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प्रेम का अर्थ समर्पण नहीं त्याग होता है: सप्तऋषि बापू
Matrix News | Mar 17,2013 6:14 AM IST
बैराड़-!-मनुष्य को सदैव दैनिक कर्मों के साथ भगवत भजन एवं संर्कीतन करना चाहिए। क्योंकि कर्म यदि भवसागर पार करने के लिए मौका है तो भगवत भजन एवं संर्कीतन नाव चलाने वाला चप्पू है, जो नाव को चलाकर भवसागर की ओर ले जाता है। यह बाथ मथुरा-वृंदावन से आए सप्तऋषि बापू महाराज ने कही।कथा में संतश्री ने कहा कि मथुरा जाने पर शोक में डूबे ग्वालबाल एवं गोपियों को समझाते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि प्रेम का अर्थ समर्पण न होकर त्याग से होता है। समर्पण से जीवन में नीरवता जबकि त्याग प्रगाढ़ता आती है। कथा आयोजक देवेंद्र गुप्ता ने बताया कि 17 मार्च को रात 8 बजे मथुरा की भजन पार्टी द्वारा धार्मिक गीतों की संध्या का आयोजन होगा, जबकि 18 मार्च को कथा का समापन एवं भंडारा होगा।
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