Monday, 19 March 2018

सच्चे संत की पहचान

January 20,2018 ज्ञान गंगा : सच्चे संत की पहचान Thu Apr 28 00:30:19 IST 2016   आज हर चीज हाईटेक हो गई है। संतों के आश्रम, स्वयं संत, कथाएं आदि सभी भव्यता की पर्याय हो चली हैं। हम बाहरी सजावट पर कुछ ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। बाहरी चमक-दमक हमें अधिक प्रभावित करती है। सुदूर वन-उपत्यकाओं में दुनिया से अलग अपनी साधना में लीन साधु-संत हमें कम आकर्षित करते हैं। सादगी हमें पसंद नहीं। बाहरी सजावट से हम कुछ अधिक ही प्रभावित होते हैं। सच्चा संत व्यक्तियों के समूह से दूर रहकर अपनी साधना में लीन रहता है। जब वह बाहर से मौन धारण कर चुप रहता है, तब वह भीतर ही भीतर ईश्वर से बातें करता रहता है और जब उसके नेत्र मुंदे होते हैं, तब वह ईश्वर की महिमा का साक्षात्कार कर रहा होता है। कुछेक लोग इसे ढोंग मान लेते हैं। आज अनेक संत यह दावा करते हैं कि उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार हो गया है। ऐसे लोगों को विद्वान लोग मिथ्याभिमानी कहते हैं। यह सच्चाई भी है कि जो ईश्वर-ज्ञानी हैं, वे कभी भी अपने को प्रकट रूप से ऐसा नहीं मानते और न ऐसा कहते ही हैं। सच्चे संत तो लोगों से बार-बार यही कहते हैं कि उन्होंने अभी तक ईश्वर-दर्शन नहीं किया है। वे ईश्वर को जानने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे सच्चे संत ईश्वर की उपासना में ज्यों-ज्यों अधिक डूबते जाते हैं, उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगता है कि उनकी प्रभु-दर्शन की अभिलाषा शीघ्र पूर्ण होने वाली है। ऐसे वीतरागी संत को जब सचमुच में एक पल के ही लिए भगवान का साक्षात्कार हो जाता है, तो वे उस स्थिति की अधिक से अधिक इच्छा करने लगते हैं। ऐसे में उनकी साधना और उनका मौन बढ़ जाता है। वे समाधि-अवस्था में पहुंच जाते हैं। यही साधुता है। वास्तव में सच्चा संत वह है, जिसे आज और कल किसी दिन की चिंता नहीं। इनके समक्ष संसार का समस्त वैभव, सुख-ऐश्वर्य नगण्य है। ऐसे संतों का मानना है कि ईश्वर आनंदमय है। वे लीला-रस-विस्तार के लिए ही सृष्टि रचना करते हैं। इस सृष्टि में उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं है। अनादिकाल से विलग हुए जीवों पर दया करने के लिए उन पर अनुग्रह करने के लिए ही उनके द्वारा सृष्टि-लीला का विस्तार हुआ है। -डॉ. विश्रम  Copyright © 2017 Naidunia.

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