Sunday, 17 September 2017

काग पलट हंसा कर दीना। ऐसा पुरुष नाम मैं दीना॥ मैं जीवात्मा को परमपुरुष का सच्चा सजीवन नाम प्रदान करता हूॅं जिसमें कौआ को पूरी तरह से हंस में बदल देने की क्षमता है।

    मुख पृष्ठसाहिब बन्दगी विषय मेंसम्पर्क करेंडाउनलोडआम सवालशीघ्र होने वाले कार्यक्रमक्या नया है   संत सतगुरु मधु परमहंस साहिब  सत्य पुरुष को जानसी। तिसका सतगुरु नाम॥ एक गुरु जिसकी आत्मा पूर्ण रुप से परमपुरुष में समा कर उन्हीं का तद्रूप हो चुकी है, वह ही सच्चा सतगुरु है।   सतगुरु जी का पृथ्वी पर आगमन 18 अप्रैल 1950 (चैत्र सुदी पूर्णिमा) को सच्चे “संत सतगुरु मधु परमहंस जी ( जिन्हे सभी प्रेम से साहिब जी कहते हैं ) का अवतरण ( जन्म ) जिला सिहोरे भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत में हुआ। सतगुररु मधु परमहंस जी के बारे में (साहिब जी) संत सतगुरु मधु परम हंस जी के आध्यात्मिक ज्ञान का वर्णन कोई नहीं कर सकता, इनका ज्ञान असीम गहराई लिए हुये है। वे बचपन से ही एक सच्ची जाग्रत आत्मा हैं और बाल-ब्रहमचारी हैं ( वे शारीरिक या मानसिक रूप से किसी भी प्रकार के सेक्स सम्बन्धों से परे रहे हैं और अविवाहित हैं )। सन 1964 में, 14 वर्ष की आयु में वे हवेलियाँ, जिला गोंडा (उत्तर प्रदेश ), भारत में स्वामी गिरधरानंद परमहंस जी के सम्पर्क में आए। स्वामी गिरधरानंद परमहंस जी संतमत के जानकार थे और एक परमपुरुष की उपासना करते थे। स्वामी जी ने पाया कि मधु परमहंस जी बहुत ही आत्म केन्द्रित हैं और उनका उनके मन व शरीर पर अदभुद नियंत्रण है ( मन की नकारात्मक शक्तियों: काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार पर सम्पूर्ण नियंत्रण ) जो सदैव उनके हर कार्य में झलकता था। स्वामी जी हमेशा उन्हे पूर्ण सत्यवान, आत्म केन्द्रित, समर्पित, बुद्धिमान व प्रिय शिष्य पुकारा करते थे। मधु परमहंस जी गुरु भक्ति की महत्ता को गहराई से समझते थे। स्वामी जी ने मधु परम हंस जी मे सभी उन उच्च गुणों व विशेषताओं को पाया जो एक पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञानी पुरुष में होने चाहिए जिससे कि वह मानवता को उसके सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष की ओर अग्रसर कर सके। स्वामी जी ने मधु परमहंस जी के बारे में यह जानते हुए कि वह एक सच्चे संत हैं जिन्होने अपनी आत्मा का सम्पूर्ण साक्षात्कार कर लिया है और उनकी आत्मा की पहुँच अमरलोक (चौथे लोक) तक है तो स्वामी जी ने मधु परमहंस जी को अपने जीते जी ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इसी समय संत गिरधरानंद परमहंस जी ने उन्हे "संत सतगुरु" की उपाधि दी। सन 1967 में, 17 वर्ष की आयु में सतगुरु मधु परमहंस जी ने भारतीय सेना की मेहार रेजीमेंट में भर्ती हो गए और सन 1991 तक 24 साल देश की सेवा करते रहे इसके बाद उन्होने स्वेच्छा से भारतीय सेना से बतौर जूनियर कमिशन ऑफिसर ( J.C..O. ) सेवा निवृत्ति ली। आगमन का उद्देश्य 1970 से, संत सतगुरु मधु परमहंस जी ने उनके शिष्यों को परम पुरुष साहिब के संजीवन नाम का आशीर्वाद देना प्रारम्भ किया तथा आध्यात्मिक सत्संग द्वारा जीवों को जीवन का सत्य ज्ञान देना शुरू किया। साहिब जी का एक मात्र उद्देश्य है कि आत्माओं को उनके वास्तविक उद्देश्य और मानव जीवन की महत्ता समझाना तथा उन्हे मन, माया के चंगुल से आजाद करके परम पुरुष तक पहुंचाना। साहिब जी बताते हैं कि सत्य भक्ति में अवगुण, बुराई, असत्य, हिंसा और आलोचना के लिए कोई स्थान नही है। वे स्वयं लोगो के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और आडंबरों व सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ रहे हैं। साहिब जी सभी धर्मग्रंथों का आदर करते हैं। उन्हे वेद, उपनिषद, भागवत गीता, रामायण, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल आदि ग्रन्थों का गहरा ज्ञान है । वे कभी भी किसी धर्म या समुदाय की भर्त्सना नही करते हैं। वास्तविकता तो यह है कि वे एक पूर्ण आध्यात्मिक सतगुरु हैं जिन्हे आध्यात्मिक सत्य को बताने के लिए किसी धर्मग्रंथ की आवश्यकता नही है क्योंकि वे स्वयं एक महापवित्र आत्मा हैं जिनके पास परम पुरुष की सभी आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं जो मन और माया अथवा शरीर की पहुँच से परे है। उन्होने प्रभु भक्ति की सभी पद्धतियों की सीमाओं की व्याख्या की जो आज के समय में मनुष्य कर रहा है साथ ही साथ इस ब्रहमाण्ड (3 लोक) की रचना का रहस्य भी उजागर किया। उनकी नि:स्वार्थ सेवा को देखकर जम्मू एंड कश्मीर सरकार ने उन्हे सन 2003 में “”महात्मा गांधी सेवा पुरस्कार”” से सम्मानित किया। सात स्वर्णिम सिद्धान्त भक्तों द्वारा निम्नलिखित सात स्वर्णिम सिद्धांतों को अपनाने की पूर्व शर्त पर ही सतगुरु मधु परमहंस जी उनको संतमत ( सत्य भक्ति ) की दीक्षा देते हैं। 1) सदैव सत्य बोलना। 2) शुद्ध शाकाहारी रहना। 3) नशीले व मादक पदार्थों का त्याग। 4) किसी भी रूप में जुआ नही खेलना। 5) न चोरी करना और न ही चोरी की वस्तुओं को खरीदना/रखना। 6) उच्च चरित्रवान रहना और किसी भी प्रकार के अनैतिक शारीरिक अथवा मानसिक सेक्स संबंध न बनाना। 7) हक हलाल की कमाई पर गुजर करना अर्थात शुद्ध व भ्रष्टाचारमुक्त आजीविका साधन। साहिब जी की प्रतिबद्धता साहिब जी स्पष्ट तौर से कहते हैं कि कोई भी इंसान उक्त सात स्वर्णिम सिद्धांतों का पालन तभी कर सकता है यदि उसे किसी पूर्ण संत सतगुरु द्वारा परम पुरुष का संजीवन नाम प्राप्त हो गया हो। इस नश्वर संसार में इस समय वे ही एकमात्र पूर्ण आध्यात्मिक संत सतगुरु है जिनके पास ““पारस सुरती”” है जिससे वे पृथ्वी के किसी भी मानव को अपने जैसा बना सकते हैं। वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति से किसी भी आत्मा को मन (जन्म-मरण के अंतहीन चक्र से स्थायी मुक्ति) के चंगुल से निकालकर मुक्त कर सकते हैं। ““पारस सुरती संत के पासा”” जिसके बारे में साहिब जी बार-बार कहते हैं कि “जो वस्तु मेरे पास है वह इस ब्रह्मांड में कहीं नही है”। किसी भी आत्मा को अपनी पारस सुरती के द्वारा मन के शिकंजे से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को “”नामदान”” कहा जाता है। जिसका मतलब है सच्चा आनुवांशिक आध्यात्म (सत्य आध्यात्मिक मार्ग में इसको “भृंगमता” कहते हैं)। साहिब जी के द्वारा संजीवन नामदान का आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरांत उनके हर शिष्य ने अनुभव किया है कि उनके साथ कोई अदृश्य शक्ति सदैव साथ है और जब भी वे (शिष्य) जाने या अनजाने में गलत कार्य करने की कोशिश करते हैं अथवा उन पर कोई मुशीबत आने वाली है तो वह अदृश्य ताकत उनको तुरंत आकर बचाती है और सही राह की ओर मार्गदर्शित करती है। यह अदृश्य शक्ति परम पुरुष साहिब के संजीवन नाम की शक्ति ही है जिसके बारे में साहिब जी हमेशा कहते हैं कि “जो वस्तु मेरे पास है वह इस ब्रह्मांड में कहीं नही है”। शिष्यों के इस दीक्षा संस्कार से ही एक स्वत: प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो अज्ञानता के अंधकार को दूर करने में मदद करती है तथा जीवात्मा मन माया के पर्दे को हटाने के योग्य हो जाती है, और जीवात्मा अपने मूल स्रोत परमपुरुष में समा जाती है जो काल निरंजन के इस नश्वर संसार से परे है। पूर्ण आध्यात्मिक सतगुरु की उपासना में सभी दैविक उपासना समा जाती हैं क्योंकि स्वयं संत सतगुरु ही एक ऐसा दर्पण है जिसमें हम परम पुरुष को देख सकते हैं और आज के समय में वह दर्पण है “संत सतगुरुमधु परमहंस जी”।  काग पलट हंसा कर दीना। ऐसा पुरुष नाम मैं दीना॥ मैं जीवात्मा को परमपुरुष का सच्चा सजीवन नाम प्रदान करता हूॅं जिसमें कौआ को पूरी तरह से हंस में बदल देने की क्षमता है।   प्राइवसी पालिसी । डिस्क्लेमर । फीडबैक । 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