Sunday, 12 November 2017

विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती

   GP Parijans & Matrimonials   Apane Ang Awayavon se  || Satsankalp  ||  Chat    Login      Home | About | Web Swadhyay | Forum | Parijans | Matrimonials  Welcome  Register Matrimonial / Parijan      Search Matrimonial / Parijan      Search Blogs     Search Links     Search Poetries     Search Articles      Image Gallery Latest Posted Poetries Latest Posted Articles Short Stories Articles by Parijans 6 to 55 of 220 First     Next    Last वैलेंटाइन डे की कहानी (0 comments)  February 12 2015 8:39am IST गायत्री शक्तिपीठ में तर्पण, पिण्डदान, श्राद्ध संस्कार में प्रतिदिन सैकड़ो महिलाए-पुरूष ले रहे भाग (1 comments)  September 13 2014 5:57pm IST dinesh sahu gayatri pariwar multai (0 comments)  September 12 2014 4:28pm IST ब्रह्म सत्य जगन्माया-अलबर्ट आइन्स्टीन की दृष्टि में (0 comments)  June 22 2014 11:13pm IST क्रोध क्या हैं ?  (0 comments)  June 07 2014 4:46pm IST મહાશિવરાત્રી :- આ વ્રત, ભગવાન શિવને સમર્પિત છે !! (0 comments)  February 27 2014 1:03pm IST પ્રેમ....!! (0 comments)  February 08 2014 8:44pm IST માતૃત્વ-ઇશ્વ્રરના કાર્યમાં ભાગીદારી !! (0 comments)  February 06 2014 6:38pm IST वसंत - जीवन मधुमय होगा, रूठी हुई प्रकृति हँस पड़ेगी व पूर्ण होगी  (0 comments)  February 04 2014 8:49am IST સ્ત્રી-પ્રેમ અને લગ્ન !! (0 comments)  February 03 2014 3:16pm IST માતૃપ્રેમ !! (0 comments)  February 03 2014 3:01pm IST સુંદરતા અને ખૂબસૂરતી,સ્ત્રી અને પુરુષની !! (0 comments)  January 31 2014 4:30pm IST स्वाध्याय सत्संग शिविर मथुरा- एक काव्यात्मक अनुभूति  (0 comments)  January 08 2014 8:40pm IST हिंदू विवाह संस्कार !! (0 comments)  January 02 2014 1:48pm IST धर्म क्या और अधर्म क्या है ?  (0 comments)  January 02 2014 1:30pm IST तांडव नृत्य व क्वांटम सिद्धांत !! (0 comments)  January 02 2014 1:12pm IST महिलाओ के हित में उठते हमारे कदम !! (0 comments)  January 02 2014 1:08pm IST ऐसे आते हैं भगवान आपसे मिलने बस पहचानने की देर है !! (0 comments)  January 02 2014 1:06pm IST संकल्प शक्ति WILL POWER !! (0 comments)  January 02 2014 1:06pm IST जय श्रीराम –ॐ जय श्रीराम !! (0 comments)  January 02 2014 1:05pm IST चरण स्‍पर्श !! (0 comments)  January 02 2014 1:03pm IST शिवत्व के बिना सुंदरता मूल्यहीन !! (0 comments)  January 02 2014 1:02pm IST संस्कार धरोहर अपनो की !! (0 comments)  January 02 2014 1:02pm IST कैलाश पर्वत !! (0 comments)  January 02 2014 1:01pm IST तिलक का मह्त्व !! (0 comments)  January 02 2014 12:59pm IST जय श्रीराम – ॐ जय श्रीराम !! (0 comments)  January 02 2014 12:57pm IST श्रीकृष्ण भगवान ने गीताजी में कई अभय वचन दिए हैं । ये सभी वचन, किसी राजकीय पक्ष द्वारा दिए गए खोखले वचन नहीं है, लेकिन विश्वनियंता की ओर से दिए गए नक्कर वचन है !! (0 comments)  January 02 2014 12:55pm IST GP Latest Audios (0 comments)  October 20 2014 9:33pm IST जग दीवाना कृष्ण का और कृष्ण दीवाने राधा के !!  (0 comments)  August 26 2013 10:29pm IST राधा-कृष्ण विवाह !! (0 comments)  August 26 2013 10:28pm IST श्री कृष्ण नाम का अर्थ !! (0 comments)  August 26 2013 10:27pm IST श्री श्री राधा नाम का अर्थ !! (0 comments)  August 26 2013 10:26pm IST राधा श्री राधा रटूं, निसि- निसि आठों याम। जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम !! (0 comments)  August 26 2013 10:26pm IST अद्भूत है ‘बैद्यनाथ’, जहां त्रिशूल नहीं ‘पंचशूल’ है !! (0 comments)  August 26 2013 10:24pm IST भगवान भूतनाथ नाम का अर्थ !! (0 comments)  August 26 2013 10:23pm IST श्री बाबा धाम यात्रा !! (0 comments)  August 26 2013 10:22pm IST इस मंदिर में लगती है ‘भोलेनाथ’ की अदालत !! (0 comments)  August 26 2013 10:21pm IST सदाचरण से आत्म-विश्वास की प्राप्ति (Self-Confidence Achieved Through Conduct) (0 comments)  August 08 2013 10:43am IST आत्म-संतोष की उपलब्धि (Achievement of Self-satisfaction) (0 comments)  August 08 2013 10:42am IST पर दोष दर्शन की कुत्सा त्यागिए (0 comments)  August 01 2013 11:20am IST कठिनाइयों का भी स्वागत करें (0 comments)  August 01 2013 11:18am IST चरित्र और धन (Character and Wealth) (0 comments)  July 23 2013 10:11am IST चरित्र एक सर्वोपरि संपदा (Character: A Paramount Asset) (0 comments)  July 19 2013 10:04am IST अभिभावकों का उत्तरदायित्व (Parents’ Responsibilities) (0 comments)  July 19 2013 10:04am IST चरित्र की एक विशेष देन : अभय (Unique Reward of Moral Character: Fearlessness) (0 comments)  July 19 2013 10:03am IST यंत्रीकरण बुरा नहीं पर आदर्शों और नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता मिले (Automation isn’t Bad but Morals and Ideals Must Prevail) (0 comments)  July 19 2013 10:03am IST सच्चे अर्थों में शूरवीर (A Truly Brave Person) (0 comments)  July 19 2013 10:02am IST प्रकृति की व्यवस्था (Nature’s Provision for Human Beings) (0 comments)  July 19 2013 10:02am IST शीघ्रता नहीं (Haste Makes Waste) (0 comments)  July 19 2013 10:01am IST बच्चों को आज्ञा देते समय परिस्थिति का ध्यान रखें (Watch the Situation While Instructing Children) (0 comments)  July 19 2013 10:01am IST    सुभाषितानि (Subhashitani) in Sanskrit, Hindi, English Posted By ()   ############################################ Source:http://sites.google.com/site/vedicscripturesinc ############################################ महाजनस्य संसर्गः, कस्य नोन्नतिकारकः। पद्मपत्रस्थितं तोयम्, धत्ते मुक्ताफलश्रियम् ॥ महापुरुषों का सामीप्य किसके लिए लाभदायक नहीं होता, कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानी की बूँद मोती जैसी शोभा प्राप्त कर लेती है। For whom is the company of great people not beneficial? Even a water droplet when on lotus petal, shines like a pearl. -------------------------------------------------------------------- पातितोऽपि कराघातैरुत्पतत्येव कन्दुकः। प्रायेण साधुवृत्तानामस्थायिन्यो विपत्तयः ॥ हाथ से पटकी हुई गेंद भी भूमि पर गिरने के बाद ऊपर की ओर उठती है, सज्जनों का बुरा समय अधिकतर थोड़े समय के लिए ही होता है। A ball, though forced to fall on ground with a blow from hand, rebounds upwards. Generally, the misfortunes of the virtuous are momentary. -------------------------------------------------------------------- न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥ जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है। It cannot be stolen by thieves, Nor can it be taken away by kings. It cannot be divided among brothers, It does not cause a load on your shoulders. If spent.. It indeed always keeps growing. The wealth of knowledge Is the most superior wealth of all! -------------------------------------------------------------------- सा विद्या या विमुक्तये। ज्ञान वह है जो मुक्त कर दे। That is Knowledge, which liberates!! -------------------------------------------------------------------- उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथै। न हि सुप्तस्य सिंघस्य, प्रविशन्ति मृगाः॥ प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं। Things are achieved by doing and not by desiring alone as deers by themselves don't go into a lion's mouth. -------------------------------------------------------------------- गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा। अथ वा विद्यया विद्या चतुर्थो न उपलभ्यते॥ विद्या गुरु की सेवा से, पर्याप्त धन देने से अथवा विद्या के आदान-प्रदान से प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त विद्या प्राप्त करने का चौथा तरीका नहीं है॥   Knowledge is acquired by serving the master or by giving enough money or in exchange of knowledge. A fourth way is not seen. -------------------------------------------------------------------- सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियं। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥  सत्य बोलें, प्रिय बोलें पर अप्रिय सत्य न बोलें और प्रिय असत्य न बोलें, ऐसी सनातन रीति है ॥ Speak truth, speak nice things sweetly. Don't  speak bitter truth. Don't speak incorrect things even nicely. This is eternal practice. -------------------------------------------------------------------- विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन। स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥ विद्वता और राज्य अतुलनीय हैं, राजा को तो अपने राज्य में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है॥ Intelligence and kingdom can never be compared. A king is respected in his own land whereas a wise man is respected everywhere. -------------------------------------------------------------------- मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥ मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर॥   There are five signs of fools - Pride, abusive language, anger, stubborn arguments and disrespect for other people's opinion. -------------------------------------------------------------------- अष्टौ गुणा पुरुषं दीपयंति प्रज्ञा सुशीलत्वदमौ श्रुतं च। पराक्रमश्चबहुभाषिता  च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥ आठ गुण पुरुष को सुशोभित करते हैं - बुद्धि, सुन्दर चरित्र, आत्म-नियंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, साहस, मितभाषिता, यथाशक्ति दान और कृतज्ञता॥  Eight qualities adorn a man -intellect, good character, self-control, study of scriptures, valor, less talking, charity as per capability and gratitude. -------------------------------------------------------------------- क्षमा बलमशक्तानाम् शक्तानाम् भूषणम् क्षमा। क्षमा वशीकृते लोके क्षमयाः किम् न सिद्ध्यति॥ क्षमा निर्बलों का बल है, क्षमा बलवानों का आभूषण है, क्षमा ने इस विश्व को वश में किया हुआ है, क्षमा से कौन सा कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है॥ Forgiveness is the power of powerless. Forgiveness adorns the powerful. Forgiveness has controlled this entire world. What cannot be achieved by forgiveness! -------------------------------------------------------------------- न ही कश्चित् विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति। अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान्॥    कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है ॥ No one knows what is going to happen tomorrow. So doing all of tomorrow's task today is a signature of wise. -------------------------------------------------------------------- आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते। नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥ आयु का एक क्षण भी सारे रत्नों को देने से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, अतः इसको व्यर्थ में नष्ट कर देना महान असावधानी है॥ Even a single second in life cannot be obtained back by all precious jewels. Hence spending it wastefully is a great mistake. -------------------------------------------------------------------- चिता चिंता समाप्रोक्ता बिंदुमात्रं विशेषता। सजीवं दहते चिंता निर्जीवं दहते चिता॥ चिता और चिंता समान कही गयी हैं पर उसमें भी चिंता में एक बिंदु की विशेषता है; चिता तो मरे हुए को ही जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को॥ "Chita" and "Chinta" are said to be same still there is a difference of a dot. Pyre(chita) burns the dead while Worry(chinta) burns the alive. --------------------------------------------------------------------  क्षणशः कणशश्चैव विद्यामर्थं च साधयेत् । क्षणत्यागे कुतो विद्या कणत्यागे कुतो धनम्॥    क्षण-क्षण विद्या के लिए और कण-कण धन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। समय नष्ट करने पर विद्या और साधनों के नष्ट करने पर धन कैसे प्राप्त हो सकता है॥   Knowledge should be gained through minute by minute efforts. Money should be earned utilizing each and every resource. If you waste time, how can you get knowledge. If you waste resources, how can you accumulate the wealth. -------------------------------------------------------------------- अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥   हे लक्ष्मण! सोने की लंका भी मुझे अच्छी नहीं लगती है। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर हैं॥  O Lakshman, even though Lanka is a golden land, it does not appeal to me. One's mother and motherland are greater than heaven itself. -------------------------------------------------------------------- नारिकेलसमाकारा दृश्यन्तेऽपि हि सज्जनाः। अन्ये बदरिकाकारा बहिरेव मनोहराः॥ सज्जन व्यक्ति नारियल के समान होते हैं, अन्य तो बदरी फल के समान केवल बाहर से ही अच्छे लगते हैं ॥ The nobles are like coconuts, tough outside but soft inside. Others are like jujube fruit, beautiful only outside. नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने। -------------------------------------------------------------------- विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥ कोई और सिंह का वन के राजा जैसे अभिषेक या संस्कार नहीं करता है, अपने पराक्रम के बल पर वह स्वयं पशुओं का राजा बन जाता है ॥ Nobody declares a lion as the king of forest by doing rituals. By sheer might of his own, a lion achieves the status of lord of animal kingdom. -------------------------------------------------------------------- गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् । वर्तमानेन  कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥ बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं ॥ One should not mourn over the past and should not remain worried about the future. The wise operate in present. -------------------------------------------------------------------- यः पठति लिखति पश्यति परिपृच्छति पंडितान् उपाश्रयति। तस्य दिवाकरकिरणैः नलिनी दलं इव विस्तारिता बुद्धिः॥ जो पढ़ता है, लिखता है, देखता है, प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है, उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ॥   One who reads, writes, sees, inquires, lives in the company of learned, his intellect expands as the lotus petals expands due to the rays of sun. -------------------------------------------------------------------- उदये सविता रक्तो रक्त:श्चास्तमये तथा। सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता॥ उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल होता है, सत्य है महापुरुष सुख और दुःख में समान रहते हैं॥   The sun looks red while rising and setting. Great men too remain alike in both the good and bad times. -------------------------------------------------------------------- विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:। परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥ विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील सर्वत्र ही धन है॥   Knowledge is wealth in a foreign land. Intelligence is wealth in tough times. Righteousness is wealth in other world. Verily, Good Character is wealth everywhere and at all the times! -------------------------------------------------------------------- दर्शने स्पर्शणे वापि श्रवणे भाषणेऽपि वा। यत्र द्रवत्यन्तरङ्गं स स्नेह इति कथ्यते॥ यदि किसी को देखने से या स्पर्श करने से, सुनने से या बात करने से हृदय द्रवित हो तो इसे स्नेह कहा जाता है॥ If seeing or touching somebody; hearing or speaking with somebody, touches your heart, then it is called affection. -------------------------------------------------------------------- प्रदोषे दीपकश्चंद्र: प्रभाते दीपको रवि:। त्रैलोक्ये दीपको धर्म: सुपुत्र: कुलदीपक:॥ शाम को चन्द्रमा प्रकाशित करता है, दिन को सूर्य प्रकाशित करता है, तीनों लोकों को धर्म प्रकाशित करता है और सुपुत्र पूरे कुल को प्रकाशित करता है॥ Moon illumines the evening. Sun illumines the morning. Dharma (Righteousness) illumines all the three worlds and a capable son illumines all ancestors.  -------------------------------------------------------------------- नास्ति विद्या समं चक्षु नास्ति सत्य समं तप:। नास्ति राग समं दुखं नास्ति त्याग समं सुखं॥ विद्या के समान आँख नहीं है, सत्य के समान तपस्या नहीं है, आसक्ति के समान दुःख नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है॥ Knowledge is the greatest eye. Truth is the highest penance. Attachment is the biggest pain. Renunciation is the highest happiness. -------------------------------------------------------------------- उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥ उत्साह श्रेष्ठ पुरुषों का बल है, उत्साह से बढ़कर और कोई बल नहीं है। उत्साहित व्यक्ति के लिए इस लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं है॥ Enthusiasm is the power of noble men. Nothing is as powerful as enthusiasm. Nothing is difficult in this world for an enthusiastic person. -------------------------------------------------------------------- व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्॥ व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं॥ Exercise results in good health, long life, strength and happiness. Good health is the greatest blessing.  Health is means of everything. -------------------------------------------------------------------- पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं। कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनं॥ पुस्तक में लिखी हुई विद्या, दूसरे के हाथ में गया हुआ धन, जरुरत पड़ने पर  काम नहीं आते हैं। The knowledge which is residing in the book and the money which is in possession of someone else are of no use as during the time of need they don't serve their purpose. -------------------------------------------------------------------- अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत। शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम॥ अधिक इच्छाएं नहीं करनी चाहिए पर इच्छाओं का सर्वथा त्याग भी नहीं करना चाहिए। अपने कमाये हुए धन का धीरे-धीरे उपभोग करना चाहिये॥ Extra desires should be avoided but desires should not be given up totally. One should use self earned money gently. -------------------------------------------------------------------- क्रोधो वैवस्वतो राजा तॄष्णा वैतरणी नदी। विद्या कामदुघा धेनु: सन्तोषो नन्दनं वनम्॥ क्रोध यमराज के समान है और तृष्णा नरक की वैतरणी नदी के समान। विद्या सभी इच्छाओं को पूरी करने वाली कामधेनु है और संतोष स्वर्ग का नंदन वन है॥ Anger is like King of Death. Greed is like turbulent river of hell. Knowledge is all fulfilling cow and contentment is the heaven's paradise. -------------------------------------------------------------------- लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च। लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति॥ लोभ पाप और सभी संकटों का मूल कारण है, लोभ शत्रुता में वृद्धि करता है, अधिक लोभ करने वाला विनाश को प्राप्त होता है॥ Greed is the root cause of all sins and troubles. Greed gives rise to enmity and excess greed leads to disaster. -------------------------------------------------------------------- धॄति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥ धर्म के दस लक्षण हैं - धैर्य, क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना॥    There are ten characteristics of 'Dharma' - patience, forgiveness, self-control, non- stealing, purity, control of senses, intelligence, knowledge, truth, non-anger. -------------------------------------------------------------------- अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥ विनम्र और नित्य अनुभवियों की सेवा करने वाले में चार गुणों का विकास होता है - आयु, विद्या, यश और बल ॥ A person who is polite and serves experienced people regularly, gains four qualities - age, knowledge, fame and power.  -------------------------------------------------------------------- विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गॄहेषु च। व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मॄतस्य च॥ प्रवास (घर से दूर निवास) में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोग में औषधि मित्र होती है और मृतक का मित्र धर्म होता है ॥ Knowledge is friend in the journey, wife is the friend at home, drug is friend in illness and Dharma (righteousness) is the friend after death. -------------------------------------------------------------------- ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय , मॄत्योर्मा अमॄतं गमय। हे प्रभु! असत्य से सत्य, अन्धकार से प्रकाश और मृत्यु से अमरता की ओर मेरी गति हो । O Lord! Lead me from the untruth to truth,  darkness to light and death to immortality. -------------------------------------------------------------------- यथा हि एकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्। एवं पुरूषकारेण विना दैवं न सिध्यति॥ जिस प्रकार एक पहिये वाले रथ की गति संभव नहीं है, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना केवल भाग्य से कार्य सिद्ध नहीं होते हैं।  Just like a chariot cannot run with only a single wheel, similarly luck alone cannot complete a task without efforts. -------------------------------------------------------------------- स हि भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला। मनसि च परितुष्टे कोर्थवान् को दरिद्रा:॥ जिसकी कामनाएँ विशाल हैं, वह ही दरिद्र है। मन से संतुष्ट रहने वाले के लिए कौन धनी है और कौन निर्धन॥ The person with vast desires is definitely poor. For the one with satisfied mind, there is no distinction between rich and poor. -------------------------------------------------------------------- यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्। तथा पूर्वकॄतं कर्म कर्तारमनुगच्छत॥ जिस प्रकार एक बछड़ा हजार गायों के बीच में अपनी माँ को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व में किये गए कर्म कर्ता का अनुसरण करते हैं॥ A calf recognizes its mother among thousands of cows; similarly, previous deeds go with the doer. -------------------------------------------------------------------- दूरस्थोऽपि न दूरस्थो, यो यस्य मनसि स्थित:। यो यस्य हॄदये नास्ति, समीपस्थोऽपि दूरत:॥ जो जिसके मन में बसता है वह उससे दूर होकर भी दूर नहीं होता और जिससे मन से सम्बन्ध नहीं होता वह पास होकर भी दूर ही होता है॥ If someone resides in your heart, he / she is not far even if physically far. If you don't like someone he / she is distant even if spatially close. -------------------------------------------------------------------- कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा॥ न कोई किसी का मित्र है और न शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं॥ Neither anybody is a friend of others nor enemy. Need (or situation) only makes them friend or enemy. -------------------------------------------------------------------- अर्थानाम् अर्जने दु:खम् अर्जितानां च रक्षणे। आये दु:खं व्यये दु:खं धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥ धन के कमाने में दुःख है, कमाने के बाद धन के संरक्षण में दुःख है, आय में दुःख है, व्यय में दुःख है, कष्ट के आश्रय धन को धिक्कार है॥ Earning money is painful, after earning its protection is painful. Its income is painful, its expenditure is painful. So money is to be condemned which is root cause of problems. -------------------------------------------------------------------- कस्यैकान्तं सुखम् उपनतं, दु:खम् एकान्ततो वा। नीचैर् गच्छति उपरि च, दशा चक्रनेमिक्रमेण॥ किसने केवल सुख ही देखा है और किसने केवल दुःख ही देखा है, जीवन की दशा एक चलते पहिये के घेरे की तरह है जो क्रम से ऊपर और नीचे जाता रहता है॥ Who has only experienced constant happiness or constant sorrows? Situations in life are similar to a point on the moving wheel which goes up and down regularly. -------------------------------------------------------------------- अल्पानामपि वस्तूनाम्, संहतिः कार्यसाधिका। तॄणैर्गुणत्वमापन्नैः, बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥ छोटी वस्तुओं का मेल भी कार्य पूरा करने वाला होता है, तृण के गुण से शक्तिशाली हाथी भी बंधन को प्राप्त होता है॥ Union of even small quantities of things can be instrumental in a great work. Virtue of hay sticks forces a powerful elephant to bondage. -------------------------------------------------------------------- सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम्। एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो:॥ पराधीन के लिए सर्वत्र दुःख है और स्वाधीन के लिए सर्वत्र सुख। यह संक्षेप में सुख और दुःख के लक्षण हैं॥ There is pain everywhere for dependent and there is pleasure everywhere for independent. In short, these are the characteristics of pleasure and pain. -------------------------------------------------------------------- आलस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्। अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम्॥ आलसी के लिए विद्या कहाँ,  विद्याहीन के लिए धन कहाँ, निर्धन के मित्र कहाँ और बिना मित्रों के सुख कहाँ॥ A lazy cannot acquire knowledge. Without knowledge wealth cannot be had. Without wealth, you cannot get friends and without friends there is no happiness. -------------------------------------------------------------------- अनेकशास्त्रं बहुवेदितव्यम्, अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना:। यत् सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात्॥ अनेक शास्त्र हैं, बहुत जानने को है और समय कम है और बहुत विघ्न हैं। अतः जो सारभूत है उसका ही सेवन करना चाहिए जैसे हंस जल और दूध में से दूध को ग्रहण कर लेता है॥ There are many scriptures, lot to know but time is limited and there are many obstacles. So we should practice the essence as a swan extracts only milk from the combination of milk and water. -------------------------------------------------------------------- दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्। मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:॥ यह तीन दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही मिलते हैं - मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ॥ T hese three are very difficult to get and can be got only by the grace of the gods - human birth, desire for salvation and the company of the nobles. -------------------------------------------------------------------- सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम्। सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम्॥ सुख चाहने वाले को विद्या और विद्या चाहने वाले को सुख त्याग देना चाहिए। सुख चाहने वाले के लिए विद्या कहाँ और विद्यार्थी के लिए सुख कहाँ॥ If you aspire for comforts, leave the knowledge. If you aspire for knowledge, leave the comforts. Aspirant for comforts cannot get knowledge and aspirant for knowledge cannot get comforts. -------------------------------------------------------------------- दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्। यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्॥ दिन में वह करना चाहिए जिससे रात में सुख से रहा जा सके। जब तक जीवित हैं तब तक वह करना चाहिए जिससे मरने के बाद सुख से रहा जा सके॥ Do that in the day which makes you happy at night. Do that throughout the life which could make you happy after death. -------------------------------------------------------------------- जरा रूपं हरति, धैर्यमाशा, मॄत्यु: प्राणान्, धर्मचर्यामसूया। क्रोध: श्रियं, शीलमनार्यसेवा , ह्रियं काम:, सर्वमेवाभिमान:॥ वृद्धावस्था सुन्दरता का, धैर्य इच्छाओं का, मृत्यु प्राणों का, धर्मं का आचरण अपवित्रता का, क्रोध प्रतिष्ठा का, चरित्र बुरी संगति का, लज्जा काम का और अभिमान सबका नाश कर देता है॥ Old age destroys beauty, patience destroys desires, death destroys life, righteous conduct destroys impurity, anger destroys reputation, character destroys the company of bad people, shyness destroys sexual desires and pride destroys everything. -------------------------------------------------------------------- वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वॄत्ततस्तु हतो हत:॥ चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट हो जाने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता पर चरित्र के नष्ट हो जाने से वह मरे हुए का समान है॥    We should guard our character attentively; money can come and go. If money is lost, nothing is lost but if character is lost, everything is lost. -------------------------------------------------------------------- न प्रहॄष्यति सन्माने नापमाने च कुप्यति। न क्रुद्ध: परूषं ब्रूयात् स वै साधूत्तम: स्मॄत:॥ जो सम्मान करने पर हर्षित न हों और अपमान करने पर क्रोध न करें, क्रोधित होने पर कठोर वचन न बोलें, उनको ही सज्जनों में श्रेष्ठ कहा गया है॥ Those, who do not become happy by honor and do not get angry by dishonor, do not use harsh words, even in anger, are said to be greatest among saints. -------------------------------------------------------------------- अकॄत्यं नैव कर्तव्य प्राणत्यागेऽपि संस्थिते। न च कॄत्यं परित्याज्यम् एष धर्म: सनातन:॥ न करने योग्य कार्य को प्राण जाने की परिस्थिति में भी नहीं करना चाहिए और कर्त्तव्य का कभी त्याग नहीं करना चाहिए, यह सनातन धर्म है॥ One must not be act improperly even at the cost of life. And the duty must be performed. This is eternal religion. -------------------------------------------------------------------- मातॄवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्। आत्मवत्सर्वभूतेषु य: पश्यति स पश्यति॥ दूसरों की स्त्रियों को माता के समान, दूसरों के धन को मिट्टी के समान, समस्त प्राणियों को अपने समान जो देखता है, वह (वास्तविक रूप में ) देखता है॥ One who sees wives of others as mothers, sees money of others as dust, sees other living beings like himself, actually sees correctly. -------------------------------------------------------------------- नात्युच्चशिखरो मेरुर्नातिनीचं रसातलम्। व्यवसायद्वितीयानां नात्यपारो महोदधि:॥ परिश्रमी व्यक्ति के लिए मेरु पर्वत अधिक ऊँचा नहीं है,  पाताल बहुत नीचा नहीं है और महासागर बहुत विशाल नहीं है॥ For a diligent person, even the mountain 'Meru' is not very high, bottom of the earth is not too deep and the ocean is not difficult to cross. -------------------------------------------------------------------- अर्थनाशं मनस्तापम्, गृहे दुश्चरितानि च। वञ्चनं चापमानं च, मतिमान्न प्रकाशयेत्॥ बुद्धिमान धन के नाश, मन के दुःख और घर की कलह, धोखे और अपमान को गुप्त रक्खे, किसी को न बताए॥  A wise man should not divulge the loss of money, distress of mind, quarrels at home and that he has been cheated or insulted. -------------------------------------------------------------------- आचाराल्लभते ह्यायु: आचारादीप्सिता: प्रजा:। आचाराद्धनमक्षयम् आचारो हन्त्यलक्षणम्॥ सदाचार से आयु की प्राप्ति होती है, सदाचार से अभिलषित संतान की प्राप्ति होती है, सदाचार से कभी न नष्ट होने वाले धन की प्राप्ति होती है, सदाचार से बुरी आदतों का नाश होता है॥ Righteousness gives long life, righteousness gives desired progeny, righteousness gives ever-lasting wealth, righteousness destroys other defects. -------------------------------------------------------------------- श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा:। वाग्यता: शुचयश्चैव श्रोतार: पुण्यशालिन:॥ श्रद्धा और भक्ति से समान रूप से युक्त, अन्य कार्यों की इच्छा न रखने वाले, कम और सुन्दर बोलने वाले, श्रोता ही पुण्यवान हैं॥ Those who possess reverence and devotion equally, have no desire for other things, speak less and pure are virtuous listeners. -------------------------------------------------------------------- परवाच्येषु निपुण: सर्वो भवति सर्वदा। आत्मवाच्यं न जानीते जानन्नपि च मुह्मति॥ दूसरों के बारे में बोलने में सभी हमेशा ही कुशल होते हैं पर अपने बारे में नहीं जानते हैं, यदि जानते भी हैं तो गलत ही॥ Anybody is an expert to comment about others, anytime. But nobody knows about himself; even if, he knows, he knows incorrectly. -------------------------------------------------------------------- गौरवं प्राप्यते दानात्, न तु वित्तस्य संचयात्। स्थिति: उच्चै: पयोदानां, पयोधीनां अध: स्थिति:॥ धन के दान से ही प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, धन के संचय से नहीं। बादलों का स्थान ऊपर है और समुद्र का नीचे॥ Reputation is achieved by distributing money and  not by collecting it. Clouds command a high position whereas the sea lies low. -------------------------------------------------------------------- जलबिन्दुनिपातेन, क्रमशः पूर्यते घटः। स हेतुः सर्वविद्यानां, धर्मस्य च धनस्य च॥ पानी की बूंदों के गिरने से घड़ा धीरे-धीरे भर जाता है। ऐसा ही सभी विद्याओं, धर्म और धन के साथ है॥ The pot gets filled sequentially, by drops of water. Same is true for all types of knowledge, righteousness and wealth. -------------------------------------------------------------------- सतां हि दर्शनं पुण्यं तीर्थभूताश्च सज्जनाः। कालेन फलते तीर्थम् सद्यः सज्जनसङ्गतिः॥ सज्जनों के दर्शन से पुण्य होता है, सज्जन जीवित तीर्थ हैं, तीर्थ तो समय आने पर ही फल देते हैं, सज्जनों का साथ तो तुरंत फलदायी होता है॥ Seeing the saints makes us holy, saints are living temples. Sacred places benefit only at appropriate time but saints benefit immediately. -------------------------------------------------------------------- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥ जहाँ पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। जहाँ पर ऐसा नहीं होता है वहां पर सभी कार्य निष्फल होते हैं॥ Where women are worshiped, there lives the Gods. Wherever they are not worshiped, all actions result in failure. -------------------------------------------------------------------- न अन्नोदकसमं दानं न तिथि द्वादशीसमा। न गायत्र्याः परो मन्त्रो न मातु: परदैवतम्॥ अन्न और जल के समान दान नहीं है, द्वादशी से समान तिथि नहीं है, गायत्री से बड़ा मंत्र नहीं है और माता से बड़ा देवता नहीं है॥ Giving food and water is the highest charity, twelfth moon day is the most auspicious date, 'Gayatri Mantra' is the best among the 'Mantras' and mother is the highest God. -------------------------------------------------------------------- शरदि न वर्षति गर्जति, वर्षति वर्षासु नि:स्वनो मेघ:। नीचो वदति न कुरुते, न वदति सुजन: करोत्येव॥ पतझड़ के बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं; वर्षा ऋतु के मेघ चुपचाप (बिना गरजे) वर्षा करते हैं। दुष्ट लोग कहते हैं पर करते नहीं, सज्जन कार्य करते हैं पर कहते नहीं॥ Clouds in autumn make lot of noise but do not rain. Monsoon clouds rain, without making noise. An inferior person just talks, does not act but a good person acts without talking. -------------------------------------------------------------------- परिवर्तिनि संसारे मॄत: को वा न जायते। स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम्॥ इस बदलते संसार में कौन ऐसा है जो जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ है। जन्म लेना उसका ही सफल है जिससे उसका वंश उन्नति को प्राप्त हो॥ Who has not died after taking birth in this ever changing world? He alone is considered as born who makes his dynasty prosperous. -------------------------------------------------------------------- सर्वनाशे समुत्पन्ने ह्मर्धं त्यजति पण्डित:। अर्धेन कुरुते कार्यं सर्वनाशो हि दु:सह:॥ सर्वनाश की स्थिति उत्पन्न होने पर बुद्धिमान आधे का त्याग कर देते हैं और आधे से ही कार्य करते हैं। सर्वनाश असहनीय है॥ In the condition of total devastation, wise give up half and save the other half for their work. Loss of everything is unbearable. -------------------------------------------------------------------- विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥ विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है॥ Knowledge gives humility, humility leads to capability, from capability one acquires wealth, wealth leads to righteousness and then happiness follows. -------------------------------------------------------------------- तत् कर्म यत् न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये। आयासाय अपरं कर्म विद्या अन्याशिल्पनैपुणम्॥ वह कर्म है जो बंधन में न डाले, वह विद्या है जो मुक्त कर दे। अन्य कर्म श्रम मात्र हैं और अन्य विद्याएँ यांत्रिक निपुणता मात्र हैं॥ That is action which does not bind. That is knowledge which liberates. Other actions are hardship only and other knowledge are just mechanical skills. -------------------------------------------------------------------- क्रोधमूलो मनस्तापः क्रोधः संसारबन्धनम्। धर्मक्षयकरः क्रोधः तस्मात्क्रोधं परित्यज ॥ क्रोध मन के दुःख का प्राथमिक कारण है,  क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है,  इसलिए क्रोध को त्याग दें॥ Anger is the root cause of mental distress. Anger is the reason for bondage with this world. Anger reduces righteousness, hence give up anger. -------------------------------------------------------------------- जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यम् मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति । चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिम् सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ॥ मन की जड़ता का नाश करती है, वाणी को सत्य से सींचती है,  सम्मान और उन्नति की दिशा दिखाती है,  पापों को दूर करती है,  चित्त को प्रसन्न करती है, यश का दिशाओं में विस्तार करती है, कहो सज्जनों की संगति मनुष्य का क्या भला नहीं करती॥ It removes the inertia of the mind, fosters truth in speech, directs to respect and progress, removes sins, pleases the mind, expands the fame in all directions. Is there anything that the company of virtuous people doesn't provide? -------------------------------------------------------------------- दातव्यं भोक्तव्यं धनविषये सञ्चयो न कर्तव्यः। पश्येह मधुकरीणां सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये ॥ धन के सम्बन्ध में दान देना और भोग करना ही उचित है, धन का संचय नहीं करना चाहिए। देखिये, मधु- मक्खियों का संचित किया हुआ शहद कोई और ही ले जाता है॥ Money should either be given as charity or enjoyed but should not be stocked. Look, the collected savings of the bees (honey) is taken by others. -------------------------------------------------------------------- पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि, जलमन्नं सुभाषितम्। मूढैः पाषाणखण्डेषु, रत्नसंज्ञा विधीयते॥ पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुन्दर वचन। मूर्खों ने ही पत्थर के टुकड़ों (हीरे आदि)को रत्न का नाम दिया हुआ है॥ There are three gems on earth: water, food and wise sayings. Only the ignorant consider pieces of stone (diamond etc.) as gems. -------------------------------------------------------------------- सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम् । वृणुते हि विमृश्यकारिणम् गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥ किसी भी कार्य को एकाएक शुरू नहीं करना चाहिए , बिना सोचे विचारे कार्य करना बड़ी परेशानी का कारण होता है। संपत्ति भली भांति विचार करके कार्य करने वाले के गुणों से प्रसन्न होकर स्वयं उसका वरण करती है॥ One should not act in haste. Action without thinking leads to big problems. Wealth chooses that person by itself who acts after thinking properly. -------------------------------------------------------------------- प्राप्तव्यमर्थं लभते मनुष्यो देवोऽपि तं लङ्घयितुं न शक्तः । तस्मान्न शोचामि न विस्मयो मे यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम् ॥ मनुष्य को जो प्राप्त होना होता है,  उसका उल्लंघन करने में देवता भी समर्थ नहीं हैं इसलिए मुझे न आश्चर्य है और न शोक क्योंकि जो मेरा है वह किसी दूसरे का नहीं है॥ Whatever belongs to you will come to you , even Gods cannot change that. That is why I do not get either disappointed or surprised. No one else can take whatever is mine. -------------------------------------------------------------------- दानं भोगो नाशस्तिस्रो, गतयो भवन्ति वित्तस्य। यो न ददाति न भुङ्क्ते, तस्य तृतीयागतिर्भवति॥ दान, भोग और नाश धन की यह तीन गतियाँ ही होती हैं। जो न दान देता है और न भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति ही होती है॥ Money can have only three states: charity, enjoyment or loss.One who neither donates nor enjoys with his money, his money ends up in the third state. -------------------------------------------------------------------- शोकस्थानसहस्राणि, भयस्थानशतानि च। दिवसे दिवसे मूढम्, आविशन्ति न पण्डितम्॥ दुःख के हजारों कारण हैं, भय के भी सौ कारण हैं, ये दिन-प्रतिदिन मूर्खों को ही चिंतित करते हैं, बुद्धिमानों को नहीं॥ There are thousands of reasons to be sad and hundreds of reasons to be afraid. These perturb the deluded day after day and not the wise. -------------------------------------------------------------------- अर्थागमो नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च। वश्यश्च पुत्रोऽर्थकारी च विद्या षड्‌ जीवलोकस्य सुखानि राजन्‌॥ हे महाराज.  धन की आय, नित्य आरोग्य, प्रिय और मधुर बोलने वाली पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र और धन देने वाली विद्या, यह इस पृथ्वी के छः सुख कहे गए हैं॥ O King, arrival of money, regular good health, loving and sweetly speaking wife, obedient son and money earning knowledge are said to be the six pleasures on this earth. -------------------------------------------------------------------- यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते। ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि॥ जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का आश्रय लेते हैं, उनका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिश्चित तो लगभग नष्ट के समान है ही॥  Those who leave the permanent things and go after the impermanent, their permanent things get destroyed and the impermanent are anyways mostly unsure! -------------------------------------------------------------------- सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा। शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥ सत्य मेरी माता, ज्ञान मेरा पिता, धर्म मेरा भाई, दया मेरी मित्र, शांति मेरी पत्नी, क्षमा मेरा पुत्र है। यह छः मेरे सम्बन्धी हैं॥ Truth is my mother, Knowledge is my father, Righteousness is my brother, Mercy is my friend, Peace is my wife and Forgiveness my son. These six are my kith and kins. -------------------------------------------------------------------- शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रॄतम्। शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु॥ शोक धैर्य का नाश करता है, शोक स्मृति का नाश करता है, शोक सबका नाश करता है, शोक के समान दूसरा शत्रु नहीं है॥ Disappointment destroys patience, disappointment destroys memory, disappointment destroys everything. There is no other enemy like disappointment. -------------------------------------------------------------------- कुसुमस्तबकस्येव द्वयीवृत्तिर्मनस्विनः। मूर्ध्नि वा सर्वलोकस्य विशीर्येत वनेऽथवा॥ फूलों की तरह मनस्वियों की दो ही गतियाँ होती हैं; वे या तो समस्त विश्व के सिर पर शोभित होते हैं या वन में अकेले मुरझा जाते हैं॥ Like a flower, great men have only two ways, either they shine on top of everyone or decay unnoticed in the forest. -------------------------------------------------------------------- मन्दोऽप्यमन्दतामेति संसर्गेण विपश्चितः। पङ्कच्छिदः फलस्येव निकषेणाविलं पयः॥ बुद्धिमानों के साथ से मंद व्यक्ति भी बुद्धि प्राप्त कर लेते हैं जैसे रीठे के फल से उपचारित गन्दा पानी भी स्वच्छ हो जाता है॥ Even a dull person becomes sharp by keeping company with the wise, as turbid water becomes clear when treated with the dust-removing fruit of 'Reetha'. -------------------------------------------------------------------- नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा। शीलं च दुर्लभं तत्र विनयस्तत्र सुदुर्लभः॥ पृथ्वी पर मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ है, उनमें भी विद्या युक्त मनुष्य मिलना और दुर्लभ है, उनमें भी चरित्रवान मनुष्य मिलना दुर्लभ है और उनमें भी विनयी मनुष्य मिलना और दुर्लभ है॥ To born as human is rare in this world. To be knowledgeable also is even rarer. To have great character is even more rare . To be humble is the rarest of all. -------------------------------------------------------------------- अकिञ्चनस्य दान्तस्य शान्तस्य समचेतसः। मया सन्तुष्तमानसः सर्वाः सुखमया दिशाः॥ कुछ न रखने वाले, नियंत्रित, शांत, समान चित्त वाले, मन से संतुष्ट मनुष्य के लिए सभी दिशाएं सुखमय हैं॥ For a man having Om Bhurbhuvaha Swaha tatsaviturvarenyam bhargo devasya dhimahi dhiyo yo nh prachodayat Comments Send Comment  Name                   Email                   Comment                                   Post Mission Poetries Guru Ji Late smt. Maya Verma Sri. Vireshwar Upadhyay Sri Mangal Vijay Sri Shachinra Bhatnagar Brahmavarchas Dr. Hargovind Singh Sri Balram SinghParihar Sri Lakhan Singh Bhadauria Agyaat Parijan's Poetries Rajesh Ranjan Rohit Shrivastava Sri Prakash Share Poetries / Articles Post Poetries Post Articles Post Gayatri Pariwar Links Om Bhurbhuvaha Swaha tatsaviturvarenyam         awgp.org  |  dsvv.org  |  diya.net.in  |  RishiChintan.org  |  awgpypmp.org   |  lalmashal.com     AWGP Literature|Scientific Literature|Indian Culture|Pragya Abhiyan|Akhand Jyoti|Read Book Online|BSGP|Mission RK|Shriramsharma.com|Thought Revolution Amrit Vaani|Yug Pravah|AWGP Audio|AWGP Video|AWGP Photo Gallery|Presentation|Self Realization|Shantikunj|Sadvakya|Greetings|Disclaimer   To send Query / Comments / Suggestions click Here   Best viewed in Firefox  

No comments:

Post a Comment