Friday, 3 November 2017

Vidur Niti

Toggle navigation Sanskrit Slokas Vidur Niti Vidur Niti, mainly on the science of politics, is narrated in the form of a conversation between Vidur and King Dhritraashtra in the great epic Mahabharata. Vidur was known for his wisdom, honesty and unwavering loyalty to the ancient Aryan kingdom of Hastinapur. Here is some slokas of Vidur Niti : एतयोपमया धीरः सत्रमेत बलीयसे । इन्द्राय स प्रणमते नमते यो बलीयसे ॥ भावार्थ : बुद्धिमान वही है जो अपने से अधिक बलवान के सामने झुक जाए। और बलवान को देवराज इंद्र की पदवी दी जाती है। अतः इंद्र के सामने झुकना देवता को प्रणाम करने के समान है। पर्जन्यनाथाः पशवो राजानो मन्त्रिबान्धवाः । पतयो बान्धवाः स्त्रीणां ब्राह्मणा वेदबान्धवाः ॥ भावार्थ : पशुओं के रक्षक बादल होते है ,राजा के रक्षक उसके मंत्री ,पत्नियों के रक्षक उनके पति तथा वेदो के रक्षक ब्राह्मण (ज्ञानी पुरुष ) होते हैं । सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते । मृजया रक्ष्यते रुपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ॥ भावार्थ : धर्म की रक्षा सत्य से होती है ,विद्या की रक्षा अभ्यास से ,सौंदर्य की रक्षा स्वच्छता से तथा कुल की रक्षा सदाचार से होती है। मानेन रक्ष्यते धान्यमश्चान् रक्षत्यनुक्रमः । अभीक्ष्णदर्शनं ग्राश्च स्त्रियो रक्ष्याः कुचैलतः ॥ भावार्थ : अनाज की रक्षा तौल से होती है ,घोड़े की रक्षा उसे लोट -पोट कराते रहने से होती है , सतत् देखरेख से गायों की रक्षा होती है और सादा वस्त्रों से स्त्रियों की रक्षा होती है। न कुलं वृत्तहीनस्य प्रमाणमिति में मतिः । अन्तेष्वपि हि जातानां वृतमेव विशिष्यते ॥ भावार्थ : ऊँचे या नीचे कुल से मनुष्य की पहचान नहीं हो सकती। मनुष्य की पहचान उसके सदाचार से होती है ,भले ही वह निचे कुल में ही क्यों न पैदा हुआ हो । य ईर्षुः परवित्तेषु रुपे वीर्ये कुलान्वये । सुखसौभाग्यसत्कारे तस्य व्याधिरनन्तकः ॥ भावार्थ : जो व्यक्ति दूसरों की धन -सम्पति ,सौंदर्य ,पराक्रम ,उच्च कुल ,सुख ,सौभाग्य और सम्मान से ईर्ष्या व द्वेष करता है वह असाध्य रोगी है। उसका यह रोग कभी ठीक नहीं होता। अकार्यकरणाद् भीतः कार्याणान्च विवर्जनात् । अकाले मन्त्रभेदाच्च येन माद्देन्न तत् पिबेत् ॥ भावार्थ : व्यक्ति को नशीला पेय नहीं पीना चाहिए ,आयोग्य कार्य नहीं करना चाहिए। योग्य कार्य करने में आलस्य नहीं करना चाहिए तथा कार्य सिद्ध होने से पहले उद्घाटित करने से बचना चाहिए। विद्यामदो धनमदस्तृतीयोऽभिजनो मदः । मदा एतेऽवलिप्तानामेत एव सतां दमाः ॥ भावार्थ : विद्या का अहंकार ,धन -सम्पति का अहंकार ,कुलीनता का अहंकार तथा सेवकों के साथ का अहंकार बुद्धिहीनों का होता है ,सदाचारी तो दमन द्वारा इनमें भी शांति खोज लेते है। 1 . . . . 11 12 13 14 15 16 17 18 19 Sanskrit Slokas(संस्कृत श्लोक) चाणक्य नीति श्लोक विदुर नीति श्लोक भगवद् गीता श्लोक विद्या श्लोक गुरु श्लोक प्रार्थना श्लोक सुभाषितानि श्लोक श्री दुर्गा सप्तश्लोकी संस्कृत निबंध प्रमुख श्लोक संस्कृत श्लोक गणेश मंत्र दुर्गा मंत्र शिव मंत्र सरस्वती मंत्र लक्ष्मी मंत्र श्री कृष्ण मंत्र वाल्मीकि रामायण श्लोक सत्य श्लोक परोपकार श्लोक व्यायाम श्लोक उपदेश श्लोक संस्कृत स्लोगन संस्कृत अनुवाद संस्कृत गिनती संस्कृत शब्दकोष गायत्री मंत्र इंडिया श्लोक © 2017 sanskritslokas.com. Designed by Krishna Jha - Privacy Policy - Contact Share on ➔ Twitter Facebook

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