Tuesday, 19 September 2017
ब्रह्मज्ञान से दीक्षित कर रहे है
satguru kirpa
Friday, January 14, 2011
अखियाँ हरी दर्शन की प्यासी, निस दिन रहत उदासी, सूरदास जी को मिली "दिव्यआंख" (पूर्ण सतगुरु की किरपा से) आज भी संभव है..
सूरदास जी प्रभु मिलन के लिए चल पड़े आखो से रिम झिम नीर और ह्रदय में ऐसे भाव"
प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो! समदरसी है नाम तिहारो चाहे तो पार करो!!
हे श्री हरि मैं अवगुणी हूँ, विकारी हूँ, बहुत बुरा हूँ, पर तुम तो समदरसी हो प्रभु! मैं नेत्रहीन सूर तुम्हे कैसे देखू प्रभु, मेरे मनमोहन तुम मुझसे क्यों कतराते हो, मुझे दर्शन दो प्रभु, अचानक से सूरदास जी एक गहरे गड्डे में जा गिरे, अनाथो के नाथ श्री हरि दोड़े चले आये मुलायम हाथो का सहारा देकर सूर अपने भक्त की रक्षा की, सूर जी प्रभु के हाथ का स्पर्श पाते ही समझ गये की ये हथेली तो भला मेरे माखनचोर के सिवा किसकी हो सकती है सूरदास जी के भावो को देखकर प्रभु उन्हें रूखा सूखा छोड़कर कर न जा सके, प्रभु ने उन्हें वो दृष्टि प्रदान की, आखे पाते ही सूरदास जी ने अपने श्याम सुन्दर का दर्शन किया, अब श्री हरि धीरे धीरे लोप होने लगे, सूर हृदये पर हाथ रख कर कह उठे और की जा रहे हो मोहन..? अच्छा तो ये आँखे भी साथ ले जायो, इन्हें वापिस अँधा कर दो, प्रभु बोले नहीं नहीं बाबा, और सूर जी जी बोले प्रभु ये आँखे किसे देखने के लिए मैं अपने पास रखू,, आज श्री कृष्ण ने सूरदास जी को वो वरदान दिया जो आज के समाज को इसकी अत्यंत आवश्यकता है, ठीक है सूर मैं इन स्थूल आँखों को तो लेकर जा रहा हूँ, लेकिन शीघ्र मैं दक्षिण दिशा से एक पूरण सतगुरु के रूप में आऊंगा, और वो तुझे इन आँखों से भी श्रेठ दिव्य आँख देंगे जिससे जी तू हर स्वास में मेरी लीलायों का दर्शन कर पायेगा , इतिहास गवाह है की वज्र के पास गौघाट पर उन्हें पूर्ण गुरु वल्लभाचार्य मिले, और बोले सूर तेरे गुरु तेरी पीड़ा हरने आ गये है, सतगुरु वल्लभाचार्य ने सूरदास जी के माथे के बीचोबीच जन्म जन्मान्तरो के अंधेपन को दूर कर दिया, तीसरा नेत्र खुल गया, और श्री हरि की लीलाए शुरू हो गयी
सूरदास जी अपना अनुभव बता रहे है की सुनो सुनो जगतवासियों मेरे अन्दर मुरली की धुनें बज रही है, मेरी सुरती महाब्रमांड (सहस्त्रार) से जा टकराई है, हर किसी के शरीर में ही वो प्रभु बस्ता है, आज मैंने अपने अन्दर प्रभु के करोड़ो रूपों को देखा है, जिसको देखने के लिए आज हर इंसान बहार भाग रहा है,
सूरदास जी आज कह रहे है की "सतगुरु गगन गली घर पाया, सिंध में बुंद समाया, मेरे भाइयो सतगुर जब मिलते है तो वो कोई बाहरी नाम दान नही देते, मन्त्र माला जपने जो नही कहते, वो तो सीधा परमात्मा का दर्शन हमारे अन्दर करवाते है, ये पूर्ण गुरु की पहचान है, आज मेरे भीतर और बहार का अँधेरा मेरे गुरु वल्लभाचार्य की किरपा से हट गया है
जब पूरण सतगुर मिलते है तो (अंतरमहल) का ताला टूट जाता है, अन्दर जाने का रास्ता खुल जाता है, “त्रिकुटी संगम जोती है रे, तह देखि लेवे गुर ज्ञान सेती” हम सभी की त्रिकुटी (भोहो के बीच) में एक दिव्य ज्योति है, और सतगुरु से ब्रह्मज्ञान मिलने के बाद ही प्रकट होती है, जो गुरु हमे हमारे भीतर इश्वर और उसकी नगरी का दर्शन करा, सच में वही सतगुरु है, अगर सतगुरु नाम की कोई सत्ता है तो वो प्रभु दर्शन कराए, अगर दर्शन नही सिर्फ कथा कहानिया, तो यानी पूरण गुरु की खोज करो.....
ब्रह्मज्ञान हृदय में "ब्रह्मा" के प्रकाश स्वरुप का प्रतक्ष दर्शन करना है, हर युग में पूर्ण गुरुओ ने इश्वर जिज्ञासुओ को इसी ज्ञान से दीक्षित किया है, और आज श्री आशुतोष जी महाराज जी समाज को इसी ब्रह्मज्ञान से दीक्षित कर रहे है, नितांत निशुल्क रूप से!

shilpa at 11:07 PM
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1 comment:

chunaram bishnoiApril 29, 2012 at 2:04 AM
shilpaji!aapne sant soordasji ke samne krisn kanhai ko bitha kar unke tanpure per sweet bhajan gate v sunne ki unique scene pesh kia!mere dil bhaktimaya ho gya!aap isse hi gret guru se mujhe milao ki surati sunn me ja mile!
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