Monday, 19 March 2018
संत की पहचान
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संत की पहचान
नवभारत टाइम्स | Updated Dec 12, 2013, 01:00 AM IST
गुरु और शिष्य भ्रमण पर निकले थे। अनेक विषयों पर चर्चा चल रही थी। अचानक साधुओं के चरित्र का प्रसंग निकल गया। शिष्य का प्रश्न था कि कुछ लोग आंख मूंदकर साधु-संतों पर विश्वास करते हैं तो कुछ लोग उन पर संदेह भी करते हैं। इस पर गुरु का कहना था कि सारे संत एक जैसे हों, यह आवश्यक नहीं। उनमें भी कई तरह के लोग पाए जाते हैं। दोनों चलते हुए एक ऐसे इलाके में पहुंचे, जहां अनेक संतों के आश्रम थे।
एक जगह उन्होंने देखा कि एक साधु ध्यान की मुद्रा में बैठा है। लोग आते और वहां पैसे, फल-फूल आदि रखकर चले जाते। लोगों के जाते ही वह साधु पैसे गिनने में लग जाता। गुरु ने शिष्य से कहा-देखो, यह लोभी है। यह साधु बना ही इसलिए है कि धन कमा सके। गुरु और शिष्य आगे बढ़े। आगे जाकर देखा कि एक साधु अपनी कुटिया के बाहर शीर्षासन कर रहा है। उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा थी। उस साधु को देख शिष्य जोर से हंसा। उसकी हंसी पर साधु को गुस्सा आ गया। वह उन्हें मारने दौड़ा।

दोनों वहां से भागे। अगले आश्रम में उन्होंने देखा कि दरिद्रनारायण भोजन चल रहा है। एक साधु स्वयं अपने हाथों से गरीबों को भोजन परोस रहा था। इस बीच एक अन्य साधु ने उसे आवाज दी तो वह उसे भी पानी देने चला गया। गुरु ने कहा, देखा, तीन तरह के संत हैं। एक परम लोभी है, दूसरा साधना तो कर रहा है पर उसे क्रोध पर ही नियंत्रण नहीं है। फिर साधना का क्या मतलब है। इनको देखो, इनके चेहरे पर परम निश्चिंतता है। चेहरे पर जरा भी अहंभाव नहीं है। ये निर्धनों को प्रेमपूर्वक खिला रहे हैं। और दूसरे साधु की सेवा भी कर रहे हैं। ये सच्चे संत हैं।
संकलन: त्रिलोक चंद जैन
Web Title: Hoe to identify real saint
(Hindi News from Navbharat Times , TIL Network)
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