Saturday, 4 November 2017
श्रेष्ठ कौन? ज्ञान
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श्रेष्ठ कौन? ज्ञान या अनुभव?
नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated Nov 24, 2015, 09:43 AM IST
वेणुगोपाल धूत
चर्चा के कुछ विषय ऐसे हैं, जो सार्वकालिक होते हैं। कला जीवन के लिए है या जीवन कला के लिए? यह सवाल भी ऐसा ही सदा के लिए चला आ रहा है। दोनों पक्षों के मानने वाले हमेशा एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं और अपने पक्ष के औचित्य पर चर्चा करते रहते हैं। इसी प्रकार एक और विषय है कि ज्ञान श्रेष्ठ या अनुभव श्रेष्ठ? इस पर भी सदियों से चर्चा होती आई है और सदियों तक चलती भी रहेगी। लेकिन किसी एक निर्णय पर एकमत होना तो असंभव ही लगता है। हमारी संस्कृति ने दोनों को अपने अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। किंतु ज्ञान, ज्ञान में भी भेद होते हैं। शुद्ध ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान दोनों अपनी-अपनी जगह पर श्रेष्ठ हैं। ज्ञान कितना भी प्राप्त करें, किंतु उसकी व्यवहारिक उपयोगिता जब तक सिद्ध नहीं होती, तब तक उसकी श्रेष्ठता भी सिद्ध नहीं होती। ऐसे ज्ञान को व्यावहारिक ज्ञान कहा जा सकता है।

मान लीजिए कि आपने हवाई जहाज की रचना का ज्ञान दीर्घकाल तक प्राप्त किया है। लेकिन जब तक उस ज्ञान को व्यवहार में लाकर आप हवाई जहाज नहीं बनाते, तब तक उसकी परख कैसे होगी? डॉक्टरी पढ़कर कोई पहले स्थान पर आता है, लेकिन जब तक वह रोगियों पर अपने ज्ञान का प्रयोग नहीं करता, तब तक उसके ज्ञान की श्रेष्ठता कैसे सिद्ध होगी? उनके पास चाहे ज्ञान ना हो, किंतु सालों का उनका अनुभव उन्हें सफलता दिलाता है। इसके संदर्भ में सुनी एक कहानी आपको सुनाता हूं। कहानी पुरानी नहीं, आजकल की ही है।
एक नाविक था, जो नौका चलाकर अपनी गुजर-बसर करता था। कश्मीर के शिकारे में जो सुविधाएं होती हैं, वे सभी उसकी नौका में थी। अच्छी केबिन थी, हर कमरा साफ-सुथरा, खुला और सभी सुविधाओं से लैस था। यही कारण था कि उसकी नौका की बड़ी चर्चा थी। एक बार एक विद्वान पंडित उसकी नौका लेकर सफर के लिए चल पड़े। कई दिनों तक अभ्यास करते हुए थक गए थे। इसलिये आराम से प्रकृति की सुंदरता देखने का, सागर किनारों पर भटकने का सपना लेकर वे सफर के लिए निकले थे। नाविक अनपढ़ था, किंतु अपने काम में बड़ा माहिर था। बडे से बडे संकट से कैसे पार उतारा जाए, इसका काफी अनुभव उसके पास था।
रोज शाम वह पंडितजी के पास जाता, बड़े अपनेपन से उनकी पूछताछ करता, कई विषयों का ज्ञान उनसे प्राप्त करता और खुशी खुशी अपने काम पर लौट जाता। पंडितजी की पंडिताई को अनुभव कर वह प्रभावित होता था। एक दिन शाम को वह पण्डितजी के कमरे में गया। बातें शुरू हो गई। रोज के अनुसार उसने नए-नए विषयों पर जानकारी ली और जाने लगा। तभी पंडितजी ने उसे पूछा, 'आपने जिऑलजी की पढ़ाई की है?' विस्मय से नाविक ने पूछा, 'जिऑलजी क्या है?' अब पंडितजी विस्मित हो गए। उन्होंने कहा, 'जिऑलजी याने पृथ्वी के ज्ञान का शास्त्र।' नाविक ने कभी पाठशाला का रास्ता भी नहीं नापा था। बोला, 'महाराज ! मैं तो अक्षरशत्रु हूं, अनाड़ी हूं। मैंने किसी भी विषय की पढाई नहीं की है।' सुनकर पंडितजी बोले, 'दोस्त ! तुमने अपना एक चौथाई जीवन बेकार गंवाया है।' सुनकर नाविक दुखी हो गया।
दूसरे दिन रोज के अनुसार शाम को दोनों की बातें हुई, तो पंडितजी ने पूछा,'दोस्त! कम से कम ओशनोग्राफी तो तुमने पढ़ी ही होगी।' 'यह क्या है?' नाविक ने पूछा। 'यह समुद्र से संबंधित शास्त्र है।' पंडितजी बोले ! 'मैंने तो नहीं पढ़ा।' नाविक ने उत्तर दिया। तब पंडितजी बोले,'अच्छा? तब तो तुमने अपना आधा जीवन बेकार गंवाया।' नाविक और भी दुखी हो गया। तीसरे दिन बड़ी शर्मिंदगी के साथ नाविक फिर पंडितजी के कमरे में गया। उसके मन में यही सवाल था कि आज पंडितजी क्या पूछेंगे? पंडितजी ने उस दिन उसे पूछा, 'कम से कम मीटिओरोलॉजी तो जरूर पढ़ी होगी, तुमने?'नाविक ने पूछा, 'यह कौन सा नया पंगा है? महाराज, मैंने तो आजतक यही शब्द सुना ही नहीं।' पंडितजी ने कहा, 'अरे, यह तो हवा, बारिश, हवामान की पढ़ाई है।' 'किंतु मुझे तो इसका बिलकुल ही ज्ञान नहीं।' नाविक ने उत्तर दिया।
'कमाल है। जिस धरती पर हम रहते हैं, उसके बारे में भी तुमने कुछ नहीं पढ़ा है? तब तो तुमने अपना तीन चौथाई जीवन बर्बाद किया है।' सुनकर नाविक और भी दुखी हो गया। चौथा दिन आया। हवा जोरों से बहने लगी। बादल घिर आए। सागर की लहरों का उफान बढ़ने लगा। पंडितजी अपनी किताब खोलने वाले ही थे कि उतने में केबिन का दरवाजा खोलकर नाविक अंदर आया। उसने पंडितजी से पूछा, 'क्या आपने स्विमॉलॉजी पढ़ी है?' पंडितजी ने पूछा,'स्विमॉलॉजी क्या है?' 'सीधा सवाल है । क्या आपको तैरना आता है?' नाविक ने पूछा। पंडितजी ने सिर हिलाकर मना कर दिया तो नाविक बोल पड़ा, 'क्या कहते हैं? इतने बड़े-बड़े ग्रंथों की पढ़ाई करके भी आपको तैरना नहीं आता? तब तो महाराज, आपका पूरा जीवन बरबाद हो गया। क्योंकि हमारी नौका एक चट्टान से टकरा गई है उसके तल में छेद हो गया है। अब वही बच सकते हैं, जो तैरना जानते हैं।' तैरने की किताबें, कितनी ही पढ़ी हो, जब तक पानी में गिरते नहीं, तब तक तैरना नहीं आता। अनुभव से मिली हुई शिक्षा ही जीवन में काम आती है।
Web Title: which is superior knowledge or experience
(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
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