Saturday, 4 November 2017
लोहे को सोने में बदल
rahasyamaya.com
क्या लोहे को सोने में बदलना संभव है ?
बचपन से हम ‘पारस पत्थर’ की कहानियाँ सुनते चले आएं हैं कि इस जादुई पत्थर में लोहे को सोने में बदल देने की ताक़त थी | ये बात और है कि न तो हम में से किसी ने पारस पत्थर को देखा है और ना ही हमें कहानियाँ सुनाने वालों ने कभी देखा था | फिर ये कहानियाँ कहाँ से और कब से प्रचलित हुईं ? अतीत में, इसी पारस पत्थर की अवधारणा ने विदेशी विद्वानों में भी हलचल मचा रखी थी जिसकी वजह से उन्होंने अल्केमी (रसायन विद्या) में अपनी ख़ोज जारी रखी | न्यूटन जैसे बड़े वैज्ञानिक भी अपने आप को पारस पत्थर के सम्मोहक पाश से बचा नहीं पाए, अंतिम समय उनकी खोजों के जाल इसी के आस-पास मंडराते रहे |
पारस पत्थर का अस्तित्व इस दुनिया में कभी था या नहीं ये तो रहस्य के गर्भ में हैं, लेकिन ज्ञान की इस पावन धरती (भारत वर्ष) पर ‘सूर्य-विज्ञान’ के सिध्हस्त वैज्ञानिक ज़रूर रहे हैं जिन्होंने दुनिया को बताया कि सूर्य विद्या से सब कुछ सम्भव है | क्या है ये सूर्य-विद्या ? सूर्य-विद्या के सिद्धांतों पर चर्चा करने की बजाय हम आपको ‘महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज’ (जो कि सूर्य-विद्या के स्वयं बहुत बड़े ज्ञाता थे) जी का एक अविस्मर्णीय अनुभव उन्ही के शब्दों में बताते हैं-
“काफी समय पहले की बात है, जिस दिन से मुझे श्री विशुद्धानंद जी महाराज का पता लगा था तभी से उनके सम्बन्ध में बहुत सी अलौकिक शक्तियों की बातें सुनने को मिल रही थी | बातें इतनी असाधारण थी कि उन पर सहसा कोई भी विश्वास नहीं कर सकता था | हांलाकि मैंने कई योगी एवं सिद्ध महात्माओं की कथाएं ग्रंथों में पढ़ी थी और उनके जीवन में घटित अनेक अलौकिक घटनाओं पर मेरा विश्वास भी था लेकिन फिर भी आज, हम लोगों के बीच में ऐसा कोई योगी महात्मा विद्यमान है यह बात प्रत्यक्षदर्शी के मुह से सुनकर भी ठीक से विश्वास नहीं हो रहा था |
उस समय संध्या निकट थी, सूर्यास्त में कुछ ही समय बचा था | मैंने जा कर देखा, बहुत सारे भक्तों और दर्शकों से घिरे हुए, एक अलग आसन पर, एक सौम्यमूर्ति महापुरुष व्याघ्र-चर्म पर विराजमान हैं | उनकी सुन्दर लम्बी दाढ़ी है, चमकती हुई विशाल आँखें हैं, पकी हुई उम्र, गले में सफ़ेद जनेऊ, शरीर पर काषाय वस्त्र और पैरों पर भक्तों द्वारा चढ़ाए गए फूल और फूलमालाओं के ढेर लगे हुए थे | पास में ही एक स्वच्छ कश्मीरी उपल से बना हुआ एक विचित्र यंत्र रखा था | वो महात्मा उस समय योगविद्या और प्राचीन आर्षविज्ञान के गूढ़तम रहस्यों की बड़े सामान्य रूप से व्याख्या कर रहे थे |
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