Sunday, 24 September 2017
सुरति का अर्थ सुनना और निरति का देखना

08 सितंबर 2010
सुरति का अर्थ सुनना और निरति का देखना है ।

सुरति शब्द आम आदमी के लिये अपरिचित ही है । सतसंग में जब सुरति शब्द का प्रयोग होता है । तो नये लोग सिर्फ़ मुंह ताकते हैं कि आखिर ये किसके विषय में बात हो रही है ? जबकि निरति शब्द अक्सर पढने को मिल जाता है । सुरति का तकनीकी मतलब मैं कई बार बता चुका हूं । मन बुद्धि चित्त अहम । जिनसे हम संसार को जान रहें हैं । ये सारा खेल खेल रहे हैं । ये इन्हीं चारो । मन बुद्धि चित्त अहम । से हो रहा है । जिसे अंतःकरण कहते हैं । यही हमारा सूक्ष्म शरीर भी होता है । और सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे मन कहते हैं । ये बेर की गुठली के आकार का है । और इस पर चेतन का फ़ोकस पड रहा है । इन्हीं चारो । मन बुद्धि चित्त अहम । को योगक्रिया द्वारा एक कर देने पर सुरति बन जाती है । सुरति का भाव अर्थ सुनना है । और निरति का देखना है । लेकिन पहले सुरति की बात करते हैं । अभी मनुष्य की अग्यान स्थिति में सुरति 7 शून्य नीचे उतर आयी है । इसीलिये उसे ये संसार अजीव और रहस्यमय लग रहा है ? अब सबसे पहले 1 शून्य की बात करते हैं । पहला शून्य । यहां कुछ भी नहीं हैं । लेकिन बेहद अजीव बात ये है कि इसी कुछ भी नहीं से ही । सब कुछ हुआ है । या कुछ नहीं ही सब कुछ है । Everything is nothing but nothing to everything । संतों ने इसी को कहा है । चाह गयी । चिंता गयी । मनुआ बेपरवाह । जाको कछू न चाहिये । वो ही शहंशाह ।
तो पहले शून्य में थोडी हलचल या थोडा प्रकंपन vibration हुआ । 2 शून्य में ये प्रकंपन कुछ अधिक हो गया । 3 शून्य में कुछ और भी अधिक हुआ । 4 शून्य में ये vibration और भी बड गया । फ़िर 5 वां 0 और उसके बाद 6 वां शून्य । 7 वें शून्य में ये vibration अक्षर रूप में यानी निरंतर होने लगा । इसी एक विशेष धुनिरूपी vibration से जिसको शास्त्रों में अक्षर कहा गया है । पूरी सृष्टि का खेल चल रहा है । इसी से सूर्य चन्द्रमा तारे आदि गति कर रहे हैं । इसी से मनुष्य़ का शरीर बालपन जवानी बुडापा आदि को प्राप्त होता है । इसी से आज बनी एक मजबूत बिल्डिंग निश्चित समय बाद जर्जर होकर धराशायी हो जाती है । आधुनिक विग्यान की समस्त क्रियायें इसी vibration के आश्रित हैं । जैसे मोबायल फ़ोन से बात होना । वायरलेस इंटरनेट । टी . वी आदि के सिग्नल । हमारी आपस की बातचीत । यानी हम हाथ भी हिलाते है । तो वह भी इसी vibration की वजह से हिल पाता है । इसी को चेतन या करेंट भी कह सकते हैं । शुद्ध रूप में ये र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र इस तरह की धुनि है । बाद में आधा शक्ति या माया ने इसमें म्म्म्म्म जोड दिया । तब ये र्म्र्म्र्म्र्म्र्म्र्म्र्म इस तरह हो गया । सरलता से समझने के लिये रररररर हो रही धुनि माया से अलग हो जाती है । लेकिन जब तक रमरमरम ऐसी धुनि है । तब तक ये माया से संय़ूक्त हैं । इसीलिये राम को सबसे बडा माना जाता है । इसीलिये कहा जाता है । सियाराम मय सब जग जानी । करहुं प्रनाम जोरि जुग पानि । यही र और म पहले स्त्री पुरुष हैं । यही असली राम है ।
संत या योगी इसी को पाने की या जानने की लालसा करते हैं । यही आकर्षण यानी कृष्ण या श्रीकृष्ण भी है । मेरा अनुभव ये कहता है कि यदि आदमी संसार को निसार देखता है । या कामवासना धन ऐश्वर्य को भोग चुका है । और खुद की अपनी वास्तविकता जानना चाहता है । और उसे पतंजलि योग के ध्यान का थोडा पूर्व अभ्यास है । तो सिर्फ़ सात दिन में इस शून्य को जाना जा सकता है । बस शर्त यही है कि ये सात दिन उसे एकान्त में और बतायी गयी विधि के अनुसार अभ्यास करना होगा । इस तरह सुरति इस शब्द या अक्षर को जान लेगी । और यहां पहुंचकर सुरति निरति हो जायेगी । यानी सुनना बन्द करके प्रकृति के रहस्यों या माया को देखने लगेगी । क्योंकि यहीं से जुडकर आदि शक्ति यानी पहली औरत अपना खेल कर रही है । ये नारी रूपा प्रकृति अक्षर रूपी पुरुष या चेतन से निरंतर सम्भोग कर रही है । ये सब महज किताबी बातें नहीं सुरति शब्द योग द्वारा इसको आसानी से जाना जा सकता है ।
पर 9/08/2010 05:18:00 am
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