Tuesday, 20 March 2018
राम नाम तत्व और सार
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सुमिरन कौ अंग ] [८५
भावार्थ - तीनो लोको मे राम नाम सार तत्व है । जब से कबीरदास ने
उसे अपने मस्तक पर धारण किया है , तब से अपार शोभा से युक्त हो गया ।
विशेष -- प्रस्तुत साखी मे कबीर ने राम नाम की दो विशेष्ताओ का उल्लेख्
किया है । प्रथम , राम नाम तत्व और सार है । द्वितीय वह तिलक के रुप मे मस्तक्
पर धारण करने से व्यकतित्व की शोभा अभित्रद्व हो जाती है ।
शब्दार्थ - तिहुं = तीनो । मैं = मे । नाव = नाम । सोभा = शोभा ।
भगति भजन हरि नांव है , दूजा दुक्ख श्रपार ।
मनसा बाचा क्रमनां , कच्रीर सुमिरण सार ॥४॥
सन्दर्भ -- संसार दुखः का सजीव और सक्रिय रुप है। यहाँ हरि नाम
स्मरण के अतिरिक्त और है ही क्या? विगत साखो मे कबीर ने राम नाम को सार ,
तत्व ,तिलक तथा शोभा का आधार माना है। प्रस्तुत अंग कि द्वितीय साखो मे भी
कबीर ने कहा है " राम नाम ततसार है ।"ऐसे महत्वपूर्ण राम नाम का धयान मनसा, वाचा, कमंणा करना ही दुखः के आगार को विध्वंस करना है ।
भावार्थ - ईष्वर का भक्ति और नाम स्मरण पर भजन ही सार तत्व
है और सब अपार दुखः का आधार है । काबीर का मत है कि हरि का नाम मनसा, वाचा और कमंरण स्मरण करना सार है ।
विशेष-(२)भगति ........ है : से तात्पर्य है कि भक्ति और हरि के
नाम का भजन ही सार तत्व है । (२) दूजा ...... अपार भक्ति और हरि नाम स्मरण के अतिरिक्त सब कुछ अपार दुखः क अपार माया है । (३)जिस हरि नाम क इतना महत्व है , जो 'ततसार ' है , जो मुक्ति और भक्ति प्रदान करने वाला है , उसकी साधना मनसा , वाचा कमरण होनी चाहिए। (४)"मनसा वाचा क्रमना' से तातपर्य है समस्त चेतना के साथ, निष्ठा और एकाग्रता के साथ,वारणो-वचन , मन तथा कृयात्मक रुप मे अथवा हर प्रकार से । (५) कबीर ....... मार =स्मरण या हरि का भजन सार तत्व है , समस्त साधना का सारांश है। (६)सुन्दर दाग ने कबीर के प्रस्तुत भाव का समधंअन करते हुए कहा है "नाम लिय तिन नव किया सुन्दर जप तप नेम । तोरच अटल समान य्र्त तुला बेठि द्त हेम।"
शब्दार्थ - भगति = भक्ति । नाव - नाँम । दुखः = दुख। _____
कबीर सुमिरण सार है , खोर सकल जंजाल।
खादि खति सय सोघिया , दूजा देस्यो काल । (७)॥
सन्दर्भ - कबीर आ मन है कि नामज्नर हो रनस्त मापता रा सार है।
दुखके अतिरिक्त ममस नापनाए ही ग्यान है । दिगनु मानव ने कबीर _ कहा है।
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Last edited 2 years ago by Paarvathi.christ
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