Tuesday, 28 November 2017

अत्रि ऋषि की पत्नी और ब्रह्मवादिनी

हिन्दी / Hindi खबर-संसारगुजरात चुनाव 2017ज्योतिषबॉलीवुडधर्म-संसारक्रिकेटलाइफ स्‍टाइलवीडियोसामयिकफोटो गैलरीअन्यProfessional Courses अत्रि ऋषि की पत्नी सती अनसूया सोमवार, 4 जून 2012 (19:18 IST) FILE अत्रि ऋषि की पत्नी और ब्रह्मवादिनी (संन्यासीन) सती अनसूया के पति भक्ति की प्रसिद्धी को सब जानते हैं। सती अनसूया का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। रामायण, महाभारत और पुराणों में उनका उल्लेख मिलता है। रोचक कथा : नारदजी जब लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के पास पहुंचे और उन्हें अत्रि महामुनि की पत्नी अनसूया के असाधारण पातिव्रत्य के बारे में बताया तब इस पर तीनों देवियों के मन में अनसूया के प्रति ईर्ष्या का जन्म होने लगा। तीनों देवियों ने सती अनसूया के पातिव्रत्य को खंडित के लिए अपने पतियों को उसके पास भेजा। विशेष आग्रह पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनसूया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति की परख करने की सोची। जब अत्रि ऋषि आश्रम से कही बाहर गए थे तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश यतियों का भेष धारण करके अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचे और भिक्षा मांगने लगे। अतिथि-सत्कार की परंपरा के चलते सती अनसूया ने त्रिमूर्तियों का उचित रूप से स्वागत करके उन्हें खाने के लिए निमंत्रित किया। लेकिन यतियों के भेष में त्रिमूर्तियों ने एक स्वर में कहा, ‘हे साध्वी, हमारा एक नियम है कि जब तुम नग्न होकर भोजन परोसोगी, तभी हम भोजन करेंगे।' अनसूया ने 'जैसी आपकी इच्छा' यह कहते हुए यतियों पर जल छिड़कर तीनों को तीन प्यारे शिशुओं के रूप में बदल दिया। तब अनसूया के हृदय में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। फिर शिशुओं को दूध-भात खिलाया और तीनों को गोद में सुलाया तो तीनों गहरी नींद में सो गए। अनसूया माता ने तीनों को झूले में सुलाकर कहा- ‘तीनों लोकों पर शासन करने वाले त्रिमूर्ति मेरे शिशु बन गए, मेरे भाग्य को क्या कहा जाए। फिर वह मधुर कंठ से लोरी गाने लगी। उसी समय कहीं से एक सफेद बैल आश्रम में पहुंचा, एक विशाल गरुड़ पंख फड़फड़ाते हुए आश्रम पर उड़ने लगा और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए हुए आया और आकर द्वार पर उतर गया। यह नजारा देखकर नारद, लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती आ पहुंचे। नारद ने विनयपूर्वक अनसूया से कहा, ‘माते, अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर ये तीनों देवियां यहां पर आ गई हैं। ये अपने पतियों को ढूंढ रही थी। इनके पतियों को कृपया इन्हें सौंप दीजिए।' अनसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करके कहा, ‘माताओं, झूलों में सोने वाले शिशु अगर आपके पति हैं तो इनको आप ले जा सकती हैं।' लेकिन जब तीनों देवियों ने तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान लगने वाले तीनों शिशु गहरी निद्रा में सो रहे थे। इस पर लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती भ्रमित होने लगीं। नारद ने उनकी स्थिति जानकर उनसे पूछा- ‘आप क्या अपने पति को पहचान नहीं सकतीं? 'कृपया आप हास्य का पात्र न बनें और जल्दी से अपने-अपने पति को गोद में उठा लीजिए।' देवियों ने जल्दी में एक-एक शिशु को उठा लिया। वे शिशु एक साथ त्रिमूर्तियों के रूप में खड़े हो गए। तब उन्हें मालूम हुआ कि सरस्वती ने शिवजी को, लक्ष्मी ने ब्रह्मा को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है। तीनों देवियां शर्मिंदा होकर दूर जा खड़ी हो गईं। उसी समय अत्रि महर्षि अपने घर लौट आए। अपने घर त्रिमूर्तियों को पाकर हाथ जोड़ने लगे। तभी ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ने एक होकर दत्तात्रेय रूप धारण किया। उक्त कथा को दत्तात्रेय के जन्म से जोड़कर भी देखा जाता है। -संकलन अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' विज्ञापन विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? भारत मैट्रीमोनी में निःशुल्क रजिस्टर करें! मुख पृष्ठ | हमारे बारे में | विज्ञापन दें | अस्वीकरण | हमसे संपर्क करें Copyright 2016, Webdunia.com

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