Friday, 3 November 2017

आचार और विचार की शुद्धि साधना

आचार और विचार की शुद्धि साधना

चित्त की वृत्तियों को शुद्ध करने से ही आत्मा की प्राप्ति होती है जिसका अन्तःकरण मल विकारों से भरा है उसे आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकता। सत्कर्म के द्वारा भावना शुद्ध होती है और भाव शुद्धि से ईश्वर मिल जाता है। जो अपने दोषों को नहीं देखता, उनके शमन और निराकरण का उपाय नहीं करता उसकी सारी साधनाऐं आडम्बर मात्र हैं। मन को निर्मल बनाये बिना न भक्ति प्राप्त होती है, न उपासना बन पड़ती है। जिस ज्ञान से आचार शुद्ध न हों, सद्गुण न बढ़ें वह निरर्थक भार वहन मात्र है। जिस कर्म के पीछे उच्च भावनायें न हों वह बंधन में बाँधने वाला ही होता है। इसलिए ज्ञान, कर्म और भक्ति योग की साधना करके आत्मा की प्राप्ति करने के इच्छुकों को सब से पहले अपने आचार और विचार शुद्ध करने चाहियें।

—भगवान कृष्ण
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1962 Page 1

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