Sunday, 12 November 2017
गुरु - आज्ञा गुरुणां
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16. दैवं निहत्य कुरु
(सूक्तियाँ/पुरुषार्थ )
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या । दैव का विचार किये बगैर अपनी शक्ति अनुसार प्रयत्न करो । ...
गुरुवार, 08 जुलाई 2010
17. गुरु - आज्ञा गुरुणां
(सूक्तियाँ/आचार्य)
आज्ञा गुरुणां ह्यविचारणीया । गुरु की आज्ञा अविचारणीय होती है । ...
बुधवार, 09 जून 2010
18. कुलं च शीलं च वयश्च रुपम्
(सुभाषित/गृहस्थी)
... विचार न करके बुद्धिमान मनुष्य ने अपनी कन्या देनी चाहिए । ...
गुरुवार, 27 मई 2010
19. प्राणान् न हिंस्यात् न पिबेच्च
(सुभाषित/गृहस्थी)
... प्राण की हिंसा नहीं करना, मद्यपान नहीं करना, सत्य बोलना, पराया धन न लेना, और परायी स्त्री का मन से भी विचार न करना । ...
गुरुवार, 27 मई 2010
20. सती सुरुपा सुभगा विनीता
(सुभाषित/गृहस्थी)
सती सुरुपा सुभगा विनीता प्रेमाभिरामा सरल स्वभावा । सदा सदाचार विचार दक्षा सा प्राप्यते पुण्य वशेन पत्नी ॥ सती, व्यरुपवान, भाग्यवान, संस्कारी, प्रेम करनेवाली, सरल स्वभाववाली, सदा सदाचरण में तत्पर ऐसी ...
गुरुवार, 27 मई 2010
21. बालः पश्यति लिङ्गं
(सुभाषित/ज्ञान)
बालः पश्यति लिङ्गं मध्यम बुद्धि र्विचारयति वृत्तम् । आगम तत्त्वं तु बुधः परीक्षते सर्वयत्नेन ॥ जो बाह्य चिह्नों को देखता है, वह बालबुद्धि का है; जो वृत्ति का विचार करता है, वह मध्यम बुद्धि का है; और ...
गुरुवार, 27 मई 2010
22. मूर्खत्वं हि सखे ममापि रुचितं
(सुभाषित/मूर्ख)
मूर्खत्वं हि सखे ममापि रुचितं तस्मिन् यदष्टौ गुणाः निश्चिन्तो बहुभोजनोऽतिमुखरो रात्रिं दिवा स्वप्लभाक् । कार्याकार्यविचारणान्धबधिरो मानापमाने समः प्रायेणामयवर्जितो दृढवपुः मूर्खः सुखं जीवति ॥ हे मित्र ...
बुधवार, 26 मई 2010
23. आत्मनश्र्च परेषां च यः
(सुभाषित/राजधर्म)
आत्मनश्र्च परेषां च यः समीक्ष्य बलाबलम् । अन्तरं नैव जानाति स तिरस्क्रियतेडरिभिः ॥ खुदके और दूसरेके बल का विचार करके जो योग्य अंतर नहीं रखता वह (राजा) शत्रु के तिरस्कार का पात्र बनता है । ...
बुधवार, 26 मई 2010
24. छेदः चन्दन चूतचम्पकवने
(सुभाषित/राजधर्म)
छेदः चन्दन चूतचम्पकवने रक्षापि शाखोटके हिंसाहंसमयूर कोकिल कुले काकेषु नित्यादरः । मातङ्गेन खरक्रयः समतुला कर्पूरकार्पसयोः एषा यत्र विचारणा गुणिगणे देशाय तस्मै नमः ॥ जहाँ चन्दन, आम्रवृक्ष, चंपक वृक्षों ...
बुधवार, 26 मई 2010
25. सन्तोषः परमो लाभः सत्सङ्गः
(सुभाषित/संतोष)
सन्तोषः परमो लाभः सत्सङ्गः परमा गतिः । विचारः परमं ज्ञानं शमो हि परमं सुखम् ॥ संतोष परम् बल है, सत्संग परम् गति है, विचार परम् ज्ञान है, और शम परम् सुख है । ...
बुधवार, 26 मई 2010
26. तत्त्वं चिन्तय सततंचित्ते
(सुभाषित/सत्संग)
तत्त्वं चिन्तय सततंचित्ते परिहर चिन्तां नश्र्वरचित्ते । क्षणमिह सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णतरणे नौका ॥ सतत चित्त में तत्व का विचार कर, नश्वर चित्तकी चिंता छोड दे । एक क्षण सज्जन संगति कर, भव को तैरनेमें ...
बुधवार, 26 मई 2010
27. सन्तोषः साधुसंगश्र्च
(सुभाषित/सत्संग)
सन्तोषः साधुसंगश्र्च विचारोध शमस्तथा । एत एव भवाम्भोधावुपायास्तरणे नृणाम् ॥ संतोष, साधुसंग, विचार, और शम इतने हि उपाय भवसागर पार करनेके लिए मानवके पास है । ...
बुधवार, 26 मई 2010
28. सुखस्य दुःखस्य न कोडपि दाता
(सुभाषित/सुख-दुःख)
सुखस्य दुःखस्य न कोडपि दाता परो ददाति इति कुबुध्दिरेषा । अहं करोमीति वृथाभिमानः स्वकर्मसूत्रग्रथितो हि लोकः ॥ सुख और दुःख देनेवाला कोई नहीं है । दूसरा आदमी हम को वह देता है यह विचार भी गलत है । "मैं करता ...
बुधवार, 26 मई 2010
29. दातव्यमिति यद्दानं
(श्रीमद्भगवद्गीता /अ१७ श्रद्धात्रयविभागयोग )
दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे । देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं स्मृतम् ॥ २० ॥ दान देना कर्तव्य है – ऐसे भावसे देश काल और पात्र का विचार कर, उपकार न करने वाले के प्रति दान दिया जाता है, ...
मंगलवार, 25 मई 2010
30. इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार
(श्रीमद्भगवद्गीता /अ१३ क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग )
... विचार करना । ...
मंगलवार, 25 मई 2010
31. दर्द अनेक, इलाज एक - शिक्षण
(चिंतन/शिक्षणशास्त्र)
... रही ! आइए, इस Presentation के ज़रीये इन श्रेष्ठ व्यक्तिमत्त्वों के शिक्षण विषयक विचारों का थोडा बहुत परिचय और परिशीलन करें । PDF पर क्लिक करें... ...
सोमवार, 24 मई 2010
32. सूर्यनमस्कार:तेजपूर्ण जीवन की उपासना
(चिंतन/धर्म-तत्त्व)
... में मानवी-मन का कितना सूक्ष्म विचार किया गया है यह देखें । PDF पर क्लिक करें.. ...
सोमवार, 24 मई 2010
33. आर्यावर्त: यथा विचार तथा आचार
(चिंतन/धर्म-तत्त्व)
वैदिकधर्म विचार (भा. 3) अचिनोति च शास्त्रार्थं आचारे स्थापयत्यति । स्वयमप्याचरेदस्तु स आचार्यः इति स्मृतः ॥ जो स्वयं सभी शास्त्रों का अर्थ जानता है, दूसरों के द्वारा ऐसा आचार स्थापित हो इसलिए ...
सोमवार, 24 मई 2010
34. वैदिक संपदा, विश्व संपदा
(चिंतन/धर्म-तत्त्व)
वैदिकधर्म विचार (भा. २) आज शनिचर है । कॉलेज में अंतिम दो लेक्चर्स कॅन्सल हुए, तो प्रतीक मिहिर को अपने घर खाने पर ले गया । घर पहुँचकर दोनों ने रसोई में हाथ बँटाया, क्यों कि मिहिर के ...
सोमवार, 24 मई 2010
35. विश्व को क्या देंगे ? केवल हिंदुत्त्व ?
(चिंतन/धर्म-तत्त्व)
वैदिकधर्म विचार (भा. १) मार्च का समय था । दसवीं कक्षा के इम्तेहान सर पे आ रहे थे । सतीश उसके मित्रों के साथ बडे इत्मनान से उसकी तैयारीयों में लगा हुआ था । एकाएक शहर का व्यवहार ध्वस्त ...
सोमवार, 24 मई 2010
36. अंतःकरण शुद्धि और चारित्र्य निर्माण
(चिंतन/दार्शनिक चिंतन)
... के संस्कार भी सम्मिलित होते हैं । Neurology की भाषा में, हमारे मस्तिष्क में अलग अलग neural pathways बनते हैं जिनमें से कुछ pathways हमारे उनसे संबंधित विचारों / अनुभवों को दोहराने की वजह से ज़ादा गहरे ...
सोमवार, 24 मई 2010
37. विश्व या अजूबा !
(चिंतन/आधुनिक विज्ञान)
... न हो ! सांप्रत समय की प्रत्यक्षवादी और अनुभवमूलक विचारधारा ने केवल इंद्रियजन्य ज्ञान को ही सर्वोत्तम बना दिया है । अर्थात् बाह्य चक्षु से दिखनेवाले अजूबों को या मानव निर्मित अजूबें जैसे ...
सोमवार, 24 मई 2010
38. चिंतन
(चिंतन/सर्व-संयोजन )
...स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥ (श्री.गीता 17/15) ...सद्विचारों और शास्त्रीय विचारोंका आदान-प्रदान वाङ्मयीन तप है । “इन्सान अपने संग से पहचाना जाता है” यह उक्ति बचपनसे ...
सोमवार, 24 मई 2010
39. सुभाषित क्यों ?
(स्थायी लेख/सामान्य)
... है जो समय आने पर विचारों को स्मृति पट से निकालकर क्रियाशील मन में ला देने में समर्थ है । क्या वह बेहतर न होगा कि हम सही तरह का पद्य/गाने सुनने की आदत डालें जिसमें व्यवहार चातुर्य सूत्रात्मक रुप से भरा ...
सोमवार, 24 मई 2010
40. संस्कृत प्रणालि
(स्थायी लेख/सामान्य)
... के अद्भुत विश्व में डूब जाना चाहते हैं, तो संस्कृत ऐसे रत्नों से परिपूर्ण है जो साहित्यिक विश्व को साकारित कर सके । संस्कृत और एकता भाषा वह माध्यम है जो विचारों और भावनाओं को शब्दों में साकारित ...
सोमवार, 24 मई 2010
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सदस्य मेनु
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