Tuesday, 26 September 2017

तीन प्रकार के व्यक्ती

संसार में तीन प्रकार के व्यक्ती होते हैं:-
(1) पहले वह जो ठोकर खाकर सीखते हैं।
(2) दूसरे वह जो ठोकर खाने से पहले सम्हल जातें हैं।
(3) तीसरे वह जो ठोकर खाकर भी नहीं सीखते हैं।

#एक रोचक तथ्य की हिंदी शब्द में :-
चमत्कार,अचम्भा, जादू,अन्तरध्यान, Miracle, जैसे
शब्द हैं ही नहीं।

Monday, 25 September 2017

परमार देव की सेना में दसराज नामक एक सरदार था। आल्हा उदल उसी के दो पुत्र थे

शत्रु करें जिसका अंतिम साँस तक बखान,
नतमस्तक था जिसके आगे सुल्तान।
जिसकी वीरता बनी घर घर की आन,
और जीत थी उसकी शान।
वो है वीरों का वीर महान,
वो है दिल्ली का महाराज पृथ्वीराज चौहान।।

इतिहास में महोवा का युद्ध होने का सही सही कारण नहीं मिलता है पर रासो में लिखा है की चौहान सेना मुहम्मद गौरी से सफल युद्ध जीत कर दिल्ली वापस आ रही थी, उनमे कितने ही घायल सैनिक थे, ये सेना कई रास्तों से दिल्ली वापस जा रही थी। कुछ घायल सेना की टुकरी महोवा राज्य जा पहुंची। वर्षा ऋतू थी तथा रात अँधेरी थी, पृथ्वीराज के सैनिक आश्रय पाने के उदेश्य से यहाँ वहां भटककर चंदेल राजाओं के शाही बाग़ में जा पहुंचे, पृथ्वीराज के सैनिकों को बाग़ के रक्षकों ने रोका परन्तु वे उनकी बात न मान कर राजा परमार के सरकारी महल में डेरा डालने लगे, बात बढ़ गयी। एक सैनिक ने एक रक्षक को मार डाला, बात राजा परमार तक पहुँच गयी, राजा परमार ने हरिदास बघेल को आदेश दिया की घायल सैनिकों को पकड़ कर यहाँ पेश किया जाए। चौहान सैनिकों ने हरिदास को बहुत तरह से समझाना चाहा की वे सुबह चले जायेंगे पर हरिदास एक न माना, परिणाम ये हुआ की बात ही बात में हरिदास और उसके कुछ सैनिक ने चौहान सेना पर हमला कर दिया, चौहान सेना घायल अवास्था में ही लड़ने लगी और हरिदास मारा गया, जब परमार को हरिदास के मौत की खबर मिली तब परमार ने उदल को बुला कर सभी घायल सैनिकों को मार डालने की आज्ञा दी, उदल ने बहुत समझाने की कोशिश की कि पृथ्वीराज बहुत वीर और प्रतापी है उनसे झगडा मोल न लिया जाए, पर राजा परमार के सामंत मल्हन ने आल्हा उदल की बात को जमने न दिया, राजा की आज्ञा पाकर आल्हा उदल को बाग़ में जाकर सभी घायल सैनिकों को मार डालना पड़ा।

  अब यहाँ पर आल्हा उदल का परिचय देना अवश्यक है। परमार देव की सेना में दसराज नामक एक सरदार था। आल्हा उदल उसी के दो पुत्र थे। इनके पिता ने कितनी ही बार युद्ध में प्रकारम दिखा कर महोवा को विजयी बनाया था। ये दोनों भाई भी बहुत परकर्मी थे, इन्हें महोवा का मशहूर लड़ाका भी कहा जाता था, कहा जाता था की आज तक पृथ्वी में ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ है जो इन दो भाइयों को हरा सके, उनके इन पराक्रम के कारण परमार इन्हें अपने पुत्र के जैसा मानते थे। उनका इतना बल देखकर राज्य के अन्य कर्मचारी उनसे जलते थे। आल्हा उदल के पास अच्छे नस्ल के पांच घोड़े थे जो की उनके पिता की आखिरी निशानी थे, लोगो ने राजा के कान भरे की ऐसा घोडा तो केवल महोवा के राजा के पास होने चाहिए, राजा परमार ने कुछ धन के बदले वो घोडा लेना चाहा पर आल्हा ने वो घोडा उन्हें न देना चाहा, इसपर राजा के सामंतों ने फिर से राजा के कान भरने लगे और राजा ने क्रोध में आकर उन्हें राज्य से निकलवा दिया। आल्हा उदल ने वहां रहना उचित न समझा और कन्नोज में जयचंद के पास शरणागत के रूप में आ गए। जयचंद वीरों की इज्ज़त करना अच्छी तरह से जनता था उसने उन्दोनो भाइयों को पुरे सम्मान के साथ कन्नोज में रखा।

जब पृथ्वीराज को यह दिल तोड़ने वालीखबर मिली तो उसके गुस्से की कोई हद न रही। ऑंधी की तरह महोबे पर चढ़ दौड़ाऔर सिरको, जो इलाका महोबे का एक मशहूर कस्बा था, तबाह करके महोबे की तरहबढ़ा। चन्देलों ने भी फौज खड़ी की। मगर पहले ही मुकाबिले में उनके हौसलेपस्त हो गये। आल्हा-ऊदल के बगैर फौज बिन दूल्हे की बारात थी। सारी फौजतितर-बितर हो गयी। देश में तहलका मच गया। अब किसी क्षण पृथ्वीराज महोबे मेंआ पहुँचेगा, इस डर से लोगों के हाथ-पॉँव फूल गये। परमाल अपने किये पर बहुतपछताया। मगर अब पछताना व्यर्थ था। कोई चारा न देखकर उसने पृथ्वीराज से एकमहीने की सन्धि की प्रार्थना की। चौहान राजा युद्ध के नियमों को कभी हाथ सेन जाने देता था। उसकी वीरता उसे कमजोर, बेखबर और नामुस्तैद दुश्मन पर वारकरने की इजाजत न देती थी। इस मामले में अगर वह इन नियमों को इतनी सख्ती सेपाबन्द न होता तो शहाबुद्दीन के हाथों उसे वह बुरा दिन न देखना पड़ता। उसकीबहादुरी ही उसकी जान की गाहक हुई। उसने परमाल का पैगाम मंजूर कर लिया।चन्देलों की जान में जान आई।
अब सलाह-मशविरा होने लगा कि पृथ्वीराज सेक्योंकर मुकाबिला किया जाये। रानी मलिनहा भी इस मशविरे में शरीक थीं। किसीने कहा, महोबे के चारों तरफ एक ऊँची दीवार बनायी जाय ; कोई बोला, हम लोगमहोबे को वीरान करके दक्खिन को ओर चलें। परमाल जबान से तो कुछ न कहता था, मगर समर्पण के सिवा उसे और कोई चारा न दिखाई पड़ता था। तब रानी मलिनहा खड़ीहोकर बोली :
‘चन्देल वंश के राजपूतो, तुम कैसी बच्चों की-सी बातें करतेहो? क्या दीवार खड़ी करके तुम दुश्मन को रोक लोगे? झाडू से कहीं ऑंधीरुकती है ! तुम महोबे को वीरान करके भागने की सलाह देते हो। ऐसी कायरोंजैसी सलाह औरतें दिया करती हैं। तुम्हारी सारी बहादुरी और जान पर खेलना अबकहॉँ गया? अभी बहुत दिन नहीं गुजरे कि चन्देलों के नाम से राजे थर्राते थे।चन्देलों की धाक बंधी हुई थी, तुमने कुछ ही सालों में सैंकड़ों मैदानजीते, तुम्हें कभी हार नहीं हुई। तुम्हारी तलवार की दमक कभी मन्द नहीं हुई।तुम अब भी वही हो, मगर तुममें अब वह पुरुषार्थ नहीं है। वह पुरुषार्थबनाफल वंश के साथ महोबे से उठ गया। देवल देवी के रुठने से चण्डिका देवी भीहमसे रुठ गई। अब अगर कोई यह हारी हुई बाजी सम्हाल सकता है तो वह आल्हा है।वही दोनों भाई इस नाजुक वक्त में तुम्हें बचा सकते हैं। उन्हीं को मनाओ, उन्हीं को समझाओं, उन पर महोते के बहुत हक हैं। महोबे की मिट्टी और पानी सेउनकी परवरिश हुई है। वह महोबे के हक कभी भूल नहीं सकते, उन्हें ईश्वर नेबल और विद्या दी है, वही इस समय विजय का बीड़ा उठा सकते हैं।’
रानी मलिनहा की बातें लोगों के दिलों में बैठ गयीं।

जगनाभाट आल्हा और ऊदल को कन्नौज से लाने के लिए रवाना हुआ। यह दोनों भाईराजकुँवर लाखन के साथ शिकार खेलने जा रहे थे कि जगना ने पहुँचकर प्रणामकिया। उसके चेहरे से परेशानी और झिझक बरस रही थी। आल्हा ने घबराकरपूछा—कवीश्वर, यहॉँ कैसे भूल पड़े? महोबे में तो खैरियत है? हम गरीबों कोक्योंकर याद किया?
जगना की ऑंखों में ऑंसू भर जाए, बोला—अगर खैरियत होतीतो तुम्हारी शरण में क्यों आता। मुसीबत पड़ने पर ही देवताओं की याद आतीहै। महोबे पर इस वक्त इन्द्र का कोप छाया हुआ है। पृथ्वीराज चौहान महोबे कोघेरे पड़ा है। नरसिंह और वीरसिंह तलवारों की भेंट हो चुके है। सिरकों साराराख को ढेर हो गया। चन्देलों का राज वीरान हुआ जाता है। सारे देश मेंकुहराम मचा हुआ है। बड़ी मुश्किलों से एक महीने की मौहलत ली गई है और मुझेराजा परमाल ने तुम्हारे पास भेजा है। इस मुसीबत के वक्त हमारा कोई मददगारनहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी किम्मत बॅंधाये। जब से तुमने महोबे सेनहीं है, कोई ऐसा नहीं है जो हमारी हिम्मत बँधाये। जब से तुमने महोबे सेनाता तोड़ा है तब से राजा परमाल के होंठों पर हँसी नहीं आई। जिस परमाल कोउदास देखकर तुम बेचैन हो जाते थे उसी परमाल की ऑंखें महीनों से नींद कोतरसती हैं। रानी महिलना, जिसकी गोद में तुम खेले हो, रात-दिन तुम्हारी यादमें रोती रहती है। वह अपने झरोखें से कन्नैज की तरफ ऑंखें लगाये तुम्हारीराह देखा करती है। ऐ बनाफल वंश के सपूतो ! चन्देलों की नाव अब डूब रही है।चन्देलों का नाम अब मिटा जाता है। अब मौका है कि तुम तलवारे हाथ में लो।अगर इस मौके पर तुमने डूबती हुई नाव को न सम्हाला तो तुम्हें हमेशा के लिएपछताना पड़ेगा क्योंकि इस नाम के साथ तुम्हारा और तुम्हारे नामी बाप का नामभी डूब जाएगा।
आल्हा ने रुखेपन से जवाब दिया—हमें इसकी अब कुछ परवाहनहीं है। हमारा और हमारे बाप का नाम तो उसी दिन डूब गया, जब हम बेकसूरमहोबे से निकाल दिए गए। महोबा मिट्टी में मिल जाय, चन्देलों को चिराग गुलहो जाय, अब हमें जरा भी परवाह नहीं है। क्या हमारी सेवाओं का यही पुरस्कारथा जो हमको दिया गया? हमारे बाप ने महोबे पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये, हमने गोड़ों को हराया और चन्देलों को देवगढ़ का मालिक बना दिया। हमनेयादवों से लोहा लिया और कठियार के मैदान में चन्देलों का झंडा गाड़ दिया।मैंने इन्ही हाथों से कछवाहों की बढ़ती हुई लहर को रोका। गया का मैदान हमींने जीता, रीवॉँ का घमण्ड हमीं ने तोड़ा। मैंने ही मेवात से खिराज लिया।हमने यह सब कुछ किया और इसका हमको यह पुरस्कार दिया गया है? मेरे बाप ने दसराजाओं को गुलामी का तौक पहनाया। मैंने परमाल की सेवा में सात बारप्राणलेवा जख्म खाए, तीन बार मौत के मुँह से निकल आया। मैने चालीस लड़ाइयॉँलड़ी और कभी हारकर न आया। ऊदल ने सात खूनी मार्के जीते। हमने चन्देलों कीबहादुरी का डंका बजा दिया। चन्देलों का नाम हमने आसमान तक पहुँचा दिया औरइसके यह पुरस्कार हमको मिला है? परमाल अब क्यों उसी दगाबाज माहिल को अपनीमदद के लिए नहीं बुलाते जिसकों खुश करने के लिए मेरा देश निकाला हुआ था !
जगनाने जवाब दिया—आल्हा ! यह राजपूतों की बातें नहीं हैं। तुम्हारे बाप ने जिसराज पर प्राण न्यौछावर कर दिये वही राज अब दुश्मन के पांव तले रौंदा जारहा है। उसी बाप के बेटे होकर भी क्या तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? वहराजपूत जो अपने मुसीबत में पड़े हुए राजा को छोड़ता है, उसके लिए नरक की आगके सिवा और कोई जगह नहीं है। तुम्हारी मातृभूमि पर बर्बादी की घटा छायीहुई हैं। तुम्हारी माऍं और बहनें दुश्मनों की आबरु लूटनेवाली निगाहों कोनिशाना बन रही है, क्या अब भी तुम्हारे खून में जोश नहीं आता? अपने देश कीयह दुर्गत देखकर भी तुम कन्नौज में चैन की नींद सो सकते हो?
देवल देवी को जगना के आने की खबर हुई। असने फौरन आल्हा को बुलाकर कहा—बेटा, पिछली बातें भूल जाओं और आज ही महोबे चलने की तैयारी करो।
आल्हाकुछ जबाव न दे सका, मगर ऊदल झुँझलाकर बोला—हम अब महोबे नहीं जा सकते। क्यातुम वह दिन भूल गये जब हम कुत्तों की तरह महोबे से निकाल दिए गए? महोबाडूबे या रहे, हमारा जी उससे भर गया, अब उसको देखने की इच्छा नहीं हे। अबकन्नौज ही हमारी मातृभूमि है।
राजपूतनी बेटे की जबान से यह पाप की बात नसुन सकी, तैश में आकर बोली—ऊदल, तुझे ऐसी बातें मुंह से निकालते हुए शर्मनहीं आती ? काश, ईश्वर मुझे बॉँझ ही रखता कि ऐसे बेटों की मॉँ न बनती। क्याइन्हीं बनाफल वंश के नाम पर कलंक लगानेवालों के लिए मैंने गर्भ की पीड़ासही थी? नालायको, मेरे सामने से दूर हो जाओं। मुझे अपना मुँह न दिखाओं। तुमजसराज के बेटे नहीं हो, तुम जिसकी रान से पैदा हुए हो वह जसराज नहीं होसकता।
यह मर्मान्तक चोट थी। शर्म से दोनों भाइयों के माथे पर पसीना आगया। दोनों उठ खड़े हुए और बोले- माता, अब बस करो, हम ज्यादा नहीं सुनसकते, हम आज ही महोबे जायेंगे और राजा परमाल की खिदमत में अपना खूनबहायेंगे। हम रणक्षेत्र में अपनी तलवारों की चमक से अपने बाप का नाम रोशनकरेंगे। हम चौहान के मुकाबिले में अपनी बहादुरी के जौहर दिखायेंगे और देवलदेवी के बेटों का नाम अमर कर देंगे।

दोनोंभाई कन्नौज से चले, देवल भी साथ थी। जब वह रुठनेवाले अपनी मातृभूमि मेंपहुँचे तो सूखें धानों में पानी पड़ गया, टूटी हुई हिम्मतें बंध गयीं। एकलाख चन्देल इन वीरों की अगवानी करने के लिए खड़े थे। बहुत दिनों के बाद वहअपनी मातृभूमि से बिछुड़े हुए इन दोनों भाइयों से मिले। ऑंखों ने खुशी केऑंसू बहाए। राजा परमाल उनके आने की खबर पाते ही कीरत सागर तक पैदल आया।आल्हा और ऊदल दौड़कर उसके पांव से लिपट गए। तीनों की आंखों से पानी बरसा औरसारा मनमुटाव धुल गया।
दुश्मन सर पर खड़ा था, ज्यादा आतिथ्य-सत्कार कामौकर न था, वहीं कीरत सागर के किनारे देश के नेताओं और दरबार केकर्मचारियों की राय से आल्हा फौज का सेनापति बनाया गया। वहीं मरने-मारने केलिए सौगन्धें खाई गई। वहीं बहादुरों ने कसमें खाई कि मैदान से हटेंगे तोमरकर हटेंगें। वहीं लोग एक दूसरे के गले मिले और अपनी किस्मतों को फैसलाकरने चले। आज किसी की ऑंखों में और चेहरे पर उदासी के चिन्ह न थे, औरतेंहॅंस-हँस कर अपने प्यारों को विदा करती थीं, मर्द हँस-हँसकर स्त्रियों सेअलग होते थे क्योंकि यह आखिरी बाजी है, इसे जीतना जिन्दगी और हारना मौत है।
उसजगह के पास जहॉँ अब और कोई कस्बा आबाद है, दोनों फौजों को मुकाबला हुआ। जयचंद ने भी अपनी सेना पृथ्वीराज से युद्ध करने के लिए भेज दी।दोनों की सम्मिलित सेना लगभग एक लाख की थी। इस सेना को लेकर आल्हा और उदक अपने स्वामी की ओर से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। चंदेलों की इस विशाल सेना को देखकर पृथ्वीराज ने भी अपने सेना को चार भागों में विभक्त की।नरनाह और कान्हा समस्त चौहान सेना का सेनापति नियुक्त हुआ। और पुंडीर,लाखनसिंह, कनाक्राय कान्हा की मदद के लिए नियुक्त हुए।   यद्यपि चंदेल सेना एक लाख थी, तथापि पृथ्वीराज की कुछ ऐसी धाक जमी हुई थी की सभी घबरा रहे थे।कन्हे के आंख की पट्टी खोल दी गयी, पट्टी खुलते ही वह इस वेग से आक्रमण किया की दुश्मन के पावं उखाडने लगे बहुत ही घोर युद्ध होने लगा राजा परमार पहले ही दस हज़ार सेना लेकर कालिंजर किले में भाग गए, परन्तु वीर बकुंडे आल्हा और उदल अपनी स्थान में ही डटे रहे।वे जिधर जपत्ता मरते उधर ही साफ़ कर देते। आल्हा उदल के होते हुए भी प्रथम दिवस के युद्ध में चौहान सेना ही विजयी रही। राजा परमार के किले में भाग जाने के बावजूद उसका पुत्र ब्रह्मजीत युध्क्षेत्र में मौजूद था, आल्हा ने उन्हें चले जाने के लिए कहा पर उसने कहा की युद्ध मैदान से भागना कायरों का काम है।प्रथम दिवस का युद्ध समाप्त होते होते पृथ्वीराज की सेना द्वारा जयचंद और परमार के कई  सामंत समेत हजारों सिपाही भी मारे गए।

दुसरे दिन का युद्ध फिर शुरू हुआ आज उदल बीस हज़ार सैनिकों को लेकर युद्ध मैदान में आ पहुंचा, आज उसकी वीरता का प्रशंसा उसके शत्रु भी करने लगे, उदल की वीरता को देखकर चौहान सेना विचलित हो उठी, इसे देखकर पृथ्वीराज स्वयं ही युद्ध मैदान में आ उदल का सामना करने लगे बहुत देर तक युद्ध हुआ, परन्तु कोई कम न था,  पृथ्वीराज के हाथों उदल बुरी तरह घी हो गया और आखिर का वो उनके हाथों मारा गया।   उदल की मृत्यु का समाचार सुनकर ब्रह्मजीत और आल्हा बहुत क्रोधित हो उठे और अपनी प्राणों की ममता छोड़ कर लड़ने लगे। लड़ते लड़ते उन दोनों ने पृथ्वीराज को एक स्थान पर घेर लिया, पृथ्वीराज को घिरा देखकर कान्हा उनकी ओर अग्रसर हुआ, परन्तु आल्हा ने कान्हा पर ऐसा वार किया की वो बेहोश होकर गिर पड़ा, कान्हा को बेहोश होता देख संजम राय ने पृथ्वीराज की मदद करने आगे आये पर वो भी आल्हा की हाथों मारे गए चंदरबरदाई ने संजम राय की मृत्यु को बहुत ही गर्वित अक्षरों में लिखा है, उनके बारे में लिखा है की ऐसा दोस्त न कभी पैदा हुआ है और न ही कभी पैदा होगा, संजम राय ने पृथ्वीराज की खातिर अपने प्राण दे दिए, पृथ्वीराज के क्रोध की कोई सीमा न रही, और जल्द ही उन्होंने ब्रह्मजीत को मार गिराया, ब्रह्मजीत के मरते ही साडी चंदेल सेना में कोहराम मच गयी, चंदेल सेना तितर बितर होने लगी, पृथ्वीराज के सर में तो मानो आज खून सावार था, अपनी सेना को हारता देख कर जब उसे लगा की वो किसी भी तरह अपनी सेना की रक्षा नहीं कर सकता है तो वीर आल्हा ने जंगल में सन्यास ले लिया। और चंदेल सेना भाग खड़ी हुई।  इसी बीच पांच हज़ार सेना लेकर चामुंडराय ने कालिंजर किले की ओर अग्रसर हो गया,यद्यपि राजा परमार ने अपनी रक्षा का पूरा पूरा प्रबंध कर लिया था, लेकिन चामुंड राय ने वीरता से आक्रमण कर कालिंजर किले में अपना अधिकार जमा लिया। और इस तरह महोवा और कालिंजर में पृथ्वीराज चौहान का अधिकार हुआ

शरीर को क्षीण करने वाले अष्ट मैथुन

Press question mark to see available shortcut keys 4   Naveen Hangout Public Jul 19, 2016  प्रश्न :- - शरीर को क्षीण करने वाले अष्ट मैथुन कौन कौन से हैं ? उत्तर :- - शारीरिक और मानसिक क्षीणता करने वाले ये अष्ट मैथुन हैं - - - (1) स्त्री का ध्यान करना , स्त्री के बारे में सोचते रहना कल्पना करते रहना । (2 ) कोई श्रृंगारिक , कामुक कथा का पढ़ना , सुनना । (3 ) अंगों का स्पर्श , स्त्री पुरुषों के द्वारा एक दूसरे के अंगों का स्पर्श करना । (4 ) श्रृंगारिक क्रीडाएँ करना । (5 ) आलिंगन करना । (6 ) दर्शन अर्थात नग्न चित्र या चलचित्र का दर्शन करना । (7 ) एकांतवास अर्थात अकेले में पड़े रहना । (8 ) समागम करना अर्थात यौन सम्बन्ध स्थापित करना । जो इन सभी मैथुनों को त्याग देता है वही ब्रह्मचारी है । Translate one plus one 1 2 comments 2 3 shares 3 Shared publicly•View activity  Ashok Sharma Khhuhggh 15w  Ashok Sachde एकदम सही बात। जो बात ईश्वर के ८४ लाख यौनियों मे कीसी भी जीव को सीखने की गरज नहीं वह बात "एक मनुष्य जीव योनिमें दूसरे मनुष्य जीव को बार बार बताते रहते है ऐसे क्यों करते हैं ? एक मनुष्य जीव दूसरे मनुष्य जीव के साथ ! जब के देखा जाएं तो दोनों स्त्री पुरूष इन्सान ही है। इन्सान शब्द लिंग भेद नहीं करता और लिंग शब्द का अर्थ है गति करवाना अर्थात ईश्वर अंश जीव की गति एक योनिद्वार से दूसरे योनिद्वार मे करवाना अर्थात पु. लिंग से स्त्री लिंग ऐसे जीव कि गति होती है। इस तरह मनुष्य जीव की गति मनुष्य योनिमें आ जाती है। लिंग शब्द वास्तविक रूप से संस्कृत भाषा से लीया गया है। और यह बात स्वामी विवेकानंद द्वारा बडे अच्छे से कहीं गई हैं। इस साइट पर जा कर पढ सकते हैं। ब्रह्मचर्य संबंधी भारतीय ज्ञान-परंपरा के सभी दावे सही हैं. उतने ही अकाट्य, जैसे गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत.वेदांत सिखाता है कि शक्ति शरीर में नहीं, आत्मा में है या मन की अवस्था में है. वेदांती मन किस शक्ति की साधना में लीन होता है- शरीर की या आत्मा की? जो आत्मशक्ति या मनोबल की साधना करेगा वह शरीर को शुद्ध रखेगा. सारी योग विधा शरीर शुद्धि और चित्त की शुद्धि के लिए- चित्त वृत्ति के निरोध के लिए है. prabhatkhabar.com - उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल न मिले  उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल न मिले prabhatkhabar.com Translate 15w  Add a comment... Now following "जय हिन्दू राष्ट्र एक संकल्प"...

मैथुन

 विकि लव्ज़ मॉन्युमॅण्ट्स: किसी स्मारक की तस्वीर खींचिए, विकीपीडिया की सहायता कीजिए और जीति मुख्य मेनू खोलें  खोजें संपादित करेंइस पृष्ठ का ध्यान रखेंकिसी अन्य भाषा में पढ़ें मैथुन चोदाई  नर गैमीट (शुक्राणु) मादा गेमीट (अण्डाणु) का निषेचन करते हुए[1][2] मैथुन जीव विज्ञान में आनुवांशिक लक्षणों के संयोजन और मिश्रण की एक प्रक्रिया है जो किसी जीव के नर या मादा (जीव का लिंग) होना निर्धारित करती है। मैथुन में विशेष कोशिकाओं (गैमीट) के मिलने से जिस नये जीव का निर्माण होता है, उसमें माता-पिता दोनों के लक्षण होते हैं। गैमीट रूप व आकार में बराबर हो सकते हैं परन्तु मनुष्यों में नर गैमीट (शुक्राणु) छोटा होता है जबकि मादा गैमीट (अण्डाणु) बड़ा होता है। जीव का लिंग इस पर निर्भर करता है कि वह कौन सा गैमीट उत्पन्न करता है। नर गैमीट पैदा करने वाला नर तथा मादा गैमीट पैदा करने वाला मादा कहलाता है। कई जीव एक साथ दोनों पैदा करते हैं जैसे कुछ मछलियाँ। मैथुन के कारण संपादित करें कामशास्त्र के अनुसार यद्यपि मैथुन का मुख्य उद्देश्य पुनरुत्पति है, तथापि मनुष्यों तथा वानरों में यह बहुधा यौन सुख प्राप्त करने तथा प्रेम जताने हेतु भी किया जाता है। मैथुन मनुष्य की मूल आवश्यकता है। साधारण भाषा में मैथुन एक से अधिक काम-क्रियाओं को सम्बोधित करने के लिये भी प्रयोग किया जाता है। योनि मैथुन, हस्तमैथुन, मुख मैथुन, गुदा मैथुन आदि अन्य काम-कलाएँ इसके अन्तर्गत आती हैं। अंग्रेज़ वैज्ञानिकों का मानना है कि पुनरुत्पति के लिये दो लिंगों के बीच मैथुन का विकास जीवधारियों में बहुत पहले से ही जीवाणुओं के दुष्प्रभाव से बचने के लिये हुआ था।[3] मनुष्यों मे मैथुन संपादित करें मुख्य लेख : सम्भोग प्रेम जताने की क्रिया अक्सर मैथुन से पहले निभायी जाती है। इसके पश्चात् पुरुष के लिंग में उठाव व कठोरता उत्पन्न होती है और स्त्री की योनि में सहज चिकनाहट। मैथुन करने के लिए पुरुष अपने तने हुए लिंग को स्त्री की योनि में प्रविष्ट करता है।[4][5][6][7] इसके पश्चात् दोनो साझेदार अपने कूल्हों को आगे-पीछे कर लिंग को योनि में घर्षण प्रदान करते हैं। इस क्रिया में लिंग किसी भी समय योनि से पूर्णरूप से बाहर नहीं आता। इस क्रिया में दोनों ही साझेदारों को यौनिक आनन्द प्राप्त होता है। यह क्रिया तब तक जारी रहती है जब तक पुरुष और स्त्री दोनों ही एक अत्यधिक आनन्द की स्थिति कामोन्माद नहीं प्राप्त कर लेते। कामोन्माद की स्थिति में पुरुष और स्त्री दोनों ही स्खलन महसूस करते हैं। पुरुष शुक्राणुओं का स्खलन अपने लिंग से वीर्य के रूप में करता है, जबकि स्त्री की योनि से तरल पदार्थों का रज के रूप में स्खलन होता हैं। इन्हें भी देखें संपादित करें प्रजनन सहवास योनि मैथुन हस्तमैथुन गुदा मैथुन सन्दर्भ संपादित करें ↑ Keath Roberts (2006). Sex. Lotus Press. प॰ 145. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8189093592, 9788189093594. http://books.google.com/books?id=zDS9kC03x2IC&pg=PA145&lpg=PA145&dq=Missionary+position+sex+position&source=bl&ots=A6F74YEUPV&sig=_mlerlzYiPQ9vBjLe6PhrBDTLHM&hl=en&sa=X&ei=SRlJULz7EsztqQHWy4GoAg&ved=0CEgQ6AEwBTgK#v=onepage&q=Missionary%20position%20sex%20position&f=false. अभिगमन तिथि: ०५ अक्टूबर २०१२. ↑ Weiten, Wayne; Lloyd, Margaret A.; Dunn, Dana S.; Hammer, Elizabeth Yost (2008). Psychology Applied to Modern Life: Adjustment in the 21st Century. Cengage Learning. प॰ 423. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0495553395, 9780495553397. http://books.google.com/books?id=Y6QRJb40C84C&pg=PA423&lpg=PA423&dq=Missionary+position&source=bl&ots=XDGnz2w0Oi&sig=IM4MY232rIT-pyQGn48AX093wxY&hl=en&sa=X&ei=pwtJUKvDAdTKyQHf8IGIAw&ved=0CE4Q6AEwBjgK#v=onepage&q=Missionary%20position&f=false. अभिगमन तिथि: ०५/१०/२०१२. ↑ Podger, Corinne (१४ सितम्बर १९९९). ""Why are there only two sexes?"". In बीबीसी न्यूज़. http://news.bbc.co.uk/2/hi/sci/tech/specials/sheffield_99/447058.stm. ↑ Kar (2005). Comprehensive Textbook of Sexual Medicine. Jaypee Brothers Publishers. पृ. 107–112. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8180614050, 9788180614057. http://books.google.com/books?id=YxcjMPbGHQIC&pg=PA107&lpg=PA107&dq=Sexual+intercourse+%28coitus,+coition,+copulation,+mating%29+refers+to&source=bl&ots=xsFWz9Df70&sig=l0WuHofj90chEWzkYjWcIE82z1M&hl=en&sa=X&ei=5f1GUMmcI4Si2wW0joHYBg&ved=0CC8Q6AEwAA#v=onepage&q=Sexual%20intercourse%20%28coitus%2C%20coition%2C%20copulation%2C%20mating%29%20refers%20to&f=false. अभिगमन तिथि: ०५ अक्टूबर २०१२. ↑ "Sexual intercourse". Collins Dictionary. http://www.collinsdictionary.com/dictionary/english/sexual-intercourse. अभिगमन तिथि: ०५ अक्टूबर २०१२. ↑ "Sexual intercourse". Encyclopædia Britannica. http://www.britannica.com/EBchecked/topic/537163/sexual-intercourse. अभिगमन तिथि: September 5, 2012. ↑ "Sexual Intercourse". health.discovery.com. Archived from the original on 2008-08-22. http://web.archive.org/web/20080822040701/http://health.discovery.com/centers/sex/sexpedia/intercourse.html. अभिगमन तिथि: ०५ अक्टूबर २०१२. बाहरी कड़ियाँ संपादित करें वृहद् वात्स्यायन कामसूत्र (गूगल पुस्तक) लव-मैटर्स - स्वस्थ एवं सुरक्षित सम्भोग के विषय में सम्पूर्ण जानकारी से भरपूर हिन्दी साइट हस्तमैथुन.इन -हस्तमैथुन के नुकसान | हिंदी में सम्पूर्ण जानकारी व् इलाज Last edited 4 months ago by चक्रबोट RELATED PAGES शिश्न लिंग आर्ट बय नईम सम्भोग समागम, चुदाई, सैक्स, शारीरिक संबंध, चूत-गांड़ में लंड पेलना, आदि।  सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

अष्ट मैथुन

मैथुन के प्रकार
1. योनी मैथुन = पुरुष के सहयोग से
अपने वंश वृक्ष को बढ़ाने में सहायक .
2. हस्तमैथुन = स्त्री-पुरुष अपने
हाथो से मैथुन करना .
3. गुदामेथुन = आधुनिक विकृतिक
मानसिकता अपवाद पुराने
समयनुसार भी विकृति रही जैसे
हिंजड़ा से मैथुन पुरुष दुआर
4. मुख-मैथुन = स्त्री-पुरुष एक दुसरे से
अपस मे मुख से मैथुन करना आधुनिक
विकृत
मानसिकता जो स्वतंत्रता कानून
का दुरपयोग से बढ़ावा
मैथुन के आठ प्रकार बताए गए है
1. दृष्टिकोण मैथुन = पुरुष
या स्त्रियों को कामुक भाव से
देखना, विपरीत लिंगी को कामुक
भावना से देखना
2. उन्हें स्पर्श करना = उसके रूप-
गुणों का वर्णन करना,स्त्री- पुरुष
सम्बन्धी चर्चा करना या गीत
गाना
3. केलि मैथुन = दुसरे पक्ष
को रिझाने के लिए शारीरिक
मुद्रा से इशारे करना, जो मैथुन में
सहायक होने से सविलास
की क्रीड़ा करना माना जाता हैं .
4. स्त्री-पुरुष के
गुणों की प्रशंसा करना.
5. गुप्तभाषण = एकांत में संताप
करना, मैथुन सम्बन्धी गुप्त बाते
करना अथवा पुरुष-स्त्री का छुपकर
वार्तालाप करना , कीर्तन से इसमें
छिपने मात्र का भेद हैं .
6. संकल्प मैथुन = कामुक कर्म का दृढ़
निश्चय करना, मैथुन करू ऐसी तरंग
मन में उठाना .
7. अध्यवसाय = तुष्टिकरण
की कामना से स्त्री के निकट
जाना, मैथुन करने का उपाय करना ,
अपराध-मुक्त करना ,लोभ-प्रलोभ
देकर, आगे-पीछे चक्कर कटकर
या अन्य प्रकार का उद्योग
करना .
8. क्रिया निवृत्ति अर्थात्
वास्तविक रति क्रिया = जानबूझ
कर लिंगेद्रिय से वीर्यपात-रजपात
की क्रिया करना ,यह
तो साक्षात् मैथुन करना ही हैं .इस
प्रकार से आठ प्रकार मैथुन हैं .
आधुनिक रोग के कारणों और
उसका निदान = ऐसे आचरणों से
निर्लज्जता बढ़ जाती है,
बोलनेवाले की जबान बिगड़
जाती है, मन पर बुरे संस्कार जम
जाते है, इस काम से क्रोध बढ़ता है,
जिससे लोग में परस्पर लड़ पढ़ते है,
असभ्यता और
पाशविकता भी बढती है .इस के
बावजूद शारीरिक
बीमारियाँ आकर घेरने लग गाती .
मैथुन से तृप्ति और
अतृप्ति का परिणाम
तृप्ति शिथिलता सकारात्मक
तृप्ति शीतलता नकारात्मक
शीघ्रपतन को आत्म बल के कमजोर
होने से
मनोगत भाव के भय के कारण
शीघ्रपतन हो जाता हैं.
शीघ्रपतन = स्त्री-पुरुष के
समागम,की शुरुआत में ही वीर्य
पात से स्त्री को संतुष्टि और
तृप्तिदायक अवस्था की प्राप्त
नही होती उस अवस्था को वीर्य
स्खलित हो जाना या निकल
जाना, इसे शीघ्र पतन होना कहते
हैं. शीघ्र पतन नैदानिक
चिकित्सा में रति –जोल के मामले
में यह शब्द वीर्य पात या वीर्य
स्खलन के प्रयोग के लिए
किया जाता हैं. पुरुष की इच्छा के
विरुद्ध स्त्री सह वास करते समय
उसका वीर्य अचानक स्खलित
वीर्य पात हो जात जिसको पुरुष
चाह कर भी नही रोक पात हैं.
. इस व्याधि का संबंध स्त्री से
नहीं होता, पुरुष से ही होता है और
यह व्याधि सिर्फ पुरुष
को ही होता हैं .शीघ्र पतन
की सबसे खराब स्थिति यह
होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू
होते ही या होने से पहले ही वीर्य
पात हो जाता है. काल से पहले
वीर्य का स्खलित
हो जाना शीघ्र पतन है. यह
“अवधि ” कोई निश्चित समय
नहीं है पर जब “शुरुआत ” के साथ
ही “अंत” होने लगे या स्त्री-पुरुष
अभी चरम पर न हो और स्खलन
हो जाए तो यह शीघ्र पतन है ऐसे में
संतुष्टि, ग्लानी, हीन-भावना,
नकारात्मक विचारों का आना एवं
अपने पत्नी के साथ संबंधों में तनाव
आना वाजिब है. स्त्री-पुरुष
दोनों की यह अवस्था ख़राब
होती और इस
वेदना को किसी को बताया नही जाता इस
समय, रहा भी नही जाता और
सहा भी नही जाता. सम्भोग
की समयावधि कितनी होनी चाहिए
यानी कितनी देर तक वीर्य पात
नहीं होना चाहिए, इसका कोई
निश्चित मापदंड नहीं है. यह प्रत्येक
व्यक्ति की मानसिक एवं
शारीरिक स्थिति पर निर्भर
होता है.सम्भोग के शुरू होने से 1
मिनट के भीतर ही अगर किसी पुरूष
का वीर्य-स्खलन हो जाता है
तो इसे शीघ्र-पतन कहा जायेगा.
रति क्रिया कितनी देर तक
होनी चाहिए यह बात हर
व्यक्ति के शारीरिक व् मानसिक
क्षमता पर निर्भर करती हैं .
कारण
भय , डर , चिंता ,छुप कर संभोग जैसे
हस्त-मैथुन के साथ शारीरिक व्
मानसिक
परेशानियों का भी कारणों का पाया जाता हैं