Thursday, 9 November 2017
ब्रह्मचर्य सिद्धि से ब्रह्मकमल का प्राकट्य |
अध्यात्म सागर
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
MENU
Find Articles...
Home बोध कथाएं ब्रह्मचर्य रहस्यमयी कहानियाँ ब्रह्मचर्य सिद्धि से ब्रह्मकमल का प्राकट्य | Hindi Spiritual Story on Celibacy
ब्रह्मचर्य सिद्धि से ब्रह्मकमल का प्राकट्य | Hindi Spiritual Story on Celibacy
उपेक्षा की अपेक्षा कोई भी इन्सान नहीं करता । लेकिन हर कोई हमें अहमियत दे इतनी हमारी कीमत भी होनी चाहिए । आज फिर सहदेव के साथ कुछ ऐसा ही हुआ । गुरुजन और दोस्त यहाँ तक कि घर वाले भी अक्सर सहदेव को उपेक्षित कर देते थे । सहदेव आज फिर अशांत, उदास और रुखा सा मुंह बनाये समुन्द्र के किनारे जा बैठा । उसे आखिर समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है । उसने ऐसा क्या किया कि लोग उसकी उपेक्षा करने लगे ।
इसी उधेड़बुन में सहदेव अपने एक मित्र आत्मदेव के घर गया । उसने अपनी सारी समस्या आत्मदेव को कही । आत्मदेव को समझ आ गया कि सहदेव की क्या समस्या है । उसने सहदेव से कहा – “ देख मित्र ! यमुना नदी के किनारे आनंद गिरी नाम के एक महात्मा रहते है । उनके पास ऐसा फूल है जिसके पास में रखने मात्र से लोग मोहित हो जाते है । तू जाकर उन महात्मा के पास से वैसा एक फूल ले आ । फिर कोई तुझे उपेक्षित नहीं करेगा ।”
अपने मित्र की बात सुनकर सहदेव तुरंत यमुना नदी की ओर चल दिया । आश्रम पहुंचकर उसने महात्मा को अपनी पूरी व्यथा सुनाई । उसकी बात सुनकर महात्मा ने मुस्कुराते हुए बगीचे की ओर इशारा किया और बोले – “ जाओ सहदेव ! वह फूल तोड़ लो, सब तुमसे प्रसन्न रहेंगे ”
फूल तोड़ते हुए सहदेव ने महात्मा से पूछा – “ गुरूजी ! इसका नाम क्या है ? ”
महात्मा बोले – “ ब्रह्मकमल ! "
ख़ुशी – ख़ुशी सहदेव ने वह फूल तोड़ लिया और महात्मा को धन्यवाद कहकर चलने लगा । इतने में महात्मा बोले – “ यह फूल केवल तभी तक लोगों को मोहित करेगा जब तक कि यह खिला हुआ है और महक रहा है । जैसे ही यह सूखा, बेकार हो जायेगा ।”
सहदेव उत्साह में था अतः जल्दबाजी में लेकर चल दिया . महात्मा भी मुस्कुरा दिए “ जैसी तुम्हारी मर्जी ।”
शाम तक फूल लेकर वह घर पहुंचा । रास्ते में जो भी मिलता पूछ ही लेता कि भाई ! इतनी मधुर सुगंध कौनसे फुल की है । वह चलते – चलते ही बोल देता “ ब्रहमकमल !” उसे डर था कि कोई उससे मांग न ले ।
रातभर तो उस फूल की सुगंध से सभी लोग उसके आस – पास मंडराते रहे लेकिन जब सुबह उठा तो फूल सुख चूका था ।
सुबह उठते ही सहदेव भागा – भागा आश्रम पहुंचा । महात्मा जी बगीचे में ही खड़े थे । सहदेव उनसे बोला – “ गुरूजी ! वह फूल तो रात में ही मुरझा गया ? “
महात्मा बोले - “ बेटा ! फूल पेड़ पर ही अच्छे लगते है । उससे टूटकर तो उन्हें नष्ट हो ही जाना है ।”
सहदेव बोला – “ गुरूजी ! क्या आप मुझे ब्रह्मकमल का एक पौधा देंगे ? ”
महात्मा बोले – “ क्यों नहीं ! किन्तु तुम्हे उसकी नियमित देखभाल करनी होगी । लेकिन ध्यान रहे ! इस पेड़ में एक शाप लगा हुआ है । जो इसे पालता वह इसके फल खा नहीं सकता । अगर तुमने इसका फल खाया तो यह पेड़ नष्ट हो जायेगा ।”
सहदेव महात्मा से सहमत हो गया और पेड़ ले लिया । उसने वह पेड़ अपने घर के बगीचे में लगा दिया और प्रतिदिन उसकी देखभाल करता था । उसके फूलों की अनोखी सुगंध के दीवाने लोग अक्सर सहदेव के बाग में आने लगे । कुछ दिन बाद उस पर फल लगना भी शुरू हो गया । कुछ लोगों ने फल खाने की इच्छा व्यक्त की तो सहदेव ने सहर्ष उन्हें फल दिए । उन फलों को खाकर लोग इतने आनंदित हुए की उछलने लगे ।
एक दिन सहदेव की भी फल खाने की इच्छा हुई । उसे पता था कि पौधा नष्ट हो जायेगा लेकिन उसने फिर भी फल खा ही लिया । जैसे ही उसने फल खाया पौधा गायब ।
सहदेव उसी समय यमुना की ओर महात्मा के आश्रम के लिए भागा । उस समय वहाँ महात्मा जी नहीं थे । उसने सौचा बगीचे से पौधा ले लेता हूँ, गुरूजी को बाद में बता दूंगा । ऐसा सोचकर वह बगीचे में गया लेकिन वहाँ वैसा एक भी पौधा नहीं था । मन मसोसकर वह महात्माजी के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
संध्या समय को महात्माजी का आगमन हुआ । जैसे ही महात्माजी का आये सहदेव हाथ जोड़कर उनके सामने पहुँच गया । महात्माजी समझ चुके थे कि वह क्यों आया है । उन्होंने सहदेव से कहा – “ अब क्या चाहिए सहदेव ? ”
सहदेव धीमे स्वर में बोला – “ गुरूजी ! मुझसे गलती हो गई । मैंने ब्रह्मकमल का फल खा लिया और वह गायब हो गया । दया करके एक और पौधा दे दीजिये । ”
महात्मा बोले – “ वत्स ! ब्रह्मकमल नाम का कोई पौधा नहीं होता । वह ब्रह्मकमल जिसे तुम यहाँ वहाँ ढूंढते फिर रहे हो । वह और कहीं नहीं तुम्हारे अपने भीतर है । ” सहदेव को बात समझ में नहीं आई अतः वह बोला – “ लेकिन आपने जो मुझे दिया था वह क्या था ? ”
महात्मा बोले – “ वह मेरे अपने ब्रह्मकमल का एक नमूना मात्र था जो मैंने तुम्हे केवल उसकी महत्ता से अवगत कराने के लिए दिया था । वस्तुतः वैसा कोई पौधा नहीं है । यदि तुम चाहो तो मै तुम्हे तुम्हारे अपने ब्रह्मकमल को विकसित करने का मार्ग बता सकता हूँ । ”
सहदेव – “ तो फिर आपने मुझसे ऐसा मजाक क्यों किया ? ”
महात्मा – “ समझाने के लिए ! ”
थोड़ा नाराज होते हुए – “ क्या समझाने के लिए ? ”
महात्मा बोले – “ देखो सहदेव ! यह ज्ञान बहुत दुर्लभ है । हर किसी को आसानी से समझ में नहीं आता ।”
सहदेव अधीर होते हुए – “ गुरूजी ! पहेलियाँ मत बुझाइए । कृपया अब मुझे बताइए कि ऐसा खेल रचकर आप मुझे क्या समझाना चाहते है ।”
महात्मा बोले – “ ठीक है तो सुनो ! इस सृष्टि की रचना के साथ ही ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को अपने समान ही रचनात्मक शक्ति दी है । उसी रचनात्मक शक्ति के से मनुष्य, मनुष्य को पैदा करता है तो जानवर, जानवर को ! यह सम्पूर्ण संसार ईश्वर की उसी रचनात्मक शक्ति का नमूना है । ईश्वर की उसी रचनात्मक शक्ति को कुछ लोगों ने मनोरंजन के साधन के रूप में प्रस्तुत करके जन सामान्य को पतित किया है । उसी पतन का शिकार होने वालों में से तुम भी एक हो । इस रचनात्मक शक्ति को कामऊर्जा कहते है, जो सृष्टि का कारण है ।”
महात्मा बोले – “ जब यह काम ऊर्जा अधोगामी होती है तो सृष्टि के सृजन का कारण बनती है और जब यह उर्ध्वगामी होती है तो सृष्टि को सुन्दर बनाने का कार्य करती है । लेकिन जब इसका अनावश्यक रूप से दुरुपयोग किया जाता है तो यह मनुष्य के पतन का कारण बनती है । सृष्टिकर्ता किसी के साथ पक्षपात नहीं करता । उसने अपनी प्रत्येक रचना के दो पहलू रखे है – सदुपयोग और दुरुपयोग । इसके साथ ही उसने सोचने समझने के लिए आपको विवेक दे दिया । अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या करेंगे ।”
“ ईश्वर ने मनुष्य को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । कुशल कलाकार अपनी कला में कभी कमी नहीं देखना चाहेगा । जब ईश्वर को लगा कि अभी भी कोई कमी बाकि है तो फिर वह स्वयं उसमें प्रवेश कर गया । अब वह ईश्वर ही है जो हमारे द्वारा सोचता है, हमारे द्वारा देखता है और हमारे द्वारा सबकुछ करता है । लेकिन फिर भी वह अपनी मनमानी नहीं करता । वह हमारे विवेक को महत्त्व देता है ।”
“ जब यह काम ऊर्जा उर्ध्वगामी होती है तो हमारा अंतःकरण ब्रह्मकमल के पौधे की तरह खिल उठता है । हमारी इन्द्रियों के कुसुम इतने सुगन्धित हो जाते है कि उनके संपर्क में आने वाले बरबस उनकी तरफ खींचते चले आते है । ऐसे ब्रह्मचारी का का व्यक्तित्व शांत प्रशांत के सदृश शुभ भानयुक्त होता है कि जो भी उनके सानिध्य में जाता है, स्वयं शांति का अनुभव करता है ।”
“ अपने व्यक्तिव को ब्रह्मकमल बनाने की कला का नाम ही ब्रह्मचर्य है ! सहदेव । यदि इस पर लगने वाले फलों खाने की इच्छा करेगा अर्थात वासना के फल चखना चाहेगा तो यह ब्रह्मकमल नष्ट हो जायेगा । किन्तु यदि इस पर लगने वाले फलों को तू दूसरों को खिलायेगा अर्थात ब्रह्मचर्य से ब्रह्मकमल के विकसित होने पर विकसित होने वाली प्रतिभा और क्षमताओं से दूसरों को जो लाभान्वित करेगा तो आत्मसंतोष का खजाना पायेगा ।”
“ ब्रह्मकमल के पुष्पों को तोड़कर कोई भी अधिक दिनों तक लाभान्वित नहीं हो सकता अर्थात यदि तू अपनी क्षमताएं शक्तिपात आदि से दूसरों में प्रवेश कराएगा तो वह कुछ समय के लिए लाभान्वित हो सकता है किन्तु उसे पहले से भी ज्यादा असंतोष होगा और तेरा कोष जल्द ही समाप्त हो जायेगा । अतः ब्रह्मकमल के पौधे को स्वयं ही विकसित करना चाहिए । ब्रह्मतेज में ऐसा आकर्षण है कि दुनिया की कोई भी चीज़ उसे उपेक्षित नहीं कर सकती ।”
सिद्धे विन्दौ महादेवी किम् न सिध्यति भूतले ।यस्य प्रसादान्महिमा ममाप्येतादृशो भवेत् ।।अर्थात भगवान शंकर कहते है - हे महादेवी ! परिश्रमपूर्वक वीर्य का रक्षण करने वाले सिद्ध ब्रह्मचारी के लिए इस संसार में कुछ भी असंभव और अप्राप्त नहीं । वह जो इच्छा करे प्राप्त सकता है । इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महिमा है !
यदि आपका ब्रह्मचर्य से सम्बंधित कोई अनुभव हो अथवा कोई शंका हो तो आप यहाँ लिख सकते है । यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों को शेयर जरुर करें । धन्यवाद
लेखक - अध्यात्म सागर दिनांक - अगस्त 22, 2017
TAGS
बोध कथाएं
ब्रह्मचर्य
रहस्यमयी कहानियाँ
SHARES
आपकी पसंद
साधना का रहस्य | Hindi Spiritual Story
शिवजी कहाँ से देते है - एक प्रेरणादायक कहानी
नियमितता एक अनिवार्य आवश्यकता
जीवन क्या है ? | आध्यात्मिक कहानियाँ
सिद्ध पूरुष और सिद्धि का विज्ञान
धैर्य की परीक्षा हिंदी शिक्षाप्रद कहानी
अध्यात्म सागर
नमस्कारान् ! हम अध्यात्म सागर के लेखक आपका स्वागत करते है । अध्यात्म सागर के योग - अध्यात्म व जीवन दर्शन के नित नये लेखों से लाभान्वित होने के लिए हमें सोशल साईट पर Like और Follow करें तथा ईमेल के माध्यम से हमें Subscribe करें ।
Subscribe VIA EMAIL
Enter email here
submit
Next Post
Previous Post
Emoticon
सर्वश्रेष्ठ पोस्ट
तंत्र साधना का दुष्परिणाम – एक सच्ची घटना
तंत्र साधनाओं के मनमोहक लाभों को देखकर अधिकांश लोगो का मन विचलित हो जाता है । बाहरी क्रिया कलापों की सरलता को देखते हुए कोई भी तंत्र सा...
पर - दोष दर्शन का परिणाम | शिक्षाप्रद कहानिया
दूसरों के दोष देखने का परिणाम लोगों की स्वाभाविक मनोवृति होती है – दूसरों के दोष देखना ! यह बहुत ही बुरी आदत है । यदि कोई अपना है ...
ब्रह्मचर्य सिद्धि से ब्रह्मकमल का प्राकट्य | Hindi Spiritual Story on Celibacy
उपेक्षा की अपेक्षा कोई भी इन्सान नहीं करता । लेकिन हर कोई हमें अहमियत दे इतनी हमारी कीमत भी होनी चाहिए । आज फिर सहदेव के साथ कुछ ऐसा ही ...
आध्यात्मिक डायरी कैसे लिखे
आध्यात्मिक डायरी लिखने के बारे में चर्चा करने से पहले आपको इसकी उपयोगिता जान लेना चाहिए । असल में हम वही कार्य करते है जिसे हम या तो ...
आकर्षण शक्ति को बढ़ाने के उपाय और विधि
आकर्षण शक्ति जिसे बोलचाल की भाषा में सम्मोहन शक्ति भी कहा जाता है, जो प्रत्येक प्राणी में विद्यमान होती है । किन्तु जिस प्राणी में जिस ...
सर्वश्रेष्ठ श्रेणियाँ
अकबर बीरबल के किस्सेअध्यात्म सिद्धांतअष्टांग योगआत्मा - परमात्माआध्यात्मिक लेखआध्यात्मिकतातंत्रप्राण ऊर्जाप्रेरणादायक कहानियाँबोध कथाएंब्रह्मचर्यमनोविज्ञानमहाभारत की कहानियाँरहस्यमयी कहानियाँरहस्यमयी दुनियाविक्रम वेताल की कहानियाँसाधना से सिद्धिस्मरण शक्तिस्वप्नस्वाध्याय संग्रहस्वास्थ्यMEDITATION
About
अध्यात्म सागर एक ऐसा ब्लॉग है, जहाँ अध्यात्म के विभिन्न सिद्धांतों को सरल आध्यात्मिक लेखो, लघु बोधकथाओं, महापुरुषों के प्रेरक प्रसंगों तथा वेदादि शास्त्र व उपनिषद की शिक्षाओं को सरलतम भाषा में प्रस्तुत किया गया ।
More
About
Contact
Sitemap
Disclaimer
Privacy
TOS
Newsletter
नये पोस्ट अपने ईमेल पर प्राप्त करें । It's Free.
Email address
Submit
Copyright © 2017 अध्यात्म सागर All Right Reserved
Designed by Arlina Design Powered by Blogger
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment