेन-देन चलती है, जो आर्त्त-अर्थार्थी है, उसके लिए तिथि है, कैलेन्डर है। लेकिन जो माताजी के साथ किसी प्रकार की लेन-देन नहीं करता है, जो माताजी के पास एकमात्र रीअलाइज़ेशन के लिए जाता है, ईश्वरदर्शन के लिए जाता है, उसके लिए कोई तिथि नहीं है। उसके लिए है – वह जब-भी चंडीपाठ करता है, नवरात्रि है, दुर्गापूजा है। सकाम भक्ति और निष्काम भक्ति में यही भेद है। जो विधि पूजा करता है, यज्ञ वगैरह करता है उसके लिए नौ दिन हैं। उन दिनों में मंदिरो में माताजी को बहुत श्रृंगार होता है, उनके फ़ोटो वगैरह लग जाते हैं। भक्त लोग भी बहुत आते हैं। मंदिर के दरवाज़े भी बंद हो जाएँ इतनी भीड़ रहती है। सब नौ दिन के लिए। बाद में सब शांत हो जाता है। लेकिन साधु की पूजा अलग है। साधु की पूजा अखंड चलती रहती है। साधु की आरती भी अखंड चालू रहती है। आत्मन् की ज्योति से वह माताजी की अहर्-निश आरती करता है। – 15 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। We are babies (children) Ba Eternally is doing baby-sitting (caring) 8 Ba हम लोग बा के नवजात शिशु हैं। बा अपने नवजात शिशु को शाश्वत – हमेशा – बेबी सिटींग कराती है, उसकी देखभाल करती है 8 बा © तो हम लोग बा के नवजात शिशु हैं। जिसका अभी जन्म हुआ ऐसे बालक को कहते हैं नवजात शिशु। जो नवजात शिशु है उसकी बहुत देख-भाल करनी पड़ती है। तो बा अपने नवजात शिशु को बेबी सिटींग कराती है – अपने हाथों का सहारा देकर बिठाती है जिससे वह गिर नहीं जाए। बेबी सिटींग का अर्थ है नवजात शिशु की देख-भाल करना। शाश्वत काल तक बा अपने शिशु के लिए यह करती है। और मानुष ही बा के नवजात शिशु हैं यह नहीं है। मानुष, पशु-पक्षी, यह पुरी सृष्टि नवजात है। बा शाश्वत काल तक उनको बेबी सिटींग कराती है, उसकी देख-भाल करती है। इसको कहते हैं ‘अंतरंग’। यह बा की अंतरंगता है, वात्सल्य है। समझ गया न? और ‘नवजात’ का अर्थ यह नहीं है कि वह बाहर के जगत् में आ गया, बा के बाहर आ गया, माया के जगत् में आ गया। ना। वह बा के अंदर ही है – अजन्मा[17] है। वह कभी बाहर के जगत् में नहीं आता है। लेकिन उसका अर्थ है, ‘द्विज’[18]। यह नया जन्म है, दूसरा जन्म है। उसका जन्म बा में हुआ। उसने बा के आत्मन् से जन्म लिया; इस अर्थ में द्विज। लेकिन वह अजन्मा है। वह हमेशा बा के अंदर रहता है। वह बाहर के जगत् में, माया के जगत् में कभी नहीं आता है। तो इधर में बा के ‘नवजात’ बालक का अर्थ है उसका ‘अजन्मा’ बालक, जो कभी माया के इस जगत् में नहीं आया – बा से जन्मा हुआ, यह; इस जगत् से जन्मा हुआ, यह कभी नहीं। जिसने माताजी में जन्म लिया लेकिन जो इस जगत् में, माया के जगत् में कभी आया ही नहीं – ऐसा बालक। हम क्रम कहें। पहले आता है, नवजात शिशु; बाद में बालक; बाद में लड़का-लड़की; बाद में नर-नारी; बाद में डोसा-डोसी। और भी बड़े होते हैं तो बहुत वृद्ध डोसा-डोसी। (हँसकर अपनी ओर उँगली से निर्देश करते हुए) –और यह सबसे बड़ा है, परम पुरुष है; वटपत्र पर सो रहा। 8 – 16 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Every Bhagavan Bhagavati you adore; That Ba is, Ba is 8 तुम लोग जो-भी भगवान-भगवती की पूजा करते हो; वह बा है, वह बा है 8 © तुम्हारा जो-भी भगवान है, जो भी भगवती हो, जो-भी मार्ग है, तुम जिस प्रकार का भी यज्ञ करो वह बा है। तुम राम-सीता देखकर आए, राधा-कृष्ण देखकर आए, शिव-पार्वती देखकर आए, जरथृष्ट देखकर आए, जिसस-मेरी देखकर आए, जो-भी देखकर आए, जान लो, ‘बा है’। जगत् में बहुत प्रकार के मंदिर हैं, गुरु हैं, मार्ग हैं। लेकिन अब तुममें किसी प्रकार का संशय नहीं रहेगा। तुम जान गए कि यह बा है। तो यह भगवान हो या वह भगवान हो, यह गुरु हो या वह गुरु हो, यह मंत्र हो या वह मंत्र हो, समझ जाओ कि यह बा है। और यह हमारा दर्शन बोलते हैं। ऐसा नहीं है कि यह हम धार्मिक उदारता से कह रहे हैं। यह हम दर्शन से कह रहे हैं। हम बोल रहे थे न कि हमारी उक्ति रीअलाइज़ेशन से आती है, दर्शन से आती है। तो यह सत्य हम पुस्तक से नहीं बोल रहे हैं, शास्त्रवचन तरह से भी नहीं बोल रहे हैं। रीअलाइज़ेशन तरह से बोल रहे हैं, दर्शन तरह से बोल रहे हैं। नहीं तो हमारे और एक शास्त्री व पंडित के बीच में क्या भेद है? हम शास्त्री नहीं है, पंडित नहीं है, कथाकार नहीं है, प्रवचनकार नहीं है। हम पुस्तक का सत्य, शास्त्र नहीं बोल सकते। हम केवल दर्शन का सत्य, रीअलाइज़ेशन का सत्य बोल सकते हैं। उक्ति – तू जो शब्द बोलता है वह – तूने आत्मसात नहीं किया है तो वह शास्त्रवचन है या जो-भी है, मिथ्या है। वह रहेगी नहीं। वह गिर जाएगी। वह गोस्पेल नहीं बन सकता, शास्र नहीं बन सकता। लेकिन जो उक्ति रीअलाइज़ेशन से आती है, दर्शन से आती है वह शाश्वत है। वह हमेशा के लिए रह जाती है। आत्मसात की हुई उक्ति को ही गोस्पेल कहते हैं, शास्त्र कहते हैं। तो हम जो बोलते हैं, दर्शन से बोलते हैं। यह हमने देखा है और कहते हैं। हम हमारा एक दर्शन कहते हैं: श्री नाथद्वारा में पहली बार अमदावाद से गए तो उस वक्त हमने देखा बा (कृष्ण भगवान जिस तरह से पैर के ऊपर पैर रखकर खड़े रहते हैं ऐसा बताकर कहते हुए) ऐसे पाँव करके कृष्ण भगवान के स्वरूप में खड़ी रही। हम जब-भी श्री नाथजी गए, हमने देखा, श्री नाथजी की गोख में दुर्गामाई है। एक बार व्रज से ट्रेन में आते थे तो देखा, श्री नाथजी के स्थान में दुर्गा है। भगवान योगमाया का अवलंबन करके इस जगत् में आते हैं और रहते हैं। इधर व्रज में भगवान ने जो-भी किया, योगमाया का अवलंबन लेकर किया। इसलिए इधर में योगमाया दिखाई देती है, भगवान नहीं दिखाई देते। सब ‘राधे-राधे’ बोलते हैं। लोग कहते हैं, ‘सीता-राम’। पहले सीतामाई का नाम लेते हैं। सीता योगमाया है। भगवान ने जो-भी किया इस योगमाया का अवलंबन करके किया। इसलिए सीतामाई पहले, बाद में राम। ‘माईलोग पहले’[19] सामाजिक रीतिरिवाज है इसलिए सीतामाई नाम पहले लेते हैं यह नहीं है। ना। क्योंकि सीता शक्ति है, योगमाया है। उसका अवलंबन लेकर अवतार-लीला हुई। इधर व्रज में भी योगमाया ने पहले जन्म लिया। कंस मारने के लिए गया लेकिन मार नहीं सका। आकाश में उड़ गई। उसने तो यह भी कह दिया कि तुझको मारने वाला व्रज में बड़ा हो रहा है। लेकिन कंस कुछ नहीं कर सका। यह योगमाया है। तो भगवान ने इधर जो-भी किया, योगमाया का अवलंबन करके। कथामृत में हैं न कि योगमाया का अवलंबन करके अवतार इस जगत् में आता है, रहता है। यह अवतार तत्त्व है। जगत् ब्रह्ममयी का है। ब्रह्ममयी इस जगत् को चलाती है। शिवजी, परमब्रह्मन्, तो अंदर के रूम में सो रहे। वे तो अंदर के रूम में बैठके-बैठके हुक्का पीते रहते हैं, ‘भुरुक-भुरुक’ करते हैं। सब करती तो ब्रह्ममयी है।[20] देख, जगत् में पुरुष लोग युद्ध में जाते हैं, माई लोग घर में रहती हैं। चंडी में बिल्कुल उल्टा है। माताजी राक्षस लोगों को मारती हैं, भगवान बैठे रहते हैं। हाँ, एक छोटा-सा काम किया। माताजी ने शिवजी को दूत बनाकर असुर के पास भेजा और शिवजी नौकर के माफ़िक़ उधर गए। फिर, उनकी बात कोई सुनता नहीं हैं तो वैसे ही वापस आ गए। यह भी नहीं है कि शिवजी नौकर हैं। वे परमपुरुष हैं, परमात्मन् हैं। ब्रह्ममयी सब कर देती हैं, भगवान को आराम देने के लिए। 8 – 17 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Times we say “Ba”, We bathe “Gangasnan” in Ba Ba Ba Ba 8 हम लोग जितनी बार ‘बा’ शब्द का उच्चारण करते हैं उतनी बार ‘बा’ में गंगास्नान करते हैं 8 © जितनी बार हम लोग ‘बा’ शब्द उच्चारण करते हैं इतनी बार गंगास्नान करते हैं। और गंगास्नान करते हैं यह भी नहीं है। इतनी बार गंगास्नान हो जाता है। बा ही गंगा है। तो यह विश्वास रखना कि ‘बा’ शब्द उच्चारण किया तो तेरा गंगास्नान हो गया। अभी काशी जाने से पहले यह कहेंगे तो तुझको लगेगा कि काशी नहीं ले जाने के लिए हम ऐसा कह रहे हैं, चालाकी करके कह रहे हैं। लेकिन हम चालाकी करके बात नहीं करते हैं। हम सत्य ही बोलते हैं। तू जब-भी ‘बा’ शब्द उच्चारण करता है, तू ‘बा’ में गंगास्नान करता है। कारण बा ही गंगा है। तो जब तूने पहली बार ‘बा’ शब्द बोला, तूने गंगास्नान किया। दूसरी बार ‘बा’ बोला तो गंगा में और एक डुबकी लगाया। तीसरी बार बोला तो औरएक डुबकी लगाया। तूने जिनती बार ‘बा’ शब्द उच्चारण किया उतनी बार गंगा में डुबकी लगाया। 8 – 18 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba had done all our deeds. That was how we could free ourselves and become sadhu 8 जो हम लोगों को करना था वह सब कर्म बा ने ही कर दिया। इसलिए हम लोग मुक्त हो सके और साधु हो सके 8 © तो हम लोगों को जो करना था, सब कर्म बा ने ही कर दिया। प्रारब्ध-कर्म सब कर दिया। चंडी में कर्म ही है न। देवता लोगों ने प्रार्थना किया तो माताजी ने अकेले ही सब असुर को मार दिया, सब कर्म कर दिया। फिर, माताजी तो हुँकार मात्र से ही सब कर सकती थी। तो पूछते हैं कि तूने यह हठात् किस लिए नहीं किया? फिर जवाब देते हैं कि माताजी का मुख का दर्शन करके वे भी मुक्त हो जाएँ, इसलिए। तो माताजी ने हम लोगों का सब कर्म कर दिया। और सब कर्म का अर्थ है – सब प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म, भविष्य के कर्म; सब प्रकार के कर्म। तो बा ने सब कर्म कर दिया इसलिए हो लोग मुक्त हो सके और साधु हो सके। बा यह नहीं करती तो तू कभी मुक्त नहीं हो सकता, कभी साधु नहीं बन सकता। तो ऐसा नहीं सोचना कि तू तेरे पुरुषार्थ से, तेरी योग्यता से मुक्त हुआ। ना। जो-भी करना था, बा ने कर दिया इसलिए तू मुक्त हो सका, साधु बन सका। (गृहस्थ भक्तों से कहते हुए) अभी तुम लोग इधर नहीं जा सकते थे। इच्छा हो तब भी नहीं आ सकते थे। संसार में कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि तुम्हारी इच्छा होते हुए भी तुम नहीं आ सकते। लेकिन बा ने कृपा किया, इच्छा किया तो तुम्हारे घर में तुम्हारे लड़के-लड़कियाँ सब साधु बन गए; सब अनुकूल हो गया। और बा ने सब अनुकूल कर दिया इसलिए तुम लोग इधर आ सके। बा यह नहीं करती तो इच्छा होते हुए भी तुम इधर नहीं आ सकते। ब्रह्ममयी ने सृष्टि शुरू की। जो सृष्टि शुरू करता है वह कर्म करता है। और जो कर्म शुरू करता है वही कर्म समाप्त करता है। बा ही कर्म शुरू करती है। फिर, बा ही कर्म की समाप्ति करती है। ये जो कर्म की समाप्ति होती है इसको ही प्रत्याहार कहते हैं। 8 – 19 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। We read words. Chandi Ba knows those as Grace Peace Paramshanti. 8 हम लोग चंडी में शब्द पढ़ते हैं; लड़ाई, असुर ये सब पढ़ते हैं। लेकिन चंडी माँ जानती है; ये सब कृपा-शांति है, परमशांति है 8 © हम लोग चंडी में लड़ाई वगैरह पढ़ते हैं – कि माताजी असुरों के साथ लड़ाई करती है, उनका संहार करती है। लेकिन चंडी माँ जानती है कि यह लड़ाई नहीं है। चंडी माँ देखती है कि वह कृपा करती है, शांति करती है, परमशांति करती है। मानुष अपने मन के अनुसार अर्थ करता है। इसलिए चंडी में लगता है कि लड़ाई है। लेकिन वास्तव में लड़ाई नहीं है। बा कृपा-शांति करती है, परमशांति करती है। यह बहिर्-लड़ाई है लेकिन अंतर्-शांति है। यह बहिर्-युद्ध है लेकिन अंदर में बा की कृपा-शांति है, परमशांति है। माताजी का कोई शत्रु नहीं है। सब माताजी के बालक हैं। सब माताजी के चरण में हैं। तो माताजी किसी को मारती नहीं है। माताजी सब का उद्धार करती है। 8 – 20 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba keeps our soul-kitchen Purna. Ba brings in kachcha sidha, pakka sidha; Ahar, ahar sampurna 8 बा हम लोगों का आत्मन्-स्वरूप रसोईघर पूर्ण रखती है। उसमें कच्चा सीधा लाती है और सब खाना बनाती हैं। हम लोग तो केवल खाते हैं, इतना ही 8 © बा हम लोगों के आत्मन् स्वरूप रसोईघर में सब बनाती है। सब खाना बा बनाती है। हम लोग तो केवल खाते हैं, इतना ही। बा हम लोगों को शुद्ध प्रसाद खिलाती है। शुद्ध प्रसाद से शुद्ध रक्त होता है, शुद्ध भक्ति होती है। आत्मन् रसोईघर है। बा इसमें हम लोगों का जीवन पकाती है। वह कच्चा सीधा लाती है। यानी प्रवर्तक, साधु, वैराग्य बनाती है। फिर बा भोजन पकाकर पक्का सीधा बनाती है, ब्रह्मज्ञान बनाती है और तुझको आहार खिलाती है। हमने दो बार ‘आहार, आहार’ लिखा। वह तेरे देह को खाना खिलाती है। फिर, तेरे आत्मन् को भी ब्रह्मन् का आहार खिलाती है। बा तेरे देह और आत्मन् दोनों को आहार खिलाती है। बा जैसे ही एक वस्तु को हाथ से स्पर्श करती है वैसे ही वह ब्रह्मन् बन जाती है, तेरे आत्मन् का आहार बन जाती है, आत्मन् का प्रसाद बन जाती है। तो बा तेरे लिए प्रसाद बनाती है। तू वह प्रसाद खाता है। बा आत्मन् के रसोईघर में कच्चा सीधा लाती है। तेरा श्रवण, मनन, निदिध्यासन[21] कच्चा सीधा है। जैसे तू बाज़ार से सब्ज़ी लाता है और उसको सँवारता है, बाद में पकाता है। तो बा तेरे आत्मन् में तेरे लिए यह करती है। वह श्रवण, मनन, निदिध्यासन का कच्चा सीधा तेरे आत्मन् में लाती है। बाद में उसको ठीक तरह से सँवारकर अग्नि में पकाती है। ब्रह्मज्ञान पक्का सीधा है। तो प्रवर्तक, साधु से लेकर ब्रह्मज्ञान तक बा तुझको पकाती है। अन्नमय कोश से लेकर विज्ञानमय कोश, आनंदमय कोश ऐसे सब कोश का आहार बा तेरे अंदर पकाती है और तुझको खिलाती है। तेरे ब्रह्मज्ञान के लिए जो-भी ज़रूरत है वह कच्चा सीधा है। बा वह लाती है और ब्रह्मज्ञान पकाती है। ब्रह्मन् संपूर्ण आहार है। बा तेरे आत्मन् को यह ब्रह्मन् खिलाती है। 8 – 21 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। We are simply names. Ba is the sadhu 8 Ba Ba Ba Ba हम लोग केवल नाममात्रम् हैं, निमित्तमात्रम् हैं। वास्तव में, साधु बा है – सत्यस्वरूप बा है 8 बा बा बा बा © हम लोग तो केवल नाममात्रम् हैं, निमित्तमात्रम् हैं। वास्तव में साधु बा है। जैसे हम लोगों के नाम, साधु नाम हैं न – जैसे कि साधुकृष्ण, वैराग्यकृष्ण, निर्वाणकृष्ण, अनुभवकृष्ण। तो नाम हम लोगों के हैं लेकिन ‘साधु’ कौन है? बा ही साधु है। ऐसा होता है न कि मकान एक मानुष के नाम पर है लेकिन उसमें कोई और ही रहता है, तू रहता है। तो नाम हम लोगों के हैं। लेकिन मकान में रहता है कौन? बा रहती है। तो नाम हम लोगों के हैं, देखने में हम लोग है, लेकिन वास्तव में साधु कौन है? वास्तव में साधु बा है। तो हम लोग नाममात्रम् हैं, निमित्तमात्रम् हैं। सत्यस्वरूप बा है। तो हम लोग नाममात्रम् हैं, निमित्तमात्रम् हैं। रीअलाइज़ेशन किसका है? सब रीअलाइज़ेशन बा का है। सब रीअलाइज़ेशन का मालिक बा है। 8 – 22 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। We keep our Brahmajnan safest with Ba 8 Ba Ba Ba Ba हम लोगों का ब्रह्मज्ञान बा के पास सर्वोत्तम सुरक्षित 8 बा बा बा बा © जैसे तू सोना-चाँदी सही-सलामत तिजोरी में रखता है या बेंक के लॉकर में रखता है; एक सुरक्षित स्थान में रखता है। वैसे ही, ब्रह्मज्ञान को रखने का सर्वोत्तम सुरक्षित स्थान कौन-सा है? बा। बा के पास तेरा ब्रह्मज्ञान सर्वोत्तम सुरक्षित। तू बा के पास ब्रह्मज्ञान रखेगा तो इसकी चोरी नहीं होगी। लेकिन ब्रह्मज्ञान तेरे पास रख, चोरी हो सकती है। कहते हैं योग की शुरू है। फिर, योग की समाप्ति भी है। योगभ्रष्ट भी है, तू योग से गिर गया। लेकिन तू तेरा ब्रह्मज्ञान बा के पास रखेगा तो उसकी कभी चोरी नहीं होगी। तू तेरे पास ब्रह्मज्ञान रख; हो सकता है इसकी चोरी हो जाए और तू ब्रह्मज्ञान से गिर जाए। देख, ठाकुर ने अपना ब्रह्मज्ञान कालीमाता के पास रखा; सही-सलामत है। उसके ज्ञान की कभी चोरी नहीं हुई। लेकिन तोतापुरी ने अपना ब्रह्मज्ञान कालीमाता के पास नहीं रखा था, अपने पास रखा था। तो एक दिन उसका ब्रह्मज्ञान चोरी हो गया। वह ब्रह्मन् से गिर गया। उसके ब्रह्मज्ञान में अज्ञान था। ठाकुर ताली बजाकर भजन करता है तो वह उसको व्यंग में कहता था: “रोटी ठोकते हो।” तो देख, मरने के लिए गया, मर नहीं सका। नहीं तो दक्षिणेश्वर में तो पानी बहुत गहरा है। मानुष तुरंत डूब जाए, मर जाए। तो वह मरने के लिए गया लेकिन मर नहीं सका। चलकर सामने के किनारे पहुँच गया। तो चिल्ला उठा: “क्या माया!” माताजी ने बता दिया कि ब्रह्मज्ञान का बात तो छोड़ ही दे, शरीर त्याग करना है – ब्रह्मज्ञानी के लिए यह तो साधारण बात है; लेकिन वह भी माताजी की इच्छा नहीं है तो तू नहीं कर सकेगा। क्या वह अपने पुरुषार्थ के बल पर मर सका। उस वक्त ब्रह्मज्ञान किधर चला गया? तो समझ में आया; और चिल्ला उठा: “क्या माया!” जिस दिन उसका ब्रह्मज्ञान एक मुहूर्त में चोरी हो गया तो समझ में आया। इतने दिन दक्षिणेश्वर रहा, एक दिन भी कालीमाता के दर्शन करने नहीं गया। लेकिन आज गया और कालीमाता के चरण में पड़ा। आज उसने अपना ब्रह्मज्ञान माताजी के चरण में रखा। अब बराबर। आज उसका ब्रह्मज्ञान संपूर्ण हुआ। आज शिष्य गुरु हुआ। ठाकुर ने उससे कहा: “अब आप जा सकते हो।” तो तू योग करता है, तपस्या करता है, नाम-जप करता है, ध्यान करता है; तू जो-भी करता है, तेरे पास नहीं रखना; जगत् में किसी के पास नहीं रखना। चोरी हो जाएगी। तू अंतर्यामी के पास रखेगा तो सुरक्षित। उसकी चोरी नहीं होगी। इसलिए तू योग करता है, तपस्या करता है, जप-ध्यान करता है; तू जो-भी करता है, जगत् में किसी को दिखाता नहीं है। तू अंदर में सीधा अंतर्यामी के पास रख देता है। 8 – 23 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Our Chandi is Ba. Not Raja, not sura-asura. We read Realistion in Chandi 8 हम लोगों का ‘चंडी’ बा है। राजा नहीं, वैश्य नहीं, सुर-असुर नहीं। हम लोग चंडी में रिअलाईझेशन पढ़ते हैं 8 © साधु ब्रह्मविद्या के लिए, ब्रह्मन्-प्राप्ति के लिए चंडी पढ़ता है। वह चंडी को रीअलाइज़ेशन की प्राप्ति के साधन तरह से पढ़ता है। इसलिए वह चंडी को अलग तरह से पढ़ता है। हम लोग सुरथ राजा नहीं है, समाधि वैश्य नहीं है, सुर-असुर नहीं है, आर्त्त-अर्थार्थी भी नहीं है। हम लोग साधु हैं, बा के बालक हैं। हम लोगों का चंडी है, “बा, बा, बा, बा, बा,बा...”; यह। तो हम लोगों को चंडी में राजा-वैश्य, सुर-असुर ये सब देखने की ज़रूरत नहीं है। हम लोग रीअलाइज़ेशन के लिए चंडी पढ़ते हैं। हम लोग चंडी में रीअलाइज़ेशन पढ़ेंगे, जो माताजी रीअलाइज़ेशन देती है उसको देखेंगे। वैश्य ने समाधि ली, रीअलाइज़ेशन लिया; और राजा ने राज लिया। देख, राजा राज से इतना दुःखी होकर जंगल में आ गया था। लेकिन फिर से उसने यही माँगा। सुरथ राजा ऊँट है। काँटे खाता है तो मुँह से रक्त निकलता है; फिर भी काँटे माँगता है। और समाधि वैश्य देख। उसका तो वेद में भी अधिकार नहीं है। उसने तो ब्रह्मज्ञान माँगा। ब्रह्मज्ञान तो वेदज्ञान के ऊपर है। लेकिन माताजी ने उसको यह दे दिया। तो देख, माताजी के लिए इस जगत् की नात-जात वगैरह नहीं है। समाधि वैश्य होकर भी ब्रह्मज्ञान ले शका और सुरथ क्षत्रिय होकर भी ब्रह्मज्ञान नहीं ले सका, नचिकेता नहीं हो सका। यह जो सुरथ राजा है न, नचिकेता का उल्टा दृष्टांत है। नचिकेता को तो ये सब देने के लिए यम तैयार ही था। उससे कहा भी कि हम तुमको इतना राज, इतनी समृद्धि देते हैं। लेकिन नचिकेता ने स्वीकार नहीं किया। उसने कहा: “हमको ये सब नहीं चाहिए। हमको ब्रह्मज्ञान दो।” जो नचिकेता ने अस्वीकार किया – राजपाट, सुरथ राजा ने यही माँगा। तो सुरथ राजा ऊँट है। काँटे खाकर ख़ून बह रहा है। फिर भी खाने के लिए काँटे ही माँगता है। समाधि वैश्य ठीक है, सच्चा साधक है। उसने माताजी के पास ब्रह्मन् माँगा, समाधि माँगी। तो सुरथ राजा ऊँट है। और वह भी कैसा ऊँट! सुरथ राजा और समाधि वैश्य दोनों जगत् से दुःखी होकर जंगल में चले गए थे। दोनों एक ही ऋषि के पास आए। दोनों ने एक ही प्रकार के प्रश्न किए। दोनों ने एक ही प्रकार की माताजी का वर्णन सुना। दोनों ने एक ही नदी के किनारे तपस्या की। दोनों को एक ही माताजी के दर्शन हुए। एक कहता है, “हमको ब्रह्मज्ञान दो, समाधि दो।” और यह बोलता है, “हमको राज मिले।” इसका क्या अर्थ, जानता है? उसने इतने मनवंतर तक का बंधन माँगा। देवता लोगों का भी क्या हाल है, देख न? असुर लोग हैरान करते हैं। सुरथ राजा का भी यही हाल होना है। असुर लोग हैरान करेंगे ही, वह राज लेकर दुःखी होने वाला ही है। फिर एक दिन राज से दुःखी होकर जंगल में जाएगा, फ़क़ीर होगा। तो इतने मनवंतर तक राजा होंगे इसका मतलब है इतने मनवंतर तक तेरा जीवन मुहरबंद हो गया, इतने मनवंतर तक तू बंधन में रहेगा। तो देख, सुरथ राजा क्षत्रिय होकर भी ब्रह्मविद्या नहीं ले सका। और समाधि वैश्य ने वैश्य होकर भी बह्मज्ञान की प्राप्ति की, ब्रह्मन् की प्राप्ति की, समाधि ले ली। उसको यह मिल गया। 8 – 24 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। “Ba” the word is Sri Sri Chandi Path 8 ‘बा’ शब्द ही चंडीपाठ है 8 © ‘बा’ शब्द ही चंडीपाठ है। ‘बा’ शब्द उच्चारण करने में ही चंडीपाठ हो जाता है। अभी तू अंतर्मन में चोरी से व आलस से व हरामख़ोरी से चंडीपाठ नहीं करने के लिए यह बोलता है तो ‘एला’[22] हो जाएगा। लेकिन यह इतना ही सत्य है। ‘बा’ शब्द के उच्चारण मात्र से चंडीपाठ हो जाता है। 8 – 25 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। We dwell inside Ba. We are Unwed Mother’s Unborn children 8 Ba Ba Ba Ba Ba Ba हम लोग, साधु लोग, बा में रहते हैं। चंडी की माताजी की शादी नहीं हुई। ऐसी माँ के हम लोग नवजात शिशु हैं – जिन्होंने अभी जन्म लिया ऐसे बालक। इसका अर्थ है जिनका जन्म हुआ ही नहीं हैं, जो बाहर जगत् में आए ही नहीं हैं वैसे बालक 8 बा बा बा बा बा बा © हम लोग – और ‘हम लोग’ का अर्थ है हम, साधु लोग – बा के अंदर रहते हैं। चंडी की माताजी का लग्न नहीं हुआ। ऐसी माताजी के हम नवजात शिशु हैं – इसका अर्थ है, जिनका जन्म हुआ ही नहीं हैं, जो माताजी के अंदर में ही हैं, जो बाहर के इस जगत् में आए ही नहीं है, माताजी के ऐसे बालक। तो हम लोग माताजी के नवजात शिशु हैं, ऐसे शिशु जिन्होंने अभी-ही जन्म लिया। और ‘अभी ही जन्म लिया’ इसका मतलब है ‘अजन्मा’; जिन्होंने इस बाहर के जगत् में जन्म लिया ही नहीं है; जो इस जगत् में आए ही नहीं है; माताजी के ऐसे बालक जिन्होंने माताजी में जन्म लिया हैं लेकिन इस जगत् के लिए ‘अजन्मा’ हैं, जिनका इस जगत् में कभी जन्म नहीं हुआ। हम हमारा दर्शन बोल रहे हैं। हमने देखा, बा आकर हमारे सामने खड़ी रही – और वह बंगाली साड़ी में हैं। एक-एक देश की एक-एक प्रकार की वस्त्र पहनने की या श्रृंगार की पद्धति रहती है न। तो हमने देखा कि बा बंगाली साड़ी पहनकर खड़ी है। इसका अर्थ है, ‘हम तेरी बा हैं, किरणबाला[23] नहीं। और एक दर्शन देखा। हम एक पाउच[24] में भगवान के स्वरूप रखते हैं। हमको अंबाजी का स्वरूप काशी से मिला था, चाँदी के सिक्के के स्वरूप में। उसके पीछे ‘सर्वमंगल मांङ्गल्ये’ वाला श्लोक था। यह पाउच हम बा के पीछे रखते हैं। हमने देखा, बा आई। बा ने अपने दो हाथों में यह पाउच अपनी गोद में साड़ी में छिपाकर रखी है। हम बा को प्रार्थना करते हैं न कि हमको हम तेरे अंदर रहे। हमको कोई नहीं देखे। तो बा का बालक हमेशा बा के अंदर रहता है। उसको जगत् में कोई नहीं देखता है, न ही वह जगत् को देखता है। देख, हम साधु के साथ दर्शन छोड़कर बात नहीं करते हैं। हम जो बात बोलते हैं, हमारा दर्शन से बोलते हैं। वह हमारे रीअलाइज़ेशन से आया। चंडी की माताजी का किसी के साथ लग्न नहीं हुआ। लेकिन उसका बालक हमेशा उसके अंदर रहता है। साधु का जन्म माताजी के आत्मन् से होता है। इसलिए चंडी में ‘पितृरूपेण’ नहीं है; ‘मातृरूपेण’, यह है। और यह जन्म केवल बा दे सकती है। इसको ‘द्विज’ कहते हैं। तो तेरा एक बार जन्म हुआ जब तू इस जगत् में आया। इसके नात, जात, धर्म, देश ये सब परिचय है। तेरा और एक बार जन्म होता है जब तेरा ब्रह्मज्ञान में जन्म होता है। यह ‘द्विज’ है। जब तेरा ब्रह्मन् में जन्म होता है – द्विज – तब तेरा नात, जात, धर्म, देश जैसा इस जगत् का परिचय नहीं रहता है, वह चला जाता है। ब्रह्मन् में ये सब नहीं हैं। उस वक्त तेरा एकमात्र परिचय ब्रह्मन् है। तो ब्रह्मविद्या के अनुसार जिसका ब्रह्मन् में जन्म होता है वही ‘द्विज’ है, ब्राह्मण है। 8 – 26 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Hold Ba’s Charan Kamal saying, “Baer Sri Charane” Once, twice, thrice 8 बा के चरणकमल धारण करो, यह बोलकर: ‘बा के श्री चरण में।’ –एक बार, दो बार, तीन बार 8 © ‘बाएर श्री चरणे – बा के श्री चरण में’ यह हमने हमारी प्रार्थना लिखी। हम जो नित्य प्रार्थना करते हैं यह लिखा। सुबह में उठकर हम किसी का चेहरा नहीं देखते हैं। उठकर ही यह श्लोक बोलते हैं: ‘सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।’ बाद में उठकर बा को प्रणाम करते हैं। हर रोज़। जैसे कि पुराने ज़माने में मानुष करता था। हर रोज़ उठकर अपनी माँ को प्रणाम करके एक रुपया या जिसकी जैसी स्थिति है उसके अनुसार अपनी माँ को पैसे देता था। तो हम हमारे सिर पर (दोनों हाथ श्रद्धा से सिर पर धीरे-धीरे घुमाकर कहते हुए) हाथ रखते हैं और कहते हैं, ‘हमारा सिर बा के चरणकमल में।’। हम यह कहते हैं: ‘बाएर श्री चरणे’ ‘बाएर श्री चरणे’ ‘बाएर श्री चरणे’।[25] तो “बाएर श्री चरणे” ऐसा एक बार, दो बार, तीन बार कहते हैं। बाद में ही दिन शुरू होता है; जो करना है करते हैं। फिर, रात में सोने के लिए जाते हैं उससे पहले भी यही करते हैं। (गृहस्थ भक्तों से कहते हुए) लेकिन अभी सुबह में उठकर तुम पत्नी का या और किसी का चेहरा देखते हो तो जाओ, तुम्हारा चंडी गया। यही दिक़्क़त है। तुमने उठकर तुम्हारी पत्नी का या और किसी का चेहरा देख लिया तो तुम गए। तो यह नहीं होगा। तो तुम क्या करोगे? तुम उठकर आँखें खोलोगे ही नहीं। आँखें बंद ही रखोगे। शास्त्र के ये सब नियम हैं। जैसे – कोई हर रोज़ मंदिर में जाता है, भगवान को प्रणाम करता है; नियम रखता है। वैसे ही नियम रखो। उठकर आँखें बंद ही रखोगे। तुम पति, पत्नी, लड़के, लड़कियाँ, किसी का चेहरा नहीं देखोगे। उठकर ही ‘सर्वमंगल मांगऽल्ये...’ वाला श्लोक बोलोगे। बाद में सीधा बा के पास जाकर उसको प्रणाम करोगे; यह कहके, ‘बाएर श्री चरणे’ ‘बाएर श्री चरणे’ ‘बाएर श्री चरणे’। बाद में हो जो करना है, करोगे। तो उठकर ही ‘सर्वमंगल मांगऽल्ये...’ यह श्लोक बोलो और सबसे पहले बा के पास जाकर उसको प्रणाम करो। बाद में जो करना है, करो। बा ज़िंदा रखती है। दूसरे तो भरणपोषण करते हैं। बा हम लोगों का आध्यात्मिक जीवन ज़िंदा रखती है। तुम्हारा पति तुम्हारा भरणपोषण करता है। वह तुम्हारे आध्यात्मिक जीवन को ज़िंदा नहीं रखता है। यह बा करती है। फिर, वह तुम्हारा भरणपोषण करता है तो तुम भी इसके बदले में उसके लिए बहुत कुछ करते हो। एक अर्थ में, उसने तुम्हारे लिए क्या किया? और तुमने भी उसके लिए क्या किया? कुछ नहीं। फिर, उसने तुम्हारे लिए बहुत किया तो तुमने भी उसके लिए बहुत किया – तुम जिस दृष्टि से भी देखो। सुबह में मंदिर में मंगला होती है तो हर रोज़ मंगला करो, भगवान को ‘सुप्रभातम्’ करो; जिसका जो मंत्र है वह बोलो; जिसका जो इष्ट है उसको प्रणाम करो – यह करने के बाद ही दिन शुरू करो, जो करना है, करो। ‘तस्मिन तुष्टे, जगत् तुष्टः’ जिस पर भगवान तुष्ट रहते हैं उस पर पूरा जगत् तुष्ट रहता है। 8 – 27 – BA VRAJ बा व्रज सर्व मंगल मांङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। Ba, Thumhe, Thumhe, Thumhe 8 बा, तुम्ही, तुम्ही, तुम्ही 8 © यह अंतिम है। इस पर कोई भाष्य नहीं है, टीका नहीं है। 8 श्री बा-सूत्र – उपसंहार इस तरह स्वामीजी ने बा-सूत्र ख़ुद पढ़कर समझाए। तत्पश्चात् सत्संग का समापन करते हुए और गृहसथ् भक्तों को संबोधन करते हुए कहा: आज तुम लोगों को बिठाया। अच्छा पाठ हुआ, नहीं? आज तीस साल से हमने साधु लोगों के लिए कितने क्लास लिए! हमारे क्लास तो जब घर में थे तब से चलते हैं। उस वक्त गीता के क्लास चलते थे। (हँसते-हँसते) उस वक्त सब साठ-सत्तर उम्रवाले इकट्ठे होते और हम गीता की बात करते थे। हमको घर में चिल्लाते थे भी कि तू इतना छोटा है और इतनी बड़ी उम्रवालों को इकट्ठा करता है। पाँच-छः बुड्ढे आते थे। फिर, वे दिखाई नहीं देते थे तो हम उनके घर उनको देखने के लिए चले जाते थे। हम साधु हुए इससे वे सब हमको मिलने के लिए भी आए थे। भीमपुरा आ जाने के बाद भी उन लोगों ने धोती भेजी थी। तो देख, इतने सालों से हमने कितनी मेहनत की है। मेहनत की यह भी नहीं है। हमने हमारा धर्म पालन किया। मानुष कहते हैं न कि साधु लोग मुफ़्त में खाते हैं, बैठे रहते हैं – और ऐसा सब। लेकिन तुम ही कहो, आज जो हमने दो घन्टे में तुमसे बात की ऐसी इतने सालों में किसी शिक्षक या प्राध्यापक ने स्कूल या कॉलेज में की? तू इतने साल से ऑफिस जाता है या जिधर भी जाता है। किसी ने आज जैसी बातें हुईं, किसी ने करी? किसी ने नहीं। ‘माताजी तेरे आत्मन् के रसोईघर में कच्चा सीधा ले आता है, ब्रह्मज्ञान की सामग्री इकट्ठी करती है; और पक्का सीधा बनाती है, रीअलाइज़ेशन बनाती है। तेरे देह और आत्मन् दोनों को आहार खिलाती है।’ ‘तू जिसका लग्न नहीं हुआ ऐसी माताजी का अजन्मा बालक है जिसने इस जगत् में जन्म लिया ही नहीं है; ऐसा बालक जो हमेशा माताजी के अंदर ही रहता है।’ ‘तू माताजी का नवजात शिशु है। माताजी तुझको बेबी-सिटींग कराती है, तेरी देखभाल करती है।’ इतने साल से तू इस जगत् में जी रहा है, एक मानुष ने तुझको ऐसी बात कही? ये शब्द ऐसे हैं न, कोई सुनेगा तो रोमांच हो जाए, उसके जीवन में प्रकाश आ जाए। और ये सब इतना सहज है न कि जैसे ही तूने इनको सुना, तुरंत समझ गया, तुरंत इनके अर्थ का पता चल गया। यह इतना सहज है। फिर भी, आज तक जगत् में तुझको ऐसी बात नहीं कही। तू एक कविता भूल जाएगा लेकिन आज जो सुना ये सब नहीं भूलेगा। हमको तुझको समझाने के लिए दो घंटे बात करना पड़ा। लेकिन तुझको यह समझने में एक मिनट भी नहीं लगी। अभी जो सुना इसका मंथन करके रीअलाइज़ करने में समय लग सकता है लेकिन समझने में थोड़ी भी तकलीफ़ नहीं है। सत्य इतना सहज है। इसको कहते हैं, ‘ब्रह्मन् आश्चर्यम्’। यह इतना सहज है लेकिन आज तक स्कूल में, कॉलेज में, सोसाइटी में, जगत् में एक मानुष ने तुझको ऐसे शब्द नहीं कहे, किसी के पास से ऐसी बात सुनने में नहीं आई। आज जगत् का मानुष कच्चा सीधा-पक्का सीधा सुनेगा तो उसके मन में यही अर्थ आएगा कि उसको बाज़ार से दाल-चावल लाना है और उसकी पत्नी को रसोईघर में पक्का सीधा करना है, खाना पकाना है। उसके मन में यही आएगा। लेकिन यह सुनने के बाद तुम्हारे मन में दूसरा अर्थ आएगा। अभी से तुम जब-भी रसोईघर में डिब्बा देखोगे तो तुम लोगों को मन में तुरंत यह आएगा कि बा तुम्हारे आत्मन् के रसोईघर में कच्चा सीधा ले आती है; ईश्वरदर्शन के लिए, रीअलाइज़ेशन के लिए जो-भी सामग्री की ज़रूरत है उसको ले आती है; तेरे आत्मन् के रसोईघर में बैठकर ईश्वरदर्शन पकाती है, रीअलाइज़ेशन पकाती है और तेरे आत्मन् को ब्रह्मन् खिलाती है, संपूर्ण आहार खिलाती है। तो अभी से जब-भी रसोईघर में डिब्बा देखोगे तो तुम्हारे मन में यह आएगा। वैसे तो चंडी के अनंत अर्थ हैं। लेकिन दर्शन देकर बा ने हमको जो अर्थ बताए या जो अर्थ हम लोगों के लिए है, वह तुम लोगों को कहे। कहते हैं, शराब की दुकान में बहुत बोतल होती हैं लेकिन तेरे लिए एक बोतल पर्याप्त है। तो चंडी के बहुत अर्थ हो सकते हैं। लेकिन हम लोगों के लिए इतना पर्याप्त है। (इस तरह स्वामीजी शिष्यों एवं गृहस्थ भक्तों के साथ दो घंटे जैसा बैठे और कल जो बा-सूत्र लिखे थे उनको समझाए। तत्पश्चात् स्वामीजी अपने कमरे में गए।) 8 श्री बा सत्संग 1 मार्च 1993[26] सोमवार वृंदावन रात्रि के दस बजे हैं। स्वामीजी शिष्यों के साथ सत्संग रूम में बैठे हैं। आनंद के साथ गोष्ठी चल रही है। स्वामीजी एकाएक गंभीर हो गए और कहने लगे: “–और एक बात हम तुम लोगों को बोल देते हैं। तू बा को पकड़कर रह। तेरा सब हो जाएगा। एक बात हमेशा याद रखना: ‘तेरी बा है।’ कोई चिंता नहीं करना। “बा छोड़कर तुझको और किधर आधार मिलेगा नहीं; तू जो भी कर, जितना भी कर। तुझको लगता है तू तपस्या पर आधार रख सकता है? शास्त्र पर आधार रख सकता है? हमने तो बहुत साधु नहीं देख हैं। लेकिन तुम लोग तो व्रज-काशी में हैं। आश्रम देखे, बहुत साधु देखे। तुझको तो पता है न। आश्रम बोल, तपस्या बोल, आधार मिला? नहीं मिला। “तो बा तेरा आधार है। तुझको दूसरा कुझ जानने की ज़रूरत ही नहीं है। तुझको शास्त्र जानने की ज़रूरत नहीं है, spirituality में बहुत वस्तु हैं। तुझको कुछ जानने की ज़रूरत नहीं है। तू जान गया, ‘तेरी बा है’; बस, हो गया। इसमें ही हो जाएगा। “हम तो हमारे ही जीवन की बात तुझको करते हैं। बा छोड़कर हम तो कोई आधार नहीं देखते हैं। हमारे जीवन का एकमात्र आधार बा है। बा छोड़कर हम नहीं रह सके। “‘तेरी बा है’; बस, इसमें ही हो जाता है। तू जानता-अजानता यह विश्वास रखना कि तेरी बा है। तो देखना, दूसरा सब तो हो अपने आप हो जाएगा। दर्शन बोल, रीअलाइज़ेशन बोल सब हो जाएगा। तुझको पातंजलि योगसूत्र बोल, नारदीय भक्तिसूत्र बोल, वेदांत बोल कुछ जानने की ज़रूरत नहीं है। तू एक बा को लेकर रह। तेरा पातंजलि योग बोल, नारदीय भक्ति बोल, वेदांत बोल, दर्शन-रीअलाइज़ेशन बोल; सब, सब हो जाएगा। बा ही सब योगसूत्र, भक्तिसूत्र, वेदांतसूत्र का सार है। “यह जो तुम लोगों के पास बा का छोटा लेमीनेशन है न, पर्याप्त है।[27] वह तेरे जीवन में हज़ार रीअलाजेशन देने के लिए पर्याप्त है। एक बार बा का दर्शन हो तो एक बार रीअलाइज़ेशन। तो बा तो तेरे जीवन में सौ दर्शन, हज़ार दर्शन दे सकती है। तो तेरे एक ही जीवन में सौ दर्शन, हज़ार दर्शन हो जाएंगे। “हमारी बात तुझको सुनने में हलकी लग सकती है। लेकिन ऐसा नहीं समझना। हम गंभीर पुरुष हैं। तुझको गंभीरता से बोलकर जाते हैं, तेरा हो जाएगा, तेरा सब हो जाएगा। तू बा का यह जो छोटा-सा लेमिनेशनवाला फ़ोटो है उसको लेकर रह न, हमेशा साथ में रखकर घूमता रह न, तेरा हो जाएगा। अभी तू हमको पूछ, “और कुछ करने की ज़रूरत नहीं है? यह पर्याप्त है?” तो हम तुझको बोलकर जाते हैं, “यह पर्याप्त है। तुझको दूसरा कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।” और हमारे शब्द अमोघ हैं। गुरुशब्द पर विश्वास रखना। हम जो कह रहे हैं, सत्य है। “जानता-जानता बा को लेकर रह। जानता बा के साथ रह। ‘जानता’ का अर्थ है, बा तुझको दर्शन देती है, तू बा का दर्शन को लेकर रहता है। और तुझको बा का दर्शन नहीं भी होता है, मान ले, तू बा को जानता नहीं है, तो भी कुछ नहीं है। अजानता से बा को लेकर रह। जानता में – अर्थात् तू बा को जानता है – बा दर्शनस्वरूप है। ‘अजानता’ में – अर्थात् तू बा को जानता नहीं है – बा आकर्षणस्वरूप है। तूने बा को देखा नहीं है। लेकिन बा तुझको आकर्षित करती है, दर्शन देने के लिए। यह नहीं है कि वह दर्शन नहीं देती है। तुझको दर्शन देने के लिए ही वह तुझको आकर्षित करती है। योग्य समय पर वह ज़रूर दर्शन देगी। “तो ‘जानता-अजानता’ बा ही है। ‘जानता’ में बा दर्शनस्वरूप है। बा तुझको दर्शन देती है। फिर, दर्शन हो उससे पहले – ‘अजानता’ में – जब तूने बा को देखा नहीं है, उस वक्त बा तेरे आत्मन् को आकर्षित करती है, तेरे जीवन को हमेशा भगवान की ओर ले जाती है। “तो चिन्मय बा को रख। यह नहीं हो सकता है तो मृणमय बा को रख। चिन्मय बा की बात अलग है। यह रीअलाइज़ेशन में आता है, दर्शन में आता है। लेकिन यह भी छोड़ दे। तू चिन्मय बा को नहीं रख सकता है तो मृणमय बा को हमेशा पास में रख। बा का वह जो छोटा-सा लेमिनेशन है न, उसको हमेशा तुम लोग कंधे पर जो थैला रखते हो उसमें रखकर घूमता रह, पर्याप्त है। और तेरे पास बा का छोटा-सा लेमिनेशन रखने का भी पैसा नहीं है तो तेरे मन में बा की छाया लेकर घूमता रह। सब हो जाएगा। मन भी मृणमय है। मन में बा की जो छाया है, आकृति है वह भी मृणमय बा ही है। तो चिन्मय बा को नहीं रख सके तो मन में बा को रखकर घूमता रह। और यह भी नहीं होता है तो बा का जो छोटा-सा फ़ोटो है, लेमिनेशन है उसको साथ में घूमता रह, हम बोलकर जाते हैं कि तेरा हो जाएगा। “हमने आध्यामिकता के बारे में आज तक बहुत वस्तु कही हैं। सबका सार आज बोल देते हैं। हमारे सब शब्द, हमारे सब मार्गदर्शन, हमारे सब उपदेश का सार ‘बा’ है। बा ही तेरे जीवन का सार है। बा इस जीवन का सार है। बा पर-जीवन[28] का सार है। बा इहलोक-परलोक का सार है। अधिभौतिक, अधिदैविक, आध्यात्मिक का सार ‘बा’ है। “तू तेरे हज़ार जीवन की तपस्या, जप-ध्यान, सब आध्यात्मिकता एक ओर रख। कुछ नहीं होगा। पुरी द्वारिका का सोना एक ओर रखा था। वज़न नहीं होता था। एक तुलसीपत्र रखा तो समतुल्य हुआ। तो एक ओर तेरे हज़ार की तपस्या, तेरा सब ज्ञान, सब योग रख; समतुल्य नहीं होगा। बा तुलसीपत्र है। बा को रखेगा तो होगा। “और बा के साथ होना बहुत सरल है। तुझको कोई तर्क-विचार करने की ज़रूरत नहीं है। तू बालक बन जा। तेरे अंदर एक ही विश्वास रखना, एक ही विचार रखना, ‘बा है और तू बा का बालक है।’ बस, हो गया। “अनुलोम-विलोम। बा तेरा विश्वरूप है। तू बा का लघुरूप है। बा की गोद में बैठा रहा; जैसे गणेश पार्वती की गोद में बैठा रहा। अभी गणेश के अलग मंदिर भी हैं, उसकी भगवान तरह से पूजा भी होती है। तो ये सब हैं। लेकिन गणेश पार्वती की गोद में बैठा रहा। तो यह है। यह तेरा परिचय है, यह तेरा विश्वास है। “तू बा का बालक है। बा की गोद में बैठा रहा। बा की गोद में बैठके-बैठके पाँव हिलाता है। यह युगल है। बा है और तू है, बा का बालक है। तुझको लेकर बा ‘तेरा’[29]। तुझको लेकर बा ‘चौदह’ या तुझको छोड़कर बा ‘बारा’ यह नहीं है। तुझको लेकर बा तेरा है। हम लोग बा को बोलते हैं न ‘तेरा, तेरा, तेरा’ तो बा तुझको लेकर ‘तेरा’ है। तुझको छोड़कर बा ‘बा’ नहीं है। तुझको लेकर बा ‘बा’ है। “और देख, बा हम लोगों के पास अद्भुत तरह से आई। हम लोगों ने बा आविष्कार भी नहीं किया, बा का प्रचार भी ना किया। ये तो काशीवाले करते हैं। हम लोगों के पास बा आई। हम लोगों ने बा का फ़ोटो लिया, उसका पूजा करना शुरू किया। और हम लोग ‘बा’ सीख गए. बा पर प्रेम हो गया। अब ऐसा हो गया न, तुझको कोई आकर कहता है कि बा मर गया; तो तू ज़िंदा नहीं रह सकेगा। तू तुरंत मर जाएगा।[30] जैसे ठाकुर के शिष्य लोगों के लिए भवतारिणी थी, वे लोग भवतारिणी से परिचित थे वैसे हम लोग बा से परिचित है। “हम लोगों के लिए बा काशी की केवल अन्नपूर्णा ही नहीं है। हम लोगों के लिए बा सब है – ब्रह्मन् है, ब्रह्ममयी है, अल्लाह है, कृष्ण है; सब है। चिन्मय का सार, मृणमय का सार, हम लोगों की तपस्या का सार, जीवन का सार, रीअलाइज़ेशन का सार ‘बा’ है। “आज अच्छी बात हुई। बा ने ही ये शब्द मुँह से निकाले। तो हमने जो कहा वह तू मन में लिखकर रखना। यह नहीं है तो जाकर आज रात में डायरी में हमने जो कहा वह एक वाक्य देना; कि बा का यह जो छोटा-सा लेमिनेशन किया हुआ फ़ोटो तुम लोग रखते हो न, उसको पूरा जीवन साथ में रखकर घूमता रह, तेरा सब हो जाएगा। संशय नहीं करना इससे क्या होगा। गुरुशब्द में विश्वास रखना। “‘तो और कुछ नहीं करना,’ हम बोलकर जाते हैं, ‘पूरा जीवन बा का छोटा-सा लेमिनेशन किया हुआ फ़ोटो साथ में लेकर घूमता रह; यह भी नहीं होता है तो मन में बा का छाया लेकर घूमता रह, तेरा सब हो जाएगा। तेरा अष्टांग योग हो जाएगा। दर्शन-रीअलाइज़ेशन हो जाएगा।’ यह हमारा अंतिम संदेश मानता है तो ‘अंतिम संदेश’ है। “हमने तेरे साथ अभी तक जितनी भी बात की है, एक ओर रखना है तो एक ओर रख दे। सबका सार आज बोलकर जाते हैं। हमने आज तक जितनी भी बातें की, आख़िरी में तुझको सार बोलकर जाते हैं। उसका सार ‘बा’ है। अभी तू इसको गुरुशब्द मानता है तो यह गुरुशब्द है, सबसे आत्मीय शब्द मानता है तो सबसे आत्मीय शब्द हैं। “हम बा के हैं। हम ‘बा’ हैं। द्वैत-अद्वैत जिस तरह से भी देख, यह सार है। अभी तू द्वैत की दृष्टि से देखता है तो ‘हम बा के हैं’। फिर, अद्वैत की दृष्टि से लेता है तो ‘हम ही बा है’। “अभी हम कितने दिन और रहने वाले हैं? लेकिन तुम लोग तो तीस साल-चालीस साल रहने वाले हो। तो कल हम नहीं भी रहें, चिंता नहीं करना। बा है। जानता-अजानता बा के साथ रहना, बा को प्रेम करना, बा पर विश्वास रखना। मान ले, तू बा को नहीं भी जानता है, तुझको बा का दर्शन नहीं हुआ है, तो नहीं जान कर भी बा के पास रहना, बा को प्रेम करना। विश्वास रखना – ‘बा है और तू बा का बालक है। बा तेरे घट की बा, तेरे जीवन की बा, तेर रीअलाइज़ेशन की बा, तेरे इहलोक की बा, तेरे परलोक की बा है।’ तुझको कोई शास्त्र जानने की ज़रूरत ही नहीं है। बा तुझको सीखा देगी। बा तुझको दर्शन देकर जो सिखाना है, सीखा देगी। और बा तुझको दर्शन नहीं भी देती है, तो तेरी अजानता में बा को तेरे लिए जो करना है वह कर देगी। “हम तुझको ये शब्द बोलकर जाते हैं। बा ने ये शब्द दिए इसलिए हमको ही प्रसन्नता होती है – कि हम तुझको ऐसी बात बोल सके। नहीं तो, रीअलाइज़ेशन तक, ईश्वरदर्शन तक भी तेरा एक जीवन तो है न। इसलिए बोलकर जाते हैं। रीअलाइज़ेशन से पहले एक मार्गदर्शन तो चाहिए न, एक आधार – अवलंबन – तो चाहिए न। तो तुझको बोलकर जाते हैं। रीअलाइज़ेशन के बारे में, आध्यात्मिक जीवन के बारे में तपस्या जैसे हज़ार विषय पर चर्चा की होगी; इन सबका सार आज बोलते हैं। हमारे सब शब्द का सार, सब मार्गदर्शन का सार, सब उपदेश का सार एक शब्द में बोल जाते है – बा। तू बा को पकड़कर रहना। तुझको दूसरा कुछ अलग से बोलने की ज़रूरत ही नहीं है। दूसरा सब तो हो जाएगा। तू केवल बा के साथ रह। अष्टांग योग से लेकर रीअलाइज़ेशन तक तुझको जिसकी भी ज़रूरत है, देखना, अपने आप हो जाएगा। सब बा कर देगी। “और देख, यह जो बोला, साढ़े तीन हाथ में[31] कम ही बोला, ज़्यादा नहीं बोला। अरे! तू बा को एक प्रणाम करके निकल जा न, तेरा हो जाएगा। अभी यह कहेंगे तो बराबर हुआ। “तो हमने आज जो कहा, रात में तू डायरी में लिख लेना। बहुत होशियार नहीं बन। हमने जो तुझको एक वाक्य कहा उसको लिख दे – कि दूसरा कुछ नहीं कर। पूरा जीवन बा का छोटा-सा फ़ोटो उसको हमेशा साथ में रखकर घूमता रह, तेरा सब हो जाएगा। “बा मस्तूल[32] है। तू इधर-उधर जाकर मस्तूल पर वापस आ जाता है। तो बा मस्तूल है।” सत्संग पूरा हुआ। स्वामीजी उठकर अपने कमरे में जा रहे है। जाते-जाते कह रहे हैं: “आज बा ही ने ये सब बुलाया। ये शब्द बा ने ही निकाले। ये शब्द बोलकर हमको आज प्रसन्नता भी बहुत होती है। “तो याद रखना: हमारे सब शब्द, सब मार्गदर्शन का सार बा है। मृणमय-चिन्मय का सार बा है। बा ब्रह्मन् है, ब्रह्ममयी है, चंडी है, दुर्गा है। अधिभौतिक, अधिदैविक, आध्यात्मिक का सार; गुणातीत का सार बा है।” 8 श्री बा-दर्शन 2 मार्च 1993. बरसाना होली मंगलवार वृंदावन सुबह के ग्यारह बजे स्वामीजी कमरे से बाहर आए। कल रात में हुए सत्संग और इसके संदर्भ में हुए सत्संग में बात करते हुए स्वामीजी कहने लगे: कल बा का अच्छा होता था, नहीं? हमारा अभी जाने का समय भी हो गया। हम अभी जाते हैं।[33] तो कल हमने तुम लोगों को आख़िरी शब्द बोल दिए। कल सत्संग करके रूम में आने के बाद सोए भी नहीं थे, तुरंत देखा। (बा की छाती में निर्देशित करके कहते हुए) बा का लेमिनेशन किया हुआ फ़ोटो देखा। कल जो बोला, बा स्वयं ही बोला। कलियुग में इससे आसान नहीं हो सकता। भगवान ही ऐसा बोल सकते हैं। और हमने जो कहा, सत्य है। कलियुग में यह अहेतुक कृपा है। कलियुग में तू क्या तपस्या कर सके? भिक्षा के लिए जा, आकर थक जाएगा। ठाकुर कहते हैं न, सीढ़ी चढ़ने के लिए गया, दिल का दौरा पड़ा और उधर ही गिर गया, मर गया। तू सो गया; कोई आकर पेशाब कर गया। तुझको पता ही नहीं है। ये सब लाचारी के दृष्टांत हैं। मानुष क्या तपस्या कर सकेगा? तो कलियुग में इससे आसान नहीं हो सकता। यो जो बा का छोटा-सा लेमिनेटेशन किया फ़ोटो है, उसको पूरा जीवन अपने साथ रखकर घूमता रह। यह भी नहीं होता है तो तेरे मन में बा की छवि रखकर घूमता रह। तेरा उद्धार हो जाएगा। कल अच्छी बात हुई। हमने हमारे जीवन के सब मार्गदर्शन का सार कहा। हमको भी प्रसन्नता हुई कि हम तुम लोगों को आख़िरी शब्द बोल सके। कल जो बात करी, आख़िरी शब्द हैं। और यह सत्य है। इसलिए तुम लोगों से बात करके जैसे ही रूम में गया, तुरंत यह देखा। तो मृणमय-चिन्मय भी जाने दे, बा का एक छोटा-सा फ़ोटो हमेशा साथ में रखकर घूमता रह, पर्याप्त है। हमको रात में और भी तीन-चार दर्शन हुए। लेकिन यही है – हमने जो कहा, ये सब ही हैं। एक देखा। हमारी साथवाले कमरे का बल्ब उड़ गया था। तो वह जल गया, उसमें रोशनी आ गई। और बा ने बिल्कुल यही कहा: ‘ये सुप्रभात है।’ यह प्रभात है। सुप्रभात शुरू हुआ।” 8 SHRI BA-LETTERS (ORIGINAL) IN eNGLISH – 1 – Ma, Gola nakh. Ba, Gola nakh.[34] This, soul may shout silently to our Doshi – God Mother, Parent Mother, Village Mother and Eternal Mother; all in One Mother – at Kasi 8 Say, a villager knows nothing about scriptures, Vedik hymns, rituals. But a Dying Thirst for the God has been burning day and night, burning his Eyes day and night 8 “Ma, Gola nakh.” So he can See, Drink Ganga, Go Samadhi 8 These eyes can see ‘mrinmay’. To See “Chinmaya” That ‘Gola’ – Mother’s Gracious Gaze “Kripa Dristi” – is begged 8 The Dying one is Blessed 8 It sounded humour.[35] But, No. Mother Herself puts your Soul into Right Prayer, Longing. To Bless, Enlighten our life, Mother Herself shouted from inside “Ma, Gola nakh” 8 Not from sun, moon, oil, wood, candle and any fuel, This Light comes forth. From the gaze, the third eye, the lotus palm, the crimson toes of Her Lotus Feet, This Light shines and illumines the Dying one8 Mean it. Be Promised, Commited to Truth that Shouts “Ma, Gola nakh” µ – 2 – Swamiji had writen these letters to Ba at Vrindavan during Vrajyatra covering the period of Holi, 1989. These letters, which are original, were carrying ‘Ba, c/o Timirbaran, Matrimandir, Surat’ as the address. § Ba knows me. That is my “Name and Fame” 8 § Ba, I hold your charankamal and pray. Keep me pure like Ganga, True like Brahman, The same child as i am yours now forever 8 § Ba said “Yes” and you were Enlightened 8 Ba § Ba as sadhu dwell on Gagatat, Yamunatat, inside sadhu 8 § My every moment is a jasud at Ba’s jasud-Charan 8 Manu[36] Jasud § Ba is our Veda, all vidya, purn kumba 8 Ba § Ba is our “Ahar” – Anna Brahman 8 Ba § Ba’s name is Timirbaran, Manu, Shanti 8 § Ba always places Her Palm on my shir and says, “Durga Durga Durga”[37] 8 § Any mantra, tantra, yoga is Ba 8 § Ba shows me “Darshana” – Visions 8 Ba § Ba is saranagat sannyasa sadhu sidha 8 § Ba made me a full moon, midsun 8 Ba § Live with Ba. Ba is “jagjjanani”, Narayani, Bavatarini 8 Ba § Ba is Madhukari Bhavtarini 8 Ba § My name is “Ba” 8 § Ba, Where I am, There you – my Ba is 8 Ba § Ba taught me T, R, U, T, H[38] 8 Ba Ba Ba § Ba had first madhukari in Annapurna at Kasi on 24th 4th[39] 8 § Ba, Thu hamara Hrt Kamal Neel Kamal 8 § Ba says Her son is nobody’s “nakar”. § Her child is only Her child 8 Ba § Ba burns your Jiva – Ego 8 § Ba, Thu hamara Prana and Paramatman 8 Ba § On 24th 4th in Kasi Ba became sannyasi[40] 8 § Ba is my darshana every darshana 8 Ba § Ba is the whole thought, whole love, wholeness 8 Ba § My Ba’s Charankamal on my shir 8 Ba § Ba, Thu Durga Hum Ganesh 8 Ba’s Manu § Ba give me “Realisation” 8 Ba § Ba is Ba-sagar Samadhi-sagar 8 Ba § We sleep in Ba dream in Ba awake in Ba realise in Ba 8 § Ba is “YES” Ba is “NO” Ba is “Amogh”, Bhagavan Bhagavati 8 § Ba sits on our Atman, moves in our Pran, Dwells in our Samadhi Ba Ba Ba § Ba Kapataru Ba Parasmani. Ba Aghan-ghatan[41] 8 § Ba is my samadhi[42] 8 § “Ba” we call. Ba replies “My child” 8 § Ba’s ten hands is our mandir ashrama Vraj-Kasi Vaikunth 8 § All All All in care of Ba Ba Ba 8 § Ba awake i awake Ba sleep I sleep 8 § 24th 4th is Ba’s birthday[43] 8 § My family is Ba Ba Ba 8 One 8 § Ba is Satya, Brahmachrya, Samahi 8 Manu § From my root to thousand petals The whole “Kha”[44] – space – is Ba 8 § Ba’s will are my breathes, steps, fruits 8 Ba § Ba is Truest Mother 8 Ma § Sri Sri Sri Ba is Chandi Srimad Bhagavadam 8 § All tattwa is Ba Herself Ba Himself[45] 8 § “Ba” is my sacchidanand Guru 8 Ba § Beg, Ba shall give you “Brhmajnan” Bhiksha 8 Beg Beg Beg µ – 3 – Ba, i have come out of days and nithts to be with you out of mind and heart, to love you out of Atamn to have you installed inside outside me as Paramatman 8 “Ba, i love you” This single chetan is my whole madhura whole tattawa for you 8 For you, my existence vibrates 8 µ – 4 – Ba, i am yours. In any sense, if ever belong less to you, Then bring it up to more and more to Absolute Wholeness 8 Ba, Overwhelm me with Absolute sense of belonging to you, my Ba 8 µ – 5 – My Ba ever with me, Timely, Timelessly 8 When i was indifferent, Ba was with me 8 When i did not know how to need Ba, Ba all the same was with me 8 When i needed Ba, Ba was instantly with me 8 Ba is my Yugal Ba is me, my Eternal being 8 µ – 6 – Ba is soul’s mother 8 One – Manu – born of Ba is Ba’S atmaj and is brought up beneath the shanty-Chhaya of Ba’s Hrt-kamal 8 Love between Ba and child is Prema-bhakti. Understanding between Ba and child is Ekangi Bhakti. Ba and child are each other’s Yoga and Samadhi 8 Ba is Bhuma’s Mother. The child is Bhuma. The home are Bhuma 8 Ba is Brahman and Mother of knowers of Brahman 8 µ – 7 – Ba has loved you – Then, then only, one can free self from maya - attachment with anyone, anything. Ba is mahamaya. When pleased, Ba is Yogamaya and Ba Herself 8 To love Ba, one just have to love Ba. The love for Ba is all gold, golden, Prema-bhakti, All Ba and Chandi, All Bhagavan &Bhagavati 8 Body, mind, soul are all Ba’s maya. If Ba would remove maya, then all Chinmaya and Reallisaition 8 Ba’s ‘No’ is all ‘No’. Ba’s ‘Yes’ makes all ‘Yes’ 8 µ – 8 – Ba Ba Ba i am minmoy. My Deha, man, Pran, Atamn have gone to Ba on Sasswat Yatra 8 My Deha, man, Pran, Atman shall never return 8 In Bramhamoyee Ba alone i am Chinmaya 8 Ba Ba Ba µ – 9 – Prema for Ba fountained out of my Hrt kamal. Since i have been loving Ba and i will. Parinam i do not count 8 i never knew i could love Ba. But it had happened to be so that i could. Since “janta-ajanta’[46] i have been with Ba and i would 8 i would see Ba and be realised; that i do not bargain. What i know is that i can know none but Ba 8 It is not that i underestimate ‘mumukshwatta’, ‘samadhi - Realisation” or i do not have those. Both i keep apart. Above all i love Ba. My prema is Absolute, never spiritual calcualtions and spiritual wins 8 i am Ba’s “Phal”. That was i would love to remain ever for Eternal. Sure i do not want to be “phalahari” Ba is my only tree, Eternal tree. i am Ba’s Red Red Red Red Phal Phal Phal Phal 8 if Ba would bestow darshana on my soul, Blessed i am. But i will never trade my Realisation and cash Realisation on my name. And my name sure would not bring in a 3rd lover. No, never. Ba 1st, Only One, Eternal 8 Say dharma. Say Prema. Say Satya. Say any way it comes to your chetan. But to me it is “Ekangi” Ba ALONE. Not even me, nor anyone. Only Ba Ba Ba 8 “Kali mata ki Jai” µ – 10 – Being asked[47], of all sermons He preached, which one could be considered as The Most Precious, The Lord said the one that said “Love God with your whole heart and soul 8 Suppose a sadhu asked his Lord the same[48]; then his Lord would say the one that said, “if only Ba would show” 8 “BA BATAYE THO” For soul’s Realisation, Ba Grace, shows The Way of God, and The God 8 “BA BATAE THO” “IF ONLY BA WOULD SHOW” “BA BATHAE THO” µ श्री बा-पत्र (हिंदी भाषांतर) स्वामीजी के मूल पत्र अंग्रेज़ी में हैं, जो आगे दिए गए हैं। यह उन पत्रों का हिंदी भाषांतर, अर्थांतर, हैं। – १– “माँ, गोला नाख” “बा, गोला नाख”[49] आत्मा हम लोगों की डोसी जो काशी में है उससे चुपचाप यही पुकारता रहे – वह डोसी जो हम लोगों की भगवती माँ है, जन्मदायिनी माँ है, गाँव की गँवार माँ है, शाश्वत माँ है; ऐसी माँ जिस एक में ये सभी एक साथ विद्यमान हैं 8 जो गँवार है वह न कोई शास्त्र जानता है, न कोई वेदिक मंत्र जानता है, न कोई शास्त्रविधि एवं कर्मकांड जानता है। लेकिन भगवत्-प्राप्ति की मरणासन्न तृष्णा उसको दिन-रात जलाती है; विरहाग्नि यानी भगवत्-प्राप्ति के लिए व्याकुलता का अग्नि उसकी आँखो को दिन-रात जलाता है 8 “माँ, गोला नाख – अंतर्ज्योति प्रज्वलित कर” जिससे वह देख सके – यानी उसको दर्शन हो; जिससे वह गंगाजल पी सके – यानी भगवान के लिए जो मरणासन्न प्यास है उसको वह बुझा सके; समाधि में जा सके – यानी वह तुझमें लीन हो सके 8 ये मृणमय आँखें केवल मृणमय देख सकती है। चिन्मय को देखने के लिए माँ का बालक उस गोले की – माँ की कृपादृष्टि की – भिक्षा माँगता है। जो भगवत्-प्राप्ति की भूख और प्यास में मरणासन्न है; वही कृपावान् है, आशिर्वादित है 8 “बा, गोला नाख” ये शब्द सुनने में हँसी आए ऐसे हैं।[50] लेकिन “ना”। माताजी स्वयं तुम्हारे आत्मा में सही प्रार्थना, सही व्याकुलता रखती है। हम लोगों पर आशीर्वाद रखने के लिए, हम लोगों को आलोकित करने के लिए माताजी स्वयं ने हमारे अंदर से पुकार की, “माँ, गोला नाख” 8 न सूरज से, न चंद्र से, न किसी तेल से, न किसी लकड़ी से, न किसी मोमबत्ती से यह प्रकाश बाहर में आता है। माँ की कृपादृष्टि से, त्रिनेत्र से, कमलहस्त से, चरणकमल के अँगूठे की लालिमा से यह प्रकाश चमकता है और अपने मरणासन्न बालक को आलोकित करता है 8 इस सत्य को भली-भाँति समझो, गंभीरता से लो। और उस सत्य के प्रति प्रतिज्ञाबद्ध बनो एवं पूर्णतया समर्पित हो, जो आत्मा की गहराई से पुकारता है, “माँ, गोला नाख” 8 µ – २ – स्वामीजी ने बा को ये पत्र 1989 की होली के समय हुई व्रजयात्रा के दरमियान वृंदावन से लिखे थे। पत्रों में पता लिखा है: बा, c/o तिमिरबरन, मातृमंदिर, सूरत। मूल पत्र अंग्रेज़ी भाषा में हैं, जो आगे दिए गए हैं। इधर उनको भाषांतर, अर्थांतर, तरह से प्रस्तुत किए गए हैं। § बा मुझको जानती है; यही मेरा “नाम-यश” 8 § बा, मैं तेरे चरणकमल धारण करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ: मुझको गंगा जैसा पवित्र रखना; ब्रह्मन् जैसा सत्यस्वरूप रखना; जैसा अभी हूँ वैसा ही हमेशा के लिए ‘तेरा बालक’ रखना 8 § बा ने कहा, “हाँ” और तू तत्क्षण आलोकित[51] हो गया 8 बा § बा ही साधु स्वरूप में गंगातट पर, यमुना तट पर, साधु के अंदर निवास करती है 8 § मेरे जीवन की प्रत्येक क्षण बा के जवाकुसुम[52] चरण में जवाकुसुम है 8 मनु[53] जवाकुसुम § बा हम लोगों का वेद है, सर्वविद्या है, पूर्ण कुंभ है 8 बा § बा हम लोगों का “आहार” – अन्न ब्रह्मन् – है 8 बा § बा ही का नाम तिमिरबरन, मनु, शांति है 8 § बा हमेशा अपने हस्तकमल मेरे सिर पर रखती है और बोलती है, “दुर्गा दुर्गा दुर्गा” 8[54] § कोई भी मंत्र, कोई भी तंत्र, कोई भी योग बा है। § बा मुझको “दर्शन”[55] दिखाती है। बा § बा शरणागत है, संन्यास है, साधु है, सिद्ध है 8 § बा ने मुझको पुर्णचंद्र बनाया, मध्याह्न सूर्य बनाया 8 बा § केवल बा के साथ रहो। बा “जगद्जननी”, नारायणी, भवतारिणी है 8 बा § बा मधुकरी भवतारिणी है 8 बा § मेरा नाम “बा” है 8 § बा, जिधर भी मैं हूँ उधर तू – मेरी बा – है 8 बा § बा ने मुझको स त् य (सत्य) सिखाया[56] 8 बा बा बा § बा को पहली मधुकरी अन्नपूर्णा मंदिर में मिली – 24 4 के दिन[57] 8 § बा, तू हमारा हृदय-कमल बा, तू हमारा नील-कमल 8 § बा बोलती है: उसका बालक किसी का नौकर नहीं है। बा का बालक केवल उसका बालक है 8 बा § बा तुम्हारे जीव – अहं – को जलाती है 8 § बा, तू हमारा प्राण और परमात्मन् 8 बा § 24 4 के दिन[58] काशी में बा संन्यासी हुई 8 § मेरा दर्शन – प्रत्येक दर्शन – बा है 8 बा § बा पूर्ण चिंतन है, पूर्ण प्रेम है – बा पूर्णता है 8 बा § मेरी बा के चरणकमल सदैव मेरे सिर पर 8 बा § बा, तू दुर्गा हम गणेश 8 बा का मनु § बा मुझको ‘रीअलाइज़ेशन’ देती है 8 बा § बा बा-सागर है बा समाधि-सागर है 8 बा § हम लोग सोते हैं तो बा में सपने में रहते हैं तो बा में जागृत होते हैं तो बा में रीअलाइज़ होते हैं तो बा में 8 § बा “हाँ” है – उसकी “हाँ” से सब “हाँ” हो जाता है। बा “ना” है – उसकी “ना” से सब “ना” हो जाता है। बा अमोघ है, भगवान भगवती है 8 § बा हमारे आत्मन् में बिराजती है। बा हमारे प्राण में गति करती है। बा हमारी समाधि में निवास करती है 8 बा बा बा § बा कल्पतरु है बा पारस है बा अघटन-घटन[59] है 8 § मेरी समाधि[60] बा है 8 § हम लोग “बा” कहकर उसको बुलाते हैं; बा तुरंत जवाब देती है, “मेरे बालक” 8 § बा की दस भुजा हम लोगों का मंदिर है, आश्रम है, व्रज-काशी है, वैकुण्ठ है 8 § सब सब सब बा बा बा की देखभाल में हैं 8 § बा जागती है तो हम जागते हैं; बा सोती है तो हम सोते हैं 8 § 24 4 बा का जन्मदिन है[61] 8 § मेरा कुटुंब है, “बा बा बा” 8 केवल एक 8 § बा सत्य है, ब्रह्मचर्य है, समाधि है 8 मनु § मेरे मूलाधार से लेकर सहस्त्रदल तक पूरा “ख”[62] – अंतराल – बा है 8 § बाएर इच्छा – बा की इच्छा – मेरे श्वास हैं, मेरा जीवन है; मेरे डग हैं, मेरा आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ना है; फल हैं, जीवन की सफलता – संपूर्णता – है 8 बा § बा ही हमारी वास्तविक “माँ” है 8 माँ § श्री श्री श्री बा ‘चंडी’ है, ‘श्रीमद भागवतम्’ है 8 § सब तत्त्व बा स्वयं (Himself) है सब तत्त्व बा स्वयं (Herself) है[63] 8 § बा मेरी सच्चिदानंद गुरु है 8 बा § भिक्षा माँगो; बा तुमको ‘ब्रह्मज्ञान’ भिक्षा देगी 8 भिक्षा माँगो, भिक्षा माँगो, भिक्षा माँगो µ – ३ – बा, मैं दिन-रात के बाहर आ गया, काल के बाहर आ गया, तेरे साथ होने के लिए; मन और हृदय के बाहर आ गया, तुझको प्रेम करने के लिए; आत्मन् के बाहर आ गया, तुझको हमारे अंतर्-बहिर् में परमात्मन् तरह से प्रतिष्ठित करने के लिए 8 “बा, मैं तुझको प्रेम करता हूँ।” यह एकांगी – अमिश्रित और विशुद्ध – चेतन हमारा तेरे लिए पूर्ण मधुर, पूर्ण तत्त्व है 8 केवल तेरे लिए मेरा अस्तित्व स्पंदन करता है 8 µ – ४ – बा, ‘मैं तेरा हूँ।’ यदि पूर्णतः तेरा होने से कम हूँ तो तू पाल-पोस कर उसको प्रतिपल ज़्यादा-ज़्यादा करना, तत्त्वतः संपूर्ण करना करना ‘बा, मैं केवल तेरा हूँ, मेरी बा का हूँ’ इस विशुद्ध भाव से मुझको अभिभूत कर दे। µ – ५ – मेरी बा सदैव मेरे साथ है, ज़रूरत है तब भी ज़रूरत नहीं है तब भी 8 जब मैं बा से बेध्यान था, विमुख था; बा मेरे साथ थी। जब मैं बा में जागृत हुआ, बा मेरे साथ थी 8 जब हम यह भी नहीं जानते थे कि बा की क्या ज़रूरत है, उस वक्त भी बा मेरे साथ थी 8 और जब मुझको बा की आवश्यकता हुई, बा तत्क्षण मेरे साथ थी 8 बा मेरा ‘युगल’ है। मैं व मेरा शाश्वत अस्ति और सार बा है µ – ६ – बा तुम्हारे आत्मन् की बा है। एक जन – मनु – जिसने बा से जन्म लिया है वह बा का आत्मज है। वह बा के हृदयकमल की शांति छाया में बड़ा हुआ। बा और उसके बालक के बीच में जो प्रेम है वही प्रेमलक्षणा भक्ति है। बा और उसके बालक के बीच में जो बोध है, समझ है वही एकांगी ज्ञान है। बा और उसका बालक एकदूसरे के योग और समाधि है 8 बा भूमा का बा है। उसका बालक भूमा है; और श्री निकेतन जिसमें ये दोनों निवास करते हैं यह भी भूमा है 8 बा ब्रह्मन् और ब्रह्मज्ञो की – ब्रह्मन् को आत्मसात् करने वालों की – माँ है। µ – ७ – बा ने तुझको प्रेम किया – तब, और तब ही, तुम खुद को माया से – मानुष के लिए एवं किसी वस्तु के लिए आसक्ति से – मुक्त कर सकते हो। बा महामाया है। प्रसन्न होने पर बा योगमाया है और ‘बा स्वयं’ है। बा को प्रेम करने लिए बा को प्रेम करना पड़े – बस इतना ही। बा के लिए प्रेम पूर्णरूपेण सुवर्ण है, सुवर्णमय है; पूर्णरूपेण प्रेम है, प्रेम-भक्ति है; पूर्णरूपेण बा है, चंडी है, भगवान और भगवती है 8 देह, मन, आत्मन् ये सब तो बा की माया हैं। जब बा माया दूर करती है, माया से मुक्त करती है तब सब चिम्नय हो जाता है, रीअलाइज़ेशन हो जाता है 8 बा की ‘ना’ से सब ‘ना’ हो जाता है। बा की ‘हाँ’ से सब ‘हाँ’ हो जाता है 8 µ – ८ – बा बा बा 8 मैं तो ‘मृणमय’ हूँ। मेरा देह, मन, प्राण, आत्मन् तो बा के पास शाश्वत यात्रा में चले गए हैं 8 मेरे देह, मन, प्राण, आत्मन् कभी वापस नहीं आएंगे 8 केवल ब्रह्ममयी बा में मैं ‘चिंन्मय’ हूँ 8 बा बा बा बा µ – ९ – बा के लिए प्रेम मेरे हृदय कमल में से अपने आप प्रस्फुरित हुआ। तब से मैं बा को प्रेम करता हूँ और करता रहुंगा। “परिणाम” की गिनती मैं नहीं करता हूँ 8 मुझे तो पता ही नहीं था कि मैं बा को प्रेम कर सकता हूँ। लेकिन कुछ ऐसा हो गया कि मैं बा को प्रेम कर सका। तब से ‘जानता-अजानता’[64] मैं बा के साथ हूँ और सदैव रहुँगा 8 मुझे बा के दर्शन होंगे और मैं रिअलाइज़्ड बन जाउंगा, सिद्धपुरुष बन जाउंगा – बा के साथ मैं यह सौदा नहीं करता हूँ। मैं तो केवल यही जानता हूँ कि बा छोड़कर मैं और कुछ जान नहीं सकता 8 इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं “मुमुक्षत्व” एवं “समाधि – रीअलाइज़ेशन” का मूल्यांकन यानी महत्त्व कम आँकता हूँ; या मेरे पास ये नहीं हैं। मैं इन दोनों को – बा और इन सब को – अलग रखता हूँ। सबसे ऊपर है – मैं बा को प्रेम करता हूँ। बा के लिए जो मेरा प्रेम है वह परम है, विशुद्ध है; नहीं कि कोई आध्यात्मिक लेखा-जोखा या तो मेरी व्यकिगत आध्यात्मिक जय 8 मैं तो बा का फल हूँ। मैं तो शाश्वत तक केवल इसी तरह से रहना पसंद करूँगा। निश्चित, मुझे फलाहारी – फल का आहार करने वाला – नहीं होना है। बा मेरा एकमात्र वृक्ष है, शाश्वत वृक्ष। मैं तो बा का लाल लाल लाल लाल फल फल फल फल हूँ 8 हाँ, बा मुझको दर्शन प्रदान करती है, मेरे आत्मन् पर दर्शन रखती है तो मैं धन्य हूँ, आशीर्वादप्राप्त हूँ। लेकिन मैं कभी भी मेरे रीअलाइज़ेशन का व्यापार नहीं करूँगा, न ही रीअलाइज़ेशन को मेरे नाम पर भुनाउँगा। और मेरा नाम, निश्चित, मेरी और बा के बीच में एक तीसरा प्रेमी नहीं लाएगा। कभी नहीं। बा ही सर्वप्रथम, एकमात्रम्, शाश्वत 8 अभी तुम इसको धर्म कहो, प्रेम कहो, सत्य कहो। तुम्हारे चेतन में जो-भी तरह से आता है, कहो। मेरे लिए तो यह “एकांगी” है। मैं भी नहीं। और कोई भी नहीं। केवल बा बा बा 8 “काली माता की जय” µ – १० – जब शिष्यों ने अपने भगवान से पूछा[65] कि उन्होंने जो-भी उपदेश दिए उनमें से कौन से उपदेश को सबसे मूल्यवान मानना चाहिए; तो उन्होंने यह उपदेश कहा जो कहता है, “तुम भगवान को अपने पूर्ण हृदय और आत्मा से प्रेम करो” 8 मान ले, एक साधु अपने भगवान से यही पूछता है[66], तो वे उनका यह उपदेश कहेंगे जो कहता है, “बा बताए तो ही” 8 “बा बताए तो” आत्मा के रीअलाइज़ेशन के लिए बा कृपा करती है, भगवत्-प्राप्ति का मार्ग और भगवान दिखाती है 8 “बा बताए तो” “बा बताए तो ही” “बा बताए तो” µ EndNote [1] पारलौकिक अर्थ में तो कालीमाता चिन्मय ही है, लेकिन लौकिक अर्थ में वह मिश्रधातु का विग्रह है। [2] स्वामीजी ‘चंडीपाठ’ के लिए संक्षिप्त शब्द ‘चंडी’ प्रयोग करते थे। इधर इस अर्थ में प्रयोग किया गया है। [3] आत्मसात – realise; आत्मसात करना – to realise; आत्मसात किया हुआ - realised [4] who never dies [5] who never ceases to be [6] स्वामीजी ‘चंडीपाठ’ को संक्षिप्त में ‘चंडी’ कहते हैं। इधर ‘चंडी’ का अर्थ ‘चंडीपाठ’ है। [7] Enlightened life [8] Lily [9] Whitest lily [10] immortality [11] immortal [12] one and alone [13] many [14] शारदा माँ ठाकुर की चरणसेवा कर रही थीं। उन्होंने ठाकुर से पूछा, “आप मुझे किस तरह से देखते हो?” तब ठाकुर ने यह कहा था। इसका अर्थ है, उनकी अपनी माँ जो नहाबत में रहती हैं, शारदा माँ और कालीमाता तीनों एक हैं। ठाकुर सबमें उस एक को ही – माँ को ही – देखते थे; वेश्या में भी। वेश्या को देखकर वे बोल उठे थे: “माँ, तू यह स्वरूप में!” [15] ठाकुर ने पंचवटी में एक साधु को देखा। वह जो अपने पास रखी हुई नोटबुक को बहुत प्रेम और श्रद्धा से पढ़ा करता था। ठाकुर के पूछने पर कि वह इसमें से ऐसा तो क्या पढ़ रहा है; उसने अपनी नोटबुक बताई। उसके हर पन्ने पर और पन्ने की हर लाइन पर एक ही शब्द लिखा था, ‘राम, राम, राम...’। [16] यह सूत्र समझाते हुए स्वामीजी ने कहा था: ‘यह सबके लिए नहीं हैं; हम लोगों के बीच में हैं।’ [17] unborn [18] द्विज – second born. पहला जन्म इस जगत् का नैसर्गिक जन्म है। यह दूसरा जन्म दिव्य जगत् में, भगवान में, ब्रह्मन् में, माताजी में, रीअलाइज़ेशन में जन्म है। [19] ‘Ladies’ first’ is a social coutersy. [20] ज़मींदार का यह दृष्टांत ठाकुर देते थे। ज़मींदार अंदर के रूम में बैठकर हुक्का पीता है। घरवाली सब करती है। वह तो पूछने के ख़ातिर ज़मींदार को बताती है इतना। और वह भी ‘हँ...’ करके अनुमति देता है। वैसे ही, भगवान – ब्रहमन - तो सो रहते हैं। जो कुछ-भी करती हैं, माताजी – योगमाया – करती हैं। [21] आध्यात्मिक धारणा पर पुनः पुनः गंभीर ध्यान करना एवं उसको आचरण में लाकर चेतन में परिवर्तित करना। [22] आत्मछलना यानी self deception. शास्त्र का सहारा लेकर सत्य टालना; जिसको ठाकुर ‘मन के घर में चोरी करना’ कहते हैं। [23] स्वामीजी की माँ का नाम किरणबाला है। [24] छोटी थैली [25] स्वामीजी जब मंदिर में जाते हैं तो प्रायः शिष्य लोग देखते हैं कि स्वामीजी इस तरह से सिर पर हाथ रखकर प्रेम और श्रद्धा से घुमाते हैं। वे कहते भी है: ‘सिर गुरुचरण का स्थान है।’ स्वामीजी अपना एक दर्शन कहते हुए कहते हैं: “हम बालक स्वरूप में हैं। बा ने अपना मुकुट उताकर (जो अन्नपूर्णा माता के सिर पर रहता है) हमारे सिर पर रख दिया। हमने बा से कहा: “बा, हमको तेरा मुकुट नहीं चाहिए। हमको तेरे चरणकमल चाहिए। हम हमेशा तेरे चरणकमल में रहें यह चाहिए।” [26] स्वामीजी ने यह सत्संग अपने तिरोभाव के क़रीब एक महीने पहले ही किया था। स्वामीजी ने 4 अप्रैल 1993 के दिन वृंदावन में अपना शरीर-त्याग किया था। [27] स्वामीजी के साधु …

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