करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान(चेतन अमल सहज सुख राशी) PRACTICE MAKES PERFECT karat karat abhyas te jaDamati hot sujan
करत करत अभ्यास के जङमति होत सुजान,
रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान।
अर्थात जब रस्सी को बार-बार पत्थर पर रगङने से पत्थर पर निशान पङ सकता है तो, निरंतर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान बन सकता है। "करत करत अभ्यास के जडमती होत सुजान, रसरी आबत ज़ात ते शील पर परत निशान" इसलिये जब शिला या पथर पर जल बाल्टी से खिचंने से निशान पड जाता हैतो फिर क्या आपके चित या मन पर प्रभु का प्रभाव नही पड़ेगा? इसलिये जब बार बार प्रभु के चिनतन मे लगाएंगे तो मन धीरे धीरे अभयस्त हो जाता है. अर्जुन ने भी भगवान को युध छेत्र मे यही पूछा था की मन को बॅश मे कैसे किया जा सकता है क्योंकि मन तो बड़ा चंचल है. इसपर भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा की यदि बार बार कोई अभ्यास करें तो मन काबू मे होता है, ऐसा मेरा मत है.. इसलिये विषया वासना मे चुके मन पहले से लगा हुआ है तो वही तो सामने आयेगा.? इसे बार बार मन को एकाग्र जब आप करेगे तो फिर आपका चित इसके बॅश हो जायेगा. शरीर शूधीकरण अर्थात बाहरी शरीर की सफाई है अर्थात ख़ान पान सात्विक हो/ स्नान धयन जो हम आप रोज करते है. पर जो भितरी शूधीकरण है वो मन, या चित का है जो प्रभु के कथा, कीर्तन भजन और सत्संग से प्राप्त होता है. जब आप पहले एक कदम प्रभु के ओर बढायेगे तो फिर प्रभु किरपा भीः आपके और आने लगेगी और धीरे धैरे मन लगें लगेगा. पर प्रभु कथा और कितन बहजान सत्संग बराबर होने चाहिये आशा है आप सव कुछ जरूर समझे होंगे और कुछ शंका होत तो बताये. ||जय सिया राम||
कोइ साधु संत पथ्थरकी मुर्तिमे प्राणप्रतिश्ठान करते है तब वह मुर्ति मंदिर मे भगवानकी मुर्ती कहलाती है | पर मनुश्यका शरीर नाशवंत, जडभी कहते है और उसमे पहलेसेही परमात्मा प्राण प्रतीश्ठान करकेही जन्म होता है तो संतोको चहिएकी पथ्थरकी मुर्तिकी तरह मनुश्यके जिवनमें भी कुछ ऐसा हो के वे एक दुसरेके शरीर देख कर भगवानको देखा ऐसी दिलमे भावना बने और फिर ईस भारत की मरुभूमि(पृथ्वी) पर स्वर्ग बननेमे देर नही लगेगी ||
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