Thursday, 9 November 2017
लय और शब्द की शक्ति
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लय और शब्द की शक्ति - युधिष्ठिरलाल कक्कड़
Updated Oct 29, 2004, 07:47 PM IST
'मंत्र' को शब्दकोष में 'वेद वाक्य' कहागया है। वेद का अर्थ है ज्ञान। सभ्यताके आरंभिक काल में हमारे ऋषियों नेमनुष्य के कल्याण और मार्गदर्शन केलिए जो ज्ञान दिया, उसी का नाम हैवेद। वेद संसार में सर्वमान्य रूप सेसबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। वेद चार हैं। इनकेछंदों को ऋचा कहा जाता है। ऋचाओं केसमूह को सूक्त कहते हैं। माना जाता हैऋषि मंत्रों के कर्ता नहीं, अपितु दृष्टा हैं।मंत्र का प्रयोग करने वाला, मंत्र काविनियोग, मंत्र का उच्चारण करने वालामंत्र दृष्टा होता है। व्यंजन व स्वर सेशब्द निर्मित होते हैं। बिना स्वर केकोई भी शब्द नहीं बन सकता। शब्द केआधार पर 'नाम' की उत्पत्ति हुई।
मंत्रों में शब्दों की संख्या का काफीमहत्व है। आदि ऋषियों ने प्रत्येकदेवताओं के मंत्रों की रचना में शब्दों कीसंख्या का ध्यान रखा है और उसे पूर्णमंत्र का रूप दिया है। इसके साथ हीपूर्ण मंत्रों के शब्दों की संख्या घटाकरसूक्ष्म मंत्रों की भी रचना की गई है, जिन्हें हम 'बीज मंत्र' के नाम सेसंबोधित करते हैं। पूर्ण मंत्रों और बीजमंत्रों की शक्तियां बराबर हैं, लेकिन जपकरने की संख्याओं में अंतर रखा गयाहै।
देवताओं और नवग्रहों के मंत्रसिद्ध करने के लिए अलग-अलग संख्यानिर्धारित है, जैसे सर्व विघ्न दूर करनेऔर मनोकामनाएं पूरी करने के लिएगणपति मंत्र के सवा लाख जपनिर्धारित हैं। सर्व कष्ट दूर करने के लिएमहामृत्युंजय बीज मंत्र के 11 लाखजप। इसी प्रकार नवग्रह- सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहुएवं केतु के लिए जप संख्या क्रमश: 24 हजार, 40 हजार, 28 हजार, 68 हजार, 48 हजार, 80 हजार, 76 हजार, 72 हजार और 28 हजार है। मंत्रों केहजारों-लाखों जप करने की सलाहइसलिए दी जाती है, ताकि मंत्रों केशब्दों में शक्ति पैदा होकर जपने वालेको इसका लाभ मिल सके। आदिकालमें वेदों की ऋचाएं गाई जाती थीं।
यह वैज्ञानिक सत्य है कि दोवस्तुएं आपस में टकराती हैं या घर्षणहोता है, तो उसमें से आवाज याचिनगारियां (ऋग्वेद-7-1-1) निकलती हैं।यानी दो वस्तुएं टकराने पर जो तीसरीवस्तु प्राप्त हुई, उसे ही शक्ति कहा जाताहै। इसी प्रकार जब शब्द और लय काविलय होता है या शब्द में आवाज कासमावेश होता है, तो तीसरी शक्ति काउद्भव होता है और वह शक्ति हीआकर्षण का कारण होती है।
जबबच्चा जन्म लेता है, तो सर्वप्रथम हमउसका नामकरण संस्कार करते हैं।उसका जो नाम रखा जाता है, उसी सेघर के सभी सदस्य बच्चे को पुकारतेहैं। आजकल कई लोग नामकरण केअलावा भी प्रेम से छोटा नाम रख लेतेहैं। ये दोनों नाम बीज मंत्र हो गए। जबभी कोई इन नामों का उच्चारण करेगा, बच्चे का ध्यान आकर्षित होगा। यानीकिसी नाम का बार-बार लगातारउच्चारण करने पर उसमें शक्ति पैदाहोकर उस नाम वाले व्यक्ति कोआकर्षित करती है।
शब्द और लयमें काफी गहरा संबंध है। बिना लय केशब्द शक्तिविहीन होता है और केवलशब्द ही रह जाता है। लय से ही शब्दमें शक्ति आती है और वह शक्ति हीजिसके लिए शब्द होता है, उसेआकर्षित करती है। जैसे किसी लोकप्रियगीत या भजन के शब्दों को सिर्फ पढ़नेकी तरह उच्चारित करेंगे तो श्रोता परउसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा।लेकिन उसी गाने या भजन को अच्छागायक लय के साथ गाए, तो आपमुग्ध हो जाएंगे।
किसी व्यक्ति काध्यान अपनी ओर आकर्षित करने केलिए नाम का उच्चारण करते हैं। उसीप्रकार पशु-पक्षियों का ध्यान खींचने केलिए अलग-अलग शब्द ध्वनियों काआदिकाल से उपयोग होता रहा है।उदाहरण के लिए, एक स्थान पर एककुत्ता और गाय दोनों खड़े हैं। आप गायको बुलाने के लिए प्रचलित शब्द काउच्चारण करेंगे तो गाय आपकी ओरचली आएगी, लेकिन कुत्ते पर उसकाकोई असर नहीं होता। इसी प्रकार जबआप कुत्ते को बुलाने के लिए हांकलगाएंगे, तो गाय अप्रभावित रहेगी। यहफर्क शब्द ध्वनियों का अर्थ बदल देताहै। क्या इन पशु-पक्षियों को किसी नेसमझाया है कि इन ध्वनियों के क्या-क्या कार्य हैं? निरंतर उच्चारण ने हीकुछ शब्दों को शक्तिवान बना दिया है।आम जीवन के इन उदाहरणों के बादमंत्र और उनकी शक्ति पर संदेह करनेकी कोई वजह नहीं रह जाती।
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