Friday, 3 November 2017

सुभाषितानि नीति सूत्रायच

Sanskrit/ Hindi Only Friday, August 5, 2011 सुभाषितानि नीति सूत्रायच !! Post-3 ११. विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम् || Knowledge gives modesty, through modesty comes worthiness. By worthiness one gets prosperity and from prosperity faith/ virtue and then there is happiness. विद्या से विनय आती है, विनय से योग्यता आती है । योग्यता से धन आता है धन से धर्म और उसके बाद सुख आता है । १२. उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः । परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः ।। In camel's marriage ceremony, Donkeys are singing songs. They admire each other by saying Wow great beauty! Wow great singing. ऊंटों के विवाह में, गधे गीत गाते हैं । एक दूसरे की बढाई करते हैं, वाह क्या सुंदरता है, वाह क्या गाना है ॥ १३. अभिवादनशीलस्य नित्यम् वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम् ॥ He who respects and do service to elders/ old people. Four of his things keep growing, His age, knowledge, fame and power. जो प्रतिदिन बडों को अभिवादन और सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल ये चार बढते हैं। १४. नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः । विक्रमार्जित सत्वस्य, स्व्यमेव मृगेन्द्रता ॥ Animals neither do coronation, nor any ritual for Lion. Lion himself by his valor becomes King of all animals. जानवरों ने शेर का ना कोई अभिषेक किया है ना कोई संस्कार । उसने (शेर ने) अपने आप पराक्रम से अपने आप को जानवरों का राजा बनाया है । १५. काकचेष्टा वकोध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च | अल्पाहारी गृह्त्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम् ।। Efforts like a crow, concentration like a heron and sleep like a dog, little diet, who sacrifices his home, these are five virtues of a scholar. कौवे जैसा प्रयत्न, बगुले जैसा ध्यान और कुत्ते जैसी नींद, कम खाने वाला, घर छोडने वाला, ये पांच विद्यार्थी के लक्षण हैं । १६. सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम । सुखार्थिनः कुतो विद्या , विद्यार्थिनः कुतो सुखम ॥ If you are seeking pleasure then give up search for knowledge, If you are a scholar then give up pleasure. There is no knowledge for pleasure seeker and no pleasure for a scholar. सुख चाहते हो तो विद्या त्याग देना चाहिये, अगर विद्या चाहते हो तो सुख छोड देना चहिये । सुख ढूंढ्ने वाले को विद्या कहाँ, विद्यार्थी को सुख कहाँ । १७. सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् , न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् , एष धर्मः सनातन: ॥ Tell the truth, tell sweet words But do not tell offensive truth, Do not tell a lie even if it is sweet, This is the eternal virtue. सत्य बोलना चाहिये, प्रिय बोलना चाहिये, किन्तु अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिये । झूठ प्रिय हो तब भी नहीं बोलना चाहिये यही सनातन धर्म है । १८. अष्टादस पुराणेषु , व्यासस्य वचनं द्वयम् । परोपकारः पुण्याय , पापाय परपीडनम् ॥ In all of 18 Puranas, There are only two sentences from Vyas. Philanthropy/ charity (Service for others) is to get virtue and hurt others to get sins. अट्ठारह पुराणों में व्यास के दो ही वचन हैं, पुण्य के लिये परोपकार है और पाप के लिये दूसरों को दुःख । १९. पिबन्ति नद्यः स्वमेय नोदकं , स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । धाराधरो वर्षति नात्महेतवे , परोपकाराय सतां विभूतयः ।। Rivers don't drink their own waters, Trees don't eat their own fruits. Clouds do not rain for themselves. Saints/ Good people are for others good. नदियाँ स्वयं अपना पानी नहीं पीती हैं, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं करते हैं, सन्त परोपकार के लिये होते हैं । २०. येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः , मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ They who neither have knowledge nor austerity, neither wisdom nor morals, neither skills nor virtues. They are burden on this earth and are animals in human form spending time. जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) । Alankar Sharma at 4:16 AM Share ‹ › Home View web version About Me Alankar Sharma View my complete profile Powered by Blogger.

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