Tuesday, 28 November 2017
भक्ति का अर्थ है प्रेम और ईश्वर के प्रति निष्ठा
The System “Yoga in Daily Life”
हिन्दी
Homeअधिक
भक्तियोग
भक्ति का अर्थ है प्रेम और ईश्वर के प्रति निष्ठा - सृष्टि के प्रति प्रेम और निष्ठा, सभी प्राणियों के प्रति सम्मान और उनका संरक्षण। हर कोई भक्तियोग का अभ्यास कर सकता है, चाहे छोटा हो या बड़ा, धनी अथवा निर्धन, चाहे वह किसी भी राष्ट्र या धर्म से संबंध रखता हो। भक्तियोग का मार्ग हमें अपने उद्देश्य की ओर सीधा और सुरक्षित पहुंचा देता है।
भक्तियोग में ईश्वर के किसी रूप की आराधना भी सम्मिलित है। ईश्वर सब जगह है। ईश्वर हमारे भीतर और हमारे चारों ओर निवास करता है। यह ऐसा है जैसे हम ईश्वर से एक उत्तम धागे से जुड़े हों - प्रेम का धागा। ईश्वर विश्व प्रेम है। प्रेम और दैवी अनुकम्पा हमारे चारों ओर है और हमारे माध्यम से बहती है, किन्तु हम इसके प्रति सचेत नहीं हैं। जिस क्षण यह चेतनता, यह दैवीय प्रेम अनुभव कर लिया जाता है उसी क्षण से व्यक्ति किसी अन्य वस्तु की चाहना ही नहीं करता। तब हम ईश्वर प्रेम का सच्चा अर्थ समझ जाते हैं।
भक्तिहीन व्यक्ति एक जलहीन मछली के समान, बिना पंख के पक्षी, बिना चन्द्रमा और तारों के रात्रि के समान है। सभी को प्रेम चाहिये। इसके माध्यम से हम वैसे ही सुरक्षित और सुखी अनुभव करते हैं जैसे एक बच्चा अपनी माँ की बाहों में या एक यात्री एक लम्बी कष्टदायी यात्रा की समाप्ति पर अनुभव करता है।
भक्ति के दो प्रकार हैं :
अपरा भक्ति - अहम् भावपूर्ण प्रेम
परा भक्ति - विश्व प्रेम
भक्त उसके साथ जो भी घटित होता है, उसे वह ईश्वर के उपहार के रूप में स्वीकार करता है। कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होती, ईश्वर की इच्छा के समक्ष केवल पूर्ण समर्पण ही होता है। यह भक्त जीवनभर स्थिति को प्रारब्ध द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत वस्तु के रूप में ही स्वीकार करता है। इसमें कोई ना नुकर नहीं, उसकी एक मेव प्रार्थना है 'ईश्वर तेरी इच्छा'।
तथापि ईश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम के इस स्तर को पहुंचने से पूर्व हमारी भक्ति अहम् भाव पूर्ण विचारों से ओत-प्रोत होती है। इसका अर्थ है कि हम वास्तव में ईश्वर से तो प्रेम करते हैं, किन्तु ईश्वर से कुछ कामना भी करते हैं। बहुत लोग जब दुख में या परेशानी में होते हैं तब वे सहायता के लिए ईश्वर की ओर जाते हैं। अन्य लोग भौतिक पदार्थों, धन, यश, आजीविका, पदोन्नति के लिए प्रार्थना करते हैं। फिर भी हमें यह सदैव ध्यान रखना चाहिये कि जब हम इस पृथ्वी से विदा होते हैं तब हम अपना सब कुछ छोड़ जायेंगे और यही कारण है कि यहां की किसी भी वस्तु का कोई सचमुच या अनंतकालीन मूल्य नहीं है। आध्यात्मिक खोजी लोग बुद्घि और ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। तथापि, हम प्राय: ईश्वर का एक आन्तरिक चित्र सृजन कर लेते हैं - हमारी दृष्टि से ईश्वर कैसा है, ईश्वर को अब क्या करना चाहिये - और क्योंकि इस कारण हम दैवीय प्रगटिकरण के लिये खुले और तैयार नहीं।
भक्ति सूत्रों में नारद मुनि (ऋषि) ने भक्तियोग के नौ तत्वों का वर्णन किया है:-
सत्संग-अच्छा आध्यात्मिक साथ
हरि कथा-ईश्वर के बारे में सुनना और पढऩा
श्रद्धा-विश्वास
ईश्वर भजन-ईश्वर के गुणगान करना
मंत्र जप-ईश्वर के नामों का स्मरण
शम दम-सांसारिक वस्तुओं के संबंध में इन्द्रियों पर नियंत्रण
संतों का आदर-ईश्वर को समर्पित जीवन वाले व्यक्तियों के समक्ष सम्मान प्रगट करना।
संतोष-संतुष्टि
ईश्वर प्रणिधान-ईश्वर की शरण
भक्ति के बिना कोई आध्यात्मिक मार्ग नहीं है। यदि विद्यालय का एक छात्र अध्ययन के किसी विषय को नापसंद करता है, तो वह पाठ्यक्रम को मुश्किल से पूरा कर पाता है। इसी प्रकार हमारे अभ्यास के लिए जब प्रेम और निष्ठा है, हमारे मार्ग पर चलते रहने का दृढ़निश्चय और हमारे उद्देश्य के संबंध में सदैव मान्यता हो तभी हम सभी समस्याओं का समाधान करने के योग्य हो सकते हैं। हम सभी जीवधारियों के प्रति प्रेम और ईश्वर के प्रति निष्ठा के बिना ईश्वर का साहचर्य प्राप्त नहीं कर सकते।
पीछे
अगला
चालू अध्याय: योग के चार पथ (मार्ग, शाखाएं)
कर्मयोग
भक्तियोग
राजयोग
ज्ञान योग
योग क्लास खोजें
अधिक जानकारी के लिए
दैनिक जीवन में योग -
एक पद्धति
परमहंस स्वामी महेश्वरानंद
अभी ओर्डर करे
ऊपर ^
HomeThe SystemOverviewAuthorYoga ClassesTVInitiativesKnowledgeMediaeStoreContact
1
Vishwaguru Maheshwarananda
www.yogaindailylife.org
www.swamiji.tv
Chakras and Kundalini
Sri Lila Amrit
Om Ashram
Copyright © 2017 The System “Yoga in Daily Life”. All rights reserved.
Close navigation
हिन्दी
ČEŠTINA
DEUTSCH
ENGLISH
FRANÇAIS
MAGYAR
Close navigation
पद्धति में खोजें
खोज...
खोज
Close navigation
Home
The System
Overview
Author
Yoga Classes
TV
Initiatives
Knowledge
Media
eStore
Contact
Close navigation
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment