Wednesday, 21 March 2018
स्वर विज्ञान क्या है
 खोटा सिक्का
स्वर विज्ञान क्या है ? जानिए व स्वयं अनुभव करे
 bagoraph
2 years ago
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स्वर विज्ञान:-
स्वर शास्त्र प्राचीन भारतीय ऋषि- मुनियों के द्वारा दिया गया योग का ऐसा अदभूत उपहार है, जो हमारे शरीर और मन पर बहुत तीव्र गति से असर करता है। यह रोग मुक्त करने के साथ मानसिक संतुलन एवम् व्यवहारिक दुनिया में संघर्ष के योग्य बनाता है।
ऐसा भी कह सकते है कि यह योग के इस सीक्रेट फार्मूला कि ओर बहुत से लोंगो का ध्यान नही जा पाता है। यह प्राणायाम का ही एक प्रकार है, जो सांसों (स्वर ) को पकड कर कार्य करता है और धीरे- धीरे आपके जीवन को बदल कर रख देता है ।
आधारभूत तथ्य :-
श्वांस क्रमश: चलती है – बाएं नासपुट से, फिर दायें नासपुट से या दायें से बाएं। बाएं नासपुट से चलने बाली श्वांस को चंद्र-स्वर एवम दायें नासपुट से चलने वाली श्वांस को सुर्य-स्वर कहते है।
कभी-कभी दोनो नाक से श्वांस चलती है, जिसे सुषुम्ना कहते है। जिस नासिका से सरल रुप से सांस निकलती हो उसे उसी नासिका का श्वांस कहेंगे। दिन और रात में बारह बार बायीं नासिका से एवम् बारह बार दायीं नासिका से श्वांस चलन करता है।
श्वांस बदलने कि विधि:-
श्वांस जिस नासिका से चल रही है, उसके विपरीत नाक में श्वांस को चलाने या बदलने का तरीका जानना आवश्यक है। साधारण प्रयास से यह समझ आने लगेगा कि विपरीत नासिका में सांस को कैसे चला सकते है।
जिस नासिका से श्वांस चल रही हो उस नासिका को अंगूठे से दबाना चाहियें और दुसरी नासिका से ही श्वांस को लेना और छोड़ना जारी रखना चाहियें।
ऐसा दस-पन्द्रह मिनट शुरु में और धीरे- धीरे आधा से एक घंटे भी किया जा सकता है। दिन में दो- तीन बार भी समय मिलने पर कर सकते है, बस ध्यान रहे कि रीढ़ कि हड्डी सीधी कर बैठना चाहिए एवम् पेट भरा नही होना चाहिएँ।
एक सप्ताह के अभ्यास से ही इच्छानुसार श्वांस बदलने में सफलता मिल जाती है। जिस नाक से सांस लिया जा रहा हो, उसी करवट सोने से भी नासिका पलट जाती है।
एक सप्ताह मे ही यह अनुभव हो जाता है कि शरीर और मन का कूडा- करकट साफ हो रहा है तथा एक स्वत: स्फूर्त उर्जा आवेशित कर रही है।
लाभ:-
श्वांस सशरीर और आत्म शरीर का बेताज बादशाह है। शरीर से जीव जुड़ा है। ब्रह्माण्ड लयबद्ध सांस ले रहा है। विश्व,आकाश -पाताल, नदी, पहाड़ , वयक्त-अवयक्त सभी अंतर सम्बंधित है – एक दुसरे पर असर डाल रहे है।
लगातार अभ्यास से मानसिक शक्ति से ही श्वांस को बदला जा सकता है। दिन में एक बार रोज श्वांस बदलना चाहिए – यही अभ्यास है। साथ ही नीचे दिए गये उपायों को भी आजमाना लाभदायक
रहेगा —
०१ / सो – कर उठने के उपरांत जिस ओर कि नासिका चल रही है, उस ओर का पैर जमीन रखकर पलंग पर से उतरना चाहिऐ। सम्पूर्ण दिन
अच्छा रहेगा।
०२/घर से बाहर निकलते समय जिस ओर कि नासिका चल रही है,दरवाजे के बाहर पहला कदम उसी पैर का होना चाहिऐ। कार्य सिद्ध होगा।
०३/बाया स्वर चन्द्रमा कि श्वास है, जो शांति और प्रेम का प्रतीक है। यदि किसी से प्रेम प्रकट करना है तो श्वांस को बाएं स्वर में बदल कर जाइये , सफल होंगे । यदि आप शक्ति प्रदर्शन करने जा रहें है तो दाया स्वर चलना चाहियें।
०४/आपके शारीर में हरारत हो, सरदी -जुकाम हो या मामूली बुखार – श्वांस कि गति बदल दीजिए । शीघ्र ही आराम होगा । दिन में तीन-चार बार भी कर सकते है।
०५/यदि आधा-सीसी सिरदर्द हो तो जिस तरफ का सिर दर्द हो , उसके विपरीत हाथ कि कोहनी को किसी कपडे या टावेल से तेज बाँध दीजिए एवम् श्वांस को बदल देने से जल्दी आराम मिलेगा।
साभार – निशा द्विवेदी जी
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