Tuesday, 19 September 2017
शब्द कहै सौ कीजिये, बहुतक गुरु लबार अपने अपने लाभ को, ठौर ठौर बटपार
दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
दीपक बापू कहिन का सहयोगी चिट्ठा-यहाँ मेरी मौलिक रचनाएं प्रकाशित है और इसके कहीं अन्य व्यवसायिक प्रकाशन के लिए मेरे से पूर्व अनुमति एवं पारिश्रमिक देना अनिवार्य होगा जो प्रति रचना दो हजार रूपये है । कोई लेखक इसका पूर्ण या आंशिक उपयोग कर सकता है पर उसके लिए उसे सूचना देना चाहिए ऐसा आग्रह है । ब्लोग लेखको के लिए कोई बंदिश नहीं है।दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Tag Archives: prem
संत कबीर वाणी:प्रपंची गुरूओं से कोई लाभ नहीं
04/06/2008 – 09:04
Rate This
शब्द कहै सौ कीजिये, बहुतक गुरु लबार
अपने अपने लाभ को, ठौर ठौर बटपार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो सत्य का शब्द हो उसी के अनुसार कार्य करो। इस संसार में कई ऐसे गुरू हैं जो पांखडी और प्रपंची होते हैं। वह अपने स्वार्थ के अनुसार कार्य करते हुए उपदेश देते हैं और उनसे कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस संबंध में मेरे द्वारा एक आलेख अन्य ब्लाग पर लिखा गया था जो यहां प्रस्तुत है।
आज के कथित संत और भक्त प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक नहीं
भगवान श्रीराम ने गुरु वसिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की और एक बार वहाँ से निकले तो फिर चल पड़े अपने जीवन पथ पर। फिर विश्वामित्र का सानिध्य प्राप्त किया और उनसे अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया। फिर उन्होने अपना जीवन समाज के हित में लगा दिया न कि केवल गुरु के आश्रमों के चक्कर काटकर उसे व्यर्थ किया। भगवान श्री कृष्ण ने भी महर्षि संदीपनि से शिक्षा पाई और फिर धर्म की स्थापना के लिए उतरे तो वह कर दिखाया। न गुरु ने उन्हें अपने पास बाँध कर रखा न ही उन्होने हर ख़ास अवसर पर जाकर उनंके आश्रम पर कोई पिकनिक नहीं मनाई। अर्जुन ने अपने गुरु से शिक्षा पाई और अवसर आने पर अपने ही गुरु को परास्त भी किया। आशय यह है कि इस देश में गुरु-शिष्य की परंपरा ऐसी है जिसमें गुरु अपने शिष्य को अपना ज्ञान देकर विदा करता है और जब तक शिष्य उसके सानिध्य में है उसकी सेवा करता है। उसके बाद चल पड्ता है अपने जीवन पथ पर और अपने गुरु का नाम रोशन करता है।
भारत की इसी प्राचीनतम गुरु-शिष्य परंपरा का बखान करने वाले गुरु आज अपने शिष्यों को उस समय गुरु दीक्षा देते हैं जब उसकी शिक्षा प्राप्त करने की आयु निकल चुकी होती है और फिर उसे हर ख़ास मौके पर अपने दर्शन करने के लिए प्रेरित करते हैं। कई तथाकथित गुरु पूरे साल भर तमाम तरह के पर्वों के साथ अपने जन्मदिन भी मनाते हैं और उस पर अपने इर्द-गिर्द शिष्यों की भीड़ जमा कर अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन करते हैं. यहाँ इस बात का उल्लेख करना गलत नहीं होगा की भारतीय जीवन दर्शन में जन्मदिन मनाने की कोई ऐसी परंपरा नहीं है जिसका पालन यह लोग कर रहे हैं.
भारत में गुरु शिष्य की परंपरा एक बहुत रोमांचित करने वाली बात है, पूरे विश्व में इसकी गाथा गाई जाती है पर आजकल इसका दोहन कुछ धर्मचार्य अपने भक्तो का भावनात्मक शोषण कर रहे हैं वह उसका प्रतीक बिल्कुल नहीं है। हर व्यक्ति को जीवन में गुरु की आवश्यकता होती है और खासतौर से उस समय जब जीवन के शुरूआती दौर में एक छात्र होता है। अब गुरुकुल तो हैं नहीं और अँग्रेज़ी पद्धति पर आधारित शिक्षा में गुरु की शिक्षा केवल एक ही विषय तक सीमित रह गयी है-जैसे हिन्दी अँग्रेज़ी, इतिहास, भूगोल, विज्ञानआदि। शिक्षा के समय ही आदमी को चरित्र और जीवन के गूढ रहस्यों का ज्ञान दिया जाना चाहिए। यह देश के लोगों के खून में ही है कि आज के कुछ शिक्षक इसके बावजूद अपने विषयों से हटकर शिष्यों को गाहे-बगाहे अपनी तरफ से कई बार जीवन के संबंध में ज्ञान देते हैं पर उसे औपचारिक मान कर अनेक छात्र अनदेखा करते हैं पर कुछ समझदार छात्र उसे धारण भी करते हैं.
यही कारण है कि आज अपने विषयक ज्ञान में प्रवीण तो बहुत लोग हैं पर आचरण, नैतिकता और अध्यात्म ज्ञान की लोगों में कमी पाई जाती है। इस वजह से लोगों के दिमाग में तनाव होता है और उसको उससे मुक्ति दिलाने के लिए धर्मगुरू आगे आ जाते हैं। आज इस समय देश में धर्म गुरु कितने हैं और उनकी शक्ति किस तरह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में फैली है यह बताने की ज़रूरत नहीं है। तमाम तरह के आयोजनों में आप भीड़ देखिए। कितनी भारी संख्या में लोग जाते हैं। इस पर एक प्रख्यात लेखक जो बहुत समय तक प्रगतिशील विचारधारा से जुडे थे का मैने एक लेख पढ़ा था तो उसमें उन्होने कहा था की ”हम इन धर्म गुरुओं की कितनी भी आलोचना करें पर यह एक वास्तविकता है कि वह कुछ देर के लिए अपने प्रवचनों से तनाव झेल रहे लोगों को मुक्त कर देते हैं।”
मतलब किसी धार्मिक विचारधारा के एकदम विरोधी उन जैसे लेखक को भी इनमें एक गुण नज़र आया। यह आज से पाँच छ: वर्ष पूर्व मैने आलेख पढ़ा था और मुझे ताज्जुब हुआ-मेरा मानना था कि उन लेखक महोदय ने अगर भारतीय आध्यात्म का अध्ययन किया होता तो उनको पता लगता कि भारतीय आध्यात्म में वह अद्वितीय शक्ति है जिसके थोड़े से स्पर्श में ही आदमी का मन प्रूफुल्लित हो जाता है। मगर वह कुछ देर के लिए ही फिर निरंतर अभ्यास नो होने से फिर तनाव में आ जाते हैं।
एक बात बिल्कुल दावे के साथ मैं कहता हूँ कि अगर किसी व्यक्ति में बचपन से ही आध्यात्म के बीज नहीं बोए गये तो उमरभर उसमें आ नहीं सकते और जिसमें आ गये उसका कोई धर्म के नाम पर शोषण नहीं कर सकता।
संपादकीय, कवितायेँ
Share this:
Reddit

दीपक भारतदीप द्धारा | Posted in adhyatm, कला, संदेश, संस्कृति, सत्संग, dharm, hindi article, hindu, internet, kabir | Also tagged adhyatm, कला, संदेश, संस्कृति, सत्संग, हिन्दी सहित्य, chintn, dharm, hindi article, hindu, internet, kabir | Comments (0)
संत कबीर वाणी:प्रेम तो होता है स्वार्थ का
02/04/2008 – 10:12
Rate This
प्रीत रीत सब अर्थ की, परमारथ की नाहिं
कहैं कबीर परमारथी, बिरला कोई कलि माहिं
संत शिरोमणि कबीरदासजी कहते हैं कि प्रेम की बात तो केवल स्वार्थ से युक्त होती है उसमें कोई परमार्थ नहीं करता। इस युग में परमार्थी तो कोई विरला ही होता है।
आज के संदर्भ में व्याख्या-आजकल आप चाहे जो भी टीवी चैनल या रेडियो खोल लें उसमें प्रेम-प्रेम एक नारे के रूप में सुनाई देगा। इसी तरह फिल्मी गानों में तो कोई ऐसा नहीं होता जिसमें प्रेम शब्द न हो। यह प्रेम केवल दैहिक है और स्वार्थ पर आधारित है। हिंदी में प्रेम के बहुत व्यापक अर्थ हैं पर इसे अब इसे केवल स्त्री-पुरुष तक ही सीमित कर दिया गया है। कई बार तो हंसी आती है। कोई लड़का-लड़की घर से भाग जाते हैं और उनके परिवार वाले उसका विरोध करते हैं और प्रचार माध्यम कथित पवित्र प्रेम के समर्थन में नारे लगाने लगते हैं। अब बताईये क्या उनका प्रेम कामना से रहित हो सकता है? कतई नहीं! कुछ उर्दू शायरों ने अपने शायरियों में प्यार को स्त्री-पुरुष के प्यार के इर्द-गिर्द ही केद्रित रखा और हिंदी फिल्मी गीत लेखकों ने भी वही शैली अपनाई। एक तरह से जो प्रेम भारतीय अध्यात्म में व्यापक आधार वाला है वही विदेशी विचारधाराओं में संकीर्ण अर्थ वाला है। केवल यह एक शब्द नहीं बल्कि कई ऐसे शब्द हैं जो हमारी भाषा में व्यापक आधार वाले हैं पर पाश्चात्य सभ्यता मे उसे छोटे रूप में ही लिया जाता है। जैसे धर्म-पश्चिम में व्यक्ति का धर्म उसके इष्ट के आधार पर तय किया जाता है जबकि हमारे भारत में उसका निर्धारण उस व्यक्ति के कार्यों के आधार होता है।
आशय यह है कि प्रेम वह है जो निष्काम है जिसमें प्रेम करने वाला अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति नहीं करता और न ही कोई आकांक्षा करता है। जहां कामना है वहां काम है और उसकी पूर्ति होते ही वह भाव नष्ट हो जाता है जबकि प्रेम कभी भी नष्ट नहीं होता।
संपादकीय, कवितायेँ
Share this:
Reddit

दीपक भारतदीप द्धारा | Posted in adhyaatm, संदेश, संस्कार, समाज, हिन्दी साहित्य, हिन्दू, bharatdeep, dharm, dohe, hindu, kabir, pyar | Also tagged adhyaatm, संदेश, संस्कार, समाज, हिन्दी साहित्य, हिन्दू, bharatdeep, dharm, dohe, hindu, kabir, pyar | Comments (0)
रहीम के दोहे:प्रेम में कुछ न दे वह पशु समान
27/03/2008 – 08:15
1 Votes
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछु न देत
कविवर रहीम कहते हैं कि बंसी की धुन पर रीझकर हिरन शिकार हो जाता है उसी तरह मनुष्य भी प्रेम के वशीभूत होकर अपना तन, मन और धन न्योछावर कर देता है लेकिन वह लोग पशु से भी बदतर हैं जो किसी से खुशी तो पाते हैं पर उसे देते कुछ नहीं है।
आज के संदर्भ में व्याख्या-वैसे देखा जाये तो आज के युग भी यह सत्य है कि अधिकतर लोग मुफ्त में मजे करना चाहते हैं। किसी से बिना लिए-दिए काम करने में चतुराई समझी जाती है। कई सरल ह्रदय लोग प्रेमवश दूसरों का काम कर देते हैं तो उनको मूर्ख समझा जाता है। हालांकि चतुर लोग भी प्रेम में ही मूर्ख बनते हैं। आजकल आपने देखा होगा कि तमाम तरह के विज्ञापन आते हैं जिनमें बडे प्रेम से विनिवेश और अन्य लाभों के बारे में बताया जाता है और लोग उसके शिकार हो जाते हैं। अनेक पढी-लिखी लडकियां प्रेम में अपना सर्वस्व लुटा बैठतीं है और बाद में उनके पास पछताने का भी अवसर नहीं होता। हालात यह है कि अपने से बहुत अधिक आयु और अकमाऊ व्यक्ति के साथ घर से भाग कर विवाह कर अपना जीवन तबाह कर बैठतीं हैं।
कुछ लड़के भी ऐसे हैं जो सुन्दर और शिक्षित लडकी से प्रेम का ढोंग करते हैं पर विवाह के समय अपने परिवार वालों का वास्ता देकर नाता तोड़ लेते हैं। इतना ही नहीं कई माता-पिता भी लड़की के सुयोग्य होते हुए भी बिना दहेज़ के विवाह करने से इनकार कर देते हैं। कहते हैं कि हर माता-पिता अपने बच्चे से प्रेम करते हैं पर कई ऐसे लड़के हैं जो विवाह की आयु पार कर चुके हैं पर उनका दिल नहीं पसीजता कि उसका विवाह कम दहेज़ में कर दें। कुल मिलाकर प्रेम एक दिखावा हो गया है और कहा जाये तो अब मानव भेष में पशु होने लगे हैं। अत: समझदार लोगोंको चाहिए कि अगर कोई उनको प्रसन्न करता है तो उसे भी कुछ दें तभी वह अपने इंसान होने की अनुभूति कर सकते हैं और यही ईश्वर भक्ति कीतरह भी है।
संपादकीय, कवितायेँ
Share this:
Reddit

दीपक भारतदीप द्धारा | Posted in adhyaatm, अध्यात्म, आस्था, संदेश, हिन्दी साहित्य, bharatdeep, dharm, dohe, hindu, pyar, rahim | Also tagged adhyaatm, अध्यात्म, आस्था, संदेश, हिन्दी साहित्य, bharatdeep, chintn, dharm, dohe, hindu, pyar, rahim | Comments (0)
ब्लॉग का संग्रह करें
इसका नया पाठ
तत्काल मंगाने के लिए
Join 1,583 other followers
ईमेल यहाँ लिखें
अध्यात्म पत्रिकायें
दीपक भारतदीप का चिंत्तन
दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्द्लेख पत्रिका
शब्दयोग सारथी पत्रिका
शब्दलेख सारथी
hindi megazine
अन्य पत्रिकायें
3.दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका
5.राजलेख की हिन्दी पत्रिका
अनंत शब्दयोग
दीपक बापू कहन
दीपक भारतदीप का चिंतन-पत्रिका
दीपक भारतदीप का चिंत्तन
दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश-पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्द्लेख पत्रिका
शब्दयोग सारथी पत्रिका
शब्दलेख सारथी
hindi megazine
खास पत्रिकायें
5.राजलेख की हिन्दी पत्रिका
दीपक भारतदीप का चिंतन-पत्रिका
दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश-पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
hindi megazine
मेरे अन्य चिट्ठे
अनंत शब्दयोग
दीपक भारतदीप का चिंत्तन
मेरे पसंदीदा ब्लोग
कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ होता है
दिशाएँ
प्रतिभास
महाजाल (सुरेश चिपलूनकर)
साहित्यक पत्रिका
3.दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका
5.राजलेख की हिन्दी पत्रिका
दीपक भारतदीप का चिंतन-पत्रिका
दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश-पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
hindi megazine
Blogroll
कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ होता है
लोकप्रियता

इस ब्लॉग के बारे में आपकी राय
(polls)
नवीनतम रचनाएं
प्रचार माध्यम पाकिस्तान से बदला लेने की उतावली न मचायें, संघर्ष लंबा खिंच सकता है-हिन्दी लेख
हिन्दी दिवस पर दीपकबापू वाणी
निष्काम भाव में आनंद ही आनंद है-हिन्दी लेख
राज्य प्रबंध का समाज में हस्तक्षेप अधिक नहीं होना चाहिये-हिन्दी लेख
भारतीय मीडिया की #आतंकवाद में बहुत रुचि लाभप्रद नहीं-हिन्दी चिंत्तन #लेख
बरसात का मौसम मैंढक की टर्र टर्र-हिन्दी कवितायें
कूड़े पर पद्य रचना हो सकती है-हिन्दी कवितायें
आदमी चूहे की प्रवृत्ति न रखे-हिन्दी चिंत्तन लेख
गरीबी शब्द अब भी बिकता है-हिन्दी व्यंग्य
पूंजीपति भारत का स्वदेशी सर्वर बनवायें.डिजिटल इंडिया सप्ताह पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख
भोजन का औषधि की तरह सेवन करें-21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष हिन्दी चिंत्तन लेख
नियमित अभ्यास वाले ही योग पर बोलें तो अच्छा रहेगा-21 जून विश्व योग दिवस पर विशेष लेख
फिल्म देखे बिना लिखा गया हिन्दी हास्य व्यंग्य
बाज़ार के शब्द-हिन्दी व्यंग्य कविताये
आस्था की आड़ में अभिव्यक्ति की आज़ादी सीमित रखना अनुचित-हिन्दी चिंत्तन लेख
counter

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-
पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
counter

View My Stats
facebook
दीपक भारतदीप

Create Your Badge
WordPress.com पर ब्लॉग. | .
Follow
Skip to toolbar
My Site
Create Site
Reader
Streams
Followed Sites
Manage
Discover
Search
My Likes


prasaant
@prasaant
Sign Out
Profile
My Profile
Account Settings
Manage Purchases
Security
Notifications
Special
Get Apps
Next Steps
Help
Log Out
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment