Tuesday, 21 November 2017

धर्म मार्ग

mahendrapalkashyap Search this site धर्म मार्ग प्रेम क्या है? Sitemap धर्म मार्ग‎ > ‎ प्रेम क्या है? प्रेम का परिणाम संभोग है या कि प्रेम भी गहरे में कहीं कामेच्छा ही तो नहीं? फ्रायड की मानें तो प्रेम भी सेक्स का ही एक रूप है। फिर सच्चे प्रेम की बात करने वाले नाराज हो जाएँगे। वे कहते हैं कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है। तब फिर 'मिलन' का अर्थ क्या? शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से मिलन में क्या फर्क है? प्रेमशास्त्री कहते हैं कि देह की सुंदरता के जाल में फँसने वाले कभी सच्चा प्रेम नहीं कर सकते। कामशास्त्र मानता है कि शरीर और मन दो अलग-अलग सत्ता नहीं हैं बल्कि एक ही सत्ता के दो रूप हैं। तब क्या संभोग और प्रेम भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? धर्मशास्त्र और मनोविज्ञान कहता है कि काम एक ऊर्जा है। इस ऊर्जा का प्रारंभिक रूप गहरे में कामेच्छा ही रहता है। इस ऊर्जा को आप जैसा रुख देना चाहें दे सकते हैं। यह आपके ज्ञान पर निर्भर करता है। परिपक्व लोग इस ऊर्जा को प्रेम या सृजन में बदल देते हैं। शरीर भी कुछ कहता है : किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही लड़के और लड़कियों में एक-दूसरे के प्रति जो आकर्षण उपजता है उसका कारण उनका विपरीत लिंगी होना तो है ही, दूसरा यह कि इस काल में उनके सेक्स हार्मोंस जवानी के जोश की ओर दौड़ने लगते हैं। तभी तो उन्हें राजकुमार और राजकुमारियों की कहानियाँ अच्छी लगती हैं। फिल्मों के हीरो या हीरोइन उनके आदर्श बन जाते हैं। आकर्षित करने के लिए जहाँ लड़कियाँ वेशभूषा, रूप-श्रृंगार, लचीली कमर एवं नितम्ब प्रदेशों को उभारने में लगी रहती हैं, वहीं लड़के अपने गठे हुए शरीर, चौड़े कंधे और रॉक स्टाइलिश वेशभूषा के अलावा बहादुरी प्रदर्शन के लिए सदा तत्पर रहते हैं। आखिर वह ऐसा क्यूँ करते हैं? क्या यह यौन इच्छा का संचार नहीं है? आनंद की तलाश : दर्शन कहता है कि कोई आत्मा इस संसार में इसलिए आई है कि उसे स्वयं को दिखाना है और कुछ देखना है। पाँचों इंद्रियाँ इसलिए हैं कि इससे आनंद की अनुभूति की जाए। प्रत्येक आत्मा को आनंद की तलाश है। आनंद चाहे प्रेम में मिले या संभोग में। आनंद के लिए ही सभी जी रहे हैं। सभी लोग सुख से बढ़कर कुछ ऐसा सुख चाहते हैं जो शाश्वत हो। क्षणिक आनंद में रमने वाले लोग भी अनजाने में शाश्वत की तलाश में ही तो जुटे हुए हैं। ध्यान का जादू : यदि आपकी ओर कोई ध्यान नहीं देगा तो आप मुरझाने लगेंगे। बच्चा ध्यान चाहता है तभी तो वह हर तरह की उधम करता है, ताकि कोई उसे देख ले और कहे कि हाँ तुम भी हो धरती पर। युवक-युवतियाँ सज-धज इसीलिए तो करते हैं कि कोई हमारी ओर आकर्षित हों। प्रेमी-प्रेमिका जब तक एक दूसरे पर ध्यान देते हैं तभी तक प्रेम कायम रहता है। लेकिन क्या ध्यान देना ही प्रेम है? यदि ध्यान हटाने से प्रेम भी हट जाता है तो फिर प्रेम कैसा। प्रेमशास्त्री तो निस्वार्थ प्रेम की बात करते हैं। फिर भी ध्यान का जादू निराला है। ध्‍यान प्रेम संबंध को पोषित करता है। प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे पर जितना ध्यान रखेंगे उतना वे खिलने लगेंगे। विद्वान लोग कहते हैं कि दो मित्रों का एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता हो जाना ही प्रेम है। एक-दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकारना जिस रूप में वह हैं। ध्यान देने से ज्यादा व्यक्ति ध्यान पाने कि मनोवृत्ति से ग्रस्त रहता है। ध्यान देने और पाने की मनोवृत्ति को जो छोड़ देता है उसे ही ध्यानी कहते हैं। ध्यानी व्यक्ति स्वयं की मनोवृत्तियों पर ही ध्यान देता है। आखिर प्रेम क्या है? यही तो माथापच्ची का सवाल है। क्या यह मान लें कि प्रेम का मूल संभोग है या कि नहीं। सभी की इच्छा होती है कि कोई हमें प्रेम करे। यह कम ही इच्छा होती है कि हम किसी से प्रेम करें। वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रेम आपके दिमाग की उपज है। अर्थात प्रेम या संभोग की भावनाएँ दिमाग में ही तो उपजती है। दिमाग को जैसा ढाला जाएगा वह वैसा ढल जाएगा। आत्मीयता ही प्रेम है : विद्वान लोग कहते हैं कि दो मित्रों का एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता हो जाना ही प्रेम है। एक-दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकारना जिस रूप में वह हैं। दोनों यदि एक-दूसरे के प्रति सजग हैं और अपने साथी का ध्यान रखते हैं तो धीरे-धीरे प्रेम विकसित होने लगेगा। अंतत: देह और दिमाग की सारी बाधाओं को पार कर जो व्यक्ति प्रेम में स्थित हो जाता है सच मानो वही सचमुच का प्रेम करता है। उसका प्रेम आपसे कुछ ले नहीं सकता आपको सब कुछ दे सकता है। तब ऐसे में प्रेम का परिणाम संभोग को नहीं करुणा को माना जाना चाहिए। Comments Sign in|Recent Site Activity|Report Abuse|Print Page|Powered By Google Sites

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