Thursday, 9 November 2017

संवर्ग विद्या

हिन्दी / Hindi खबर-संसारगुजरात चुनाव 2017ज्योतिषबॉलीवुडधर्म-संसारक्रिकेटलाइफ स्‍टाइलवीडियोसामयिकफोटो गैलरीअन्यProfessional Courses संवर्ग विद्या का नया अवतार ND -कैलाशवाजपेयी अथर्वा ऋषि प्रणीत अथर्ववेद सचमुच विलक्षण है। इस वेद में तरह-तरह की विद्याओं का वर्णन मिलता है। इन विद्याओं में कुछ के नाम हैं- प्राण विद्या, मधु विद्या, सम्मोहन विद्या, विकर्षण विद्या एवं संवर्ग विद्या आदि। पिछले कुछ वर्षों से अपने देश में जगह-जगह एक शब्द सुनने को मिलता है, नाम है रेकी। इसे करने वाले लोग 'रेकी मास्टर्स' कहलाते हैं। इन तथाकथित मास्टर्स का कहना है कि यह विद्या जापान से आई जो सरासर झूठ है। दरअसल, इस विद्या का जिक्र हमें अथर्ववेद के तेरहवें अध्याय में मिला। जिस तरह श्री श्री रविशंकर पिछले कुछ वर्षों से 'आर्ट ऑफ लिविंग' का जो प्रचार अपने नाम से कर रहे हैं, वह दरअसल महर्षि महेश द्वारा लिखित और सन्‌ 1963 में प्रकाशित कृति 'द सायंस ऑफ बीइंग एंड द आर्ट ऑफ लिविंग' से उठाई गई कला है, ठीक वही स्थिति रेकी मास्टर्स की भी है। अस्तु अब हम अथर्ववेद की संवर्ग विद्या की ओर आते हैं जो अंतःकरण की क्षमताओं की ओर संकेत करती है। अथर्ववेद कहता है कि किसी षड्यंत्रकारी ने यदि उत्कोच अर्थात घूस देकर अथवा फिर किसी अन्य उपाय से आपका अहित किया है तो आप किसी यक्ष का स्मरण कर ध्यानावस्था में रहते हुए यह आभास पा सकते हैं कि आपके खिलाफ कहां कौन-सा कुचक्र हो रहा है। कुछ इसी तरह की विधायक विद्या है संवर्ग-विद्या जो उपनिषद् युगीन गाड़ीवान को आती थी। इस श्रमजीवी का नाम था- सयुग्वा रैक्व। सयुग्वा का अर्थ होता है गाड़ीवाक्ता। सयुक्वा रैक्व अपनी बैलगाड़ी पर ही रहता था और पागलों की तरह यहां-वहां गाड़ी लिए भागता-फिरता था। आज की 'रेकी' का उत्स दरअसल उसी रैक्व ऋषि से हुआ जिसमें आप दूर बैठे हुए भी कल्पना की आंखों से अपने सुहृद अथवा सगे-संबंधी के लिए मंगल कामना कर सकते हैं। इसमें आप अपनी आंखों के समक्ष धवल गोल वृत्त बनाकर फिर ऊर्जा के उस गोले को अपनी बंद पलकों अथवा अपने वक्ष में तिरोहित होने देते हैं। ND अच्छा तो यह है कि आप इसे आधी रात के बाद करें। रेकी कोई अजूबा नहीं। रैक्व ऋषि ने विराट से झरती ऊर्जा को सीधे-सीधे ग्रहण करने की विधि अपनाई थी ऐसा इसलिए भी कि वह अपनी गाड़ी में ही सोता था। असल में हम लोगों को पता नहीं कि हम पर हजारों तरंगें लगातार बरस रही हैं। यह तो हमारे मस्तिष्क के स्नायुजाल की नैसर्गिक प्रतिभा है कि वह उनके दुष्परिणामों को जानता है और उन्हें स्वतः धकियाता रहता है, वह ऐसा न करे तो आधिग्रस्त हो जाए। किस तरंग को भीतर आने देना है और किस पर संतरण कर जाने देना है यह युक्ति हमारा मस्तिष्क जानता है। जैसा कि सर्फिग में होता है- इससे पहले कि एक बड़ी तरंग आकर हमें पछाड़े हम तत्काल पैंतरा बदल देते हैं। यही कुछ आप द्वारा रचे षड्यंत्र या कुविचार के साथ भी होता है वह तत्काल लौटकर आप पर ही आक्रमण करता है। संवर्ग विद्या विधायक विद्या है। बाबर ने अपने बेटे हुमायूं के प्राणों की रक्षा के लिए रात भर जाग कर जो कुछ किया होगा वह शायद यही संवर्ग विद्या रही होगी। अभिनव गुप्त इस विद्या को आसाद्य नाम देते हैं। आसाद्य का मतलब है चारों ओर पूर्ण रूप से तरंगायित इसी ऊर्जा को पाने और अंतस्‌ स्नात करने की योग्यता। अभिनव गुप्त ने लिखा है कि ऊर्जा को दुलराकर पाने की भी एक विधि है। यदि हमें एकाग्र होकर उसे आत्मसात करने की युक्ति आती है तो ऊर्जा कब्रिस्तानों में बिल्कुल नहीं होती। बीती सदी में प्रकाशित कृति 'द यूनिवर्स ऑफ एक्सपीरियंस' के लेखक डॉ. लैंसला-ह्वीट ने शिकायत भरे शब्दों में अफसोस जताते हुए लिखा था- काश, दुनिया भर में पसरे पड़े कब्रिस्तान और इतने तमाम मकबरे आदि अगर न होते तो जिंदगी शायद कुछ और आह्लादकारी होती। विज्ञापन विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें! मुख पृष्ठ | हमारे बारे में | विज्ञापन दें | अस्वीकरण | हमसे संपर्क करें Copyright 2016, Webdunia.com   Click

No comments:

Post a Comment