Thursday, 23 November 2017
श्री गुसांईजी के सेवक देवी के उपासी ब्राह्मण
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SHREE GUSAIJI KE SEVAK DEVI KE UPASI BRAHMAN ( STRI-PURUSH) KI VARTA
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Shree Gusaiji Ke Sevak Devi Ke Upasi Brahman ( Stri-Purush) Ki Varta
२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १३६)श्री गुसांईजी के सेवक देवी के उपासी ब्राह्मण (स्त्री पुरुष)की वार्ता
एक ब्राह्मण अपनी ब्राह्मणी के साथ आगरा में रहकर देवी की मंत्र - साधना करता था| उसकी साधना के प्रभाव से देवी प्रति मध्यरात्रि में उसे दर्शन देती थी और उससे बातें करती थी| इस प्रकार बहुत दिन व्यतीत हो गए| एक दिन चाचा हरिवंशजी श्रीगोकुल से आगरा गए| ज्येष्ठ की ग्रीष्म के ताप से बचते हुए, एक प्रहर रात्रि व्यतीत होने पर आगरा पहुँचे| बहुत थक जाने के कारण उस ब्राह्मण के चबूतरे पर डेरा किया| वहाँ शीतल वायु के कारण उन्हें शीध्र ही निद्रा आ गई| मध्यरात्रि होने पर देवी उस ब्राह्मण के घर पर आई, लेकिन बाहर चबूतरे पर पाँच वैष्णवो को सोता देखकर बड़ी प्रसन्न हुई और उनके ऊपर पंखा झलने लगी| देवी ने मन में विचार किया कि ये वैष्णव भगवद् भक्त है, इन्हे लाँधकर ब्राह्मण के घर में कैसे प्रवेश करुँ? ब्राह्मण व ब्राह्मणी अत्यधिक आतुर भाव से देवी के दर्शनों की प्रतीक्षा में थे| देर होने पर बड़े आर्तभाव से प्रार्थना पूर्वक आवहान करने लगे लेकिन देवी फिर भी नहीं गई| वह रात्रि भर चाचाजी के पंखा झलती रहीं| जब रात्रि चार घङी शेष रह गई तो चाचाजी उठे और संतदास के घर के लिए चल दिए| देवी भी ब्राह्मण के घर में अन्दर चली गई और उस ब्राह्मण दम्पति को दर्शन दिए| ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर मध्य रात्रि में न आने का कारण पूछा और साथ ही अपना अपराध भी जानना चाहा जिसके कारण रात्रि में दर्शन नहीं हुए| देवी ने कहा- "तुम्हारे घर के आगे वैष्णव सोते थे, में उनके ऊपर पंखा झलती रही| वैष्णव त्रिलोकी में सर्वश्रेष्ठ है| साक्षात् भगवान भी वैष्णवो के वशीभूत है| मेरे जैसे देवता उन वैष्ण्वो की टहल (चाकरी) करना चाहते है लेकिन वैष्णवो की टहल (सेवा) उन्हें प्राप्त नहीं है|" यह सुनकर ब्राह्मण बोला - "ऐसे वैष्ण्वो के दर्शन तो हमें भी कराओ|" तब उस देवी ने कहा- " में तुम्हारे ऊपर प्रशन्न हुँ, तुम्हारा सच्चाभाव देखकर में तुमसे कहती हुँ - तुम दोनों (स्त्री पुरुष) उस सन्तदास के घर जाओ और उसके यहाँ आए हुए वैष्णव के परामर्श के अनुसार श्रीगुसांईजी की शरण में चले जाओ|" इसके बाद वह ब्राह्मण अपनी स्त्री के साथ के साथ सन्तदास के घर गया और वहाँ चाचा हरिवंशजी से मिला| उस ब्राह्मण ने उनको समस्त वृतान्त सुना दिया| तब तो चाचाजी ने उन दोनों को नाम सुनाया और पुष्टिमार्ग की रीति सिखाई| फिर उन दोनों स्त्री पुरुषों को चाचाजी अपने साथ श्रीगोकुल ले गए| वहाँ श्रीगुसांईजी के दर्शन कराए| भली प्रकार से उनके बारे में श्रीगुसांईजी को बताया| श्रीगुसांईजी ने उन दोनों को नाम निवेदन कराया| वे दोनों स्त्री पुरुष श्रीनवनीतप्रियजी के दर्शन करके बहुत प्रशन्न हुए| श्रीगुसांईजी ने श्रीमदन मोहनजी की सेवा उनके माथे पधराई| वे सेवा करने लग गए| श्रीगुसांईजी ने उन दोनों को श्रीनाथजी के दर्शन भी अपने साथ ले जाकर कराए| उन दोनों ने श्रीगुसांईजी से विनती करके चाचा हरिवंशजी को अपने साथ एक महीने के लिए आगरा ले आए| चाचा हरिवंशजी ने उन्हें कृपा करके मार्ग की रीति भलीभाँति समजाई| ये दोनों स्त्री पुरुष श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र हुए|
| जय श्री कृष्णा |
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