Saturday, 4 November 2017

निर्वाण षटकम्: आचार्य शंकर

सच्चा शरणम् - साहित्य, भाषा, संस्कृति व अनुभूति HomeTranslated Worksस्तोत्र निर्वाण षटकम्: आचार्य शंकर 16 टिप्पणियाँ Himanshu Kumar Pandey March 10, 2013 निर्वाण षटकम्‌ आदि शंकराचार्य की विशिष्ट स्तोत्र-रचना है। इसमें सारांशतः सम्पूर्ण अद्वैत दर्शन अभिव्यक्त है। आचार्य की इस रचना के मूल संस्कृत के साथ हिन्दी अनुवाद सम्मुख है। सौन्दर्य लहरी-4 सौन्दर्य लहरी-3 सौन्दर्य लहरी - 2 आचार्य शंकर की विशिष्ट कृति सौन्दर्य लहरी के पठन क्रम में इस स्तोत्र-रचना से साक्षात हुआ था । सहज और सरल प्रवाहपूर्ण संस्कृत ने इस रचना में निमग्न कर दिया था मुझे। बस पढ़ने के लिए ही हिन्दी में लिखे गए इसके अर्थों को थोड़ी सजावट देकर आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। शिवरात्रि से सुन्दर अवसर और क्या होगा इस प्रस्तुति के लिए। आचार्य शंकर और शिव-शंकर दोनों के चरणों में प्रणति! सभी को शिवरात्रि की शुभकामनायें! मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे न च व्योम भूमिर् न तेजो न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥ मैं मन नहीं हूँ, न बुद्धि ही, न अहंकार हूँ, न अन्तःप्रेरित वृत्ति; मैं श्रवण, जिह्वा, नयन या नासिका सम पंच इन्द्रिय कुछ नहीं हूँ पंच तत्वों सम नहीं हूँ (न हूँ आकाश, न पृथ्वी, न अग्नि-वायु हूँ) वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ। न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:  न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश: न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥ मैं नहीं हूँ प्राण संज्ञा मुख्यतः न हूँ मैं पंच-प्राण1 स्वरूप ही, सप्त धातु2 और पंचकोश3 भी नहीं हूँ, और न माध्यम हूँ निष्कासन, प्रजनन, सुगति, संग्रहण और वचन का4; वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।  1. प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान;  2. त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा; 3. अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनन्दमय; 4. गुदा, जननेन्द्रिय, पैर, हाथ, वाणी न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ  मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव: न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष:  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥३॥ न मुझमें द्वेष है, न राग है, न लोभ है, न मोह, न मुझमें अहंकार है, न ईर्ष्या की भावना न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ।  न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम्  न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा: अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥४॥ न मुझमें पुण्य है न पाप है, न मैं सुख-दुख की भावना से युक्त ही हूँ मन्त्र और तीर्थ भी नहीं, वेद और यज्ञ भी नहीं मैं त्रिसंयुज (भोजन, भोज्य, भोक्ता) भी नहीं हूँ वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ। न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद:  पिता नैव मे नैव माता न जन्म न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य:  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥५॥ न मुझे मृत्य-भय है (मृत्यु भी कैसी?), न स्व-प्रति संदेह, न भेद जाति का न मेरा कोई पिता है, न माता और न लिया ही है मैंने कोई जन्म कोई बन्धु भी नहीं, न मित्र कोई और न कोई गुरु या शिष्य ही वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ। अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ  विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय:  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥  मैं हूँ संदेह रहित निर्विकल्प, आकार रहित हूँ सर्वव्याप्त, सर्वभूत, समस्त इन्द्रिय-व्याप्त स्थित हूँ   न मुझमें मुक्ति है न बंधन; सब कहीं, सब कुछ, सभी क्षण साम्य स्थित वस्तुतः मैं चिर आनन्द हूँ, चिन्मय रूप शिव हूँ, शिव हूँ। आचार्य शंकर रचित निर्वाण षटकम्‌ || स्वर: पूजा प्रसाद  LABELS: Translated Works 76 अनुवाद 2 आत्म षटकम्‌ 1 शंकराचार्य 23 संस्कृत 1 स्तोत्र 30 स्तोत्र रत्नाकर 1 AUTHOR: HIMANSHU KUMAR PANDEY मैं क्या हूँ ? क्या सुनहली उषा में जो खो गया, वह तुहिन बिन्दु या बीत गयी जो तपती दुपहरी उसी का विचलित पल; या फिर जो धुँधुरा गयी है शाम अभी-अभी उसी की उदास छाया ? मैं क्या हूँ ?  जो सम्मुख हो रही है इस अन्तर-आँगन में वही ध्वनि, या किसी सुदूर बहने वाली किसी निर्झर-नदी का अस्पष्ट नाद ? मैं क्या हूँ ? बार-बार कानों में जाने अनजाने गूँज उठने वाली किसी दूरागत संगीत की मूर्छित लरी या फिर जिस आकाश को निरख रहा हूँ लगातार, उस आकाश का एक तारा ? मैं क्या हूँ ? - जानना इतना आसान भी तो नहीं ! 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