Saturday, 11 November 2017
ब्रह्मचर्य : वैज्ञानिक
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ब्रह्मचर्य : वैज्ञानिक विश्लेषण
ब्रह्मचर्य यौन विचारों और इच्छाओं से पूर्ण स्वतंत्रता है| यह विचार, वचन और कर्म तथा सभी इंद्रियों का नियंत्रण है| सख्त संयम सिर्फ संभोग से नहीं बल्कि कामुक अभिव्यक्तियों से, हस्तमैथुन से, समलैंगिक कृत्यों से और सभी विकृत यौन व्यवहारों से होना चाहिए|
सभी प्राणीयों में आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की संज्ञा अर्थात् भाव अनादि काल से इतना प्रबल है कि इन्हीं चार भाव के अनुकूल किसी भी विचार को वह तुरंत स्वीकार कर लेता है| अतएव ब्रह्मचर्य के बारे में किये गये अनुसंधान जितने जल्दी से आचरण में नहीं आते उससे ज्यादा जल्दी से सिर्फ कहेजाने वाले सेक्सोलॉजिस्टों के निष्कर्ष तथा फ़्रोइड जैसे मानसशास्त्रियों के निष्कर्ष स्वीकृत हो पाते हैं| हालॉंकि उनके ये अनुसंधान बिल्कुल तथ्यहीन नहीं है तथापि व केवल सिक्के की एक ही बाजू है | ब्रह्मचर्य के लिये फ़्रोइड की अपनी मान्यता के अनुसार वीर्य तो महान शक्ति है| उसी शक्ति का सदुपयोग करना चाहिये| ब्रह्मचर्य का पालन करके मानसिक व बौद्धिक शक्ति बढानी चाहिये| अतः सिक्के की दूसरी बाजू का भी विचार करना चाहिये|
ब्रह्मचर्य बनाए रखने के वैज्ञानिक कारण:
ब्रह्मचर्य का शारीरिक, मानसिक व वाचिक वैसे तीनों प्रकार से पालन न होने पर पुरुष व स्त्री दोनों के शरीर में से सेक्स होर्मोन्स बाहर निकल जाते हैं | ये सेक्स होर्मोन्स ज्यादातर लेसीथीन, फोस्फरस, नाइट्रोजन व आयोडीन जैसे जरूरी तत्त्वों से बने हैं जो जीवन, शरीर और मस्तिष्क के लिए बहुत उपयोगी हैं|
इसके लिये रेमन्ड बर्नार्ड की किताब “Science of Regeneration”देखनी चाहिये| उसमें वे कहते है कि मनुष्य की सभी जातिय वृत्तियों का संपूर्ण नियंत्रण अंतःस्त्रादि ग्रंथियों के द्वारा होता है| अंतःस्त्रावि ग्रंथियों को अंग्रेजी में ऍन्डोक्राइन ग्लेन्ड्स कहते हैं| यही ऍन्डोक्राइन ग्लेन्ड्स जातिय रस उत्पन्न करती है और उसका अन्य ग्रंथियों के ऊपर भी प्रभुत्व रहता है| हमारे खून में स्थित जातिय रसों यानि कि होर्मोन्स की प्रचुरता के आधार पर हमारा यौवन टिका रहता है | जब ये अंतःस्त्रावि ग्रंथियॉं जातिय रस कम उत्पन्न करने लगती हैं तब हमें वृद्धत्व व अशक्ति का अनुभव होने लगता है|
यौन सुख के बारे में सिर्फ कल्पना करने में भी ऊर्जा का उपयोग होता हैं| जिन्होंने अपना ज्यादा वीर्य खो दिया होता है वे आसानी से चिढ़चिढ़े हो जाते हैं| वे जल्दी से उनके मन का संतुलन खो देते हैं| छोटी चीजें उन्हें परेशान कर देती हैं| शारीर और मन स्फूर्ति से काम नहीं कर पाते| शारीरिक और मानसिक सुस्ती, थकान और कमजोरी का अनुभव होता हैं| बुरा स्मृति, समय से पहले बुढ़ापा, नपुंसकता और विभिन्न प्रकार के नेत्र रोग और तंत्रिका रोग इस महत्वपूर्ण तरल पदार्थ के भारी नुकसान के कारण हैं| जो ब्रह्मचर्य के व्रत का पालन नहीं करते वे क्रोध, आलस्य और डर के दास बन जाते हैं| यदि अपने होश नियंत्रण के तहत नहीं होते, आप मूर्ख कार्रवाई करने लगते हैं जो बच्चे भी करने की हिम्मत नहीं कर्नेगे|
आधुनिक विज्ञान युवा कायम रखने के, कायाकल्प आदि के लिए प्रयोग करने में पीछे नहीं हैं, लेकिन ऊर्जा केवल 3-4 साल तक ही रहता है| इसलिए, क्रम में रहने के लिए, युवा ऍन्डोक्राइन ग्रंथियों को सक्रिय रखा जाना चाहिए और रक्त में सेक्स हार्मोन प्रचुर मात्रा में होना चाहिए|
ब्रह्मचर्य के 9 नियम और उनकी वैज्ञानिक विश्लेषण:
तो क्या आज भोग-विलास से भरपूर युग में मन, वचन, काया से पूर्णतः ब्रह्मचर्य का पालन संभव है? उनका उत्तर बहुत से लोग ‘‘ना’’ में देंगे किन्तु मेरी दृष्टि से प्राचीन आचार्य व महर्षियों द्वारा निर्दिष्ट ब्रह्मचर्य की नौ बाड अर्थात् नियम या मर्यादाओं का यथार्थ रुप से पूर्णतया पालन किया जाय तो ब्रह्मचर्य का संपूर्ण पालन सरल व स्वाभाविक हो सकता है| जैन धर्मग्रंथों के अनुसार वे इस प्रकार हैं:-
1. स्त्री (पुरुष) व नपंसक से मुक्त आवास में रहना – प्रत्येक जीव में सूक्ष्मस्तर पर विद्युद्शक्ति होती है| उदाहरण के रुप में समुद्र में इलेक्ट्रिक इल नामक मछली होती है| उसके विद्युद्प्रवाह का हमें अनुभव होता है| जहॉं विधुद्शक्ति होती है वहॉं चंबुकीय शक्ति भी होती है| इस प्रकार हम सब में जैविक विधुद्चुंबकीय शक्ति है| अतः सब को अपना विधुद्चंबुकीय क्षेत्र भी होता है| चुंबकत्व के नियम के अनुसार पास में आये हुए समान ध्रुवों के बीच अपाकर्षण और असमान ध्रुवों के बीच आकर्षण होता है| स्त्री व पुरुष में चुंबकीय ध्रुव परस्पर विरुद्ध होते हैं अतः उन दोनों के बीच आकर्षण होता है| अतः ब्रह्मचर्य के पालन करने वाले पुरुष को स्त्री, नपुंसक व पशु-पक्षी रहित स्थान में रहना चाहिये|
2. अकेले पुरुष द्वारा अकेली स्त्री को स्त्रियों को धर्मकथा भी नहीं कहना और पुरुषों को स्त्री संबंधी व स्त्रियों को पुरुष संबंधी कथा-बातों का त्याग करना – जब अकेला पुरुष अकेली स्त्री से बात करता है तब दोनों परस्पर एक दूसरे के सामने देखते हैं और ऊपर बताए उसी प्रकार स्त्री व पुरुष में चुंबकीय ध्रुव परस्पर विरुद्ध होने से परस्पर सामने देखने से दोनों की आँखों में से निकलती हुयी चुंबकीय रेखाएँ एक हो जाने से चुंबकीय क्षेत्र भी एक हो जाता है| परिणामतः चुंदकीय आकर्षण बढ जाता है और यदि विद्युद्प्रवाह का चक्र पूरा हो जाय तो दोनों की बीच तीव्र आकर्षण पैदा होता है| परिणामतः संयमी पुरुष का पतन होता है|
3. स्त्री द्वारा पुरुष के और पुरुष द्वारा स्त्री के नेत्र, मुख इत्यादि अंगों को स्थिर दृष्टि से नहीं देखना – जैन दर्शन की धारणा के अनुसार, चुंबकीय क्षेत्र मनो वर्गानना (सामग्री के कणों के परमाणु इकाइयों) द्वारा गठित है जो ज्ञानेंद्रिय द्वारा उत्सर्जित, मस्तिष्क के रूप में सामग्री के कणों से बना है| जब एक आदमी एक विशेष वस्तु और व्यक्ति या एक विशेष दिशा में देखता हैं, तो उसका चुंबकीय क्षेत्र उस विशेष वस्तु या व्यक्ति तक ही फैला हुआ होता है| बेशक, गणितीय, किसी भी जीवित या निर्जीव का चुंबकीय क्षेत्र अनंत दूरी तक फैला होता हैं लेकिन यह बहुत दूर की वस्तुओं पर कम प्रभावित होता है| जब एक आदमी एक औरत के साथ कामुक सुख के बारे में सोचता है, उसका दिमाग महिला के मन को आकर्षित करता है और एक दूसरे के मन के विचार आकर्षण पैदा करते हैं| उनके मन एकजुट हो जाते है, जैव विद्युत वर्तमान का सर्किट पूरा हो जाता है, दुराचार अनजाने में और अदृश्य में प्रतिबद्ध होता है और ब्रह्मचर्य का मानसिक उल्लंघन होता हैं|
4. स्त्री के साथ पुरुष को एक आसन ऊपर नहीं बैठना और स्त्री द्वारा उपयोग किये गये आसन पर पुरुष को दो घडी / ४८ मिनिट तथा पुरुष द्वारा उपयोग किये गये आसन पर स्त्री को एक प्रहर-तीन घंटे तक नहीं बैठना चाहिये – कोई भी मनुष्य किसी भी स्थान पर बैठता है उसी समय उसके शरीर के इर्दगिर्ड उसके विचार के आधार पर अच्छा या दूषित एक वातावरण बन जाता है | उसके अलावा जहॉं कहीं बैठे हुये स्त्री या पुरुष के शरीर में से सूक्ष्म परमाणु उत्सर्जित होते रहते हैं | उसी परमाणु का कोई बुरा प्रभाव हमारे चित्त पर न हो इस कारण से ही ब्रह्मचर्य की नौ बाड़ में इसी नियम का समावेश किया गया है|
5. जहॉं केवल एक ही दीवाल आदि के व्यवधान में स्थित स्त्री-पुरुष की काम-क्रीडा के शब्द सुनायी पडते हों ऐसे ‘‘कुडयन्तर’’ का त्याग करना|
6. पूर्व की गृहस्थावास में की गई कामक्रीडा के स्मरण का त्याग करना|
7. प्रणीत आहार अर्थात् अतिस्निग्ध, पौष्टिक, तामसिक, विकारक आहार का त्याग करना – सामान्यतः साधु को दूध, दही, घी, गुड, सक्कर, तेल, पक्वान्न, मिठाई का आहार करने की मनाई की गयी है क्योंकि ये सभी पदार्थ शरीर में विकार पैदा करने में समर्थ हैं| किन्तु जो साधु निरंतर साधना, अभ्यास, अध्ययन, अध्यापन इत्यादि करते हैं या शरीर से अशक्त हों तो इन सब में से कोई पदार्थ गुरु की आज्ञा से ले सकता है| यदि शरीर को आवश्यकता से ज्यादा शक्ति मिले तो भी विकार पैदा होता है| अतः ब्रह्मचर्य के पालन के लिये अतिस्निग्ध, पौष्टिक या तामसिक आहार का त्याग करना चाहिये|
8. रुक्ष अर्थात् लुख्खा, सुक्का आहार भी ज्यादा प्रमाण में नहीं लेना – जैसे अतिस्निग्ध, पौष्टिक, तामसिक, विकारक आहार का त्याग करना चाहिए ठीक उसी तरह रुख्खा सुखा आहार भी ज्यादा प्रमाण में लेने पर भी शरीर में विकार व जडता पैदा करता है| अतएव ऐसा रुक्ष आहार भी मर्यादित प्रमाण में लेना चाहिये|
9. केश, रोम, नख इत्यादि को आकर्षक व कलात्मक ढंग से नहीं काटना| स्नान विलेपन का त्याग करना| शरीर को सुशोभित नहीं करना – यह सारी चीजों का विलेपन करना ब्रह्मचारी के लिये निषिद्ध है क्योंकि ब्रह्मचारीओं का व्यक्तित्व ही स्वभावतः तेजस्वी – ओजस्वी होता है| अतः उनकों स्नान-विलेपन करने की आवश्यकता नहीं है| यदि वे स्नान-विलेपन इत्यादि करें तो ज्यादा देदीप्यमान बनने से अन्य व्यक्ति के लिये आकर्षण का केन्द्र बनते हैं| परिणामतः क्वचित् अशुभ विचार द्वारा विजातिय व्यक्ति का मन का चुंबकीय क्षेत्र मलीन होने पर उसके संपर्क में आने वाले साधु का मन भी मलीन होने में देर नहीं लगती| अतएव साधु को शरीर अलंकृत नहीं करना चाहिये या स्नान-विलेपन नहीं करना चाहिये|
स्त्री-पुरुष के परस्पर विरुद्ध ध्रुवों का संयोजन पॉंच प्रकार से हो सकता है|
1. साक्षात् मैथुन से
2. सिर्फ स्पर्श से
3. रुप अर्थात् चक्षु से
4. शब्द अर्थात् वाणी या वचन से और
5. मन से
अतएव ब्रह्मचर्य का संपूर्ण नैष्ठिक पालन करने वाली व्यक्ति को शास्त्रकारों ने विजातिय व्यक्ति का तनिक भी स्पर्श करने की या उसके सामने स्थिर दृष्टि से देखने की, उसके साथ बहुत लंबे समय तक बातचीत की या मन से उसका विचार करने की मनाई की है|
इन नव नियमों का बडी कडाई से जो पालन करते है उनके लिये शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से ब्रह्मचर्य का पालन करना आज के युग में भी संभव है और उससे विभिन्न प्रकार की लब्धि व सिद्धि प्राप्त होती हैं|
विभिन्न धार्मिक और लिखित राय:
1. स्वामीनारायण धर्म के श्री निस्कुलानंदजी ने नौ ब्रह्मचर्य के नियमों पर एक कविता बनाई है| यह ब्रह्मचर्य के महत्व को दर्शाता है|
2. प्राचीन जैन शास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र के चौथे अध्याय में दी गई दिव्य प्राणी की यौन सुख का वर्णन इस कथन का समर्थन करता है|
3. परमेश्वर जो सौधर्म- पहले स्वर्ग और ईशान-दूसरे स्वर्ग में रहते हैं, वे अपने यौन आग्रह को वास्तविक संभोग से संतुष्ट करते हैं| देवताओं के और अधिक प्रकारों में से, कुछ देवताओं स्पर्श के माध्यम से यौन सुख का आनंद लेते हैं, कुछ केवल आँखों के माध्यम से, कुछ शब्दों के माध्यम से और कुछ केवल उन्हें मस्तिष्क के माध्यम से आनंद लेते हैं|
- श्री उमास्वती(तत्त्वार्थ सूत्र)
4. एक रात्रि के भ्रमचर्यपालन से जो गति प्राप्त होती हैं उसकी प्राप्ति हजार यज्ञ करने से भी सम्भव नही हैं|
- धर्मोपनिषद
5. जो मनुष्य ग्रहण, संक्रांति, अमावास्य एवं चतुर्दशी के अवसर पर तैलसे अभ्यंग (शारीरमर्दन) एवं स्त्रीसेवन करता हैं वह चांडालयोनी में जन्म लेता हैं|
- धर्मोपनिषद
6. अतः धर्मी व्यक्ति के लिए अन्य व्यक्ति की पत्नी के सेवन का त्याग करना आवश्यक हैं| परस्त्रीगमन से 21 बार नरकगति प्राप्त होती हैं|
- धर्मोपनिषद
7. द्यानतरायजी कहते हैं कि दश्धर्मरूपी पेङियों (सीढियों) पर चढ़कर शिवामहल में पहुँचते हैं| दश्धर्मरूपी सीढियों में दशवी सीढी हैं भ्रमचर्य, उसके बाद तो मोक्ष ही हैं|
- धर्म के दश लक्षण
ब्रह्मचर्य के लाभ:-
1. दाद, सूजाक, क्लैमाइडिया, जननांग मौसा, आदि जैसे अन्य एसटीडीयों का खतरा कम हो जाता हैं|
2. एचआईवी और हेपेटाइटिस सी, जो मौत का कारण हो सकते है, उससे बचे|
3. एचपीवी जो गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर को नेतृत्व कर सकते हैं, और गले के कैंसर जो मौखिक सेक्स से अनुबंध होते हैं, उससे बचें|
4. शुक्राणु अगर जारी न किये जाए तो शारीर उसे फिर से अवशोषित करती हैं|इन शुक्राणुओं में बहुत सारे पोषक तत्वों शामिल होते हैं जो तंत्रिका कोशिकाओं में पाए जाते हैं| अगर हर 2 दिन तक (जो एक शुक्राणु का जीवन काल है) शारीर में फिर से अवशोषित कर दिया जाए तो शारीर को अधिक पशक तत्त्व मिलता हैं जो शारीर को अधिक स्वस्थ और बेहतर बनाता हैं| शारीर को पोषक तत्त्व केवल खाना खाने से मिल सकता हैं पर यह भोजन पचाने के लिए शारीर को उर्जा का बहुत उपयोग करना पड़ता हैं| शुक्राणु को फिर से अवशोषित करने और पवित्रता कायम रखने का सबसे कारगर तरीका हैं अच्छी स्वस्थ बनाने के लिए|
5. एक अवांछित गर्भावस्था के कारण से उच्च विद्यालय या कॉलेज छोड़ने के जोखिम को कम करता हैं, गर्भवती होने से पहले एक शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करना|
6. आज एड्स दुनिया भर में फैल गया है| शादी पुरुषों के लिए, केवल एक ही निवारक हैं कि वह यौन संतुष्टि के लिए अपने जीवन साथी तक ही सीमित रहने का व्रत ले; यही ब्रह्मचर्य का पालन है|
7. ब्रह्मचर्य के माध्यम से महिलाएँ सेक्स हार्मोन की रक्षा कर सकते हैं जिससे वे हमेशा के लिए युवा में रहते हैं|
8. अवांछित गर्भावस्था के जोखिम को कम करे|
महान पुरुष जिन्हीने भ्रमचर्य का पालन किया:
सिगमंड फ्रायड, अल्बर्ट आइंस्टीन, लियोनार्डो दा विंसी, माइकल एंजेलो, आइजैक न्यूटन, मोरारजी देसाई आदि अपनी युवाओं से ब्रह्मचर्य मनाया, हालांकि वे गृहस्वामियों थे|
संदर्भ:
1. जैन धर्म विज्ञान की कसौटी पर? या विज्ञान जैन धर्म की कसौटी पर?
2. धर्म के दस लक्षण
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bhattathiri
दिसम्बर 21, 2012 #
An ever-vigilant Brahmachari should always watch his thoughts very carefully. He should never allow even a single bad thought to enter the gate of the mental factory. If his mind is ever fixed on his Dhyeya or Lakshya or object of meditation, there is no room for the entry of an evil thought. Even if an evil thought has entered the trapdoor of the mind, he should not allow the mind to assume a mental state with this idea. If he falls a victim, the thought-current will be transmitted to the physical body. Burning of the Indriyas and the physical nervous system will follow. This is a serious condition.
REPLY
kamles
जून 7, 2013 #
brahmcharya ko kayam rakhne ke liye bahut achha jankari diya hai,,,, so thanks
REPLY
YOGESH
जून 13, 2013 #
Everything was known but not so much in detail. All the information is interesting.
REPLY
RPL Baranwal
जुलाई 28, 2013 #
What about married people? should they also maintain celibacy?
REPLY
shikha jain
अगस्त 27, 2013 #
jain dharam vigyan ki kasoti per ? ya vigyan jain dharam ki kasoti per please give me more detail or description in this sentence.
REPLY
pushp
जनवरी 12, 2014 #
Good
REPLY
Kieron
जनवरी 13, 2014 #
If I live with a male dog is that ok also with parents, am a male so are poles should be the same I can do all the rules except the beast one is that ok thanks
REPLY
Kieron
जनवरी 14, 2014 #
Is it ok to own a dog as a pet thanks
REPLY
Sandeep
मार्च 2, 2014 #
Yes, even married people can get established in celibacy…nothing to worry …if not completely..they can Mark a border line that they will get involved only with their spouse and that too with limitations ..
REPLY
Bob
अगस्त 27, 2014 #
What do you mean by beast? Thank you
REPLY
Col Dev Raj (Retd)
अगस्त 22, 2016 #
A wonderful article presented. A very deep knowledge given about true celibacy. Never came across such revealing information. Those who are after God realization and salvation must read and follow these rules. Thank you very much.
REPLY
Shikha shah
मार्च 1, 2017 #
Very informative and follow easily
REPLY
ajay kumar
मई 4, 2017 #
Good tips for celebacy
REPLY
nagmani
मई 20, 2017 #
not for hell not for heaven.
practicing celibacy will no doubt result in non ending mental peace. material world will not provide for the same.
REPLY
ManojKumar
जुलाई 1, 2017 #
Aap ne bahod achhi jankari di hai esko hum apane jivan mai utarenge…..
REPLY
Ravi
अगस्त 26, 2017 #
It’s a precios tips for a healthy body
REPLY
Sarva-Pramukh
अक्टूबर 29, 2017 #
In today’s hyper-sexualized culture, even the talk of celibacy is seen as a violation of social norms. Not enough resources are available online and in real life for single men to safely practice celibacy (Brahmacharya) to improve their lives. I was a proud celibate till 22 years of age. The abstinence state of mind gave me tremendous powers during college – the gift of sharp focus, clarity of purpose, unlimited energy were only some of the benefits. While my compatriots struggled with thoughts of masturbation, I steered clear of any distractions. But, I did enjoy close relationships with a few decent girls, but was not overpowered by lust. Young women can break your spell of celibacy if you’re not careful. Like the proverbial Menakas, their only purpose is to disturb your Tapasya. Maintain enough distance from unrelated young women. Women, by nature, are filled with lust. They can’t themselves. A strong man resists those allurements and does something productive with his time and energy. Just treat women like the vile and disgusting creatures they are, and you should be fine. Even if you’re married, you shouldn’t give her all your time and daily energy. Sex should be for procreation only. A duty-bound, obedient wife does not force her husband to provide her sex, not does she make him feel guilty about not giving her time.
Some of India’s most successful politicians and public figures happen to be lifelong celibates, including Atal Bihari Vajpayee, APJ Abdul Kalam,Narendra Midi, Rahul Gandhi and so forth. They are resolute men who have achieved what they wanted by avoiding unnecessary contact with lecherous women. Even Bollywood actors such as Salman Khan, Akshaye Khanna, Sajid Khan, lifelong bachelors, had much better careers because of the power of celibacy. This, in a profession where you have so many opportunities to consummate your lust with attractive women.
Even lust-filled Westerners have their fair share of celibates. Bill Maher, a famous late night comic in Hollywood, is a lifelong bachelor. George Clooney, recognizably, one of the world’s most good-looking men, stayed a bachelor till his early 50s, before eventually becoming a husband and father.
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