Monday, 19 March 2018

पूर्ण संत की पहचान

Spiritual Discourses Sunday, September 11, 2011 पूर्ण संत की पहचान जगमग जोति गगन में झलकै, झीनी राग सुनावै | मधुर मधुर अनहद धुन बाजै, अमृत की झर लावै | जगत में बहुत गुरू कनफूका, फाँसी लाय बुझावै | कहै कबीर सोइ गुरू पूरा, जो कथनी आन मिलावै | संत कबीर जी कहते हैं कि आंतरिक गगन में ईश्वर की अखंड ज्योति निरन्तर जगमगा रही है | सच्चे नाम की झीनी - झीनी रागिनी श्वांसों में चल रही है | हर पल, हर क्षण भीतर मधुर अनहद नाद ध्वनित हो रहा है | यह लगातार बिना किसी के बजाए, स्वत: बज रहा है | भीतर के गगन मंडल से अमृत-रस निझर झरता रहता है | पर जरा गौर करें अंतिम पंक्तियों पर | इनमें कबीर दास जी बड़े ही पते की बात कहते हैं कि आज समाज में बहुतेरे ऐसे गुरू हैं, जो दीक्षा के समय कान में कोई मन्त्र फूँक देते हैं और इसे ही पूर्ण ज्ञान कहकर जगत को भरमाते हैं | पर पूरा गुरू वही है, जो एक जिज्ञासू को न केवल इन अनुभूतियों के विषय में बताये, बल्कि  इन्हें प्रकट भी कर दिखाए | कितना स्पष्ट बोला! इस प्रकार, सभी महापुरषों ने अपनी - अपनी शैली में इसी तथ्य को उजागर किया | साफ और खरे शब्दों में बताया कि पूर्ण गुरू वही है, जो भीतर ये दिव्य अनुभूतियों करा दे | वह भी तत्काल! ज्ञान दीक्षा के ही समय ! अब जी, यहाँ पर कुछ गुरूओं के शिष्य तो अंगद के पांव की तरह अड़ जाते हैं | कहते हैं, चलो यह तो हजम होता है कि सदगुरू ईश्वर दर्शन कराते हैं | मगर जाते ही किसी गुरू को कैसे इस कसोटी पर कस लें ? क्यों कि गुरू शरण में जाते ही प्रभु दर्शन थोड़े न हो जाता हैं | सबसे पहले तो हमें उनसे ज्ञान - दीक्षा लेकर नाम की कमाई करनी पड़ेगी | मन की मैल धोनी पड़ेगी | रोगी मन की दवा-दारू करनी होगी | कर्त-कर्त अभ्यास ते, जड़मति  होत सुजान - वाला सूत्र लगाकर खूब साधना अभ्यास करना होगा | अरे भई जम के तपस्या करनी होगी, तपस्या ! तब कहीं जाके तो प्रभु का दीदार होगा | ऐसे ही सीधे दीक्षा के समय थोड़े न... हमारे बाबा जी कहते हैं कि वे एक-न- एक दिन जरूर रब्ब को सामने ला खड़ा करेंगे....|' बहुत खूब ! क्या तर्क है या यूँ कहे कि अफवाह है | इससे आज की अस्सी प्रतिशत जनता भरमाई हुई है | 'दीक्षा के समय थोड़े न' और 'एक दिन जरूर दर्शन...' - ये दो पंक्तियाँ इतनी भयंकर रूप से ईश्वर इच्छालुओं और बाबाओं के भक्तों में रिकॉर्ड की गयी हैं कि जब उन्हें ऑन करो, यही स्वर निकलते हैं | पर हमें समझ नहीं आता कि यह  'एक दिन' आएगा कब ? 'दीक्षा के समय थोड़े न...'कहकर, क्या हम उन सभी पूर्ण सत्ताओं, महापुरषों,अवतारों, पीरों के खिलाफ बगावत नहीं कर रहे, जिन्होंने ढोल बजा - बजा कर  मुनीदी की थी - मैं सुखी हूं सुखु पाइआ | गुरि अंतरि सबदु वसाइआ | सतिगुरि पुरखि विखालिआ (दिखाया ) मसतकि धरि कै हथु जीउ || भाव सतगुरू के - नाम दीक्षा के वकत मस्तक पर हाथ धरा | भीतर आदिनाम प्रकट किया | साथ ही परम पुरष को प्रकट कर दिखा दिया | तत्षण ! उसी पल! जी हाँ, दीक्षा के समय ही! जगदगुरू श्री कृषण जी ने अर्जुन से क्या लारे-लप्पे लगाए थे - 'देख धनुधर! हम युद्ध - क्षेत्र में खड़े हैं | इसलिए अब तो मैं तुझे नाम-दीक्षा दे रहा हूँ | परन्तु युद्ध उपरांत तू किसी कुटीर या कंदरा में इसका जम के अभ्यास करना | तब एक दिन तू हमारे परमतत्व रूप को देख पाएगा?' नहीं, प्रत्युत वहीं, जलती समरभूमि पर अपने  शिष्य को विराट स्वरूप, कोटि-कोटि सूर्य, ब्रह्माण्ड -सबका उसी समय दर्शन कराया था | हम हर गवाही से पूर्व जिस गीता की सौगंध  खाते हैं, वह खुद गवाह रूप में कहती है - दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम - हे तात! मैं तुझे दिव्य दृष्टि प्रदान करता हूँ | तूं इसी क्षण मेरे योगैश्वर्य को देख! इस लिए सज्जनों ! चेतो! आपमें भर दी गयी ये दोनों पंक्तियाँ केवल कोरे दावे हैं  | खोखले दिलासे हैं | अगर आप के बाबा जी ने नाम-दीक्षा के समय प्रभु का नूरानी चमकार , अखंड ज्योति आदि अलोकिक दर्शन आपको नहीं कराए, तो सावधान! आगे भी नहीं करा पाएँगे | 'एक दिन' की झूठी आस में कहीं समय का चक्का ज्यादा आगे न दोड़ जाए | यह अफ़सोस तिल तिल करके न जलाए - खेलना जब उनको तूफानों से आता ही न था , फिर वो कश्ती के हमारे नाखुदा क्यों बन गए |  और जो बंधू अभी गुरू धारण करने का विचार कर रहे हैं, वे अब एक पल न गवाएँ | मेरी मानिए, आज ही 'सच्ची कसोटी' की सिल उठाएं | गुरू दरबारों या डेरों पर घिस कर देखें | जो खरा निकले, उसे गुरु धारण कर लें | उसके चरणों में जन्म-जन्मांतरों तक न छोड़ने की कसम खा लें |  अगर कहीं भी आप को ऐसा संत नहीं  मिलता,एक बार 'दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ' में जरूर पधारे | यहाँ आप सादर आमंत्रित है | आपको  यहाँ अवश्य ही शुद्ध कुंदन सी चमक मिलेगी | यह अहंकार नहीं,गर्व है! बहकावा नहीं,दावा है ! जो एक नहीं, श्री आशुतोष महाराज जी के हर शिष्य के मुख पर सजा है -'हमने ईश्वरीय ज्योति अर्थात प्रकाश और अनंत अलोकिक नजारे देखे है | अपने अंतर्जगत में ! वो भी दीक्षा के समय | हम ने उस प्रभु का दर्शन किया है,और आप भी कर सकते हैं | Gurpreet Singh at 9:25 AM Share No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me Gurpreet Singh View my complete profile Powered by Blogger.

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