Friday, 3 November 2017

ज्ञान, कर्म और भक्ति

ज्ञान, कर्म और भक्ति By: श्री आनंदमूर्ति प्राचीनकाल से लोग कहते आए हैं कि परमपुरुष को पाने का रास्ता त्रिविध है - ज्ञान, कर्म और भक्ति। लोग कहते हैं कि ज्ञान से लोग समझ लेते हैं कि परमात्मा क्या है, वे स्वयं क्या हैं और परमात्मा को पाना क्या है? यह विचारणीय है कि ज्ञान से कोई मनुष्य कैसे समझेगा कि परमात्मा क्या है? मनुष्य का ब्रेन (मस्तिष्क) तो छोटा सा है, वह भी भगवान का दिया है। वह कैसे समझेगा कि परमपुरुष किस तरह के हैं? इसलिए ज्ञान के माध्यम से परमात्मा को समझ लेने का दावा सही नहीं हो सकता। थोड़ा रोग होने से बुद्धि चली जाती है, बुढ़ापे में बुद्धि चली जाती है। एक बाईस साल का युवा जितना याद रख सकता है, उतना अस्सी साल का बूढ़ा आदमी याद नहीं रख सकता। फिर यह भी कहते हैं कि ज्ञान से यह समझ लेंगे कि वह (मनुष्य) क्या है। मनुष्य यह नहीं जानता है कि वह कौन है। आज से दो सौ साल पहले तुम लोग कौन थे, और फिर दो सौ साल बाद कहां रहोगे, यह भी नहीं जानते। इसलिए यह कहना भी सही नहीं है कि ज्ञान से आगे के बारे में, भविष्य के बारे में जाना जा सकता है। हां, ज्ञान से कुछ हद तक मन की तृप्ति हो जाती है, कुछ हद तक वह दूसरों को समझा सकता है, मगर इससे अधिक कुछ नहीं। मैं यह नहीं कहूंगा कि ज्ञान की चर्चा नहीं करो। जब तक ज्ञान की भूख है तब तक ज्ञानार्जन करते रहो। जब महसूस करो कि इसके आगे ज्ञान से कुछ होने वाला नहीं है, तब उसे छोड़ना। इसके पहले ज्ञान की राह छोड़ने की आवश्यकता नहीं। फिर, कुछ लोग कहते हैं कि कर्म के द्वारा परमपुरुष को पाएंगे। यह भी ठीक है। परमपुरुष के पास जाना भी कर्म ही है। कर्म के बिना तो मनुष्य एक पल भी रह नहीं सकते हैं। सांस लेने की क्रिया भी कर्म है। कर्म करना चाहिए, किंतु वह सही कर्म होना चाहिए। चलेंगे, किंतु किधर? यदि परमपुरुष की ओर चलें तो ठीक है, अगर उधर नहीं चलते तो वह अकर्म है। उससे कोई फायदा नहीं है। अगर परमपुरुष की भावना लेकर कर्म किया तभी ठीक है। भक्ति के विषय में ज्ञानी जन मानते हैं कि मोक्ष के लिए भक्ति का मार्ग श्रेष्ठ है। वे यह नहीं कहते कि भक्ति एकमात्र रास्ता है, क्योंकि अगर वे यह मान लें कि भक्ति एकमात्र रास्ता है तो उनके ज्ञान की कोई कीमत ही नहीं रहेगी। अत: वे अपने ज्ञान की कीमत बचाने के लिए कहते हैं कि भक्ति श्रेष्ठ है। लेकिन मैं तो कहूँगा कि भक्ति ही एकमात्र रास्ता है परमपुरुष को पाने का। भक्ति जग गई तो पूरा काम हो गया। भक्ति को जगाने के लिए मनुष्य ज्ञान की चर्चा करें, कर्म की चर्चा करें। जब तक पूरे तौर से भक्ति जगती नहीं है, तब तक ज्ञान और कर्म की जरूरत है -तब तक मनुष्य ज्ञान, कर्म की चर्चा करते रहें। और जब भक्ति जग गई तो परमपुरुष से प्रेरणा लेकर काम करें। यह जो विश्व-ब्रह्मांड है, यह सब परमपुरुष की सृष्टि है। इस दुनिया के सभी जीव उनकी संतान हैं, इनकी सेवा करने से परमपुरुष खुश होंगे, यह समझकर भक्त दुनिया की सेवा करते रहें, समाज की सेवा करते रहें, मनुष्य की सेवा करते रहें, बेसहारा को सहारा देते रहें। यह दुनिया परमपुरुष का ही सृजन है और इसकी सेवा करने से परमपुरुष प्रसन्न होंगे। हम सभी अपने धर्म का प्रचार करें, सेवा करें, किंतु हमेशा याद रखें कि वे यह सब करना है उस परमपुरुष को प्रसन्न करने के लिए। उसके पीछे और कोई वजह नहीं है। अत: भक्ति ही एकमात्र रास्ता है। और जब तक सच्ची भक्ति नहीं होती, तब तक ज्ञान की चर्चा करते रहो, कर्म की चर्चा करते रहो, और हमेशा याद रखो की यह ज्ञान चर्चा, कर्मचर्चा भक्ति को जगाने के लिए है, और उसे बढ़ाने के लिए है। (प्रस्तुति : आचार्य दिव्यचेतनानंद) Share Recommended section कुहनी के नीचे इस पॉइंट को दबाएं 18 से 20 बार पहली नजर में नहीं, चौथी नजर में होता है प्यार हर किसी के साथ मौजूद होती है एक अदृश्य ताकत महिलाओं की तरह पुरुषों को भी झेलनी पड़ती है ये परेशानी ये कहानियां नहीं वास्तविक घटनाएं हैं, जरा संभलकर Popular section पेट होगा अंदर, कमर होगी छरहरी अगर अपनायेंगे ये सिंपल नुस्खे एक ऋषि की रहस्यमय कहानी जिसने किसी स्त्री को नहीं देखा, किंतु जब देखा तो... किन्नरों की शव यात्रा के बारे मे जानकर हैरान हो जायेंगे आप कामशास्त्र के अनुसार अगर आपकी पत्नी में हैं ये 11 लक्षण तो आप वाकई सौभाग्यशाली हैं ये चार राशियां होती हैं सबसे ताकतवर, बचके रहना चाहिए इनसे Go to hindi.speakingtree.in

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