Saturday, 11 November 2017

कर्म बांधता है धर्म मुक्त करता है

SEARCH प्रश्‍न उत्‍तर, सद्‌गुरुJULY 1, 2015 कर्म बांधता है धर्म मुक्त करता है कर्म बांधता है धर्म मुक्त करता है 269 Shares Facebook Twitter Whatsapp Pinterest Mail दिन भर के कामों में हम उलझ सकते हैं या फिर अपने अंदर मुक्ति का अनुभव कर सकते हैं। क्या मुक्ति का अनुभव करने के लिए कोई विशेष काम करने की जरुरत है…वो कौन-सी युक्ति है जिससे सभी काम मुक्ति का अनुभव दिला सकते हैं? प्रश्‍न: सद्‌गुरु, मेरा प्रश्न अध्याय-2 के श्लोक 47 से संबंधित है, जो गीता का सबसे मशहूर श्लोक है और जिसे गीता का सार भी माना जाता है। इस श्लोक में फल की इच्छा किए बिना कर्म करते रहने की बात कही गई है। सद्‌गुरु: क्या है यह 47वां श्लोक? प्रश्‍नकर्ता: “एक योद्धा होने के नाते तुम उन सभी कर्मों को करने के योग्य हो, जिसकी अपेक्षा किसी योद्धा से की जा सकती है। लेकिन तुम अपने कार्यों के परिणाम स्वरूप किसी भी तरह का लाभ उठाने के अधिकारी नहीं हो। साथ ही तुम कर्म नहीं करने के अधिकारी भी नहीं हो, यानी कर्म न करना तुम्हारे वश में नहीं है। इसलिए तुम्हें कर्म-फल की इच्छा किए बगैर अपनी स्थिति के अनुसार कर्म करना चाहिए।” सद्‌गुरु: कर्म बहुत जरुरी है। यहां तक कि अगर आप चाहें तो भी कर्म करने से खुद को रोक नहीं सकते। कर्म से मतलब सिर्फ शारीरिक क्रिया से ही नहीं है। आप शरीर से कर्म करते हैं, मन से कर्म करते हैं, अपनी भावना से कर्म करते हैं, यहां तक कि आप अपनी ऊर्जा के स्तर पर भी कर्म करते हैं। हर वक्त आप शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक क्रियाएं करते रहते हैं। कर्म अनिवार्य है। किसी भी हालत में कर्म तो आपको करना ही है, चाहे आप आराम ही क्यों न कर रहे हों। आराम के दौरान भी आप अपने मन या भावना में कुछ न कुछ कर ही रहे होते हैं।क्या आपको लगता है कि आपके भीतर कर्म न करने की क्षमता है? चाहे कर्म करने की आपकी इच्छा हो या न हो, आप किसी न किसी रूप में कर्म कर ही रहे होते हैं। लेकिन होता यह है कि लोग पूरे दिन जो भी काम करते हैं, उनमें से ज्यादातर कर्म फल की इच्छा द्वारा संचालित होते हैं। आमतौर पर लोगों के मन में बड़े पैमाने पर यही चल रहा होता है कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, उससे उन्हें क्या मिलेगा। कृष्ण इस श्लोक में कह रहे हैं कि इस तरह से जीना व्यर्थ है, क्योंकि अगर आप परिणाम को ध्यान में रखकर कोई भी काम करते हैं, तो वह क्रियाकलाप आपका कर्म बन जाता है और आपके बंधन का कारण बनता है। दूसरी तरफ यदि आप अपने लाभ के बारे में सोचे बिना कोई काम कर रहे हैं यानी आप उसे सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उसे किए जाने की जरूरत है, तो ऐसी स्थिति में वही क्रियाकलाप धर्म बन जाता है। यहां धर्म का मतलब कर्तव्य समझा जाता है, हालांकि यह पूरी तरह से कर्तव्य नहीं है। क्योंकि कर्तव्य शब्द अपने आप में बहुत सीमित है, जबकि धर्म, कर्तव्य से कहीं ज्यादा व्यापक अर्थ रखता है। धर्म और कर्म में केवल एक ही अंतर है। धर्म मुक्त करता है, जबकि कर्म बंधन पैदा करता है। तो कर्म तो अनिवार्य है। किसी भी हालत में कर्म तो आपको करना ही है, चाहे आप आराम ही क्यों न कर रहे हों। आराम के दौरान भी आप अपने मन या भावना में कुछ न कुछ कर ही रहे होते हैं। अब यह आपको देखना है कि आप अपने आपको उलझाने के लिए कर्म कर रहे हैं या मुक्त करने के लिए? यहां कृष्ण आपको एक आसान सी युक्ति दे रहे हैं जिससे आप अपनी छोटी-मोटी गतिविधियों का इस्तेमाल भी अपनी मुक्ति के लिए कर सकते हैं। यह सबसे ज्यादा मशहूर श्लोक इसीलिए है क्योंकि यही दुनिया का सबसे बड़ा दुख है कि लोग एक पल के लिए भी स्थिर नहीं रह सकते। लोग बीमार इसीलिए होते हैं, क्योंकि उन्हें नहीं पता कि स्थिर कैसे हुआ जाए। अगर आप अपने आप को पूरी तरह से स्थिर या विश्राम की स्थिति में ला सकते हैं, तो बीमारी नाम की कोई चीज ही नहीं होगी। क्या आपको लगता है कि आपके भीतर कर्म न करने की क्षमता है? चाहे कर्म करने की आपकी इच्छा हो या न हो, आप किसी न किसी रूप में कर्म कर ही रहे होते हैं।लेकिन स्थिरता आएगी कहां से, आपकी जिंदगी के हर एक पल में कोई न कोई गतिविधि चल ही रही है। चाहे आप जगे हों या नींद में हों गतिविधियां तो हो ही रही हैं। बाकी हर चीज शुरु होती है तो खत्म होती है, चलती है तो ठहरती है, लेकिन आपकी गतिविधियां चौबीस घंटे बिना रुके चलती रहती हैं। इसलिए इस श्लोक पर निश्चित तौर पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। इस पर ध्यान देना सही भी है, क्योंकि यह एक ऐसी चीज है जो लगातार आपकी मुक्ति के लिए काम करती है। लोग जिस तरह से सोचते और महसूस करते हैं, बस उतने से ही वो खुद को बंधनों में फंसा लेते हैं। इससे बचने के लिए उन्हें कृष्ण की तरह कोई बड़ा काम करने की जरूरत नहीं है। उन्हें युद्ध करने या राज्यों को बनाने और तोडऩे की कोशिश करने की जरूरत भी नहीं है। वे बस घर में बैठकर कुछ बेवकूफी भरे काम भी कर सकते हैं। बस इतना ध्यान रखिए कि आप जो भी काम करते हैं, वही आपको मुक्ति भी दिला सकते हैं और वही आपको बंधनों में उलझा भी सकते हैं। कर्म से मतलब सिर्फ शारीरिक क्रिया से ही नहीं है। आप शरीर से कर्म करते हैं, मन से कर्म करते हैं, अपनी भावना से कर्म करते हैं, यहां तक कि आप अपनी ऊर्जा के स्तर पर कर्म करते हैं। हर वक्त आप शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक क्रियाएं करते रहते हैं। कृष्ण की कहानियां Abhi Sharma 269 Shares Facebook Twitter Whatsapp Pinterest Mail संबन्धित पोस्ट Tags कहानीकृष्णसद्गुरु PREVIOUS ARTICLE योग दिवस संदेश: ऊपर या बाहर नहीं, झांके अपने अंदर NEXT ARTICLE जब आपकी हड्डियां भी मुस्कुराने लगें Type in below box in English and press Convert Convert 1 Comment EK YATRI JULY 2, 2015 AT 6:36 AM नमस्कार सधगुरु. आपने बताया की पहल की चिंता किए बगैर कर्म करना चाहीए. तोह फिर वह मुक्ति लाएगा, धर्म होग. यदि हम किसी उद्देश्य से कुछ करना चाहते हैं, तो क्या य गलत होगा? REPLY Leave a Reply Your email address will not be published. Required fields are marked * Comment Name * Email * Website POST COMMENT और ब्लॉग पढ़ें भक्ति : ऐसा प्रेम जिसमें दास बनना भी मंजूर हो सद्‌गुरु और पूर्व मिस इंडिया तथा बॉडीवुड अभिनेत्री जूही चावला चर्चा कर रहे हैं कि ‘बेशर्त प्यार’ और भक्ति के क्या गुण होते हैं, और क्या ऐसी स्थिति में कोई किसी और का पायदान बन कर रह सकता है। OFFERINGS KAILASH MANASAROVAR MULTI GRAIN HEALTH MIX SADHGURU ON AASTHA KAILASH MANASAROVAR MULTI GRAIN HEALTH MIX हमारे बारे में ईशा फाउंडेशन का यह हिंदी ब्लॉग ‘आनंद लहर’ सद्‌गुरु के स्वप्न को पूरा करने की दिशा में बढ़ाया एक और कदम है। हमें उम्मीद है कि ‘आनंद लहर’ के पाठक इससे भरपूर लाभ उठाएंगे और अपने भीतर मौजूद परम आनंद के स्रोत से जुडक़र अपनी जिंदगी को धन्य बनाएंगे। जीवन को आनंद, प्रेम और धन्यता में जीना हर इंसान का जन्म सिद्ध अधिकार है। आगे पढ़ें.. हमारे दूसरे वेबसाइट Sadhguru International Yoga Day Isha Yoga Dhyanalinga Isha Kriya Conversations with the Mystic Isha Live English Blog Tamil Blog Telugu Blog Malayalam Blog ईशा क्रिया ईशा क्रिया ध्यान का निःशुल्क, सरल और आसान अभ्यास है। यह एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया है। ईशा क्रिया इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति को आध्यात्मिकता की एक बूंद देने की कोशिश का एक अंश है। इस विधि पर अमल करके खुद को आनंदित व समर्थ बनाएं। सीखें, अभी! सद्‌गुरु हिंदी साहित्य उपलब्ध है युगन युगन योगी - पढ़ें सद्गुरु की जीवनी पुस्‍तक मंगाए amazon.in Manjulindia.com www.flipkart.com ishadownloads.com © 2015 ISHA FOUNDATION – OFFICIAL HINDI BLOG. ALL RIGHTS RESERVED. BACK TO TOP

No comments:

Post a Comment