Saturday, 31 March 2018

ॐ ह्रीं योगिनी योगिनी योगेस्वरि योग भयंकरी सकल स्थवर जन्गमस्य मुख हृदयं मम वासं आकर्षय आकर्षय स्वहा.

Navigation Custom Search You are here: Home › Spiritual Library › Stotras (स्तोत्र) › Swayamvara Parvathi Stotra (श्र्वयम्वर पर्वथि स्तोत्र) Swayamvara Parvathi Stotra (श्र्वयम्वर पर्वथि स्तोत्र) published on March 17, 2010 in Stotras (स्तोत्र) Composer: In Hindu mythology, Durvasa (दुर्वास in Devanagari or durvāsa in IAST, pronounced [d̪urʋɑːsɐ] in classical Sanskrit), or Durvasas, was an ancient sage, the son of Atri and Anasuya. More... Stotra: Swayamvara Parvathi Stotra Verses: 48 Stuti: About Lord Shiva. Language: Sanskrit (संस्कृत)     Recitals VOCAL Awaiting Contribution Hide the Content This Stotra was originally composed in Sanskrit. Other languages are for your convenience DEVANAGARITELUGUTAMILENGLISHMEANING ॐ बन्धूक वर्णं अरुणं सुगथ्रं, शंभुं समुधिस्य सनैरुपेतं, अम्भोज म्रुध्वीम् अभिलाषा दथ्रीं, संभवये निर्ज्जर धृ कल्पं. 1 ह्रीं मन्धराणि चरनग्र गथि प्रपथे, ष्वमन्जु सम्क्वनिथ कङ्कण किङ्किनीनि, कामं कुमारी, थ्व थानी शिवे, स्मरामि, क्षेमन्गराणि जन कलया खेलनानि. 2 योगेन बाल्य व्यासो ललिथं पुरस्थातः, द्रगेव कन्द विलसतः कन्कोर्मि कोउघां, आकंर नग्ध रसनं भवथीं निरीक्षे, श्री कन्द भामिनि, कध प्रपदीन वेणीं. 3 गिर्यल्प मुग्ध विषधं नव योउवनं श्री, धुर्यं विलसमय मक्ष्नी कृसं विलघ्ने, पर्युच्यिथं कुच भरे जघने गणं यतः, पर्युथ्सको अस्मि सथथं जननि प्रसीध. 4 निर्धूथ कुण्डल मुदन्चिथ घर्म लेसं, विथ्रस्थ केसमभिथ सचल दीक्षनन्थं, णिर्ध्वनि कङ्कण मुधग्र कुचन्ध मन्धर, बध्नामि थथ गृह कन्धुक खेलनं थेय. 5 य़ोगेस्वरम् प्रचुर भक्थि गिरीएस मरा. धेकन्थ वेथिनमुपेथ्य थापस्चरन्थं, आकंक्षया परि चरिष्नुमनकुलां थ्वम्, ये केचिधीस्वरि भजन्थि थ येव धन्य. 6 गिर्यथ्मजे, मदन दह महावमन, पर्याकुल पुरःअरे ह्रुधयं निधाय, कर्यस्थापो विधधि कुसलानि भूब्रुतः, पर्याय पीन कुच कुम्भ विषुम्भदङ्गी. 7 निध्याय मनसा दृस मुहूर इन्दु चूदं, मध्य स्थिथ रहसि पञ्च हुथासनानां, थथ द्रुसेन थापस जगद अण्ड भाजां, विथ्रस धात्री, परि पाहि सदा शिवे न. 8 योग्यं वतोर्व पुरुप स्थिथरथ्म भक्थिं, दीर्घं परीक्षिथु मनुक्षण मक्षि पन्थां, सक्षातः गिरीस मवधूय रुषा प्रयथे, द्रक्थेन संस्रिथपदं भ्वथीं भजाम. 9 गेहे निजे वरनधमलसतः करभ्जां, व्य्हारी नूपुर मुदन्चिथ मन्द हासं, नीहार भानु दर मुचलिथं वरीथुं, मोहवहां त्रिभुवनस्य भजामहे थ्वम्. 10 श्र्वस्थहि कङ्कण विलोकन भीठ भीथं, प्रथ्यग्र राग विवासं मम थं निदेहि, ऊथ्स्वेद वेपधु पिनाक भृथ ग्रहीथं, रुद्राणी दक्षिण करबुज मुथमङ्गे. 11 रिष्टपाहं भवथु भर्थ्रु नखेण्डु बिम्ब, स्पष्टनु बिम्बिथ थानुं विभुधपगं थां, ड्रुश्त्वसु राग रभसोधाय सोना कोणं, ड्रुश्तिद्वयम् थ्व कर ग्रहणे स्थिथं न. 12 योगे नवे थ्व भवानि शिवानि दध्यतः, द्रगेव सथ्वर मपथ्रपया निवृथं, सकंप माली वचनैर विहित्भिमुख्यं, द्रगुथ्स्मिथं पुरभिध परिरब्धमङ्गं. 13 गथय निथम्भ मन्द्रय सलज्जै, रधेक्षणै रस कलक्षर वग विलसि, ह्रुध्यैस्च विभ्रम गुणैर माधनरी धैर्य, प्रस्थार हरिणी शिवे जननि प्रसीद. 14 भद्र मखेन्दुन मनाध भी वीक्षनेषु, प्रथ्युक्थि धन विरमन्न वसतः कधाशु, ऊद्वेन नाधि हततः परि रंभनेषु, पथ्यु प्रमोध जननि, जननि प्रसीध. 15 यं नाधमधि मुनयो निगमोक्थि गुम्प्हे, ष्वलक्श्य थन्थ मनसो विमुखी भवन्थि, संनह्य थेन दयिथेन मनोज विध्या, नन्दनु भूतहि रसिके जननि प्रसीद. 16 कल्याण कुन्त्हल भारं नव कल्प वल्ली, पुष्पोल्लसद बहुला सोउरभ लोभनीयं, कल्याण धाम ससि खण्ड मखान शोभा, कल्लोलिथं थ्व महेस्वरि संस्रयाम. 17 रिञ्चलिक थ्व शिवे नीति ललकानां, न्यञ्चद पतीर थिलके नितिले विभन्थी, मन्जु प्रसन्न मुख पद्म विहारी लक्ष्मी, पिन्चथपथ्र रुचिर ह्रुधि न समिन्धं. 18 सम्यग् ब्रुवोव् थ्व विलास भूवोव् स्मराम, समुग्ध मन्मध सरासन चारु रूपे, हरुन मध्य गूदा निहिथं हर दीर्य लक्ष्यं, यन्मूल यन्थ्रिथ कदक्ष सारैर विभिन्नं, 19 कमर सिथ सिथ रुचा स्रवनन्थ दीर्घ, भिम्भोक दंबर ब्रुथो निभ्र्थनुकंप, संमथुक मयि भवन्थु पिनाकी वक्त्र, भिम्बम्भुजा जन्म मधुप सथि, थेय कदक्ष. 20 लग्नभिरम मृगनभि विचिथ्र पत्रं, मग्नं प्रभसमुदये थ्व गण्ड बिम्भं, चिथे विभथु सथथं मणि कुन्दलोध्य, द्रन्थानु बिम्भ परि चुम्बिथमंबिके न. 21 स्थानो सदा भ्ग्वथ परियथ निधनं, प्रनधापि प्रविरल स्मिथ लोभनेयं, स्थानी कुरुश्व गिरिजे, थ्व बन्धु जीव, श्रेणी सगन्ध मधुरं दिशनन्थरे न. 22 वन्दामहे कनक मङ्गल सुथर शोभा, संदीप्थ कुंकुम वलिथ्राय बानगी रम्यं, मन्दर्द्शिकस्वर विकस्वर नाध विध्य, संधर्भ गर्भंगजे, थ्व कन्द नालं. 23 रक्षर्थमथ्र मम मूर्धनि दथ्स्व नित्यं, दक्षरि गद परि रम्भा रसनुकूलं, अक्षम हेम कदकन्गध रथन शोभां, लाक्षविलं जननि, पनियुगं थ्वधीयम्. 24 जंभारि कुम्भी वरकुम्भ निभमुरोज, कुम्भ द्वयी ललिथ संब्रुथ रथन मलं, शम्भोर भुजैर अनुधिनं निभिदन्गपली, संभविथं भुवन सुन्दरी, भावयाम. 25 गर्वपहे वात दलस्य थानूधरन्थे, निर्व्यूद भासि थ्व नाभि सारस्य गधे, सर्ववलोक रुचि मेधुर रोम वल्ली, निर्वसिथे वसथु मय दिषणं अरली. 26 मचेदसि स्फुरथु मर राधाङ्ग भङ्गीं, उचैर द्धधन मथिपि वरथा निधनं, श्र्वचन्द रथन रसना कलिथन्थरीय, प्रच्हनं अम्ब, थ्व कर्म निथम्भ बिम्बं. 27 स्यन्धनु राग माधवरी पुरारी चेथ, संनाग बन्ध मणि वेणु कमूरु कन्दं, बन्धि कृथेन्द्र गज पुष्कर मुग्ध रम्भं, नन्दम सुन्दरी, शिवे, ह्रुधि संध धन. 28 मुग्धोल्लसतः कनक नूपुर नग्ध नाना, रथन भयोर्ध्व गथय परिथोभिरममं, चिथ प्रस्सोथि जय कहल कनथि जङ्घा, युग्मं थ्वधीय मग नान्धिनी चिन्थयाम. 29 ग़द्वन्ग पाणि मकुतेन तधा तधा सं -, गृष्ट गर्यो प्रनदिषु प्रणय प्रकोपे, अश्तङ्ग पथ सहिथं प्रनथोस्मि लब्धु, मिषतां गथिं जननि, पद पयोजयोस्थे. 30 ह्रुध्यर्पनं मम मृजन्थु तधा थ्वधन्ग, मुध्य द्रविध्युथि भवेदिह सानु बिम्भं, उथुङ्ग दैथ्य सुर मोउलिभिरुःयमानो, रुद्रप्रिये, थ्व पदभ्ज भवा परागा. 31 दध्य सुखानि मम चक्र कलन्धरस्थ, रक्थंबरण मलय धर, जपभ, रुद्राणी पास स्रुनि चाप सरग्र हस्थ, कस्थुरी कथिलकिनी, नव कुम्कुमर्ध्र. 32 यद पन्कजन्म निलयं कर पद्म शुम्भ, दंभोरुहं भुवन मङ्गल मद्रियन्थे, अम्बोर्हखा सुक्रोथोतः कर पाक मेकं, संभवये ह्रुधि शिवे, थ्व शक्थि बेधं, 33 मन्धर कुन्ध सुषम कर पल्लवोध्यतः, पुन्याक्षाधम पुस्थाक पूर्ण कुम्भ, चन्द्रार्ध चारु मकुट नव पद्म संस्था, संधेदिवीथु भवत्थि ह्यदि न स्थ्रिनेथ्र. 34 मध्ये कदम्भ वन मस्थिथ रथन दोलां, उध्यन्नखग्र मुखारी कृथा रथन वीणां, अथ्यन्थ नील कमनीय कलेभरं थ्वाम्, उथ्सङ्ग ललिथ मनोज्ञा सुखी मुपस्य. 35 वर्थमहे मनसि संधदधीं निथन्थ, रक्थां वरा भय विराजि कररविन्धां, ऊद्वेल मध्य वसथीं, मधुरङ्गी, मायां, ठथ्वथ्मिकाम् हग्वथीम्, भवथीं भजन्थ. 36 शंभु प्रियं ससि कला कलिथवथंसां, संभविथभाय वरं कुस पास पाणिं, संपाद प्रधान निरथं, भुवनेस्वरीम् थ्वम्, शुम्भज्जप रुचमपर कृपां उपासे. 37 आरूद थुङ्ग थुरगां मृदु बहु वल्लीं, आरूद पास स्रुनि वेथ्र लथं, त्रिनेथ्रं, आरोपिथा मखिल संथनने प्रगथ्भं, आराधयामि भवथि मनसा मंनोग्नं. 38 कर्मथ्मिके, जय जय अखिल धर्म मूर्थे, चिन्मथ्रिके जय, जय त्रिगुण स्वरूपे, कल्माष घर्मम पिसुनान करुणा मृथर्ध्रै, समर्ज्य समय गभिषिञ्च द्रुगञ्जलैर न, 39 शन्नामसि थ्वमधि दैवथमक्षरानां, वर्ण थ्र्योधिथ मनु प्रक्रुथिस्थ्वमेव, ठ्वन्नम विस्व मनु शक्थि कालं थ्वदन्यथ्, किन्नाम दैवथमिहस्थि समास्थ मूर्थे. 40 य कपि विस्व जन मोहन दिव्य मया, श्री काम वैरी वपुरार्ध हरानुभव, प्रकस्यथे ज्ञगधीस्वरि, स थ्वमस्मन्, मूकान अन्य सरनान परि पाहि धीनान. 41 कर्थ्रै नमोस्थु जगथोनिखिल स्य भर्थ्यै, हर्थ्यै नमोस्थु विधि विष्णु हरथम शक्थ्यै, भ्क्थ्यै नमोस्थु भुवनाभि मथ प्रसूथ्यै, मुक्थ्यै नमोस्थु मुनि मण्डल दृश्य मूर्थ्यै. 42 षड वक्त्र हस्थि मुख जुष्टा पदस्य भरथु, रिष्टोप गुहाण सुधप्लुथ मानसस्य, दृष्ट्या निपीय वदनेन्दु मक्षिनङ्गे, थुष्ट्या स्थिथे, विथार देवी, दयवोकान. 43 यन्थन्थरं भविथ्रु भूथ भवं मया यतः, श्र्वप्न प्रजा गर सुषुप्थि शुप्थिषि वङ्ग मनोङ्गै, नित्यं थ्वदर्चन कलासु समास्थ मेथातः, भक्थानुकंपिनि, ममास्थु थ्व प्रसादतः. 44 श्र्वहेथि सागर सुथेथि, सुरपगेथि, व्याहर रूप सुशमेथि, हरि प्रियेथि, नीहार सैल थानयेथि, प्रधाक प्रकास, रूपं परमेस महिषीं, भवथिं भजाम. 45 हरस्फुरतः कुच गिरे, हर जीव न्धे, हरि स्वरूपिनि, हरि प्रमुख्धि वन्ध्ये, हेरंभ शक्थि धर नन्दिनी, हेम वर्णे, हेय चण्डी, हैमवथि, देवी नमो नमस्थे. 46 य़ेअ थु स्वयम्वर महा स्थाव मन्थ्रमेथं, प्रथर नरा सकल सिधि करं जपन्थि, भूतहि प्रभाव जन रञ्जन कीर्थि सोउन्धार्य, आरोप्य मयुरापि दीर्गमामि लभन्थे. 47 शथ कृथु प्रब्रुथ्य मर्थ्य थाथ्यभि प्रनथ्यप, क्रम प्रस्रुथ्वर स्मिथ प्रभन्चिदस्य पङ्कजे, हर प्रिये, वर प्रधे, दर दरेन्द्र कन्यके, हरिध्राय समन्विथे, दरिध्रथां हर दृथं. 48 श्र्वयम्वर मन्त्रं न्यासं अस्य श्री स्वयम् वर मन्थरस्य ब्रह्म ऋषि, देवी गयथ्री चन्द, देवी गिरि पुत्री स्वयवर देवथा, मम अभेष सिध्यर्थे जपे विनियोग. ध्यानं शंभुं जगन मोहन रूप वर्णं, विलोक्य लज्जकुलिथं, स्मिथद्यां, मधूक मालं, स्व सखी कराभ्यां, संबीब्रथि माद्री सुथां भजेयं. मन्त्र ॐ ह्रीं योगिनी योगिनी योगेस्वरि योग भयंकरी सकल स्थवर जन्गमस्य मुख हृदयं मम वासं आकर्षय आकर्षय स्वहा. . 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