Tuesday, 19 September 2017
समाधी पुजा करने से नरक की प्राप्ति (श्रीमदभगवत गिता )
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जो अकेले शाम का नहीँ वो कीसी काम का नहीँ...

क्या 'साधु', 'संत' या 'गुरुओ' की पुजा या फिर उनकी 'समाधी' पुजा उचित है ?
हिँदु धर्म मेँ 'गुरुओ' को पुजा जाता है और उनके समाधीओँ को ज्यादा ही महत्व पंरतु भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमदभागवत् गिता मेँ कहेँ हुयेँ वचनो के अनुसार हमेँ 'साधु', 'संत' या 'गुरुओ' की 'पुजा' या फिर उनकी "समाधी" पुजा करना उचित नहीँ ।
'गुरु' पद अर्थ क्या हैँ ? गुरु किसलिये ?
"गुणाति - उपदिशती - इति गुरु" अर्थात जो उपदेश करता हैँ वह 'गुरु' होता हैँ। जो उपदेश करके शिष्योँ के मन का समाधान कर सके वह गुरु हैँ। अज्ञानी जीवोँको (मनुष्योँको) 'गुरु' के सिवाय ज्ञान प्राप्त होना मुमकिन नहीँ हैँ । इसिलिये ज्ञानप्राप्ती के लिये 'गुरु' करना आवश्यक हैँ ।
जैसे आप और हम "ईश्वर" भक्त हैँ, वैसे ही हमारे 'गुरु' भी "ईश्वर" भक्त हैँ, इसिलिये उनके साथ 'प्ररमप्रिती' करना अच्छा हैँ। परंतु 'गुरु' को ही "ईश्वर" मानना गलत हैँ।
गुरू ब्रम्हा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा, गुरू साक्षात परम्ब्रम्ह तस्मय श्री गुरूवनमः ॥
इस श्लोक के अनुसार ब्रम्हा, विष्णु, महेश, तथा साक्षात परम्ब्रम्ह परमेश्वर ही हमारे गुरु है इसिलिये 'गुरू' को अर्थात ईश्वर को नमन करना चाहिये,
परंतु, लोग इस श्लोक का अर्थ ऐसे लेते हैँ की, मानो 'गुरु' ही साक्षात "परम्ब्रम्ह परमेश्वर" हैँ पर ऐसी मान्यता गलत हैँ, क्यो की, 'गुरु' अगर साक्षात "परम्ब्रम्ह परमेश्वर" हैँ तो फिर हम ईश्वर की भक्ति क्योँ करते हैँ।
भगवान श्रीकृष्ण की माने तो 'भुतो' को अर्थात मनुष्योकी भक्ति की जाये तो उन्हे ही प्राप्त होना पडेगा,
आईये जानते भगवान श्रीकृष्ण के वचन,
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥
(गिता 9-25)
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता ॥9-25॥
भगवान श्रीकृष्ण के शब्दो पर गौर किजिये " भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं " , [गिता मेँ 'भुत' शब्द का अर्थ समस्त जिवोँके रुप मेँ लिया गया हैँ ।]
जो लोग मनुष्योँके व्रत करते हैँ अर्थात मनुष्योँको पुजते हैँ, वह लोग मनुष्योँके लोक मेँ जाते हैँ अर्थात पृथ्वीपर फिर से जन्म लेते हैँ।
इसिलिये, जयक्रिष्णी महानुभाव कीसी प्रकार के मनुष्योँको नहीँ पुजा करते।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैँ की, जो लोग 'गुरुओ' की 'समाधी' पुजा करते है उन तमास अर्थात पापी लोगोँ को घोर नरक भोगना पडता हैँ... जानिये......यहां किल्क करके...

कुछ प्रश्न और उनके समाधान
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