Monday, 20 November 2017

काशी शासतरारथ

HomeMagazinesLibraryBlogMatrimonyeShopE-Commercetake a tour Select Section Search                      A primary objective of "Arya Samaj" is to promote physical, spiritual and social progress of all humans beings of the whole world.                     You are at official website of "Arya Samaj".                     To show event's pamphlet, news, photos, magazines of your "Arya Institute". Please send us on thearyasamaj@gmail.com Login|Register Articles Report कया आपको याद है? Author Dr. Vivek Arya Date 16-Nov-2014 Category सनसमरण Language Hindi Total Views 1866 Total Comments 1 Uploader Saurabh Upload Date 16-Nov-2014 Download PDF -0 MB Tags Maharshi Dayanand Kashi Shastrarth Banaras Idol Worship Puran Top Articles in this Category कया आपको याद है? स�?वामी श�?रद�?धानंद जी का महान जीवन कथन सवामी दरशनाननद जी महाराज सवामी शरदधाननद जी का हिंदी परेम सनामी राहत कारय 2004 Top Articles by this Author फलित जयोतिष पाखंड मातर हैं दि तले अधेरा बलातकार कैसे रकेंगे महरषि दयाननद और मरयादा परषोततम राम कया आपको याद है? काशी शासतरारथ कारतिक शकला 12 संवत 1926 (16 नवंबर 1869 ई0) सवामी दयाननद के काशी आगमन और परचार से खलबली मच गई। सवामी जी के बार बार शासतरारथ के लि आहवान करने पर वहा की पणडित मणडली आना कानी करती रही, पर अनत में काशी नरेश के आगरह पर तैयार हो गई। सभा का परबंध नगर कोतवाल शरी रघनाथ परसाद के अधीन रहा। काशी नरेश के पकषपात ने परबंध को छिनन भिनन कर दिया। सवामी जी के पकष के विदवानों को सभा में आने से रोका गया। सवामी जी के आगरह पर उनहें आने तो दिया गया परनत उनहें पिछली पंकति में सथान दिया गया और समसत पौराणिक मणडली सवामी जी को घेर कर बैठ गई। शासतरारथ कया था- सवामी जी को किसी भी तरह परासत घोषित करने का षडयंतर था।  शासतरारथ का विषय था ‘वेदों में मूरति पूजा है या नहीं।’ बहत देर तक पणडित मणडली वेदों में मूरति पूजा दिखाने में असफल रही। उनहोंने विषय को बदलने का बार बार परयास किया। अब उनहोंने विषय बनाया- वेद में पराण शबद है या नहीं! सवामी जी का मानना था कि वेदों में पराण शबद तो है किनत उसका अरथ ‘पराना’ है और उसका परयोग विशेषण के रूप में हआ है। अठारह पराणों का उससे गरहण नहीं हो सकता। इस पर माधवाचारय ने दो पतरे, जो वासतव में गृहय सूतर के थे, वेद के बताकर दिये। कहा कि यहा लिखा है कि यजञ के समापत होने पर यजमान दसवें दिन पराणों का पाठ सने-- । यहा पराण शबद किसका विशेषण है?  शाम हो रही थी। दीपक के परकाश में सवामी जी उस पतरे को देख ही रहे थे कि विशदधाननद ने कहा कि हमें देर होती है और सवामी जी की पीठ पर हाथ रखकर बोले- ओहो! हार गये! और यह कहते ही उनहोंने ताली बजाई। दूसरे पणडितों और काशी नरेश ने भी उनका साथ दिया। ‘दयाननद हार गये।’ कहते ह सब ने हो हलला मचा दिया। इस सभा में लगभग पचास हजार लोग उपसथित थे। गणडों दवारा ढेले फेंक कर उपदरव भी किया गया, परनत कोतवाल सवामी जी को वहा से निकाल ले गये और उनकी रकषा की। उस समय के ‘हिनदू पेटरियट’ ‘रहेलखणड समाचार’ ‘तततवबोधिनी पतरिका’ ‘पायोनियर’ आदि समाचार पतरों ने सवामी जी की विजय को सवीकार किया और पणडित मणडली के असभय वयवहार की आलोचना की। उस दिन वेद विदया का सूरय देदीपयमान हआ। क ईशवर विशवासी, निरभीक बाल बरहमचारी संनयासी ने ूठ के किले को ददराशायी किया और नरेश के पकषपात व पणडितममनयों के अहंकार से विदयानगरी काशी कलंकित हई। सवामी जी इसके बाद भी क मास तक काशी रहे और उनको शासतरारथ के लि ललकारते रहे कि वेदों में मूततिपूजा सिदध कर सकते हो तो बताओ। उसके बाद भी पाच या छः बार सवामी जी काशी आ और शासतरारथ का आहवान किया-- पर वेदों में मूरततिपूजा का विधान होता तभी तो किसी का साहस होता ALL COMMENTS (1) Nice article... I am new Arya. Reply Like View all comments Powered by Disclaimer | Privacy Poicy | Terms & Condiitons

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