Thursday, 9 November 2017

हनुमान जी कौन हैं,

Navbharat Times होमराशिफलसत्संग हनुमान जी कौन हैं, कहाँ रहते हैं Updated Apr 9, 2007, 05:33 PM IST राजेन्द चोपड़ा हर मंगलवार और शनिवार को हिंदू जन हनुमान जी की पूजा करते हैं। ये हनुमान जी कौन हैं, कहाँ रहते हैं? हमारे शास्त्रों में जो वर्णन मिलता है उससे ऐसी छवि बनती है कि हनुमान एक ऐसे महावानर थे जिन्होंने रामायण काल में राम के साथ उनके महान कार्यों में सहयोग दिया और उनकी निष्काम भाव से सेवा की। बचपन से हम रामलीलाएँ देखते आ रहे हैं और हमने हनुमान को एक अवतार मान लिया जो कि आज केवल मंदिरों में, तीर्थस्थलों में, मूर्ति के रूप में ही सुशोभित व प्रासंगिक हैं। अंधविश्वास व धार्मिक आस्था के बीच अत्यंत पतली रेखा होती है। राम चरित मानस में तुलसीदास ने जनसाधारण को समझाने के उद्देश्य से ही हनुमान का एक व्यक्ति के रूप में वर्णन किया है और उन्हें अपने गुरु का दर्जा दिया है। हनु का अर्थ होता है ग्रीवा, चेहरे के नीचे वाला भाग अर्थात ठोड़ी, मान का अर्थ होता है गरिमा, बड़ाई, सम्मान। इस प्रकार हनुमान का मतलब ऐसा व्यक्ति जिसने अपने मान-सम्मान को अपनी ठोड़ी के नीचे रखा है अर्थात जीत लिया है। जिसने अपने मान-सम्मान को जीत लिया है, उसके प्रभाव से जो मुक्त हो चुका है, वही हनुमान हो सकता है। हनुमान का एक नाम बालाजी है, जिसका तात्पर्य है बालक। हमारे ग्रंथों में हनुमान जी को हमेशा बालक ही दिखलाया गया है। बालक के समान निष्कलुष हृदय वाला व्यक्ति ही सम्मान पाने की लालसा से मुक्त रह सकता है और सही अर्थों में ब्रह्माचर्य का पालन कर सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भी हनुमान जी ने कभी अपनी शक्ति व सामर्थ्य का गर्व नहीं किया। राम दरबार के चित्र में उन्होंने सबसे नीचे भूमि पर, सेवक वाली जगह पर ही हाथ जोड़े बैठे दिखाया जाता है। ऐसे महान चरित्र को वानर के रूप में क्यों चित्रित किया गया? ऐसा प्रश्न आपके मन में भी जरूर उठता होगा। कहाँ ऐसा महान व्यक्तित्व और कहाँ वानर रूप, जो एक निकृष्ट व उद्दण्ड जानवर माना जाता है। वास्तव में वानर प्रतीक है मनुष्य के अविवेकी व चंचल मन का। हमारा मन वानर के समान ही कभी भी कहीं भी टिक कर नहीं बैठ सकता, अत्यंत ही चलायमान है। और मन का नियंत्रण अत्यंत ही दुष्कर कार्य है। हनुमान पवनपुत्र हैं अर्थात पवन से भी अधिक तेज गति से चलने वाले इस मन के वे पुत्र हैं। अब बताइए, एक तो वानर की उपमा व दूसरी पवन की- दोनों ही अत्यंत चंचल। उनको वानराधीश कहने का तात्पर्य यही है कि वे मन रूपी वानर के अधिपति हैं, स्वामी हैं। उनका अपनी चंचल इंद्रियों पर नियंत्रण है। केवल मन का स्वामी ही राम रूपी ईश्वर का सवोर्त्तम भक्त हो सकता है और धर्म के कार्यों में निष्काम भाव से भाग ले सकता है। यहाँ राम का तात्पर्य है उस रमण करने वाले तत्व से जो कि हर जगह समान रूप से व्याप्त है। दशरथ नंदन राम तो उसे व्यक्त करने के प्रतीक मात्र हैं। याद रखें कि निष्कामता सभी महान गुणों की जननी है। हनुमान निष्काम गुण की प्रतिमूर्ति हैं, इसीलिए वे कहते हैं, 'रामकाज किए बिनु मोहि कहाँ विश्राम।' वे पूरी तरह समर्पित हैं राम के प्रति, बिना किसी प्रतिफल की आशा के। यही है निष्काम भक्ति की पराकाष्ठा। हनुमान माता अंजना व पिता केसरी के पुत्र हैं, शास्त्रों में ऐसा ही वर्णित है। माता अंजना अर्थात आँख व पिता केसरी अर्थात सिंह के समान अभूतपूर्व साहस व अभय की भावना। मनुष्य में अच्छाई या बुराई आँख से ही प्रवेश करती है- आँखों का मतलब सिर्फ दैहिक आँखें नहीं, बल्कि मन की आँखें भी, हमारा नजरिया, दृष्टिकोण। हनुमान का जन्म विशुद्ध चिंतन व सिंह के समान अभय व्यक्तित्व द्वारा ही संभव है। डरा हुआ व्यक्ति अपनी बात पर अडिग नहीं रह सकता और भयवश कुछ भी कर सकता है। हनुमान अपने जीवनकाल में न किसी से डरे न ही अभिमान किया। इसलिए वे न कभी पराजित हुए और न ही उनकी मृत्यु हुई। « पिछला सौंदर्य सदा मृदुल होता है अगला » छल से मिला धन अधिक समय नहीं टिकता Copyright © Bennett, Coleman & Co. Ltd. All rights reserved.For reprint rights: Times Syndication Service

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