Monday 19 March 2018

संत

MENU खोजें ... हिंदी प्रश्न पूछें   Spiritual Science Research Foundation Browse:Homeसाधनाज्ञानोदय (संत और गुरु)संत कौन हैं ? संत कौन हैं ? १. परिचयात्मक स्लाईड इस अनुवर्ग (ट्यूटोरियल) में हम अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किन्हें संतमाना जा सकता है, इस संदर्भ केइसकी आध्यात्मिक अवधारणा की व्याख्या करेंगे । यदि आप इस प्रस्तुति(प्रेजेंटेशन) को पूर्ण चित्रपट प्रकार(फुल स्क्रीन मोड) में देखना चाहते हैं तो कृपया नीचे दाहिने हाथ की ओर के पूर्ण चित्रपट घुंडी(फुल स्क्रीन बटन) को दबाएं । २. सदियों से संतों का अनुसरण सदियों से, संसार ने अनेक आध्यात्मिक गुरुओं को आदर दिया है और उन्हें संत माना है । ३ .संतत्व हेतु विविध विशेषताएं विविध पंथ तथा सभ्यताएं किसी को संतत्व प्रदान करने के लिए विविध गुण अथवा विशेषताओं के होने के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं । ४. संतत्व के समान आधार इस संदर्भ में विस्तृत अध्ययन के उपरांत, हमें कुछ साधारण मानदंड ज्ञात हुए जो कि विविध पंथों के लोगों को किसी को संत मानने हेतु प्रेरित करते हैं । सर्वप्रथम व्यक्ति को सत्यनिष्ठ तथा गुणवान होना चाहिए । व्यक्ति उसी विशिष्ट पंथ का होना चाहिए । दूसरे शब्दों में, अन्य पंथ के लोग सामान्यतः दूसरे पंथ के संत को स्वीकार नहीं करते तथा यह पूर्णतः इसी वास्तविकता पर आधारित है कि वह किसी अन्य पंथ का है । कुछ पंथों में संतत्व हेतु विचारणीय होने के लिए आवश्यक होता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी हो और उसे स्वर्ग में स्थान प्राप्त हो गया हो । अन्य पंथ के लोग मानते हैं कि व्यक्ति के जीवित रहते हुए भी उसे संतत्व प्राप्त हो सकता है । कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि संत के जीवित रहते हुए अथवा मृत्यु के उपरांत भी उन्हें चमत्कार करना चाहिए । मृत्यु के उपरांत भी व्यक्ति के शरीर का विघटन न होना चमत्कार हो सकता है । यह उपचार के अर्थ में भी हो सकता है, जैसे संत से प्रार्थना करने के उपरांत रोगमुक्त हो जाना, यहां माना जाता है कि संत ईश्वर के साथ जुड (संधानित हो) गए हैं । कुछ प्रकरणों में व्यक्ति किसी संत के अस्थि अवशेष के संपर्क में आने से चमत्कारिक रूप से ठीक हो जाता है । इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि संत मनुष्य के लिए ईश्वर के साथ संधान बनाए रखने की क्षमता रखता हो । ५. संत बनने की प्रक्रिया अब हम संत कैसे घोषित किए जाते हैं, इसकी कुछ प्रसिद्ध पद्धतियां देखते हैं । औपचारिक/अनौपचारिक प्रक्रिया : यदि किसी व्यक्ति में अपने पंथ के अनुसार आवश्यक गुणविशेष हों, तब संत घोषित होने के लिए सामान्यतः वे औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रक्रिया से जाते हैं । उदाहरण के लिए रोमन कैथोलिक चर्च में इस औपचारिक प्रक्रिया को संतघोषण (कैनॅनाइजाशन) कहते हैं । कुछ प्रकरणों में यह औपचारिक प्रक्रिया अनेक वर्षों तक चलती है । संचालन करनेवाले स्वयं संत नहीं होते : अधिकतर प्रकरणों में किसी को संत घोषित करने की औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रक्रिया का संचालन करनेवाले स्वयं संत नहीं होते अपितु मात्र धार्मिक अथवा धर्म में कोई अधिकारिक पद पर होते हैं । समाज का प्रसिद्ध लोकमत : कुछ प्रकरणों में, यह (किसी का संत कहलाना) समाज का लोकमत मात्र होता हैं । धर्म  केंद्रिक : कोई भी पंथ हो, लोग सामान्यतः उसी पंथ के व्यक्ति को संत की उपाधि देते हैं । वे प्रायः ऐसा मान ही नहीं सकते कि संत अन्य पंथ अथवा संस्कृति के हो सकते हैं । सिद्धियों का प्रदर्शन : कुछ प्रकरणों में व्यक्ति स्वयं घोषित संत बन जाते हैं और यदि वह किसी साधना द्वारा प्राप्त सिद्धि का प्रदर्शन करने में सक्षम है तो उसके कई अनुयायी भी बन जाते हैं । ६. अध्यात्मशास्त्र के अनुसार संत की परिभाषा यदि किसी को किसी अन्य व्यक्ति की आध्यात्मिक परिपक्वता अथवा आध्यात्मिक स्तर एक पैमाने पर, जिसमें १ से १०० प्रतिशत हो और जिसमें१०० प्रतिशत ईश्वर हो, जानना हो तब विकसित छठवीं इंद्रिय का प्रयोग कर आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमें यह ज्ञात हुआ है कि विश्व में सामान्य व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर लगभग २० प्रतिशत है । आध्यात्मिक शोध के माध्यम से हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि विश्व की ८० प्रतिशत जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर लगभग ३५ प्रतिशत से अल्प है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, पंथ अथवा साधना मार्ग कोई भी हो, एक व्यक्ति संतत्व की आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त करने में तब योग्य हो जाता है जब उसका आध्यात्मिक स्तर न्यूनतम ७० प्रतिशत हो जाता है । ७.  हमारी निर्मिति किससे हुई है ? अब आप सोच रहे होंगें कि आध्यात्मिक स्तर क्या है । हम मनुष्य निम्नलिखित घटकों से मिलकर बने हैं : स्थूल देह : इसमें हमारा भौतिक शरीर तथा स्पर्श, रस, शब्द, गंध तथा दृष्टि से संबंधित पंचज्ञानेंद्रियां सम्मिलित हैं ।  मनोदेह : इसमें हमारे दोनों मन चेतन तथा अवचेतन मन आते हैं । मन ही हमारे विचारों एवं भावनाओं का स्रोत है ।  कारण देह : जो हमें जानकारी को क्रियान्वित करने में सक्षम बनाती है ।  महाकारण देह : यह हमें यह भान कराती है कि हम ईश्वर से विभक्त हैं । तथा अंतिम है आत्मा : हम सभी में विद्यमान ईश्वरीय तत्व । अहं क्या है ? ऊपरोक्त में से प्रथम चार हमारे अहं अथवा हम ईश्वर से विभक्त हैं, यह भावना निर्मित करते हैं । आत्मा दैवीय अथवा हम सभी में विद्यमान ईश्वरीय तत्व है । अध्यात्मशास्त्र के अनुसार, आत्मा हमारी चेतना की वास्तविक स्थिति है । ८. आध्यात्मिक परिपक्वता, आध्यात्मिक प्रगति अथवा आध्यात्मिक स्तर का निर्धारण कैसे होता है ? व्यक्ति की प्रगति अथवा आध्यात्मिक परिपक्वता अथवा आध्यात्मिक स्तर का निर्धारण इस तथ्य से होता है कि वे स्वयं में विद्यमान आत्मा से कितना एकरूप हैं अथवा उसकी कितनी अनुभूति लेते हैं तथा दूसरी ओर वे अपनी पंचज्ञानेंद्रियों, मन तथा बुद्धि जिनके साथ ही उन्होंने जन्म लिया है, संक्षेप में अपने अहं से अपनी पहचान को कितना पृथक कर पाते हैं । ९. संत से संबंधित अधिक जानकारी संत ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका अहं अत्यल्प होता है, क्योंकि वे स्वयं में विद्यमान ईश्वर को अनुभव करते हैं तथा अन्यों में विद्यमान ईश्वरीय तत्व को देखते हैं । १०. संतपद तक कैसे पहुंच सकते हैं ? अपना आध्यात्मिक स्तर बढाने का एकमात्र मार्ग है, अध्यात्म के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार आगे-आगे के उच्च स्तर की साधना करते रहना । ये सिद्धांत विस्तार से हमारे कक्षा (क्लासरूम) के अन्य अनुवर्गों (ट्युटोरियल) में बताए गए हैं, मैं सभी से विनती करुंगा कि आप उसे देखें । हमसे जुडने के लिए धन्यवाद तथा हम शीघ्र ही आपसे अपने अगले ऑनलाईन प्रवचन में भेंट करने हेतु उत्सुक हैं । आध्यात्मिक शोधका संचालन कैसे किया जाता है ? एस.एस.आर.एफ उपक्रम हमारे स्काइप सत्संगमें सम्मिलित हों क्या आपने एस.एस.आर.एफ. के मूलतत्व पढे हैं ? स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया तथा इसका महत्व अन्य भाषाओंमें उपलब्ध लेख English Hrvatski Français Español Deutsch Pусский Srpski Indonesian Македонски 中文 Български सम्बंधित लेख अहं क्या है ? अध्यात्मशास्त्र के अनुसार किसी को संत कैसे घोषित किया जाता है ? आध्यात्मिक स्तर क्या है ? तीव्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना के मूलभूत सिद्धांत ऊपर Q आप हमसे प्रश्न पूछिए आैर SSRF के साधकाें से २ दिनाें में उत्तर प्राप्त कीजिए । Copyright © Spiritual Science Research Foundation Inc. 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