Sunday, 17 September 2017
कबीरदास की छह सौ साल पुरानी माला चोरी
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Jagran
कबीरदास की छह सौ साल पुरानी माला चोरी
Mon Dec 02 10:41:21 IST 2013


वाराणसी। कबीरचौरा स्थित कबीर मठ (मूलगादी) से महान श्रम साधक संत कबीरदास की करीब छह सौ साल पुरानी लाल चंदन की माला चोरी हो गई। 1051 मणिकाओं से बनी लाल चंदन की यह दुर्लभ माला संत को उनके गुरु रामानंद जी ने सौंपी थी। खास बात यह रही कि दुर्लभ माला के स्थान पर उसे गायब करने वालों ने रुद्राक्ष की माला रख दी है।
मठ प्रबंधक गोपाल दास ने बताया कि संदेह थाइलैंड से आए तीन लामाओं पर है। उन्हें दर्शन कराने के लिए मठ के बीजक मंदिर को खोला गया था। पुजारी बनारसी दास को रविवार की सुबह साफ सफाई व आरती के लिए मंदिर खोलने पर माला गायब होने की जानकारी हुई।
मठ के पास थाइलैंड के दल की नहीं है जानकारी।
मठ में नहीं है सीसी कैमरा।
आने-जाने वालों की नहीं होती लिखा-पढ़ी।
खास लोगों के लिए खोला जाता है मंदिर
पता लगाने में जुटी है पुलिस।
कबीर की स्मृतियों में वर्षो से सेंधमारी।
असमंजस में पुलिस।
संत कबीर की स्मृतियों में वर्षो से सेंधमारी-
पूरी दुनिया से कबीरपंथियों के आ रहे फोन-
महान संत कबीरदास की दुर्लभ माला चोरी होने पर एयरपोर्टो पर निगरानी बढ़ा दी गई है। दिल्ली में मौजूद कबीर मठ के महंत विवेक दास से मोबाइल पर हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि चोरी की खबर पूरी दुनिया में फैल चुकी है। केंद्र सरकार व गृह मंत्रालय को भी सूचित किया गया है। महंत विवेक दास ने बताया कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार थाइलैंड जाने वालों की निगरानी कराई जा रही है। खुफिया एजेंसियों को भी सक्रिय किया गया है। विवेक दास के मुताबिक चोरी की खबर लगते ही अमेरिका, थाइलैंड, न्यूजीलैंड समेत अन्य देशों से कबीर पंथियों के फोन उनके पास आ रहे हैं।
उन्होंने अब तक रिपोर्ट दर्ज न होने पर नाराजगी जताई। इधर लामाओं का पता लगाने के लिए पुलिस होटल व लाजों को भी खंगाल रही है। हालांकि मठ के लोगों के पास इन लामाओं को रिकार्ड नहीं है।
थाईलैंड में कबीर मंदिर बनाने के लिए लामा वेशधारी मूलगादी की माटी भी ले गया था। उसका यहां तीन वर्षो से आना था। पिछली बार वह 70 सदस्यों का तो इस बार 35 सदस्यीय दल लेकर आया था। उसने कबीर की माला का एक मनका और ताना बाना का सूत मांगा था। सूत तो मिल गया लेकिन मठ प्रबंधन ने मुंहमांगी कीमत के प्रलोभन पर भी मनका देने से इंकार कर दिया था। शनिवार को दो साथियों के साथ मठ आने पर उसने दो मिनट मंदिर में साधना की इच्छा जताई थी। अनुमति मिलने के बाद उसने ध्यान लगाया तो दो अन्य साथी साधु संतों को रुपये बांटने लगे।
पुलिस को दी गई तहरीर के अनुसार इस बीच लामा वेशधारी खुद ताला बंद कर बाहर आया व चाबी देकर साथियों के साथ चला गया। सुबह आरती के दौरान माला बदले जाने की जानकारी हुई। आगंतुक रजिस्टर में लामा वेशधारी द्वारा लिखा गया पता व मोबाइल नंबर भी फर्जी मिला है। खंगाले होटल व थाई धर्मशालाएं-लामा वेशधारी की तलाश में पुलिस ने बौद्ध मंदिरों, थाई धर्मशालाओं व होटल को खंगाला। पहचान के लिए पुलिस, मठ प्रबंधक गोपालदास व देवशरण दास को भी साथ लेकर घूमी।
संत कबीर के संवत् 1575 में निर्वाण के बाद उत्तराधिकारी आचार्य सुरति गोपाल ने उपदेश स्थल 'कबीर चबूतरा' को मंदिर का रूप दिया। इसे उनकी कृति के नाम पर बीजक मंदिर नाम दिया गया। इसमें गुरु से जुड़ी पुरातात्विक सामग्रियों को संभाल कर रखा पर सुरक्षा के समुचित प्रबंध न होने से सेंधमारी जारी रही।
संत कबीर की हर वाणी को उनके शिष्य लिपिबद्ध करते थे। इन्हें उनके स्मृतिकक्ष में सजोया गया था। इसमें से कई महत्वपूर्ण प्रतियां चोरी हो चुकी हैं। ऐसे में एहतियातन बीजक की पांडुलिपि पुस्तकालय में सुरक्षित कर दी गई। अन्य सामग्रियां बीजक मंदिर में ही रखी थीं। इसमें शनिवार को चोरी गई गुरु रामानंदाचार्य द्वारा संत कबीर को दी गई एक हजार से अधिक मणिकाओं की अनूठी माला भी शामिल थी।
इसके अलावा यहां कबीर साहब की जर्जर हाल चरण पादुका जिसे चौकी पर स्थापित कर शीशे के बक्शे में रखा गया है, इसे भी यह सुरक्षा वर्ष 1934 में कबीरचौरा मठ आए महात्मा गांधी द्वारा चिंता जताने पर मिली थी। संत कबीर की भावना 'काठ की हांडी चढ़े न दूजी बार.' और पानी काठ की हांडी में ही पीते थे, इसे भी स्मृति कक्ष में रखा गया है। जंग खाया पराजय प्रतीक त्रिशूल जिसे किसी गोरखपंथी योगी ने योग विद्या में हारने पर छोड़ना पड़ा था, वह करघा, जिस पर कबीर साहब कपड़ा बुनते थे, वह ताना बाना जिसे वे इस्तेमाल करते थे और उससे संबंधित कुछ उपकरण। माला चोरी चली गई लेकिन अन्य वस्तुएं मंदिर में रखी हैं। इन पुरातात्विक धरोहरों की सुरक्षा के लिए न तो शासन प्रशासन स्तर पर प्रयास किए गए और न ही ऐसी किसी सूची में स्थान दिया गया। हालांकि मठ प्रबंधन द्वारा मंदिर को केवल सुबह शाम आराधना के लिए खोलने की व्यवस्था थी। खास श्रद्धालुओं के आगमन पर दर्शन के लिए भी मंदिर खोलने की व्यवस्था दी गई थी। इसमें थाई लामा को साधना के लिए अकेला छोड़ना भारी पड़ा। चोरी की सूचना पर शाम को रायपुर से लौटे आचार्य विवेकदास ने कहा कि अपने स्तर पर कबीर साहब की स्मृतियों को सजोने का प्रयास किया जा रहा है। मंदिर न खोलना पड़े इसके लिए लाइव डिस्प्ले भी बनाया गया है। कई बार ध्यान दिलाए जाने के बाद भी शासन की रूचि इसमें नहीं है।
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