Monday 25 September 2017

अष्ट मैथुन

मैथुन के प्रकार
1. योनी मैथुन = पुरुष के सहयोग से
अपने वंश वृक्ष को बढ़ाने में सहायक .
2. हस्तमैथुन = स्त्री-पुरुष अपने
हाथो से मैथुन करना .
3. गुदामेथुन = आधुनिक विकृतिक
मानसिकता अपवाद पुराने
समयनुसार भी विकृति रही जैसे
हिंजड़ा से मैथुन पुरुष दुआर
4. मुख-मैथुन = स्त्री-पुरुष एक दुसरे से
अपस मे मुख से मैथुन करना आधुनिक
विकृत
मानसिकता जो स्वतंत्रता कानून
का दुरपयोग से बढ़ावा
मैथुन के आठ प्रकार बताए गए है
1. दृष्टिकोण मैथुन = पुरुष
या स्त्रियों को कामुक भाव से
देखना, विपरीत लिंगी को कामुक
भावना से देखना
2. उन्हें स्पर्श करना = उसके रूप-
गुणों का वर्णन करना,स्त्री- पुरुष
सम्बन्धी चर्चा करना या गीत
गाना
3. केलि मैथुन = दुसरे पक्ष
को रिझाने के लिए शारीरिक
मुद्रा से इशारे करना, जो मैथुन में
सहायक होने से सविलास
की क्रीड़ा करना माना जाता हैं .
4. स्त्री-पुरुष के
गुणों की प्रशंसा करना.
5. गुप्तभाषण = एकांत में संताप
करना, मैथुन सम्बन्धी गुप्त बाते
करना अथवा पुरुष-स्त्री का छुपकर
वार्तालाप करना , कीर्तन से इसमें
छिपने मात्र का भेद हैं .
6. संकल्प मैथुन = कामुक कर्म का दृढ़
निश्चय करना, मैथुन करू ऐसी तरंग
मन में उठाना .
7. अध्यवसाय = तुष्टिकरण
की कामना से स्त्री के निकट
जाना, मैथुन करने का उपाय करना ,
अपराध-मुक्त करना ,लोभ-प्रलोभ
देकर, आगे-पीछे चक्कर कटकर
या अन्य प्रकार का उद्योग
करना .
8. क्रिया निवृत्ति अर्थात्
वास्तविक रति क्रिया = जानबूझ
कर लिंगेद्रिय से वीर्यपात-रजपात
की क्रिया करना ,यह
तो साक्षात् मैथुन करना ही हैं .इस
प्रकार से आठ प्रकार मैथुन हैं .
आधुनिक रोग के कारणों और
उसका निदान = ऐसे आचरणों से
निर्लज्जता बढ़ जाती है,
बोलनेवाले की जबान बिगड़
जाती है, मन पर बुरे संस्कार जम
जाते है, इस काम से क्रोध बढ़ता है,
जिससे लोग में परस्पर लड़ पढ़ते है,
असभ्यता और
पाशविकता भी बढती है .इस के
बावजूद शारीरिक
बीमारियाँ आकर घेरने लग गाती .
मैथुन से तृप्ति और
अतृप्ति का परिणाम
तृप्ति शिथिलता सकारात्मक
तृप्ति शीतलता नकारात्मक
शीघ्रपतन को आत्म बल के कमजोर
होने से
मनोगत भाव के भय के कारण
शीघ्रपतन हो जाता हैं.
शीघ्रपतन = स्त्री-पुरुष के
समागम,की शुरुआत में ही वीर्य
पात से स्त्री को संतुष्टि और
तृप्तिदायक अवस्था की प्राप्त
नही होती उस अवस्था को वीर्य
स्खलित हो जाना या निकल
जाना, इसे शीघ्र पतन होना कहते
हैं. शीघ्र पतन नैदानिक
चिकित्सा में रति –जोल के मामले
में यह शब्द वीर्य पात या वीर्य
स्खलन के प्रयोग के लिए
किया जाता हैं. पुरुष की इच्छा के
विरुद्ध स्त्री सह वास करते समय
उसका वीर्य अचानक स्खलित
वीर्य पात हो जात जिसको पुरुष
चाह कर भी नही रोक पात हैं.
. इस व्याधि का संबंध स्त्री से
नहीं होता, पुरुष से ही होता है और
यह व्याधि सिर्फ पुरुष
को ही होता हैं .शीघ्र पतन
की सबसे खराब स्थिति यह
होती है कि सम्भोग क्रिया शुरू
होते ही या होने से पहले ही वीर्य
पात हो जाता है. काल से पहले
वीर्य का स्खलित
हो जाना शीघ्र पतन है. यह
“अवधि ” कोई निश्चित समय
नहीं है पर जब “शुरुआत ” के साथ
ही “अंत” होने लगे या स्त्री-पुरुष
अभी चरम पर न हो और स्खलन
हो जाए तो यह शीघ्र पतन है ऐसे में
संतुष्टि, ग्लानी, हीन-भावना,
नकारात्मक विचारों का आना एवं
अपने पत्नी के साथ संबंधों में तनाव
आना वाजिब है. स्त्री-पुरुष
दोनों की यह अवस्था ख़राब
होती और इस
वेदना को किसी को बताया नही जाता इस
समय, रहा भी नही जाता और
सहा भी नही जाता. सम्भोग
की समयावधि कितनी होनी चाहिए
यानी कितनी देर तक वीर्य पात
नहीं होना चाहिए, इसका कोई
निश्चित मापदंड नहीं है. यह प्रत्येक
व्यक्ति की मानसिक एवं
शारीरिक स्थिति पर निर्भर
होता है.सम्भोग के शुरू होने से 1
मिनट के भीतर ही अगर किसी पुरूष
का वीर्य-स्खलन हो जाता है
तो इसे शीघ्र-पतन कहा जायेगा.
रति क्रिया कितनी देर तक
होनी चाहिए यह बात हर
व्यक्ति के शारीरिक व् मानसिक
क्षमता पर निर्भर करती हैं .
कारण
भय , डर , चिंता ,छुप कर संभोग जैसे
हस्त-मैथुन के साथ शारीरिक व्
मानसिक
परेशानियों का भी कारणों का पाया जाता हैं

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