Monday, 19 March 2018
सच्चे संत की पहचान
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Written by admin On Nov 28 2017, In Uncategorized, आध्यात्मिक, नैतिक और व्यहवारिक शिक्षा पर कहनियाँ, हिंदी
सच्चे संत की पहचान
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सच्चे संत की पहचान
बहुत समय पहले एक संत हुआ करते थे, जिन्हे सब खाकी वाले बाबा कहते थे. वे अकिंचन थे और सिर्फ अपने भजन में लगे रहते थे.
एक बार एक सामान्य मनुष्य उनके पास उनसे दीक्षा लेने के उद्देश्य से आया, किन्तु बाबा ने मना कर दिया. किन्तु उसके बार-बार आग्रह करने पर बाबा ने उसे नाम मंत्र दिया.
उस मनुष्य ने अपना घर और परिवार मोह और माया का रूप मानकर सब कुछ त्याग दिया. नाम दीक्षा लेने के बाद वो दिन रात नाम जाप में लगा रहता था. इस तरह वो अपने साधना के पथ पर अग्रसर था. और मनुष्य जीवन का एक मात्र उद्देश्य भगवान की प्राप्ति ही उसके जीवन का ध्येय बन गया..
जैसे जैसे वो अपने साधना पथ में उन्नति कर रहा था वैसे वैसे ही उसकी ख्याति सब दूर फैलने लगी और जन साधारण अपनी अपनी मनोकामनाएं लेकर उसके पास पहुंचने लगे. उसकी साधना के फल स्वरुप उसके आशीर्वाद से लोगो की मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी. और इस तरह से वो साधारण सा मनुष्य बहुत प्रख्यात साधु बन गया.
बड़े-बड़े सेठ साहुकार उसके शिष्य बन चुके थे. उसकी जीवन चर्या से लेकर उसका रहन सहन सब कुछ बदल चुका था. अब गृहस्थ शिष्य उसके पास बहुत दान दक्षिणा लेकर आते. उसके मुँह से निकली हर सांसारिक इच्छाओ की पूर्ति अब उसके शिष्य करने लगे.
किन्तु भगवान की माया नित नए रूप में आती है. जिस मोह-माया को छोड़कर ये मनुष्य साधु बना था आज उसी मोह माया ने दूसरा और बड़ा रूप ले लिया था. आज घर के स्थान पर उसके पास एक आश्रम था और नाते रिश्तेदारों के नाम पर बहुत सारे शिष्य.
कहते है संसार से विरक्त होना हो, तो पुत्रेष्णा, वित्तैषणा और लोकैषणा का मोह त्यागना पड़ता है. किन्तु यहाँ वित्तैषणा और पुत्रैषणा की परिभाषा ने दूसरा चोला पहन लिया था. लोकैषणा से बचना तो अच्छे अच्छा के बस की बात नहीं है.
फिर एक दिन वो मनुष्य अपने गुरु से मिलने पंहुचा. इस बार वो उनसे मिलने एक कार से गया था. शरीर पर सूंदर रेशमी वस्त्र थे. और हाथ में महँगी घडी थी. बाबा ने उसे देखा और देख कर भी अनदेखा कर दिया.
उस मनुष्य ने फिर से झुक कर बाबाजी को प्रणाम किया पर बाबा जी ने इस बार भी ध्यान नहीं दिया. फिर उसने पुनः बाबा जी को दंडवत किया और बोला बाबा जी मैं आपका शिष्य मोहन दास.
बाबा जी ने सुना, मोहन दास. बोले, तुम मोहन दास हो. और जैसे ही उसने हाँ में सिर हिलाया, बाबा जी ने डंडा उठा के उसकी बहुत पिटाई की. उसको बहुत मारा उसके सारे वस्त्र फट गए. फिर बाबाजी ने बोला तुमने दीक्षा इसलिए ली थी दुनिया को चमत्कार दिखाने के लिए या भगवान को पाने के लिए.
अब उस मनुष्य को अपनी भूल का अहसास हो गया था. उसने तब ही बाबा जी को दंडवत प्रणाम किया और ऐसी ही हालत में फटे कपड़ो में वो सीधे बिहार के किसी नगर में नदी के किनारे पंहुचा. और नाम जाप में लग गया. अब वो न किसी से बात करता था. न किसी को देखता था. न कुछ खाता पीता था. अहर्निश नाम जप में लगा रहता था. वो भक्त अब इस कदर अकिंचन हो गया था की कोई उन पर तरस खाकर उनके ऊपर पैसे फेंकता भी तो था उससे उनके शरीर पर घाव हो जाते थे.इस तरह काफी वर्ष बीत गए. और मोहन दास जी अपनी साधना में लगे रहे.
एक दिन अचानक बाबा जी बिहार के उसी नगर में पहुंचे जहाँ मोहन दास जी साधना रत थे. उस दिन गुरु पूर्णिमा थी. बाबा जी अपने किसी भक्त के विशेष आग्रह पर वहां पहुंचे थे. पर सच्चाई कुछ और थी. वास्तव में बाबाजी वहाँ पर मोहन दास जी पर कृपा करने के उद्देश्य से गए थे.
बाबा जी स्वयं मोहन दास जी से मिलने उनके पास नदी के किनारे पहुंचे. बाबाजी को देखते ही मोहन दास जी की आँखों से अविरल अश्रु धारा बहने लगी और वो उनके चरणों में गिर पड़े. बाबा जी ने जब अपने शिष्य को इस तरह कठोर साधना में रत देखा तो उनकी आँखों से भी जल प्रपात बह निकला. उन्होंने अपने शिष्य को गले से लगा लिया.
और तब ही मोहन दास जी ने अपने सद्गुरु के चरणों में अपने प्राण त्याग दिए. शिष्य ने गुरु के चरणों में प्राण त्याग कर अपना जीवन सफल बना लिया और ऐसे सच्चे भक्त शिष्य को पाकर गुरु का जीवन भी सफल हो गया.
शिक्षा : 1. सच्चे संत आपकी वेश भूषा और आपकी साधन समाग्री से कभी प्रभावित नहीं होते बल्कि आपकी
सच्ची श्रद्धा, भगवान की भक्ति और साधना से प्रभावित होते है.
भगवान की साधना भगवान को पाने के लिए करना चाहिए किसी लौकिक इच्छा की पूर्ति के लिए नहीं.
जिस तरह सच्चे गुरु मिलना कठिन है उसी तरह सच्चे शिष्य मिलना भी कठिन है.
सच्चे संत आपको इस संसार के मोह से दूर करते है और भगवान के पास लाते है.
सच्चे संत आपसे पैसो की या किसी सांसारिक वास्तु की अपेक्षा नहीं रखते .
सच्चे संत पर आपकी नौकरी, आपकी कुर्सी और आपके बैंक बैलेंस का कोई प्रभाव नहीं होता.
ये भी पढ़े :
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4.अर्जुन पर श्री कृष्ण की माया का प्रभाव
5. ब्राम्हण और भूत
रश्मि ऋषि
28.11.2017
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« पापो से मुक्ति का सरल उपाय ब्राम्हण और भूत »
by admin
सद्ग्रंथो में से छोटी छोटी कथाओ को सरल शब्दों में आपके सामने प्रस्तुत करने की एक कोशिश है. इसके अलावा जो मनुष्य की मानसिक शांति, भावनात्मक तथा आध्यात्मिक स्तर पर उन्नति करने में सहायता कर सके उन बातो को यहाँ कहानी अथवा आलेख में प्रस्तुत किया जाता है. आप लोगो का साथ तथा आशीर्वाद बना रहे, ईश्वर से यही विनम्र प्रार्थना है. अगर आपको ये कथाएँ अथवा आलेख पसंद आये तो उन्हें दुसरो के साथ अवश्य शेयर करे तथा सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में सहयोगी बने. धन्यवाद. रश्मि ऋषि नोट : यहाँ जो भी कहानी प्रस्तुत की जा रही है वो मेरी अपनी रचना नहीं है बल्कि मेने इन्हे कही से पढ़ा है या सुना है. उन्ही को हिंदी में सरल शब्दों में आपके सामने प्रस्तुत किया है.
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9 Responses so far.
ब्राम्हण और भूत | Mind and soul food says:
November 30, 2017 at 11:11 am
[…] ये भी पढ़े: सच्चे संत की पहचान […]
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नकली भगवान का हश्र | Mind and soul food says:
December 1, 2017 at 10:55 am
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मकर संक्रांन्ति | Mind and soul food says:
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ब्रम्हा जी हुए भगवान की माया से ग्रसित | Mind and soul food says:
December 3, 2017 at 10:48 am
[…] भी पढ़े : १. ब्राह्मण और भूत २. सच्चे संत की पहचान ३. द्रोपदी ने पांच शादी की फिर भी ये […]
Reply
GuruBox says:
December 4, 2017 at 5:02 am
Good one…
What is the comparison between Teacher and Guru ?
https://gurubox.org/2017/11/13/what-is-the-comparison-between-teacher-and-guru/
Reply
admin says:
December 4, 2017 at 10:34 am
Thank you
Reply
कबीर जी | Mind and soul food says:
December 13, 2017 at 1:13 pm
[…] सच्चे संत की पहचान […]
Reply
उत्तरायण मकर संक्रांति की पूजा विधि और नियम (हिंदी में) | Mind and soul food says:
January 9, 2018 at 2:41 pm
[…] भी पढ़े : १. ब्राह्मण और भूत २. सच्चे संत की पहचान ३. द्रोपदी ने पांच शादी की फिर भी ये […]
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