Tuesday, 6 March 2018

स्वर-साधना द्वारा कार्य सिद्धि

All World Gayatri Pariwar 🔍 PAGE TITLES December 1959 स्वर-साधना द्वारा कार्य सिद्धि (पं. रामकुमार शर्मा काव्य तीर्थ) मानव जीवन से श्वाँस का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। साधारण बोल चाल में तो यही कहा जाता है कि “जब तक साँस तब तक आस।” इसका आशय यही हुआ कि साँस ही जीवन है। यद्यपि यह सभी को मालूम है कि हमारी जीवन-धारा का सबसे बड़ा आधार यह श्वास-प्रश्वास ही है, पर इस श्वासोच्छास में कोई विशेष रहस्य है, कोई बड़ी शक्ति निहित है, इसका ज्ञान बहुत थोड़े लोगों को है। पर जिन ज्ञानीजनों ने इस विषय में खोज की है वे इस निर्णय पर पहुँचे हैं कि मानव जीवन की प्रत्येक क्रिया से इस श्वास-प्रश्वास का सम्बन्ध है। सुख-दुःख, स्वास्थ्य, रोग सब प्रकार की आपत्तियाँ और सफलता आदि सभी बातों पर इसका प्रभाव पड़ता है और यदि मनुष्य इस विषय से सम्बन्ध रखने वाले नियमों को जान ले तो वह बहुत कुछ लाभ उठा सकता है। भारतीय साधकों ने इस विषय का बहुत सूक्ष्म रूप से विवेचन करके “स्वरोदय” नाम का एक स्वतंत्र विज्ञान ही रच दिया है। इस शास्त्र में बतलाया गया है कि मनुष्य के पृष्ठ देश में तीन नाड़ियाँ हैं- इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। मनुष्य जो श्वास लेता है वह प्रायः इड़ा और पिंगला अथवा नाक के दाँये या बाँये नथुने से चला करता है। इसका आशय यह है कि अगर हम नाक के एक-एक नथुने को दबाकर साँस लें तो एक में होकर तो वह आसानी से आती जाती मालूम पड़ेगी और दूसरे से कुछ रुकावट जान पड़ेगी। जिस समय तरफ के नथुने से साँस आसानी से चल रही हो उस समय उसी स्वर को चलता हुआ मानना चाहिये। दाँये नथुने से चलने वाली साँस को सूर्य स्वर और बाँये नथुने से चलने वाली को चन्द्र स्वर भी कहते हैं। योगियों के मतानुसार सूर्य स्वर गर्मी उत्पन्न करने वाला और चन्द्र स्वर ठंड का उत्पादक होता है। स्वरोदय शास्त्र के अनुसार इन दोनों स्वरों के प्रभाव और फल भिन्न-भिन्न माने गये हैं और ऐसे कितने ही नियम बतलाये गये हैं, जिनके अनुसार व्यवहार करने से अनेक कार्यों के तौर पर कुछ नियम यहाँ उद्धृत किये जाते हैं- (1) यदि आप किसी के पास नौकरी, मुकदमा या किसी अन्य कार्य के लिये जा रहे हों, तो चलते समय पहले उसी पैर को उठाइये जिस तरफ का स्वर उस समय चल रहा हो। फिर उस व्यक्ति के पास पहुँच कर भी उसे चलते हुये स्वर की ओर ही रखना चाहिये। इसका उस पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा। (2) जो लोग अपना भाग्योदय चाहते है उनको सदैव सूर्योदय से आधा घंटा पहले उठना चाहिये और जो स्वर चल रहा हो उसी तरह के हाथ को मुख फेर कर बैठना चाहिये। खाट पर से उतरते समय भी उसी तरफ के पैर को पहले जमीन पर रखना चाहिये। नित्य प्रति ऐसा आचरण करने वाला सुखी रहता है। (3) आग बुझाने में स्वर ज्ञान से बड़ी मदद मिलती है। अगर आग लगी हो या आग लग जाने पर जिस ओर की पवन से अग्नि बढ़ रही हो उस ओर पानी का पात्र लेकर खड़ा हो जाय। फिर जिस नथुने से साँस चल रही हो उससे साँस खींचते हुए थोड़ा सा पानी पियें। फिर उस जल पात्र में से सात रत्ती जल अंजलि में लेकर आग पर छिड़क दें। ऐसा करने से बढ़ती हुई आग कम पड़ कर बुझ जायेगी। (4) स्वरोदय शास्त्र में स्वरों के चलने और उनमें परिवर्तन होने के जो नियम बतलाये हैं अगर वे ठीक ढंग से चलते रहे तो मनुष्य का स्वास्थ्य प्रायः ठीक रहता है और कोई बीमारी नहीं होती पर यदि किसी कारणवश मनुष्य बीमार हो जाय तो निम्नलिखित नियमों से सहायता मिल सकती है- (क) जब शरीर में हरारत जान पड़े तो उस समय जो स्वर चल रहा हो उसे बन्द करके दूसरे नथुने से साँस लेनी चाहिये। जब तक पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाये बराबर उस नथुने को नरम रुई भर कर बन्द रखना चाहिए। (ख) जिन्हें स्थायी कब्ज या बदहजमी रहती है उन्हें दाँये स्वर के चलते समय भोजन करना चाहिये और संभव हो तो भोजन करने के बाद 15-20 मिनट तक बाँई करवट से लेटना भी चाहिये। (ग) छाती, कमर, पीठ, पेट आदि कहीं पर एक दम दर्द उठने पर जो स्वर चलता हो उसे सहसापूर्ण बन्द कर देने से कैसा भी दर्द होगा फौरन शान्त हो जायगा। (घ) जब दमे का दौरा शुरू होने लगे और साँस फूलने लगे, तब जो स्वर चल रहा हो, उसे एक दम बन्द करदे। इससे 10-15 मिनट में ही आराम होता नजर आयेगा। इस रोग को जड़ से नाश करने के लिये लगातार एक मास तक चलते हुए स्वर को बन्द करके दूसरा स्वर चलाने का अभ्यास जितना ज्यादा हो सके उतना करते रहने से दमा नष्ट हो जाता है। (ड़) परिश्रम से उत्पन्न थकावट दूर करने के लिये या धूप की गरमी को शान्त करने के लिये थोड़ी देर तक दाहिनी करवट से लेटने से थकावट या गरमी दूर हो जाती है। स्वर शास्त्र बड़ा विस्तृत है और उसमें स्वर के साथ ही तत्वों का विचार रखना भी आवश्यक होता है, तभी पूर्ण सफलता मिलती है। मनुष्य के शरीर में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व का अवस्थान माना गया है और इनमें से एक समय में कोई एक तत्व उदय होता रहता है। वैसे तो तत्वों का वास्तविक स्थान उनके रंगों से होता है, पर उसके लिये विशेष साधन और अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसलिये उसकी पहिचान आकार से करनी चाहिये। एक निर्मल दर्पण पर जो से श्वाँस छोड़ने पर अगर चौकोर आकृति बने तो पृथ्वी तत्व, अर्द्ध चन्द्रकार बने तो जल तत्व, त्रिकोण बने तो अग्नि तत्व, लम्ब गोल आकृति बने तो वायु तत्व और बिन्दु-बिन्दु दिखाई दे तो आकाश तत्व समझना चाहिये। इसी प्रकार प्रत्येक तत्व के उदय के समय नाक से बाहर निकलने वाली साँस की लम्बाई में भी अन्तर होता है। पृथ्वी तत्व के समय साँस की लम्बाई 12 अंगुल, जल तत्व की 16 अंगुल, अग्नि तत्व की 4 अंगुल, वायु तत्व की 8 अंगुल और आकाश तत्व की 20 अंगुल होती है। बहुत हलकी धुनी हुई रुई या बहुत बारीक धूल नाक के पास ले जाने से जितने फासले पर वह उड़ने लगे उतनी ही साँस की लम्बाई समझनी चाहिये। आवश्यकता होने पर स्वर को बदलने का सबसे सहज तरीका यह है कि जो स्वर चल रहा हो उससे उलटी करवट लेट जाय। जैसे बायाँ स्वर चल रहा हो तो बाँये हाथ की तरफ करवट लेट जाने से थोड़ी देर में बाँया स्वर बन्द होकर दाहिना चलने लग जायेगा। gurukulamFacebookTwitterGoogle+TelegramWhatsApp Months January February March April May June July August September October November December  अखंड ज्योति कहानियाँ डर वास्तव में (Kahani) वह उदय हुआ (kahani) डार्विन वास्तविक आयु See More 6_Mar_2018_5_7279.jpg More About Gayatri Pariwar Gayatri Pariwar is a living model of a futuristic society, being guided by principles of human unity and equality. It's a modern adoption of the age old wisdom of Vedic Rishis, who practiced and propagated the philosophy of Vasudhaiva Kutumbakam. Founded by saint, reformer, writer, philosopher, spiritual guide and visionary Yug Rishi Pandit Shriram Sharma Acharya this mission has emerged as a mass movement for Transformation of Era. Contact Us Address: All World Gayatri Pariwar Shantikunj, Haridwar India Centres Contacts Abroad Contacts Phone: +91-1334-260602 Email:shantikunj@awgp.org Subscribe for Daily Messages

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