Friday, 23 March 2018

कुण्डलिनी

ⓘ Optimized by Google just nowView original https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Visible-and-Invisible-World/%E0%A4%95-%E0%A4%A3-%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%A6-%E0%A4%B8%E0%A4%B0-%E0%A4%AA-%E0%A4%9F-%E0%A4%AA-%E0%A4%B5%E0%A4%B0/ indiatimes.comMenu कुण्डलिनी – दी सर्पेंट पॉवर August 3, 2012, 9:44 AM IST गीता झा in दृश्य और अदृश्य जगत | कल्चर ब्रह्माण्ड में दो प्रकार की शक्तियां कार्य करती हैं, एक फिजिकल जो पदार्थों में गतिशीलता और हलचल पैदा करती हैं दूसरी मेटाफिजिकल जो चेतना के रूप में प्राण धारीओं में इच्छाओं और अनुभूतियों का संचार करती हैं.   अक्सर हम लोग केवल प्रत्यक्ष शक्तियों का प्रमाण आधुनिक उपकरणों के माध्यम से प्राप्त कर लेतें हैं और सजहता से उनकी सत्ता भी स्वीकार कर लेते हैं. इसमें हीट, लाइट, मग्नेटिक, इलेक्ट्रिसिटी, साउंड और मकैनिकल इनर्जी आती हैं.   मानव शरीर एक जीता-जागता बिजलीघर हैं   ऊर्जा के सहारे यंत्र चलते हैं, मानव शरीर भी एक प्रकार का यंत्र हैं इसके संचालन  में जिस ऊर्जा का प्रयोग होता हैं उसे जीव –विद्युत कहा जाता हैं.   ऋण या negative तथा धन या positiveधाराओं के मिलाने से बिजली उत्पन्न होती हैं और उससे यंत्र चलते हैं.                                        मेरुदंड या spinal chord शरीर की आधारशिला हैं. मेरुदंड के अन्दर पोले भाग में विद्युत प्रवाह के लिए अनेक नाड़ियाँ  हैं जिनमें इडा, पिंगला और सुषुम्ना  मुख्य हैं.इडा बाई नासिका से सम्बंधित negative  या चन्द्र नाड़ी हैं और पिंगला दाहिनी नासिका से सम्बंधित positive या सूर्य नाड़ी हैं.    जीव-विद्युत और मानस शक्ति विभिन्न नाड़ीओं द्वारा संचरण करती हैं. इनकी संख्या  72,000 हैं लेकिन इनमे से प्रमुख इडा, पिंगला और सुषुम्ना  हैं.  इडा और पिंगला के मिलने से सुषुम्ना की सृष्टि होती हैं और जीव-विद्युत का उत्पादन होता हैं.   शरीर गत महत्वपूर्ण गतिविधियाँ मेरुदंड से निकल कर सर्वत्र फ़ैलाने वाले स्नायु मंडल [nervous system] से संचालित हैं और उनका संचालन  सुषुम्ना नाड़ी करती हिं जिसे वैज्ञानिक वेगस नर्व भी मानतें हैं जो एक autonomusnervous system हैं जिसका सीधा सम्बन्ध अचेतन मन से हैं. अतःकुण्डलिनी जागरण अचेतन मन का ही जागरण हैं.   मानव शरीर भी एक बिजलीघर हैं. शरीर में इफ्रेंटऔर ओफरेंट नर्वस का जाल फैला हुआ हैं जो बिजली की तारों के सामान विद्युत के संचरण और प्रसारण में सहयोग करती हैं.   इसी विद्युत शक्ति के आधार पर शारीरक क्रिया-कलाप यथा पाचन-तंत्र, रक्ताभिशरण, निद्रा,जागरण और विजातीय पदार्थों का विसर्जन , मानसिक और बौद्धिक क्रियाकलाप सम्पादित होते हैं.   मानवीय शरीर में यह जीव- विद्युत दो स्थिति में रहती हैं   सक्रिय विद्युत — शरीर में उपस्थित जीव-विद्युत का केवल 10 % ही प्रयोग सामान्य मानसिक एवं शारीरिक क्रियाकलापों के सञ्चालन हेतु किया जाता हैं, इसे सक्रिय विद्युत कहतें हैं.   निष्क्रिय विद्युत—जीव-विद्युत का 90 % भाग कुण्डलिनी शक्ति के रूप में रीढ़ के निचले सिरे में सुप्त अवस्था में विधमान रहती हैं, इसे निष्क्रिय विद्युत कहतें हैं.              कई लोग आशंका करते हैं यदि शरीर में विद्युत का संचरण होता हैं तो हमें कर्रेंट क्यों नहीं लगता हैं. इसका उत्तर हैं की शरीर की विद्युत का हम एक नगण्य अंश [10 %] ही सामान्य रूप से व्यवहार में लातें हैं शेष अधिकांश भाग [90 %] शरीर के कुछ विशिष्ट चक्रों, ग्रंथियों और endocrineglands में स्टोर रहती हैं.   कुण्डलिनी क्या हैं ?   कुण्डलिनी सुप्त जीव-विद्युत उर्जा हैं जो spinal–column के मूल में निवास करती हैं. यह विश्व-जननी और सृष्टि – संचालिनी शक्ति हैं.   यह ईश्वर प्रदत मौलिक शक्ति हैं. प्रसुप्त स्थिति में यह अविज्ञात बनी रहती हैं और spinal–chord के निचले सिरे में प्रसुप्त सर्पनी के रूप में निवास करती  हैं. कुण्डलिनी सर्पेंट पॉवर, जीवनी-शक्ति, फायर ऑफ़ लाइफ के नाम से भी जानी जाती हैं.     चक्र   सुषुम्ना  मार्ग पर 6 ऐसे प्रमुख केंद्र हैं जिनमे असीमित प्राणशक्ति और अतीन्द्रिय क्षमता का आपर वैभव प्रसुप्त स्थिति में पड़ा रहता हैं. इन्हें चक्र या प्लेक्सेस कहते हैं. इन केन्द्रों में नर्वस  अधिक मात्रा में उलझे रहते हैं . इन्हीं चक्रों के माध्यम से ब्रह्मांडीय ऊर्जा और जीव-ऊर्जा का आदान -प्रदान चलता रहता हैं.     सुषुम्ना  में भूमध्य से लेकर रीढ़ के आधार पर 6चक्र अवस्थित हैं. भूमध्य में आज्ञाचक्र, कंठ में विशुद्धि [सर्विकलरीजन ], वक्ष   में अनाहत [ डोर्सल रीजन ], नाभि के ऊपर मणिपुर [लम्बर रीजन], नाभि के नीचे स्वाधिष्ठान [सेक्रेल रीजन] और रीढ़ के अंतिम सिरे पर मूलाधार [कक्सिजियल रीजन ] चक्र स्थित  हैं. सुषुम्ना के शीर्ष पर सहस्त्रार  [ इसे चक्रों की गिनती में नहीं रखा जाता  हैं. ] हैं, यह सिर के सर्वोच्च शीर्षभाग में स्थित हैं. यह  चेतना का सर्वोच्च शिखर हैं. प्राण शक्ति सहस्त्रार से मूलाधार की और आते समय घटती हैं. इन चक्रों या कुण्डलों से होकर विद्युत शक्ति के प्रवाहित होने के कारण इसे कुंडलिनी शक्ति भी कहा जाता हैं. कुण्डलिनी जागरण यात्रा मूलाधार से आरंभ हो कर सहस्त्रद्वार में जा कर समाप्त होती हैं.   शक्ति के स्टोर हाउस – चक्र -शरीर के अत्यंत संवेदनशील भागों में स्थिति रहते हैं. इनका जागरण विशिष्ठ  साधनों द्वारा संभव हैं. कुंडलिनी योग इन्हीं शक्तिओं को जागृत कर उन्हें नियंत्रित कर व्यक्ति विशेष को  अनंत शक्ति का स्वामी बना देती हैं.   कुण्डलिनी जागरण के विभिन्न चरण   नाड़ी  शुद्धि        चक्र  शुद्धि/जागरण इडा-पिंगला  शुद्धि/ संतुलन सुषुम्ना जागरण या कुण्डलिनी का सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश एवं ऊर्ध्गमन .   कुण्डलिनि जागरण की विभिन्न विधियाँ   योग, ध्यान, प्राणायाम , मंत्रोचार , आसन एवं मुद्रा ,शक्तिपात, जन्म से पूर्वजन्म -संस्कार द्वारा , भक्ति पूर्ण  – शरणागति, तपस्या, तंत्र मार्ग इत्यादि .   कुण्डलिनी जागरण के लाभ   कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया में सुप्त जीव- शक्ति का आरोहन किया जाता हैं. उर्ध्व दिशा में गति करने से जैसे जैसे चक्रों का भेदन होता हैं , अज्ञान के आवरण हटाने लग जातें हैं. दिव्यता बड़ने लग जाती हैं.     शरीर पर इसका प्रभाव बलिष्ठता , निरोगिता, स्फूर्ति, क्रियाशीलता, उत्साह और तत्परता के रूप में दिखाई देता हैं , मानसिक  प्रभाव में तीव्र बुद्धि , समरण शक्ति, दूरदर्शिता, कल्पना, कुशलता और निर्णय लेने की क्षमता के रूप में दिखती  हैं. भावना क्षेत्र  में श्रद्धा, निष्ठा, आस्था, करुणा , अपनेपन का भाव, संवेदना इत्यादि  के रूप में दिखती  हैं.     हम कह सकतें हैं की कुंडलिनी -जागरण उच्य- स्तरीय उत्कृष्टता की दिशा में मानवीय चेतना को ले जाती हैं. इससे अनेक शक्तिओं, सिद्धियों और क्षमताओं का जागरण होता हैं और अंत  में आत्मा- सत्ता परमात्मा -सत्ता से जुड़ जाती हैं.   डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं लेखक गीता झा मानवीय संभावना और अस्तित्व से संबंधित विषयों का अनुगमन करती. . . 13 COMMENTS अपना कॉमेंट लिखे SATISH MISHRA•MUMBAI•4 years ago • फॉलो करें मेरे गुरु श्री रामलाल सियाग शक्तिपात दीक्षा से कुंडलिनी जागरण करते हैं. उन्हे क्रस्णा और गायत्री दोनो की शक्ति प्राप्त है.उनकी साधन विधि मे उनके द्वारा दिये हुये नाम का जाप और ध्यान करना पड़ता हैं.बहुत सारे साधको की कुंडलिनी पहले दिन ही आक्टिव हो जाती है. कोई भी रोगी जिसे डॉक्टर ने इलाज करने से हत खड़ा कर दिया हो ,अगर उनसे दीक्षा लेकर साधना करे तो कुण्डलनी जागरण हो जाती है और सारे चक्रो का भेदन करते हुये उपर उढ़ति है सारे रोगो का नश हो जाता भैन. ज्यादा जनकारी के लिये गूगले मे खोजे गुरु सियाग योगा.आप लोग वेब सीटे भी चेक कर सकते हैं व्व्व.थे-कंफर्टर.ऑर्ग 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें SATISH MISHRA•MUMBAI•4 years ago • फॉलो करें गीता जी आपके बहुत सारे लेख पढ़े हैं, सारे ही ज्ञानवर्धक हैं, इतनी ज्ञान की बाते आप कान्हा से लती हैं? क्या आप के अंदर कोई शक्ति जागृत है? 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Nirmal Krishansingh • Ghaziabad, India • 5 years ago • फॉलो करें गीता जी क्या आप बताएगी इतने ज्ञान वर्धक लेख के लिए आप कितना परिश्रम करती होगी. सचमुच तुम गीता हो 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें PRADEEP • 5 years ago • फॉलो करें गीता जी बहुत सार्थक ज्ञान आपने दिया है उसके लिये आपको बहुत-2 बधाई. मैने देखा है कि बहुत से लोग किसी भी ज्ञान की आलोचना करते हैं बिना सत्या का पता किये. अगर यही ज्ञान कहीं विदेश से आता तो ये सब लोग गुणगान करते नहीं थकते. कुंडलिनी जागरण केवल गुरु क्रपा से ही संभव है. ओर य्ह कोई असंभव चीज नहीं है जो की केवल पुरातन समय में ही होता था. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Sri • 5 years ago • फॉलो करें गीता जी,कुण्डलिनी के बारे मे आपने बिल्कुल आधुनिक भाषा मे बताया है ,इसके लिए आप धन्यवाद की पात्र हैं . 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Leela Tewani•Unknown•5 years ago • फॉलो करें गीता जी, बहुत सटीक और ज्ञानवर्द्धक आलेख के लिए आप बधाई की पात्र हैं. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें G.S. • 5 years ago • फॉलो करें कॉस्मिक एनर्जी क्या है. और इसके होने से क्या परिणाम निकलते है: 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें hukam • 5 years ago • फॉलो करें उत्तम अति औत्तम/ लेकिन एक लेख मे सब कुछ नही आ सकता/ आपको कई भागो मे विभाजित कर के लिखना चाहिए/ 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें raja • 5 years ago • फॉलो करें गीता जी प्रणाम....भूले तो नही 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Nishan Singh • delhi • 5 years ago • फॉलो करें गीता जी, आपने फिर एक गहन विषय उठाया है और अत्यधिक सरलता पूर्वक सब समझा भी दिया है, किंतु मुझे कही कुछ अधूरापन लगा. आप इस विषय मे और लिखे. मे समझता हू इस विषय के द्वारा भारतीय आध्यात्मक विजान पुनर्सथापित किया जा सकता है.धन्यवादभारत 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Mangilal Burad • 5 years ago • फॉलो करें गीताजी! आलेख जानकारी बढ़ने वाला होने का कारण सुन्दर है? आगे के आलेखों में उन साधकों का परिचय दें जिनकी कुंडली जागृत हुई हैं! 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें Mangilal Burad • 5 years ago • फॉलो करें वर्तमान में जिनकी कुंडली जागृत है उनकी संख्या कितनी है! उनका परिचय भी क्रिमश: बतावे 0 0 •जवाब दें•शिकायत करें cooldoodinindia•indian•5 years ago • फॉलो करें ये जॅगानी केसे है वो भी बता देती तो सब का भला होता, ये तो सब मिल जाता है ये होती क्या है, पर जागते केसे हैं, उदारण समेत तो बहुत अछा होता. 0 0 •जवाब दें•शिकायत करेंसबसे चर्चित पोस्ट सुपरहिट पोस्ट 1.मोदी जी को शर्म चाहिए2. मोदी ने कुछ नहीं किया तो विपक्ष परेशान क्यों ? 3. बैंकों का राष्ट्रीयकरण गलत कदम था? 4. गौरैया बड़ी प्यारी है (बाल गीत) 5.कैम्ब्रिज एनालिटिका टॉपिक से खोजें चुनाव दुरूपयोग सरकार कार्टून देश हरियाणा -अधिकारसिरसा मोदी सुरक्षा मोनिका-गुप्ता इस्लाम नेता कांग्रेसअराजकता सुधार समाज भारत उपयोग व्यंग्यनियम ब्लाग कर्तव्य अधिकार कविता नए लेखक और » हमें Like करें Copyright ©  2018  Bennett Coleman & Co. Ltd. All rights reserved. For reprint rights: Times Syndication Service अपना ब्लॉगसंपादकीयमेरी खबरराजनीतिदेश-दुनियाकल्चररिश्ते-नातेमनोरंजनसाहित्यखेलअन्य

No comments:

Post a Comment