Saturday, 4 November 2017

प्रेम गली अति सांकरी

Press question mark to see available shortcut keys 11 Awes NIRAJ Public Oct 18, 2015  ईश्वर प्राप्ति के १२ कदमभगवान श्री कृष्ण कहते हैं....मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय ।निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः ॥ 8भावार्थ : हे अर्जुन! तू अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर और मुझमें ही अपनी बुद्धि को लगा, इस प्रकार तू निश्चित रूप से मुझमें ही सदैव निवास करेगा, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। यह उन व्यक्तियों के लिये है जिनके सभी सांसारिक कर्तव्य-कर्म पूर्ण हो चुके हैं।तुलसी दास जी कहते हैं...."बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।"१. जब व्यक्ति सच्चे मन से सत्संग कीइच्छा करता है, तब कृष्ण कृपा से उस व्यक्ति को सत्संग प्राप्त होता है।२. सत्संग से व्यक्ति का अज्ञान दूर होता है।३. अज्ञान दूर होने पर ही कृष्णा से राग उत्पन्न होने लगता है।४. जैसे-जैसे कृष्णा से राग होता है, वैसे-वैसे ही संसार से बैराग होने लगता है।५. जैसे-जैसे संसार से बैराग होता है, वैसे-वैसे विवेक जागृत होने लगता है।६. जैसे-जैसे विवेक जागृत होता है वैसे-वैसे व्यक्ति कृष्णा के प्रतिसमर्पण होने लगता है।७. जैसे-जैसे कृष्णा के प्रति समर्पण होता है वैसे-वैसे ज्ञान प्रकट होने लगता है।८. जैसे-जैसे ज्ञान प्रकट होता है, वैसे-वैसे व्यक्ति सभी नये कर्म बन्धन से मुक्त होने लगता है।९. जैसे-जैसे कर्म-बन्धन से मुक्त होता है, वैसे-वैसे कृष्णा की भक्तिप्राप्त होने लगती है।१०. जैसे-जैसे भक्ति प्राप्त होती है, वैसे-वैसे व्यक्ति स्थूल-देह स्वरूप को भूलने लगता है।११. जैसे-जैसे ही व्यक्ति स्थूल-देहस्वरूप को भूलता है, वैसे-वैसे आत्म-स्वरूप में स्थिर होने लगता है।१२. जब व्यक्ति आत्म-स्वरूप में स्थिर हो जाता है तब कृष्णा आनन्द स्वरूप में प्रकट हो जाता है।इसी अवस्था पर संत कबीर दास जी कहते हैं....."प्रेम गली अति सांकरी, उस में दो न समाहिं।जब मैं था तब हरि नहि अब हरि है मैं नाहिं॥" Translate 25 plus ones 25 no comments 4 shares 4 Shared publicly•View activity Add a comment...

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