Wednesday, 21 March 2018
प्राणायाम के समान ही स्वर साधना भी विज्ञान
समाचार समीक्षा
प्राणायाम के समान ही स्वर साधना भी विज्ञान |
क्रांति दूत सोमवार, 10 नवंबर 2014
परिचय- जिस तरह वायु का बाहरी उपयोग है वैसे ही उसका आंतरिक और सूक्ष्म उपयोग भी है। जिसके विषय में जानकर कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति आध्य...
परिचय-
जिस तरह वायु का बाहरी उपयोग है वैसे ही उसका आंतरिक और सूक्ष्म उपयोग भी है। जिसके विषय में जानकर कोई भी प्रबुद्ध व्यक्ति आध्यात्मिक तथा सांसरिक सुख और आनंद प्राप्त कर सकता है। प्राणायाम की ही तरह स्वर विज्ञान भी वायुतत्व के सूक्ष्म उपयोग का विज्ञान है जिसके द्वारा हम बहुत से रोगों से अपने आपको बचाकर रख सकते हैं और रोगी होने पर स्वर-साधना की मदद से उन रोगों का उन्मूलन भी कर सकते हैं। स्वर साधना या स्वरोदय विज्ञान को योग का ही एक अंग मानना चाहिए। ये मनुष्य को हर समय अच्छा फल देने वाला होता है, लेकिन ये स्वर शास्त्र जितना मुश्किल है, उतना ही मुश्किल है इसको सिखाने वाला गुरू मिलना। स्वर साधना का आधार सांस लेना और सांस को बाहर छोड़ने की गति स्वरोदय विज्ञान है। हमारी सारी चेष्टाएं तथा तज्जन्य फायदा-नुकसान, सुख-दुख आदि सारे शारीरिक और मानसिक सुख तथा मुश्किलें आश्चर्यमयी सांस लेने और सांस छोड़ने की गति से ही प्रभावित है। जिसकी मदद से दुखों को दूर किया जा सकता है और अपनी इच्छा का फल पाया जाता है।
प्रकृति का ये नियम है कि हमारे शरीर में दिन-रात तेज गति से सांस लेना और सांस छोड़ना एक ही समय में नाक के दोनो छिद्रों से साधारणत: नही चलता। बल्कि वो बारी-बारी से एक निश्चित समय तक अलग-अलग नाक के छिद्रों से चलता है। एक नाक के छिद्र का निश्चित समय पूरा हो जाने पर उससे सांस लेना और सांस छोड़ना बंद हो जाता है और नाक के दूसरे छिद्र से चलना शुरू हो जाता है। सांस का आना जाना जब एक नाक के छिद्र से बंद होता है और दूसरे से शुरू होता है तो उसको `स्वरोदय´ कहा जाता है। हर नथुने में स्वरोदय होने के बाद वो साधारणतया 1 घंटे तक मौजूद रहता है। इसके बाद दूसरे नाक के छिद्र से सांस चलना शुरू होता है और वो भी 1 घंटे तक रहता है। ये क्रम रात और दिन चलता रहता है।
जानकारी-
जब नाक से बाएं छिद्र से सांस चलती है तब उसे `इड़ा´ में चलना अथवा `चंद्रस्वर´ का चलना कहा जाता है और दाहिने नाक से सांस चलती है तो उसे `पिंगला´ में चलना अथवा `सूर्य स्वर´ का चलना कहते हैं और नाक के दोनो छिद्रों से जब एक ही समय में बराबर सांस चलती है तब उसको `सुषुम्ना में चलना कहा जाता है।स्वरयोग-
योग के मुताबिक सांस को ही स्वर कहा गया है। स्वर मुख्यत: 3 प्रकार के होते हैं-चंद्रस्वर-
जब नाक के बाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसको चंद्रस्वर कहा जाता है। ये शरीर को ठंडक पहुंचाता है। इस स्वर में तरल पदार्थ पीने चाहिए और ज्यादा मेहनत का काम नही करना चाहिए।सूर्यस्वर-
जब नाक के दाईं तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो तो उसे सूर्य स्वर कहा जाता है। ये स्वर शरीर को गर्मी देता है। इस स्वर में भोजन और ज्यादा मेहनत वाले काम करने चाहिए।स्वर बदलने की विधि-
नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चल रहा हो तो उसे दबाकर बंद करने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
जिस तरफ के नाक के छिद्र से स्वर चल रहा हो उसी तरफ करवट लेकर लेटने से दूसरा स्वर चलने लगता है।
नाक के जिस तरफ के छिद्र से स्वर चलाना हो उससे दूसरी तरफ के छिद्र को रुई से बंद कर देना चाहिए।
ज्यादा मेहनत करने से, दौड़ने से और प्राणायाम आदि करने से स्वर बदल जाता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम करने से स्वर पर काबू हो जाता है। इससे सर्दियों में सर्दी कम लगती है और गर्मियों में गर्मी भी कम लगती है।स्वर ज्ञान से लाभ-
जो व्यक्ति स्वर को बार-बार बदलना पूरी तरह से सीख जाता है उसे जल्दी बुढ़ापा नही आता और वो लंबी उम्र भी जीता है।
कोई भी रोग होने पर जो स्वर चलता हो उसे बदलने से जल्दी लाभ होता है।
शरीर में थकान होने पर चंद्रस्वर (दाईं करवट) लेटने से थकान दूर हो जाती है।
स्नायु रोग के कारण अगर शरीर मे किसी भी तरह का दर्द हो तो स्वर को बदलने से दर्द दूर हो जाता है।
दमे का दौरा पड़ने पर स्वर बदलने से दमे का दौरा कम हो जाता है। जिस व्यक्ति का दिन में बायां और रात में दायां स्वर चलता है वो हमेशा स्वस्थ रहता है।
गर्भधारण के समय अगर पुरुष का दायां स्वर और स्त्री का बायां स्वर चले तो उस समय में गर्भधारण करने से निश्चय ही पुत्र पैदा होता है।जानकारी-
प्रकृति शरीर की जरूरत के मुताबिक स्वरों को बदलती रहती है। अगर जरूरत हो तो स्वर बदला भी जा सकता है।
वाम स्वरपरिचय-
जिस समय व्यक्ति का बाईं तरफ का स्वर चलता हो उस समय स्थिर, सौम्य और शांति वाला काम करने से वो काम पूरा हो जाता है जैसे- दोस्ती करना, भगवान के भजन करना, सजना-संवरना, किसी रोग की चिकित्सा शुरू करना, शादी करना, दान देना, हवन-यज्ञ करना, मकान आदि बनवाना शुरू करना, किसी यात्रा की शुरूआत करना, नई फसल के बीज बोना, पढ़ाई शुरू करना आदि।
दक्षिण स्वरपरिचय-
जिस समय व्यक्ति का दाईं तरफ का स्वर चल रहा हो उस समय उसे काफी मुश्किल, गुस्से वाले और रुद्र कामों को करना चाहिए जैसे- किसी चीज की सवारी करना, लड़ाई में जाना, व्यायाम करना, पहाड़ पर चढ़ना, स्नान करना और भोजन करना आदि।
सुषुम्नापरिचय-
जिस समय नाक के दोनों छिद्रों से बराबर स्वर चलते हो तो इसे सुषुम्ना स्वर कहते हैं। उस समय मुक्त फल देने वाले कामों को करने से सिद्धि जल्दी मिल जाती है जैसे- धर्म वाले काम में भगवान का ध्यान लगाना तथा योग-साधना आदि करने चाहिए।विशेष-
जो काम `चंद्र और `सूर्य´ नाड़ी में करने चाहिए उन्हे `सुषुम्ना´ के समय बिल्कुल भी न करें नही तो इसका उल्टा असर पड़ता है।
स्वर चलने का ज्ञानपरिचय-
अगर कोई व्यक्ति जानना चाहता है कि किस समय कौन सा स्वर चल रहा है तो इसको जानने का तरीका बहुत आसान है। सबसे पहले नाक के एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। फिर इस छिद्र को बंद करके उसी तरह से दूसरे छिद्र से 2-4 बार जोर-जोर से सांस लीजिए। नाक के जिस छिद्र से सांस लेने और छोड़ने में आसानी लग रही हो समझना चाहिए कि उस तरफ का स्वर चल रहा है और जिस तरफ से सांस लेने और छोड़ने मे परेशानी हो उसे बंद समझना चाहिए।
इच्छा के मुताबिक सांस की गति बदलनापरिचय-
अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से अपनी सांस की चलने की गति को बदलना चाहता है तो इसकी 3 विधियां है-सांस की गति बदलने की विधि-
नाक के जिस तरफ के छेद से सांस चल रही हो, उसके दूसरी तरफ के नाक के छिद्र को अंगूठे से दबाकर रखना चाहिए तथा जिस तरफ से सांस चल रही हो वहां से हवा को अंदर खींचना चाहिए। फिर उस तरफ के छिद्र को दबाकर नाक के दूसरे छिद्र से हवा को बाहर निकालना चाहिए। कुछ देर तक इसी तरह से नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने से सांस की गति जरूर बदल जाती है।
जिस तरफ के नाक के छिद्र से सांस चल रही हो उसी करवट सोकर नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से छोड़ने की क्रिया को करने से सांस की गति जल्दी बदल जाती है।
नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस चल रही हो सिर्फ उसी करवट थोड़ी देर तक लेटने से भी सांस के चलने की गति बदल जाती है।
प्राणवायु को सुषुम्ना में संचारित करने की विधि :परिचय-
प्राणवायु को सुषुम्ना नाड़ी में जमा करने के लिए सबसे पहले नाक के किसी भी एक छिद्र को बंद करके दूसरे छिद्र से सांस लेने की क्रिया करें और फिर तुरंत ही बंद छिद्र को खोलकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर निकाल दीजिए। इसके बाद नाक के जिस तरफ के छिद्र से सांस छोड़ी हो, उसी से सांस लेकर दूसरे छिद्र से सांस को बाहर छोड़िये। इस तरह नाक के एक छिद्र से सांस लेकर दूसरे से सांस निकालने और फिर दूसरे से सांस लेकर पहले से छोड़ने से लगभग 50 बार में प्राणवायु का संचार `सुषुम्ना´ नाड़ी में जरूर हो जाएगा।
स्वर साधना का पांचो तत्वों से सम्बंधपरिचय-
हमारे शरीर को बनाने में जो पांच तत्व (आकाश, पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल) होते हैं उनमें से कोई ना कोई तत्व हर समय स्वर के साथ मौजूद रहता है। जब तक स्वर नाक के एक छिद्र से चलता रहता है, तब तक पांचो तत्व 1-1 बार उदय होकर अपने-अपने समय तक मौजूद रहने के बाद वापिस चले जाते हैं।
स्वर के साथ तत्वों का ज्ञानपरिचय-
स्वर के साथ कौन सा तत्व मौजूद होता है, ये किस तरह कैसे जाना जाए पंचतत्वों का उदय स्वर के उदय के साथ कैसे होता है और उन्हे कैसे जाना जा सकता है। इसके बहुत से उपाय है, लेकिन ये तरीके इतने ज्यादा बारीक और मुश्किल होते हैं कि कोई भी आम व्यक्ति बिना अभ्यास के उन्हे नही जान सकता।
जैसे-
नाक के छिद्र से चलती हुई सांस की ऊपर नीचे तिरछे बीच में घूम-घूमकर बदलती हुई गति से किसी खास तत्व की मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है।
हर तत्व का अपना एक खास आकार होता है। इसलिए निर्मल दर्पण पर सांस को छोड़ने से जो आकृति बनती है उस आकृति को देखकर उस समय जो तत्व मौजूद होता है, उसका पता चल जाता है।
शरीर में स्थित अलग-अलग चक्रों द्वारा किसी खास तत्व की मौजूदगी का पता लगाया जाता है।
हर तत्व का अपना-अपना एक खास रंग होता है। इससे भी तत्वों के बारे में पता लगाया जा सकता है।
हर तत्व का अपना एक अलग स्वाद होता है। उसके द्वारा भी पता लगाया जा सकता है।
सुबह के समय तत्व के क्रम द्वारा नाक के जिस छिद्र से सांस चलती हो उसमे साधारणत: पहले वायु, फिर अग्नि, फिर पृथ्वी इसके बाद पानी और अंत में आकाश का क्रमश: 8, 12, 20, 16 और 4 मिनट तक उदय होता है।जानकारी-
तत्वों के परिमाण द्वारा भी किसी तत्व की स्वर के साथ मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है। इसका तरीका ये है कि बारीक हल्की रुई लेकर उसे जिस नाक के छिद्र से सांस चल रही हो, उसके पास धीरे-धीरे ले जाइए। जहां पर पहले-पहले रुई हवा की गति से हिलने लगे वहां पर रुक जाए और उस दूरी को नाप लीजिए। यदि वो दूरी कम से कम 12 उंगली की निकले तो पृथ्वी तत्व 16 अंगुल है, जल तत्व 4 अंगुल है, अग्नि तत्व 8 अंगुल है और वायु तत्व 20 अंगुल है तो आकाश तत्व की मौजूदगी समझनी चाहिए।
स्वर साधना के चमत्कार और उससे स्वास्थ्य की प्राप्तिपरिचय-
असल जिंदगी मे स्वर की महिमा बहुत ही ज्यादा चमत्कारिक है। इसके कुछ सरल प्रयोग नीचे दिये जा रहे हैं।जानकारी-
सुबह उठने पर पलंग पर ही आंख खुलते ही जो स्वर चल रहा हो उस ओर के हाथ की हथेली को देखें और उसे चेहरे पर फेरते हुए भगवान का नाम लें। इसके बाद जिस ओर का स्वर चल रहा हो उसी ओर का पैर पहले बिस्तर से नीचे जमीन पर रखें। इस क्रिया को करने से पूरा दिन सुख और चैन से बीतेगा।
अगर किसी व्यक्ति को कोई रोग हो जाए तो उसके लक्षण पता चलते ही जो स्वर चलता हो उसको तुरंत ही बंद कर देना चाहिए और जितनी देर या जितने दिनो तक शरीर स्वस्थ न हो जाए उतनी देर या उतने दिनो तक उस स्वर को बंद कर देना चाहिए। इससे शरीर जल्दी ही स्वस्थ हो जाता है और रोगी को ज्यादा दिनों तक कष्ट नही सहना पड़ता।
अगर शरीर में किसी भी तरह की थकावट महसूस हो तो दाहिने करवट सो जाना चाहिए, जिससे `चंद्र´ स्वर चालू हो जाता है और थोड़े ही समय में शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है।
स्नायु रोग के कारण अगर शरीर के किसी भाग में किसी भी तरह का दर्द हो तो दर्द के शुरू होते ही जो स्वर चलता हो, उसे बंद कर देना चाहिए। इस प्रयोग को सिर्फ 2-4 मिनट तक ही करने से रोगी का दर्द चला जाता है।
जब किसी व्यक्ति को दमे का दौरा पड़ता है उस समय जो स्वर चलता हो उसे बंद करके दूसरा स्वर चला देना चाहिए। इससे 10-15 मिनट में ही दमे का दौरा शांत हो जाता है। रोजाना इसी तरह से करने से एक महीने में ही दमे के दौरे का रोग कम हो जाता है। दिन में जितनी भी बार यह क्रिया की जाती है, उतनी ही जल्दी दमे का दौरा कम हो जाता है।
जिस व्यक्ति का स्वर दिन में बायां और रात मे दायां चलता है, उसके शरीर में किसी भी तरह का दर्द नही होता है। इसी क्रम से 10-15 दिन तक स्वरों को चलाने का अभ्यास करने से स्वर खुद ही उपर्युक्त नियम से चलने लगता है।
रात को गर्भाधान के समय स्त्री का बांया स्वर और पुरुष का अगर दायां स्वर चले तो उनके घर में बेटा पैदा होता है तथा स्त्री-पुरुष के उस समय में बराबर स्वर चलते रहने से गर्भ ठहरता नही है।
जिस समय दायां स्वर चल रहा हो उस समय भोजन करना लाभकारी होता है। भोजन करने के बाद भी 10 मिनट तक दायां स्वर ही चलना चाहिए। इसलिए भोजन करने के बाद बायीं करवट सोने को कहा जाता है ताकि दायां स्वर चलता रहे। ऐसा करने से भोजन जल्दी पच जाता है और व्यक्ति को कब्ज का रोग भी नही होता। अगर कब्ज होता भी है तो वो भी जल्दी दूर हो जाता है।
किसी जगह पर आग लगने पर जिस ओर आग की गति हो उस दिशा में खड़े होकर जो स्वर चलता हो, उससे वायु को खींचकर नाक से पानी पीना चाहिए। ऐसा करने से या तो आग बुझ जाएगी या उसका बढ़ना रुक जाएगा।
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