Saturday, 4 November 2017

कर्म प्रधान या भाग्य प्रधान

Skip to main content कर्म प्रधान या भाग्य प्रधान The Experience/Query posted below was posted by a devotee/Sadhaka. जय बजरंगबली। एक सवाल जो अक्सर मेरे दिलो दिमाग में रहता है - कर्म प्रधान या भाग्य प्रधान? मैंने इस सवाल का हल ढूंढने का बहुत प्रयत्न किया पर अभी तक किसी ठोस नतीजे पे नही पहुँच पाया हूँ। यह सवाल मेरे दिलों दिमाग को कभी कभी झंझोर के रख देता है। भगवद गीता में ये लिखा हुआ है की तुम कर्म करो, फल की चिंता न करो। और मैंने कई लोगों से सुना है की कर्म प्रधान है। तो फिर भाग्य क्या है? बहुत से लोग कहते हैं कि मनुष्य अपने कर्म से अपना भाग्य बदल सकता है। पर मैंने ये भी सुना है की भाग्य तो इंसान के जन्म से पहले ही लिखा जा चुका है। और एक बार भाग्य में जो लिखा जा चुका है उसे कोई नही बदल सकता। तो फिर कर्म प्रधान कैसे है? और अगर भाग्य ही सबकुछ है तो फिर इंसान कर्म ही क्यों करेगा? वो ये सोचेगा की जो भाग्य में होना है वो तो होके ही रहेगा, मैं कुछ क्यों करु? कई लोग अक्सर ये उदाहरण देते है कि वो आदमी अपनी मेहनत, लग्न, परिश्रम और कर्मो के बदौलत आज जीवन में इस बड़े मूकाम पे पहुंचा है। उसने अपने कर्मो से अपना भाग्य बदला। और कई बार लोग ये भी उदाहरण देते है कि यह व्यक्ति बिना किसी परिश्रम के, सिर्फ अपने भाग्य के कारण आज इस मुकाम पे है। और कई बार लोग ये भी कहते हैं की इस व्यक्ति को इसके कर्म के अनुसार फल नही मिला। इसने मेहनत तो बहुत की, पर इसे इसके मेहनत का फल नही मिला। और कई बार किसी व्यक्ति को बिना मेहनत किये ही सबकुछ या बहुतकुछ मिल जाता है, अच्छे भाग्य के वजह से। इसीलिए मैं ये जानना चाहता हूँ की जीवन में भाग्य ही सबकुछ है या कर्म। जीवन में कर्म प्रधान होता है या भाग्य या जीवन कर्म और भाग्य दोनों का एक मिश्रण है? या दोनों का अपना अपना महत्त्व है जीवन में? कृपया करके मेरे इस दुविधा (कर्म प्रधान या भाग्य प्रधान) का हल या उत्तर बताएं। धन्यवाद। Setu Speaks:  दिव्य आत्मस्वरुप , यह सारे संशय इसलिए उत्पन्न होते हैं क्योंकि हम अपने आपको बाकी विश्व से अलग समझते हैं | हम समझते हैं कि हमारे मन के विचार हमने उत्पन्न किये हैं जबकि सच्चाई ये है कि आपके मन के विचार भी विश्व ने ही उत्पन्न किये हैं | आपने यह प्रश्नं यहाँ पर अंकित किया है उससे पहले भी आपने बहुत कुछ सोचा होगा | क्या वो विचार आपने उत्पन्न किये हैं या आपके जन्म के समय ही यह निर्धारित हो गया था कि आप इस दिन यह सवाल सेतु एशिया को भेजेंगे ? (1 ) अब मान लीजिये हम यहाँ कुछ ऐसा जवाब तर्क सहित लिख देते हैं जिससे आपको यह विश्वास हो जाता है कि सब कुछ कर्म प्रधान है | आपमें अपना भाग्य बदलने का एक नया जोश जग जाता है | आप निर्णय लेते हैं कि आप किसी दुसरे शहर में जाकर अपना भाग्य आजमाएंगे | आप कर्म प्रधान मानसिकता के साथ दुसरे शहर के लिए रवाना हो जाते हैं और नए सिरे से अपना काम वहां शुरू करते हैं | वहां पर आप नया मोबाइल नंबर ले लेते हैं | अपना ईमेल ID भी नए काम के लिए नया बना लेते हैं | इसी तरह एक साल गुजर जाता है | नए शहर में कुछ दिन उत्साह से काम करने के बाद आपका उत्साह ठंडा पड़ने लग जाता है | फिर एक दिन आप अपनी पुराने वाली ईमेल ID खोलकर चेक करते हैं | आपको मालुम पड़ता है कि 6 महीने पहले एक बहुत बड़ी कंपनी ने आपको जॉब ऑफर की थी लेकिन आपने ईमेल चेक नहीं की और आपको पुराना नंबर भी बंद था इसलिए आपके हाथ से वह जॉब निकल गई | आपके हमारा जवाब पढ़कर कर्म प्रधान बन जाने से आपका फायदा हुआ या नुक्सान ? (2) अब मान लीजिये कि हम यहाँ पर एक ऐसा जवाब तर्क सहित लिख देते हैं जिससे आपको विश्वास हो जाता है कि सब कुछ भाग्य प्रधान है | आप यह जवाब पढने के बाद सब कुछ छोड़कर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं | आप सोचते हैं कि जो होना है सो होगा फिर हाथ पैर मारने से क्या लाभ ? कुछ दिन ऐसे ही पड़े रहते हैं और कुछ नहीं होता है | आप उबकर फिर घर से बाहर निकलते हैं | आपको पता चलता है कि आपका एक मित्र जिसका रिज्यूमे आपसे कमजोर है उसको एक बहुत अच्छी जॉब मिल गई है | अगर आप हाथ पर हाथ बैठकर यु ही न पड़े रहते और उस जॉब के लिए अप्लाई करते तो पक्का आपको ही वो जॉब मिलनी थी | आपके हमारा जवाब पढ़कर भाग्य प्रधान बन जाने से आपका लाभ हुआ या हानि ? देखिये , आपका इस समय प्रश्न करना और हमारा उत्तर लिखना भी आपके भाग्य का एक अंग है | अगर आप किसी और से यह सवाल पूछेंगे तो वह अपने हिसाब से आपको उत्तर देगा | लेकिन हम किसी भी सवाल का उत्तर, हमारे उत्तर का प्रश्न पूछने वाले के भाग्य में क्या रोल है यह जानकर देते हैं | और हमारा उत्तर यही है कि आप इधर उधर की बाते सुनकर निष्कर्ष मत निकालिए | सिर्फ प्रभु की सुनिए | प्रभु की सुनने के बाद निष्कर्ष निकालिए , खुद का निष्कर्ष निकालकर उसे प्रभु पर मत थोपिए | कुछ लोग कर्म प्रधान नीति से जीवन जीते हैं | हो सकता है उन्हें उस नीति के कारण नुक्सान उठाना पड़ा हो लेकिन उन्हें इस बात का पता नहीं चलता न ही उन्हें इस बात का अफ़सोस होता है क्योंकि वे इस बात पर अडिग विश्वास रखते है कि जो कुछ उनके जीवन में हुआ है वह उनके अपने कर्मों के कारण हुआ है | कुछ लोग भाग्य नीति से जीवन जीते हैं और उन्हें भी कोई अफ़सोस नहीं होता क्योंकि उनका विश्वास अडिग होता है कि उनके जीवन में सब कुछ भाग्य के कारण हुआ है | कुछ लोग दोनों को मिला देते है | वे अपने आपको प्रभु को समर्पित कर देते हैं | वे जो भी कर्म करते हैं वह प्रभु को समर्पित कर देते हैं और जो भी मिलता है उसे प्रभु का प्रसाद मानकर आनंद से जीवन जीते हैं | वे सबसे ज्यादा सुख से जीवन जीते हैं | आपको फिर से याद दिला दें , हमारा उपरलिखित शब्द लिखना और आपका यह शब्द पढ़कर कोई दिशा प्राप्त करना , सब इश्वर की माया है | इस बारे में आप आगे आने वाले अध्यायों में भी अच्छे से समझ सकेंगे | राम .

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