Monday 19 March 2018

संत की परीभाषा

8 18 Ishan Shivanand संत की परिभाषा - निरंतर ऊर्ध्वगती की जिज्ञासा 11 JUNE 2016 · PUBLIC दो प्रकार के श्रद्धालु होते हैं - पहले जो भगवान से प्रार्थना करते हैं की उन्हें जीवन के कष्टों से बचा लिया जाए, दूसरे जो भगवान से शक्ति माँगते हैं जिससे की वह उस शक्ति का सदुपयोग कर अपने उद्देश्य की प्राप्ती कर सकें| दूसरे प्रकार का व्यक्ति ही संत कहलाने के लायक है, एक विजई मनुष्य वही है| जो मनुष्य भयभीत रहता है, वह हर हमेशा एक रक्षक की खोज में रहेगा और ऐसा मनुष्य हमेशा लुकाछुपी का खेल खेलता हुआ ढाल ढूँदने में अपना जीवन व्यर्थ कर देगा| जो पहला मनुष्य है वह वाकई बलशाली है, उसके लिए कोई भी परिस्थिति प्रतिकूल नहीं है और विषम परिस्थति आने पर भी वह डटकर उसका सामना करेगा और ज़रूरतमंदों का मार्गदर्शक बनकर उभरेगा| ऐसा मनुष्य ही आविष्कार को जन्म देगा, अपने जीवन को सार्थक करेगा| यदि आप मेरे से पूछें की संत कौन है? मेरा उत्तर होगा की हर वो मनुष्य जो जीवन के हर मोड़ पर सीखने का भाव रखता है और जो हर कठिन घड़ी को जीवन में आगे बढ़ने के अवसर स्वरुप देखता है, चाहे वह कठिन घड़ी हो बीमारी, दर्द, पीड़ा या संताप, ऐसा मनुष्य संत है| यदि हम पीड़ा की बात करें तो इतिहास हमारा अध्यापक है की कोई भी ठोस वस्तु सुख में रह कर, आराम के दायरे में रहकर नही बनाई गई| मनुष्य का विकास आलस्य से नहीं हुआ| विकास का आधार ही थी विषम परिस्थ्तिति, विकट समस्या, बाधा| बाधा को पार करने हेतु लिए गये कदम ही क्रमिक विकास का कारण बने| और विकास केवल शरीर का नहीं, मन का भी| जीव जंतुओं ने भी क्रमिक विकास का जीता जागता उद्हारण पेश किया| मछलियाँ उद्भव करते हुए जलचरों की योनिः में रूपांतरित हुई और वह जलचर पक्षियों की योनि में ढल गए, पक्षी उद्भव करते हुए स्तनपायी जीवों में परिवर्तित हुए, इत्यादि ऐसा प्रकृति में उद्भेद का क्रम चला| और हर वह जीव जिसने विकास किया, उसने स्वीकार किया की परिस्थिति कठिन है और ऐसा होने से ज़रूरत है अपनी क्षमता और सूझ बूझ से समस्या का समाधान करने की| ऐसे ही सोच है जो हमें जीवन में सफलता की राह पर कहीं ना कहीं ले जाएगी, जिसे जीवविज्ञानी हरबर्ट स्पांसेर ने "सरवाइवल् ऑफ द फिटेस्ट" की संज्ञा दी| योग्य व्यक्ति वह नहीं है जो भाग्यवादी बनकर हिम्मत हार जाए, बल्कि वो है जो मुसीबत का डटकर सामना करे और उस मुसीबत से उपर उठकर एक बेहतर इंसान के रूप में दिखाई पड़े| गौरतलब है की आज पृथ्वी और पृथ्विवासी जहाँ हैं, वे इसलिए हैं क्योंकि प्रकृति में बदलाव आया - कितने उल्कपिंड गिरे, कितने ज्वालामुखी फटे, कितनी बार अकाल पड़ा, बाड़ आई, कितनी ही बार कितने ही जीव लुप्त हुए और ऐसा नही है की यह क्रम अंत हो गया है| यह क्रम चल रहा था, चल रहा है और चलता रहेगा| जब जब भी पृथ्वी पर संकट आया, तब तब अंततः कुछ बेहतर परिणाम निकल कर आया और मनुष्य का उदगम भी ऐसे ही हुआ| आज हम सुकून की ज़िंदगी जी पा रहे हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने तपस्या करी, अपनी चेतना का विकास किया, शुरुआती संकटों से उभरकर हमारा जीवन खुशहाल किया| तपस्या का अर्थ था की हमारा कैसा भी भाग्य निर्धारित हो, उसे हम साधना के माध्यम से बदल देंगे| चाहे असुर हों या देवता, हर श्रेणी के जीवों ने तप किया और अपना भाग्य बदला| किंतु आज, ऋषि मुनियों के ही वंशज, हम सभी मानव, साधना को मानो पूर्णतः भुला चुके हैं| गर्व तो हमें बहुत है इस संस्कृति पर, ऐसे स्वर्ण इतिहास पर, हमारे ऋषि पूर्वजों पर, किंतु इस संस्कृति, इस इतिहास की रीड की हड्डी, साधना से हम अज्ञात हैं| यह इतिहास हमारा है, इसको सिद्ध करने के लिए, दर्शाने के लिए हमारे पास वह शैली नहीं है| हम ऐसा कोई भी कर्म नही कर रहे हैं जिससे की हम यह दर्शा पाएं की हम उन्ही महानुभावियों के, दिव्य आत्माओं के वारिस हैं| सोचने की बात है की क्या हमने अपने जीवन में तपस्या को ढाला है या अभी भी हम भाग्य को, गुरु को, गृहों को कोस रहे हैं? क्या हम अपने दुर्भाग्य का बोझा काले जादू पर डाल रहे हैं? क्या बलि का बकरा हम समाज को बना रहे हैं? अपने बुरे भाग्य के लिए दोषारोपण का खेल खेलते हुए हम यह रवैय्या भी अपना लेते हैं की हमारी दुविधा के लिए प्रकृति ज़िम्मेदार है और जब तक पकृति कुछ नहीं करती, हम भी अपनी गैर ज़िमेदाराना सोच को टस से मस नही होने देंगे| हमें स्वयं को यह याद दिलाना पड़ेगा की जब तक हम खुद नही बदलते, किसी तीसरी वस्तु के बदलाव से हमारे अंदर कोई बदलाव नही आएगा| एक शिवयोगी होने के नाते हमें यह समझना होगा की हर परिस्थिति में, हर घड़ी में हमें अपने आपको ढालना होगा, न की परिस्थति बदलने की राह देखते रहना| दर्द, पीड़ा और दुख केवल लक्षण हैं उस सोच के जो भाग्यवादी है, जो दुर्भाग्य के सामने घुटने टेक देती है और ऐसा ढीठ रुख़ अपनाती है - मैं नही बदलूँगा, मैं नहीं क्षमा करूँगा, मैं अपनी मुसीबत को नहीं छोड़ूँगा, मैं दिव्यता को नहीं अपनाऊँगा| और ऐसी सोच रखना पकृति की शक्ति के विरुद्ध जाना है, जिससे की समस्या का समाधान पाना असंभव है| कुछ संभव है इस दृष्टिकोण को अपना कर तो वह है मन को झूठी तसल्ली देना, जैसे दर्द निवारण की गोली खाना| यदि हम चाहते हैं की हमारी संस्कृति जागृत रहे और इससे सभी का भला होता रहे, तो हमें चाहिए साधना को सीखना| साधना में शक्ति है बदलाव लाने की| साधना में शक्ति है परिस्थिति को रूपांतरित करने की| साधना हमें कारण देती है जीवन पर्व को खुशी से मनाने की| समय आ गया है जब हम दुखड़े रोना बंद कर दें, अपने भाग्य को दुतकारना बंद कर दें, अपने सामाजिक स्तर पर अश्रू बहाना बंद कर दें| समय है की अब हम अपने सतयुगी पूर्वजों के वास्तविक उतराधिकारी बन जाएं और तप को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लें| आज जब हज़ार संकटों का साया हमारे जीवन में मंडरा रहा है तो हम भगवान की ओर भाग रहे हैं, वहाँ भी शिकायत करने हेतु| यहीं हम अगर यह समझ जाएं की धन्यवाद प्रकट करना एक खुशहाल जीवन की कुंजी है तो न केवल हम अपने सुवोधा के दायरे से बाहर निकल पाएँगे बल्कि अपने जीवन में मनचाहा रूपांतरण, एक सुखद बदलाव लाने में सक्षम होंगे| समय आ गया है जब हम अपने जीवन का जश्न प्रारंभ करें और विकास के मार्ग को अपने जीवन में अंतरसात कर लें| याद रहे, जीवन में जो भी कठिनाई है, वह एक मौका है उन्नति करने का| हार में सफलता का बीज छिपा है| और यदि गुरु तुम्हारी परीक्षा लेता है तो तुम इस पर टिप्पणी मत करना, इसको सहज ही स्वीकार कर उसमें सफलता का बीज ढूंदना| जो तुम बनना चाहते तुम बन सकते हो| अपनी ऊर्जा को टिप्पणी में नहीं, व्यंग कसने में नहीं, अपनी शुद्धि करने में लगाओ क्योंकि जो मनुष्य अपनी ऊर्जा दूसरों के नुक्स ढूँदने में लगाता है, वह गहरी चोट खाने के साथ साथ मंदिर में भी आँसूं बहाता नज़र आता है| वहीं जो मनुष्य उपर उठना चाहता है, वह दूसरों के अवगुणों को न देखते हुए अपनी ऊर्जा स्वयं में केंद्रित करके रखता है, भगवान से शक्ति की माँग करता है ताकि आत्म विकास करते हुए वह एक बेहतर मनुष्य बन सके, जीवन में हर प्रकार के कष्ट को सहज ही पार कर सके, मोक्ष के और करीब आ सके इस हद्द तक की वह अपना अस्तित्व मिट्टी सा जाने| और जैसे एक कुम्हार मिट्टी को एक सुंदर स्वरूप देता है, वह मनुष्य भी अपने जीवन को सुंदर बना ले और एक शिवयोगी होने के साथ वह अपनी किस्मत, भाग्य और जीवन को अपने अनुसार, दिव्य हृदय के अनुसार, अपने गुरु की दिव्य ऊर्जा को इस्तेमाल कर अपने जीवन को सार्थक कर सके और तभी सही मायने में जीवन बदलेगा| तब ऐसा नही है की भगवान सब कुछ कर रहे हैं| तुम अपनी सहायता कर रहे हो और भगवान तुम्हारी सहायता कर रहे हैं| मुसीबतों से डरना नहीं उनका किर्तिगान करना सीखो क्योंकि यह समस्याएं ही तो हैं जो हमें विकास के मार्ग की ओर अग्रसर करती हैं| मेरा निजी अनुभव है की गुरु ऊर्ध्वगती के मार्ग को ज़रूरत से ज़्यादा मुश्किल बना देता है| किंतु ऐसा इसलिए नही की वह अपने आप को शिष्य से बड़ा दिखाना चाहता है, बल्कि इसलिए की वह चाहता है की शिष्य ऊर्द्धगामी बनें|जो मनुष्य रोने गाने में समय व्यर्थ कर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रखता है, वह अपने आप ही बिखर जाता है| पर जो व्यक्ति कठिन परिस्थिति को एक चुनौती के रूप में लेता है, वह स्वयं को ही नहीं अपितु देश को भी उन्नति के मार्ग पर ले जाता है| जीवन में खोज करो की भगवान ने कौन से अवसर प्रदान किए हैं? कहाँ गुंजाइश है सुधार करने की? यदि रोग है तो इसका धन्यवाद देना की अब तुम्हारे पास और स्वस्थ होने का अवसर है| यदि पीड़ा है तो भगवान का धन्यवाद करो की पीड़ा से उसने तुम्हारी आँखें खोली अन्यथा तुम आलस और अज्ञानता में डूबे रहते| यदि आर्थिक समस्या है तो भगवान का धन्यवाद करो की तुम्हारे पास अवसर है और काबिल होने का, और होशियार होने का जिससे की तुम संपन्न हो सको| याद रहे की पौधा-घर में लगे वृक्ष नाज़ुक होते हैं और आसानी से टूट जाते हैं, किंतु वन में लगे वृक्ष हष्ट-पुष्ट और मज़बूत होते हैं|तुम्हारे पूर्वज योद्धा थे| तुम्हारी संस्कृति वह है जिसमें किसी ने भाग्य के सामने घुटने नहीं टेके| भीतर की शिवाग्नि को अपनाओ, अपने अंतर ऋषि को जागृत करो| नमः शिवाय LikeShow More Reactions Comment Share 469 352 shares  View previous comments… Mahesh Jagtap thankyou 2 yrsLikeReplyMore Mahesh Jagtap thankyou 1 2 yrsLikeReplyMore Kalabhai Parmar Thank you 2 yrsLikeReplyMore Rammohan Chakravarti namha shivyay babaji 2 yrsLikeReplyMore Pradeep Sinngh Hey Babaji-Hey param Shiva please come help us so we can go to Atlanta -july shivir-thanks-unlimited gratitude to your divine lotus feet Namashivay -jay guru nama shivay 2 yrsLikeReplyMore Priti Sharma Koti koti pranam gurudev. PLZ heal me and my family. 2 yrsLikeReplyMore Induja Jha Ishan Shivanand welcome to USA..Sorry to I could not read this golden message since itcould not be translated to English.Please for us make it available in English. Thanks Namah Shivaya! 2 yrsLikeReplyMore Mahesh Bhatia Babaji guruma namah shivya 2 yrsLikeReplyMore Neelam Sharma Namah shivay babaji and isham bhaiya thanks a lot for your blessings and guidance 1 2 yrsLikeReplyMore Geeta Bawany Namashiway babaji. Girumaa. Ishanbhayiaji thank u for your.guidance n blessing 2 yrsLikeReplyMore Manisha Sareen Namah shivya babaji 2 yrsLikeReplyMore Suman Thakur Ishan ji Om Namah Shivya I am requesting you for suggesion here. Please reply. we are building new home. construction is going to start within two weeks. Is this ok if we place maha mritunjaya yantra and shtri yantra in foundation or any other suggesion. Thanks 1 2 yrsLikeReplyMore Pradeep Sinngh jaysadguru jay namashivay 2 yrsLikeReplyMore Rakesh Kumar Thankyou ishan bhaiya Namah shivay 2 yrsLikeReplyMore Suganaram Kheria Nemaha shiva ya See translation 2 yrsLikeReplyMore Suganaram Kheria Nemaha shivaya See translation 2 yrsLikeReplyMore Dhirendra Kumar Singh Guru wakyam parm wakyam 2 yrsLikeReplyMore Sapna Saannidhya Pranaams Babaji Gurumaa !! Namah Shivaya !!!! 2 yrsLikeReplyMore Hemant Bhangale nms. 1 2 yrsLikeReplyMore Sandeep Thakkar Namah shivay happy guru purnima babaji guruma ishanbhaiya. ..🌹🌷 2 yrsLikeReplyMore Sachin Kashyap Mera Guru Ji Meri Guru Ma ji Koti Koti Parnam Aap Ka Shree Charno Mei Meri Mummy Ji aur Meri Aur Se Mera baba ji 2 yrsLikeReplyMore Prakash Parekh Nanak shivay 2 yrsLikeReplyMore Prakash Parekh Namah shivay 1 2 yrsLikeReplyMore Rammohan Chakravarti Namha shivay ishanji. 1 2 yrsLikeReplyMore Kailash Yogi Namah shivay 1 yrLikeReplyMore Shiv Mittal nice 1 yrLikeReplyMore Dharmesh Jain Very nice namah shivay 1 yrLikeReplyMore Hiresh Pandey संत ह्रदय नवनीत समाना 🕉 नम:शिवाय 9 mthsLikeReplyMore Atul Sharma Sharma Ati sundar 2 mthsLikeReplyMore Write a comment...

No comments:

Post a Comment