Friday, 23 March 2018
नाड़ी शोधन
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नाड़ी शोधन प्राणायाम का सही तरीका और लाभ
नाड़ी शोधन प्राणायम से सूर्य स्वर और चंद्र स्वर में बैलेंस बनता है।
आपने नाड़ी शोधन प्राणायाम के बारे में जरूर सुना होगा। आज हम आपको इस प्राणायाम को करने का सही तरीका और इससे होने वाले फायदों के बारे में बतायेंगे। सबसे पहले तो ये समझें कि नाड़ीशोधन है क्या। योग विज्ञान के मुताबिक, हमारे शरीर में 72 हजार से ज्यादा नाड़ियां हैं। हर एक का अलग अलग काम है। मॉडर्न साइंस इन्हें नहीं खोज पाया मगर पुराने ग्रंथ इसकी गवाही देते हैं।
बहरहाल हम अभी दो नाडि़यों की बात करते हैं सूर्य नाड़ी और च्रंद नाड़ी। हमारी नाक के बायें छेद से जुड़ी है चंद्र नाड़ी और दायें से सूर्य नाड़ी। हम नाक के दोनों छेदों – नसिकाओं से सांस नहीं लेते। जब हम बाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो योग की भाषा में हम कहते हैं कि हमारा चंद्र स्वर चल रहा है। जब हम दाईं नसिका से सांस ले रहे होते हैं तो हम कहते हैं कि हमारा सूर्य स्वर चल रहा है।
क्या है नाड़ी शोधन
चंद्र स्वर से हमारे शरीर में ठंडक पहुंचती है और मन शांत होता है वहीं सूर्य स्वर गर्मी देने वाला होता है और इससे हमारा तेज बढ़ता है। नाड़ी शोधन का मकसद इन दोनों में बैलेंस करना होता है। इससे हमारे सिंपेथेटिक और पैरा सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है।
नाड़ी शोधन करने का सही तरीका
अपनी कमर को सीधा रखते हुए पदमासन, अर्ध पदमासन या सुखासन जिसमें भी आप सुविधा के हिसाब से बैठ पायें उसमें बैठ जायें। गर्दन आपकी न तो ऊपर की ओर उठेगी न नीचे की ओर झुकेगी। गर्दन की सही पोजीशन क्या रहे इसे नापने का सबसे आसान तरीका ये है कि अपनी गर्दन से सटाकर चार उंगलियों का गैप रखें। बस गर्दन यहीं रहेगी, बहुत हल्की सी झुकी हुई।
दाहिने हाथ के अंगूठे से दाईं नसिका को बंद करें, मध्यमा यानी मिडिल फिंगर से बाईं नसिका को बंद करें। चाहें तो तर्जनी उंगली यानी फोर फिंगर को अपनी आई ब्रो, भौं के बीच में रख लें। वैसे फोर फिंगर को बीच में रखना जरूरी नहीं।
आपका दायां हाथ जितना हो सके उतना बॉडी से सटा रहे। उसे उठायें नहीं क्योंकि अगर आपने उसे उठा लिया तो थोड़ी ही देर में आपका हाथ दुखने लगेगा।
योग में सांस लेने को पूरक, सांस छोड़ने को रेचक और सांस रोकने को कुंभक कहते हैं। जब सांस लेकर रोकी जाये तो उसे आतंरिक कुंभक और जब सांस छोड़कर रोकी जाये तो उसे बाहरी कुंभक कहते हैं।
आंखें कोमलता से बंद कर लें। गर्मी के मौसम में चंद्र स्वर या यानी बाईं नसिका से सांस भरते हुए इसे शुरू करें और सर्दी के मौसम में सूर्य स्वर यानी दाईं नसिका से सांस लेते हुए शुरू करें।
मान लें अभी गर्मी चल रही है तो अपने अंगूठे से दाईं नसिका को दबा लें और बाईं नसिका से सांस भरें दाईं नसिका से छोड़ें फिर दाईं नसिका से सांस लें और बाईं से छोड़ें। यही क्रम चलता रहेगा। सांस लंबा और गहरा लें, जबरदस्ती न करें। कोशिश करें कि आपकी सांस लेने की आवाज न आये।
अगर कर सकते हैं तो पूरक और रेचक का अनुपात 1: 2 रखें यानी अगर सांस लेने में 5 सेकेंड का वक्त लगता है तो सांस छोड़ने में 10 सेकेंड का वक्त लगे।
अब अगर कर सकते हैं तो धीरे धीरे कुंभक करें यानी सांस भरने के बाद जितना आसानी से रुका जा सके रुकें और सांस छोड़ने के बाद जितना आसानी से रुक सकते हैं रुकें। ध्यान रखें जबरदस्ती कतई नहीं करनी है। वरना
प्राणायाम का अर्थ ही खत्म हो जायेगा। सबकुछ सहज भाव से चलने दें।
इसके आगे जा सकते हैं तो फिर कुंभक में भी पूरक से दोगुना समय लगायें यानी सांस लेने में अगर 5 सेंकेंड लगे तो कुंभक (आंतरिक) में 10 सेकेंड, फिर रेचक (सांस छोड़ना) में 10 सेकेंड फिर कुंभक (बाहरी) में 10 सेकेंड। आपको एक एक करके आगे बढ़ना है।
पहले केवल सांस लें और छोड़ें। फिर सांस लेने और छोड़ने में 1 और 2 का रेशो रखें। फिर 1, 2 और 2 के रेशो में सांस लें, सांस रोकें और सांस छोड़ें। इसके बाद 1, 2, 2 और 2 के रेशो में सांस लें, सांस रोकें, सांस छोड़ें, फिर सांस रोकें।
बाईं नसिका से सांस लेना, दाईं से छोड़ना और फिर दाईं नसिका से सांस लेना और बाईं से छोड़ने को एक आवृति माना जाता है। आप नौ बार यानी नौ आवृति करें।
इस प्राणायाम को आप दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और शाम को कर सकते हैं। वैसे सुबह का वक्त सबसे अच्छा होता है।
नाड़ी शोधन के लाभ
इससे दोनों नाड़ियों में बैलेंस बनता है। बॉडी का तापमान सही बना रहता है।
नर्वस सिस्टम ताकतवर बनता है।
मन का झुकाव अच्छे व्यवहार और सादगी की ओर बढ़ता है।
इसमें कुंभक करने से ऑक्सीजन फेफड़ों के आखिरी हिस्सों तक पहुंचती है। इससे खून में मौजूद गंदगी बाहर निकलती है।
फेफड़ों की ताकत बढ़ती है और उनके काम करने की ताकत बढ़ती है।
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