मुख पृष्ठसाहिब बन्दगी विषय मेंसम्पर्क करेंडाउनलोडआम सवालशीघ्र होने वाले कार्यक्रमक्या नया है   संत सम्राट सतगुरु कबीर साहिब (1398 - 1518)  क-का केवल नाम है, ब-बा बरन शरीर। र-रा सब मे रम रहा, जिसका नाम कबीर।। एक शुद्ध परम चेतन सत्ता जिसका अस्तित्व पांच तत्वों, मन तथा शरीर से परे है और हर जीवित प्राणी में विद्यमान है, वह कबीर है।   कबीर साहिब का पृथ्वी पर अवतरण संत सतगुरु कबीर साहिब जी ज्येष्ठ की पूर्णिमा (मई माह के मध्य में पड़ने वाला एक महान दिन) को सन 1398 में काशी में लहरतारा नामक तालाब पर मनुष्य रूप में अवतरित हुए। लहरतारा तालाब पर एक कमल के फूल पर आकाश से सफ़ेद चमकदार प्रकाश पड़ा और जो एक शिशु के रूप में परिवर्तित हो गया। इसी समय अष्टानंद जी (स्वामी रामानन्द जी के शिष्य) लहरतारा तालाब के पास ध्यान में बैठे थे, इन्होने कबीर साहिब जी के अवतरण को देखा और इस अतिविशिष्ट चमत्कार को देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुए। पूर्ण अचरज के साथ अष्टानंद जी ने यह सारी घटना अपने गुरु स्वामी रामानन्द जी को सुनाई। इस अचरज भरी घटना को सुनकर स्वामी रामानन्द ने कहा कि अब से कुछ समय बाद पूरा संसार इस बच्चे को जान जाएगा। यही बालक संसार में संत सम्राट सतगुरु कबीर साहिब के नाम से सुप्रसिद्ध हुआ। कबीर जी के अवतरण का उद्देश्य कबीर साहिब जी का पृथ्वी पर आने का सिर्फ एक ही उद्देश्य था और वह था आत्माओं को सत्य भक्ति के प्रति जागरूक करना। अपने जीवन के 120 वर्षों में उन्होने संसार को सिर्फ एक परमात्मा अर्थात सत्यपुरुष की भक्ति करने के लिए प्रेरित किया, जो केवल एक जीवित सच्चे सतगुरु की कृपा द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है कबीर साहिब जी ने “ब्रहमांड के प्रभु” के सभी रहस्य खोल-खोल कर बताए । उन्होने कहा कि यह प्रभु और कोई नहीं बल्कि निराकार मन ( शैतान मन या निरंजन या कालपुरुष ) ही है । उन्होने बताया कि सभी धर्म इसी “ब्रहमांड के प्रभु” की उपासना इसके निर्गुण या सर्गुण रूप में कर रहे हैं। उन्होने अमरलोक (चौथे लोक) के रहस्य को बताया जो कि परमपुरुष का वास्तविक निवास है और जिसका अस्तित्व ब्रहमांड (3 लोकों व पांचों तत्वों) से परे है। साथ ही मानव कल्याण के लिए वे आडंबरों के विरूद्ध लड़े। उन्होने परम मोक्ष का मार्ग दिखाया जिसको जीवित पूर्ण आध्यात्मिक संत सतगुरु की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है। कबीर साहिब जी के बारे में कबीर साहिब जी ने आध्यात्म के सामाजिक ढांचे को सही परिप्रेक्ष्य में परिवर्तित किया। उन्होने हमेशा सामाजिक आडंबरों का विरोध किया। उन्होने अपनी विचारधारा और सत्यभक्ति की शिक्षाओं द्वारा भक्ति को एक नया आयाम दिया जो “संतमत” की विचारधारा कहलायी। संत व सतगुरु शब्दों की उत्पत्ति स्वयं कबीर साहिब जी से ही हुयी है। कबीर जी हमेशा सत्य के बारे में बोलते थे और उन सभी सत्यों को उजागर करते थे जिससे मानवता अनभिज्ञ थी। उन्होने हमेशा केवल परमपुरुष की भक्ति का उपदेश दिया जो कुछ स्वार्थी धार्मिक नेताओं द्वारा स्वीकार्य नही था। मानवता के इतिहास में कबीर साहिब जी ही केवल एक संत हैं जिनको 52 बार मौत की सजा दी गई जिसको “बावन कसनी” भी कहा जाता है। कबीर साहिब की सत्यभक्ति का अनुसरण करने वाले भक्तों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होते देख कुछ स्वार्थी नेताओं को अपना धार्मिक आधिपत्य व रोजी-रोटी खो जाने का डर सताने लगा इसीलिए ये कबीर साहिब जी के बारे में गलत धारणायेँ व भ्रांतियाँ फैलाने लगे। कुछ इनको एक अविवाहित ब्राह्मणी महिला का पुत्र बताने लगे तो कुछ नाजायज औलाद के रूप में इनके बारे में चर्चा करने लगे। और तो और आज भी उनका जन्म व जीवन संसार के लिए रहस्य बना हुआ है। कबीर साहिब ने खुद अपना रहस्य बताया है और वास्तविकता को उन्होने खुद अपने शब्दों में इस प्रकार बखान किया है:  मैं सीधे ही परम पुरुष के गुप्त स्थान से पृथ्वी पर आकाश के माध्यम से आते एक विशुद्ध सफ़ेद प्रकाश के रूप में अवतरित हुआ हूँ, मेरी असली पहचान को कोई नहीं जान पाया। मैं माँ के गर्भ में रहे बिना सीधे ही बालक के रूप में अवतरित हुआ। मैं एक जुलाहे को लहरतारा तालाब पर काशी में मिला, मेरी न तो कोई पत्नी है न ही कोई संबंध। मेरा नामकरण संस्कार नीरू नामक जुलाहे के घर में हुआ। जिसकी वजह से पूरे जग में हंसी उडी। मेरा निवास अमरलोक है, मैं परमपुरुष की इच्छा से आत्माओं को काल पुरुष (मन/काल निरंजन) के शिकंजे से मुक्त कराकर उनको उनके वास्तविक निवास अमरलोक में वापस लेने के लिए आया हूँ।  कबीर साहिब जी का पृथ्वी से गमन हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों में कबीर साहिब जी लोकप्रिय थे। कबीर साहिब जी ने मगहर में सन 1518 में यह घोषणा कर दी थी कि वह माघ सुदी की एकादशी (जो कि लोहड़ी के दूसरे दिन होता है) को इस संसार से चले जाएगें। आम जनता और कबीर साहिब के शिष्य घोषित तिथि को मगहर में एकत्र हो गए। दोनों समुदाय उनके पार्थिव शरीर की मांग करने लगे लेकिन उनका शरीर चमत्कारिक रूप से कमल के फूलों में परिवर्तित हो गया। अंतत दोनों समुदायों ने कमल के फूलों को आपस में बाँट लिया। कबीर साहिब जी के शरीर त्यागने के उपरांत दोनों समुदायों में विवाद को देखकर निम्नलिखित आकाशवाणी हुई, जो पवित्र संतों को उनके जीवन काल में न पहचानने तथा उचित सम्मान न दिये जाने की मूर्खता को महसूस कराती है।  उठाओ पर्दा, नहीं है मुर्दा। ऐ रे मूरख नादाना, तुमने हमको नहीं पहचाना॥ चादर उठाओ और स्वंय देखो, उसके नीचे कोई मृत शरीर नहीं है। यह तुम्हारी मूर्खता है कि तुम मेरे सत्य स्वरुप को पहचान नहीं पाए।   प्राइवसी पालिसी । डिस्क्लेमर । फीडबैक । कापीराइट । साइट मानचित्र © 2017 कापीराइट। सभी अधिकार आरक्षित यह साईट सर्वोत्कृश्ट रुप से Internet Explorer 9, Chrome 32.0.1700.4, Mozilla Firefox 28.0, Safari 5.1.7, Opera 20.00 Build 1387.64 और उपर्युक्त संस्करणों पर देखें।   
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